राजकोट February 06, 2009
मौसम की बेरुखी के चलते जीरा की फसल अच्छी नहीं है। कारोबारियों और बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में इस साल उत्पादन में 20-25 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
हालांकि अगर बुआई के क्षेत्रफल को देखें तो इस साल जीरे की बुआई अधिक हुई थी। लेकिन गुजरात में जाड़े के मौसम में कोहरे और नम जलवायु से जीरे की फसल को व्यापक नुकसान हुआ। इसका कारोबार करने वाले एक संगठन का कहना है कि इस साल जीरे का उत्पादन 28-30 लाख बोरियों से ज्यादा नहीं होगा (एक बोरी में 50 किलो होता है)।
वर्तमान में जीरे का अग्रिम स्टॉक 5-7 लाख बोरियों का है, जबकि पिछले साथ यह 10 लाख बोरी था। लेकिन अगर पिछले पांच सालों में स्थानीय मांग के बढ़ने पर गौर करें तो यह और कम हो सकता है।
ऊंझा के प्रसिध्द एक्सपोर्ट-इंपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक मिनेश पटेल ने कहा, 'जीरे की बुआई के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस साल जलवायु, फसल के अनुकूल नहीं रही। कोहरा और गर्म हवाओं ने फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया है और इससे कम से कम 20-25 प्रतिशत प्रभाव पड़ा है। भारत में इस समय अग्रिम स्टॉक करीब 7 लाख बोरियों का है।'
मुंबई के नरोत्तमदास हरिवल्लभ दास ऐंड कंपनी के महेंद्र शाह के मुताबिक, 'अच्छी क्वालिटी के जीरे के उत्पादन के लिए मौसम ठंढा होना बेहतर होता है। घरेलू मांग बढ़ने के साथ साथ जीरे की कीमतें गिर रही हैं, क्योंकि कारोबारी प्रॉफिट बुकिंग में लगे हैं।'
वर्तमान में बाजार बहुत उतार-चढ़ाव वाला है। कीमतें स्थिर नहीं हैं और कारोबारी पुराने स्टॉक पर मुनाफा वसूली में लगे हुए हैं। ऊंझा में बेहतरीन क्वालिटी के 20 किलोग्राम जीरे का मूल्य 2,100-2,150 रुपये पहुंच गया है, जबकि खराब क्वालिटी के जीरे की कीमत 1,800 से 1,850 रुपये है। ज्यादातर जीरा कारोबारियों का मानना है कि मध्य फरवरी के बाद ही स्थितियां और ज्यादा स्पष्ट हो पाएंगी, जब नई फसल बाजार में आ जाएगी।
राजकोट के अदानी फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड सिध्दार्थ अदानी ने कहा, 'बाजार में अभी जीरा की नई फसल के आने का इंतजार है, वहीं मौसम की बेरुखी के चलते उत्पादन में 30 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। वर्तमान में निर्यात से संबंधित किसी तरह की खरीदारी नहीं हो रही है। घरेलू खरीदारों की खरीदारी भी बहुत ज्यादा नहीं है।'
उन्होंने कहा कि हर साल भारत अपने कुल जीरा उत्पादन का 10 प्रतिशत निर्यात करता है। घरेलू खपत बहुत ज्यादा है, लेकिन बाजार अभी भी निर्यात आधारित है। इन सबका प्रभाव नए सत्र की कीमतों पर पड़ेगा और 20 किलो की बोरी की कीमत 2,000 रुपये हो सकती है।
जीरे की खेती का क्षेत्रफल राजकोट, जामनगर, सुरेंद्रनगर, जूनागढ़, अमरेली, भावनगर, पोरबंदर और कच्छ में क्रमश: 34,604 हेक्टेयर, 32,525 हेक्टेयर, 111740 हेक्टेयर, 18,220 हेक्टेयर, 7767 हेक्टेयर, 2,664 हेक्टेयर, 28,800 हेक्टेयर और 7,771 हेक्टेयर है।
मुंबई स्थित कोटक कमोडिटीज के विश्लेषक फैयाज हुदानी ने कहा, 'ऊंझा बाजार के मानकों के हिसाब से जीरा की कीमतें वायदा बाजार में कम जा रही हैं। भारतीय एक्सचेंजों में स्टॉक कम है। इसके चलते आने वाले दिनों में कीमतों में मजबूती बनी रह सकती है। जीरे की कीमतें इस समय वायदा बाजार में गिर रही हैं, क्योंकि कारोबारी मुनाफा वसूली में लगे हुए हैं।
2009 में जीरे के उत्पादन में कमी की खबरों से मूल्यों में शार्ट टर्म आ मीडियम टर्म समर्थन मिल सकता है। इसके साथ ही राजस्थान और गुजरात, जहां बड़े पैमाने पर जीरे की खेती होती है, का उत्पादन भी मीडियम टर्म की धारणा को मजबूती देगा।' (BS Hindi)
06 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें