क्षेत्रीय स्तर पर उत्पादन और वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल वाली छोटी जिंसों में पिछले वित्त वर्ष में असाधारण मुनाफा मिला है। ग्वार गम और जानवरों के चारे ग्वार का प्रदर्शन सभी जिंसों में सबसे अच्छा रहा। इसका कारोबार मोटे तौर पर मंडियों और ऑनलाइन एक्सचेंज पर होता है और इस साल घटते उत्पादन अनुमान के चलते इसमें अच्छी खासी तेजी दर्ज की गई। ग्वार गम और ग्वार में निवेश पर पिछले वित्त वर्ष में क्रमश: 953.68 व 884.62 फीसदी का मुनाफा हुआ। क्षेत्रीय और वैश्विक मांग में बढ़ोतरी के चलते अन्य जिंसों मसलन मेंथा तेल में 118.25 फीसदी और काली मिर्च में 59.44 फीसदी का मुनाफा मिला। मिर्च, हल्दी और कपास का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और पिछले वित्त वर्ष में इसकी कीमतें 30 से 60 फीसदी तक लुढ़क गईं। हालांकि यह अलग बात है कि ऐसी बहती गंगा में कुछ ही कारोबारी हाथ धो पाए क्योंकि छोटे निवेशक कारोबार से दूर रहे।
इस कदम से हालांकि कुछ बड़ी जिंसों की बुआई और कुल उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिसका प्रदर्शन छोटी जिंसों के मुकाबले अच्छा नहीं रहा। पुरानी प्रवृत्ति पर नजर डालें तो इन जिंसों की बुआई में इस साल भी बढ़ोतरी की उम्मीद है। सामान्य तौर पर किसान अपनी जोत का बड़ा हिस्सा उन जिंसों को समर्पित कर देता है, जिसमें उसे सबसे ज्यादा प्रतिफल मिलता है। इसके परिणामस्वरूप रकबा और उत्पादन दोनों में इजाफा होता है और अगले सीजन में उसकी कीमतें धराशायी हो जाती हैं। अगले सीजन में इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा - 'काफी कुछ हालांकि सरकार द्वारा घोषित किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य पर निर्भर करेगा। किसान धान और गेहूं को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उसके निश्चित खरीदार होते हैं और कीमतें भी। वे इस राह को शायद ही छोड़ेंगे, चाहे अरहर व उड़द और सोया व मूंगफली जैसी फसलों को पिछले वित्त वर्ष में ज्यादा कीमतें मिली हो।'
केडिया कमोडिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सीजन में 12.09 लाख टन ग्वार उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले सीजन में 15 लाख टन ग्वार का उत्पादन हुआ था। घटते उत्पादन के बीच तेल की खोज, कपड़ा, पेपर, दवा आदि में इस्तेमाल किए जाने वाले ग्वार गम की मांग पिछले एक साल में कई गुणा बढ़ गई है। छोटी जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी की दूसरी वजह फंडामेंटल है। उपभोग बढऩे के साथ पिछले कुछ सालों से इसका उत्पादन स्थिर है। हालांकि कृषि जिंसों के कुल उत्पादन में करीब 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी होती रही है, लेकिन दलहन, मोटे अनाज और तिलहन जैसी जिंसों के उत्पादन में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई है। चूंकि इन जिंसों का भंडार नहीं होता, लिहाजा किल्लत के दौर में कीमतों पर यह प्रतिबिंबित हो जाता है। साथ ही सरकार भी एमएसपी में औसतन 10 फीसदी की बढ़ोतरी करती रही है। सबनवीस ने कहा -सोने व चांदी में हाजिर मांग, निवेश मांग और ईटीएफ के जरिए उछाल आती है।
इस बीच, किसानों ने मेंथा तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए पहले ही इसके पक्ष में प्रत्युत्तर देना शुरू कर दिया है। मेंथा की बुआई का 50 फीसदी काम पूरा हो चुका है। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि किसान पिछले साल के 118 फीसदी प्रतिफल से उत्साहित हैं। ऐसे में इस साल मेंथा का रकबा कम से कम 20 फीसदी बढऩे का अनुमान है। वैश्विक निवेशक अभी भी सोना को निवेश का सुरक्षित साधन मान रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप सोने ने पिछले एक साल में 16.48 फीसदी का रिटर्न दिया है। वैश्विक विनिर्माण गतिविधियों में गिरावट के चलते चांदी का रिटर्न हालांकि 14.32 फीसदी लुढ़क गया। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - सोना, चांदी, तांबा और कच्चे तेल जैसे अंतरराष्ट्रीय जिंस में वैश्विक अर्थव्यवस्था के हिसाब से उतारचढ़ाव होता है। (BS Hindi)
03 अप्रैल 2012
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