07 फ़रवरी 2009
इफको डील से टूटा फॉस्फोरिक एसिड सप्लायरों का कार्टेल
हाल ही में इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर्स कंपनी लिमिटेड (इफको) और इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) द्वारा 12 लाख टन डाई-अमोनियम फास्फेट (डीएपी) का 380 डॉलर प्रति टन की दर से किया गया सौदा देश के उर्वरक उद्योग के लिए वरदान साबित हुआ है। इसके चलते डीएपी के कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड की आपूर्ति करने वाली विश्व की बड़ी कंपनियों को कीमतों में भारी कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। देश में निजी क्षेत्र की कई उर्वरक कंपनियां हाल ही में कम कीमत पर इसका सौदा करने में कामयाब रही हैं।इफको और आईपीएल ने रूस की कंपनी फोसएग्रो एवं स्विस कंपनी एमीरोपा के साथ 380 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) की कीमत पर 12 लाख टन डीएपी का करार किया है। उर्वरक उद्योग के सूत्रों के मुताबिक इस सौदे के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डीएपी का कारोबार करने वाली कंपनियों के पास कीमत घटाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं बचा था।उक्त सूत्र के मुताबिक भारतीय उर्वरक कंपनियों को आखिरकार फॉस्फोरिक एसिड का त्नकार्टेलत्न तोड़ने में सफलता मिल गई है। अभी तक सप्लायर 1,200 डॉलर प्रति टन सीएंडएफ से कम कीमत पर फॉस्फोरिक एसिड सप्लाई करने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारत की दो उर्वरक कंपनियों ने इस कार्टेल को तोड़ते हुए तकरीबन 40 फीसदी कम दामों पर सौदे किए हैं। सूत्रों के मुताबिक कोरोमंडल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड और के.के. बिड़ला समूह की जुआरी इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 730-760 डॉलर प्रति टन के हिसाब से फॉस्फोरिक एसिड के सौदे किए हैं। इसका इस्तेमाल डाई-अमोनियम फास्फेट (डीएपी) बनाने में किया जाता है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक कोरोमंडल ने ट्यूनिशिया की जीसीटी और दक्षिण अफ्रीका की फोस्कॉर से 25,000 टन का आयात सौदा 730-760 डॉलर प्रति टन के हिसाब से किया है। वहीं, जुआरी इंडस्ट्रीज ने मोरक्को के ओसीपी समूह से ऐसा ही एक सौदा किया है। नकद भुगतान पर कंपनियों को 730 डॉलर प्रति टन देना होगा, जबकि 150 दिन की उधारी पर कंपनियों को 760 डॉलर प्रति टन देना होगा। सूत्रों का कहना है कि इन आयात समझौतों की वजह से आखिरकार फॉस्फोरिक एसिड सप्लायरों का कार्टेल टूट गया है।वर्ष 2007-08 के दौरान भारतीय डीएपी निर्माताओं ने महज 566.25 डॉलर प्रति टन सीएंडएफ पर मोल-भाव किया था। हालांकि जैसे ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में दामों में तेजी आई, सप्लायरों ने दाम बढ़ाने शुरू कर दिए। ये सप्लायर मिलकर भारत को सालाना 22-25 लाख टन फॉस्फोरिक एसिड सप्लाई करते हैं। इसी कार्टेल के चलते भारतीय कंपनियों को अप्रैल-जून 2008 के दौरान एक टन फॉस्फोरिक एसिड के लिए 2,200-2,300 डॉलर तक देने पड़े थे। इसके बाद दामों में थोड़ी नरमी आई, लेकिन इसके बावजूद सप्लायर 1,200 डॉलर के भाव से नीचे नहीं उतर रहे थे। भावों में तेजी बनाए रखने के लिए ओसीपी और जीसीटी ने तो अस्थायी रूप से अपने प्लांट भी बंद कर दिए थे।उक्त सूत्र का कहना है कि इफको और आईपीएल के सौदे से जब यह साबित हो गया कि फॉस्फोरिक एसिड से बनने वाला उत्पाद डीएपी 380 डॉलर प्रति टन पर मिल रहा है तो उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का भाव 1,200 डॉलर प्रति टन रखने का कोई तर्क नहीं बचता। डीएपी की मौजूदा वैश्विक कीमत को देखते हुए फॉस्फोरिक एसिड के दाम 700 डॉलर प्रति टन से ज्यादा नहीं होने चाहिए। (Business Bhaskar)
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