रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की ओर से देश के परिदृश्य रेटिंग घटाए
जाने से भले ही थोड़ी मायूसी हुई हो लेकिन मॉनसून की भविष्यवाणी ने
अर्थव्यवस्था को खुश होने का मौका दिया है। भारतीय मौसम विभाग ने आज 2012
के लिए मॉनसून की भविष्यवाणी में कहा कि इस साल देशभर में मॉनसून सामान्य
रहने की उम्मीद है। हालांकि मौसम विभाग ने अल-नीनो के प्रभाव को भी पूरी
तरह से नहीं नकारा है। अल-नीनो के चलते मॉनसून कमजोर पड़ जाता है, जिसके
चलते अपेक्षाकृत कम बारिश होती है।
2012 में पहली आधिकारिक भविष्यवाणी में मौसम विभाग ने कहा है कि इस बार मॉनसून सत्र में लंबी अवधि में औसतन 99 फीसदी बारिश होने की संभावना है। पूरे सीजन के दौरान औसतन 99 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य मॉनसून माना जाता है।
विभाग ने कहा कि इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना 47 फीसदी है जबकि सामान्य कम मॉनसून की संभावना 24 फीसदी है। मौसम विभाग के महानिदेशक एल एस राठौड़ ने कहा, 'इस बार देशभर में 88 सेंटी मीटर बारिश होने की उम्मीद है।' हालांकि अल-नीनो का खतरा भी है जिसके चलते मॉनसून पर असर पड़ सकता है।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल इस बात की संभावना कम है कि मौसम की परिस्थितियों के चलते मॉनसून पर कोई असर पड़ सकता है। लेकिन मॉनसून सत्र के अंतिम दौर यानी अगस्त के दौरान अल-नीनो के खतरे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता।
मौसम विभाग में लंबी अवधि की भविष्यवाणी विभाग के प्र्रमुख डॉ. डी शिवानंद पई ने कहा, 'मौसम विभाग ने 15 मौसम मानदंडों का अध्ययन किया है, जिसके आधार पर मॉनसून सामान्य रहने की संभावना 60 से 65 फीसदी है। इस साल भारतीय मॉनूसन पर अल-नीनो का प्रभाव पडऩे की आशंका कम है।' अंतिम बार 2009 में मॉनसून पर अल-नीनो का व्यापक प्रभाव देखा गया था, जिसके चलते कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की विकास दर केवल 1 फीसदी रही थी। पई ने कहा, '2 से 7 साल के दौरान अल-नीनो कभी भी सक्रिय हो जाता है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि यह 2012 में वापस आ सकता है।'
जून से शुरू होने वाला दक्षिण-पश्चिम मॉनसून करीब चार माह तक रहता है जो न केवल देश के कृषि क्षेत्र के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम माना जाता है। कृषि की बात करें तो देश की कुल कृषि भूमि का करीब 55 फीसदी हिस्सा मॉनसून पर ही निर्भर करता है। मॉनसून में होने वाली बारिश का प्रभाव शीत ऋतु़ में रबी फसलों (गेहूं, सरसों आदि) पर भी देखा जाता है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान करीब 15 फीसदी है।
नैशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी रिसर्च के निदेशक रमेश चंद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'कृषि पर पडऩे वाले इसके असर की स्पष्ट तस्वीर उस समय आएगी जब क्षेत्रवार मॉनसून की भविष्यवाणी जारी होगी। दरअसल, कृषि उपज बारिश की मात्रा पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि अवधि, मात्रा और एकसमान बारिश पर निर्भर होती है।'
फसल की बेहतर पैदावार से खाद्यान्न कीमतों पर भी लगाम लग सकती है, जिससे सरकार कृषि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में कदम
उठा सकती है। मार्च में खाद्य महंगाई दहाई अंक के करीब पहुंच गई थी जो फरवरी में 6.07 फीसदी थी।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सामान्य मॉनसून के अनुमान पर कुछ अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ सकता है। इनमें यूरोप-एशिया में बर्फबारी (स्नो कवर) का योगदान होता है। पई ने कहा कि ज्यादा बर्फबारी से सामान्य मॉनसून की संभावना कम होती है। लेकिन भारतीय मॉनसून पर असर डालने वाले कई कारकों में से यह एक कारक है। (BS Hindi)
2012 में पहली आधिकारिक भविष्यवाणी में मौसम विभाग ने कहा है कि इस बार मॉनसून सत्र में लंबी अवधि में औसतन 99 फीसदी बारिश होने की संभावना है। पूरे सीजन के दौरान औसतन 99 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य मॉनसून माना जाता है।
विभाग ने कहा कि इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना 47 फीसदी है जबकि सामान्य कम मॉनसून की संभावना 24 फीसदी है। मौसम विभाग के महानिदेशक एल एस राठौड़ ने कहा, 'इस बार देशभर में 88 सेंटी मीटर बारिश होने की उम्मीद है।' हालांकि अल-नीनो का खतरा भी है जिसके चलते मॉनसून पर असर पड़ सकता है।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल इस बात की संभावना कम है कि मौसम की परिस्थितियों के चलते मॉनसून पर कोई असर पड़ सकता है। लेकिन मॉनसून सत्र के अंतिम दौर यानी अगस्त के दौरान अल-नीनो के खतरे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता।
मौसम विभाग में लंबी अवधि की भविष्यवाणी विभाग के प्र्रमुख डॉ. डी शिवानंद पई ने कहा, 'मौसम विभाग ने 15 मौसम मानदंडों का अध्ययन किया है, जिसके आधार पर मॉनसून सामान्य रहने की संभावना 60 से 65 फीसदी है। इस साल भारतीय मॉनूसन पर अल-नीनो का प्रभाव पडऩे की आशंका कम है।' अंतिम बार 2009 में मॉनसून पर अल-नीनो का व्यापक प्रभाव देखा गया था, जिसके चलते कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की विकास दर केवल 1 फीसदी रही थी। पई ने कहा, '2 से 7 साल के दौरान अल-नीनो कभी भी सक्रिय हो जाता है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि यह 2012 में वापस आ सकता है।'
जून से शुरू होने वाला दक्षिण-पश्चिम मॉनसून करीब चार माह तक रहता है जो न केवल देश के कृषि क्षेत्र के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम माना जाता है। कृषि की बात करें तो देश की कुल कृषि भूमि का करीब 55 फीसदी हिस्सा मॉनसून पर ही निर्भर करता है। मॉनसून में होने वाली बारिश का प्रभाव शीत ऋतु़ में रबी फसलों (गेहूं, सरसों आदि) पर भी देखा जाता है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान करीब 15 फीसदी है।
नैशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी रिसर्च के निदेशक रमेश चंद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'कृषि पर पडऩे वाले इसके असर की स्पष्ट तस्वीर उस समय आएगी जब क्षेत्रवार मॉनसून की भविष्यवाणी जारी होगी। दरअसल, कृषि उपज बारिश की मात्रा पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि अवधि, मात्रा और एकसमान बारिश पर निर्भर होती है।'
फसल की बेहतर पैदावार से खाद्यान्न कीमतों पर भी लगाम लग सकती है, जिससे सरकार कृषि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में कदम
उठा सकती है। मार्च में खाद्य महंगाई दहाई अंक के करीब पहुंच गई थी जो फरवरी में 6.07 फीसदी थी।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सामान्य मॉनसून के अनुमान पर कुछ अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ सकता है। इनमें यूरोप-एशिया में बर्फबारी (स्नो कवर) का योगदान होता है। पई ने कहा कि ज्यादा बर्फबारी से सामान्य मॉनसून की संभावना कम होती है। लेकिन भारतीय मॉनसून पर असर डालने वाले कई कारकों में से यह एक कारक है। (BS Hindi)
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