अमेरिका में क्यूई3 यानी राहत पैकेज के तीसरे चरण की संभावना घटने और यूरो जोन के आर्थिक संकट में धीमे सुधार से अल्पावधि में सोने की कीमतें सुस्त बनी रहेंगी। लेकिन लंबी अवधि में सोने की कीमतें सुधर कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती हैं।
वैश्विक कीमती धातु सलाहकार कंपनी थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस के बुधवार को जारी सर्वे के अनुसार अगले एक या दो महीने में सोने की कीमतें गिरकर 1,550 डॉलर प्रति औंस से नीचे आ जाएंगी। हालांकि सलाहकार कंपनी अपने पिछले पूर्वानुमान पर कायम है, जिसमें उसने कहा था कि चालू वर्ष के अंत तक सोना 2,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर को छू सकता है। इस साल की शुरुआत में सोने की कीमत गिरकर 16,00 डॉलर प्रति औंस से नीचे आ गई थी, लेकिन बाद में सुधर कर यह फिलहाल लंदन में 1,658.9 डॉलर प्रति पर कारोबार कर रहा है।
थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस के वैश्विक प्रमुख (धातु विश्लेषण) फिलिप क्लैपविज ने सोने में निवेश करने वालों को सतर्क रहने की सलाह देते हुए कहा, 'कीमत 1,600 डॉलर पर आना अचरज है। बहुत संभावना है कि यह धातु और भी नीचे जा सकती है, संभवत: अगले एक या दो महीने में 1,550 डॉलर से नीचे।'
क्लैपविज ने कहा कि हमारा मानना है कि मध्यम अवधि में सोने में तेजी रहेगी। उन्होंने कहा, 'हम पिछले साल सितंबर का रिकॉर्ड टूटते आसानी से देख सकेंगे और दिसंबर 2012 से पहले इसके 2,000 डॉलर के आसपास पहुंचने की संभावना है। हालांकि यह आंकड़ा पूरी तरह अगले वर्ष की पहली छमाही में टूट सकता है।'
वर्ष के दौरान इस स्थिति में बदलाव की प्रमुख वजह यूरोजोन सॉवरिन ऋण संकट फिर से उभरना है। यूरो जोन के लिए अब स्पेन चिंता का विषय बन गया है। इसके अलावा यह भी माना गया था कि अगले कुछ महीनों में अमेरिका में सुधार थम जाएगा, जिससे फेडरल रिजर्व को अतिरिक्त मौद्रिक उपाय अपनाने होंगे। इन दोनों वजहों से मौद्रिक तरलता में सुधार की संभावना जताई गई थी।
उन्होंने कहा, 'इन मौद्रिक उपायों से महंगाई के फिर सिर उठाने की संभावना है और यदि ईरान व अमेरिका के बीच तनाव बढऩे से तेल की कीमतों में इजाफा हुआ तो महंगाई और बढ़ सकती है।'
निवेशकों को केंद्रीय बैंक की नीतियों में बदलाव से प्रोत्साहन भी मिला क्योंकि पिछले साल अधिकृत तौर पर खरीद में 450 टन से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस वृद्धि का मुख्य कारण अगले वर्ष में केंद्रीय बैंक स्वर्ण समझौते के हस्तारक्षरकर्ताओं द्वारा कम बिक्री करने और डॉलर के बजाय अन्य परिसंपत्ति को तरजीह देने के इच्छुक लोगों की भारी खरीद को माना गया।
फंडामेंटल आधार पर सबसे अच्छा पहलू यह रहा कि 2011 में आभूषण निर्माण में केवल दो फीसदी ही गिरावट आई। उन्होंने कहा, 'बाजार स्पष्ट रूप से उभरते हुए बाजारों की आर्थिक शक्तियों पर निर्भर था। जैसे चीन में आभूषणों की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची और भारत में गिरावट 3 फीसदी से कम रही। (BS Hindi)
12 अप्रैल 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें