कपास पर साल 1986 की तरह सख्ती बढ़ सकती है क्योंकि तब इसे आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे में लाया गया था और कपास आवश्यक जिंस बन गई थी। अगर हम प्रस्तावित कपास व्यापार (विकास व विनियमन) अधिनियम 2012 के मसौदे पर नजर डालें तो मामला कुछ इसी तरह का नजर आ रहा है। इस मसौदे में कपास पर केंद्र सरकार के पूर्ण नियंत्रण का प्रस्ताव है। अगर कपास के उत्पादन, प्रसंस्करण व विनिर्माण पर राज्यों के मौजूदा कानून केंद्र सरकार के प्रस्तावित कानून का उल्लंघन करते नजर आएंगे तो केंद्र को उन पर जुर्माना लगाने का अधिकार होगा।
इस विधेयक के मसौदे में सभी जिनिंग व प्रसंस्करण वाली इकाइयों, कपास के कारोबारियों और सूती धागेके विनिर्माताओं को कानून बनने के तीन महीने के भीतर कपड़ा आयुक्त के पास फिर से पंजीकरण कराना होगा और उन्हें अपने परिसर में स्थायी तौर पर गांठों की पहचान की व्यवस्था स्थापित करनी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी प्रसंस्करण व जिनिंग इकाइयों को ताजा मार्क नंबर दिए जाएंगे और पुराने नंबर अवैध हो जाएंगे।
अधिकारियों ने कहा कि आयुक्त के कार्यालय से नए प्रेस मार्क हासिल किए बिना कपास की कोई भी इकाई गांठों पर इसे नहीं लगा पाएंगी। अधिकारियों ने कहा कि प्रेस हाउस से बिना मार्क वाले गांठ हटाने पर 5000 रुपये प्रति गांठ प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना देना होगा। उन्होंने कहा कि ये कदम कच्चे कपास के आकलन, उत्पादन और खपत को विनियमित करने के लिए उठाए जाएंगे क्योंकि आंकड़े संकलित करने के लिए कोई वैधानिक ढांचा नहीं है और इसके चलते कपास सलाहकार बोर्ड को कपास की बैलेंस शीट तैयार करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं वजहों से आधिकारिक व कारोबारी आंकड़ों में अंतर दिखता है। उद्योग के सूत्रों ने कहा कि जल्द ही कपास पंजीकरण के मौजूदा नियम सख्त हो जाएंगे। मौजूदा समय में कोई अनिवार्यता नहीं है कि कपास के कारोबार से जुड़ी इकाइयां आयुक्त के कार्यालय में अपना पंजीकरण कराए। फिलहाल कपड़ा आयुक्त के नियम व कानून ऐच्छिक हैं। अभी कपास की जिनिंग करने वाली इकाइयां या अन्य इकाइयां हर सीजन मेंं अपने परिसर में रजिस्टर रखती हैं और उसमें जिनिंग व दूसरी चीजों के बारे में आंकड़े रखती हैं यानी इसका खुलासा करती हैं। इसके अलावा हर सीजन में लिंट के उत्पादन का ब्योरा भी देना पड़ता है और इसमें नाकाम रहने पर इकाइयों को 50,000 रुपये जुर्माना चुकाना पड़ता है।
इसके अलावा कपास जिनिंग इकाइयां, स्वतंत्र प्रेसिंग फैक्ट्रियां व कारोबारियों को मासिक उत्पादन का रिटर्न दाखिल करना होता है और इसमें नाकाम रहने पर कानून के तहत उन्हें सजा मिलती है। पहले रिटर्न फाइल करना और रजिस्टर बनाना ऐच्छिक था, न कि कानूनी रूप से अनिवार्य। एक ओर जहां कपास का प्रसंस्करण करने वाली हर इकाई या नई इकाइयों को इसकी स्थापना के 30 दिन के भीतर सूचना दाखिल करनी होती है, लेकिन नई फैक्ट्री की स्थापना पर भी अब सूचना देनी होगी। (BS Hindi)
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