दस लाख टन चीनी निर्यात के फैसले के करीब तीन हफ्ते बाद निर्यात के विवादास्पद तौर-तरीके का फैसला अधिकारप्राप्त मंत्रियों का वही समूह करेगा क्योंकि खाद्य व कृषि मंत्रालयों के बीच उठे विवाद के चलते निर्यात की अधिसूचना जारी होने में देर हो रही है। 26 मार्च को निर्यात के फैसले के बाद भेजे संदेश में ईजीओएम ने खाद्य मंत्रालय से इसके तरीके को अंतिम रूप देने को कहा है और इसके लिए समानता व पारदर्शिता के सिद्धांत अपनाने को कह रहा है। इसका मतलब है मिलों के हिसाब से निर्यात कोटा आवंटन की पुरानी व्यवस्था को जारी रखना, लेकिन यह पहले आओ, पहले पाओ की व्यवस्था से अलग होगी, जिस पर ईजीओएम ने चर्चा की थी। व्यवस्था में बदलाव से बंदरगाह के आसपास मौजूद मिलों को फायदा होता, लेकिन उत्तरी राज्यों की मिलों पर इसका असर दिखाई देता। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तरी राज्यों की मिलें पुरानी व्यवस्था के तहत निर्यात कोटे की बिक्री के जरिए थोड़ा बहुत मुनाफा अर्जित करने की स्थिति में होती।
ईजीओएम की बैठक का ब्योरा खाद्य मंत्रालय पहुंचने के बाद कृषि मंत्री शरद पवार ने वित्त मंत्री व ईजीओएम के प्रमुख प्रणव मुखर्जी को पत्र लिखा और ईजीओएम की बैठक व वास्तविक ब्योरे के अंतर को उजागर किया। इस बीच, उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों मसलन बिड़ला, द्वारिकेश, डीसीएम श्रीराम आदि ने पुरानी व्यवस्था की जगह पहले आओ पहले पाओ की व्यवस्था का विरोध जारी रखा। हालांकि खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा कि मिलों के हिसाब से निर्यात कोटे का आवंटन जारी रहेगा।
लेकिन खाद्य मंत्रालय ने अपना नजरिया बदला और निर्यात के नए तौर-तरीके समानता व पारदर्शिता के सिद्धांत पर मुखर्जी की मंजूरी लेने का फैसला किया। इस प्रगति से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि वित्त मंत्री ने यह मामला तय नहीं किया है और शुक्रवार को इसे एक बार फिर ईजीओएम के पास ले जाने का फैसला हुआ ताकि निर्यात के तरीके पर आमसहमति से कोई फैसला हो। ईजीओएम की बैठक की तारीख की जानकारी अभी हालांकि नहीं है।
सूत्रों ने बताया कि यह पहला मौका होगा जब ईजीओएम का फैसला दोबारा ईजीओएम की बैठक में इसे लागू करने के तौर-तरीके पर फैसला लेने के लिए जाएगा। निर्यात व्यवस्था में प्रस्तावित बदलाव ने न सिर्फ कृषि व खाद्य मंत्रालयों में मतभेद पैदा कर दिया है बल्कि उद्योग भी दो हिस्सों में बंट गया है। एक ओर जहां दक्षिण व पश्चिम की कंपनियां पहले आओ पहले पाओ की व्यवस्था लागू करने की मांग कर रही हैं, वहीं उत्तर भारत की मिलों का तर्क है कि इस बदलाव से उन्हें नुकसान होगा और इसके नतीजे में गन्ना किसानों को भुगतान में देरी होगी।
उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इस भ्रम का खामियाजा उन्हें भी भुगतना होगा क्योंकि दुनिया में चीनी के सबसे बड़े उत्पादक देश ब्राजील में एक महीने से भी कम समय में उत्पादन शुरू हो जाएगा और इससे निर्यात बाजार से मिलने वाले लाभ पर दबाव बढ़ जाएगा। (BS Hindi)
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