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04 फ़रवरी 2009

बरसात ने बिगाड़ दिया दाल का मिजाज

कानपुर February 04, 2009
बारिश की वजह से दलहन फसलों के तैयार होने में देरी के चलते पिछले कुछ सप्ताह से दाल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
स्टॉकिस्ट और खुदरा विक्रेताओं ने कीमतें बढ़ा दी हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि दाल की आवक में अचानक कमी आ गई है।
महाराष्ट्र से आने वाली अरहर दाल में 700 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़त दर्ज की गई है और यह इस समय थोक बाजार में 4,900 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है।
मसूर दाल की कीमतें भी 5,00 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी हैं। जो दाल चार दिन पहले 5,100 रुपये प्रति क्विंटन के भाव बिक रही थी आज उसकी कीमतें 5,700 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष ज्ञानेश मिश्र ने कहा कि रबी की पिछली फसल कमजोर रही और इसके साथ ही महाराष्ट्र से आवक भी कम रही। इसके चलते आपूर्ति में कमी आ गई। इसी तरह से मध्य प्रदेश और राजस्थान से मार्च में आने वाली फसल भी देर से आई, क्योंकि जाड़े के समय में बारिश हो गई और इसके चलते फसल देर से तैयार हुई।
चना दाल, जो अब तक 2,500 रुपये प्रति क्विंटल बिकती थी, अब 2,900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रही है। इसी तरह की तेजी मटर दाल, उड़द दाल और मूंग दाल की कीमतों में भी देखी जा रही है। इनकी कीमतों में भी 10-20 प्रतिशत की तेजी आई है।
बाजार के थोक विक्रेताओं का कहना है कि पिछले दस साल में अरहर और मसूर दाल में इतनी तेजी नहीं देखी गई है। कारोबारी इस बात से भयभीत हैं कि अगले महीने तक दाल की कीमतें 25 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ सकती हैं। इसलिए वे इसमें सरकार के हस्तक्षेप की जरूरत बता रहे हैं।
हालांकि केवल पिछले महीने में थोड़ी राहत तब मिली जब सब्जियों की आवक बढ़ी और दाल की मांग में कमी आ गई। हालांकि कीमतों में गिरावट इतनी कम थी कि उससे कोई राहत नहीं मिली। मिश्र कहते हैं कि अब तो स्थिति ऐसी बन रही है कि महंगाई को नियंत्रित करना संभव नहीं लगता।
पिछले दस साल से इस इलाके में दाल के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। हालांकि इस दिशा में इंडियन इंस्टीच्यूट आफ पल्स रिसर्च (आईआईपीआर) ने तमाम कोशिशें कीं, जिससे इसकी खेती बढ़ सके।
इससे केवल उपभोक्ता ही नहीं प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि करीब 70 दाल मिलें बंद हो जाने की वजह से 1000 से ज्यादा कर्मचारी बेकार हो गए हैं। कच्चे माल के अभाव में दाल मिलें बंद हो रही हैं। पिछले साल के कुल उत्पादन 3,800 टन की तुलना में इस साल उत्पादन में 65 प्रतिशत की गिरावट आई है और अब यह 1,300 टन रह गया है, क्योंकि कुल 155 मिलों में से 70 बंद हो चुकी हैं।
दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद जायसवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि मिल मालिक इस समय दिवालिया होने की कगार पर हैं। उन्होंने करोड़ो रुपये निवेश किया है और उन्हें कोई फायदा नहीं मिल रहा है।
दाल मिल एसोसिएशन के सचिव गिरीश पालीवाल ने कहा कि थोक कारोबार करने वाले इस समय की कीमतों पर दालें नहीं खरीदना चाह रहे हैं क्योंकि इससे उनका मुनाफा बहुत कम हो गया है। इसका परिणाम यह हुआ है हमारे पास इस समय प्रसंस्करण के लिए दाल नहीं है।
हालांकि कुछ स्टॉकिस्टों की राय इस मामले में अलग है। मूलगंज में पल्स ट्रेडिंग कंपनी के मालिक राम नारायण यादव का कहना है कि आपूर्ति करने वालों के पास भी पर्याप्त दाल है, लेकिन मुनाफाखोर कृत्रिम कमी दिखाकर पैसे बना रहे हैं। (BS Hindi)

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