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06 जनवरी 2009

गेहूं के एमएसपी पर पीएम की बेरुखी

केंद्र सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए 71,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के विज्ञापन के जरिये वाहवाही लूटने में तो मशगूल है लेकिन देशभर में गेहूं की बुवाई पूरी हो जाने के बावजूद अभी तक गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के प्रस्ताव पर फैसला लेने का समय उसे नहीं मिल पाया है। कैबिनेट की पिछली दो बैठको में इस संबंध में प्रस्ताव आया लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं लिया गया। जबकि तय नियमों के मुताबिक एमएसपी की घोषणा फसल की बुवाई से पहले हो जानी चाहिए।उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक खुद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को गेहूं के एमएसपी पर जल्दी फैसला लेने में दिलचस्पी नहीं है। उनके कहने पर ही इस बार मामले को टाल दिया गया। हालांकि इस बैठक में बहाना कृषि मंत्री शरद पवार की अनुपस्थिति को बनाया गया था।कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक मंत्रालय ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश के आधार पर आगामी रबी विपणन सीजन (2009-10) के लिए गेहूं का एमएसपी 1080 रुपये प्रति क्विंटल तय करने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेज रखा है। इसके साथ रबी सीजन की दूसरी फसलों के नये एमएसपी का भी प्रस्ताव है।सूत्रों के मुताबिक दो सप्ताह पहले हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने गेहूं की इस कीमत पर आपत्ति की थी। उनके साथ-साथ प्रधानमंत्री कार्यालय इसे घटाकर 1050 रुपये प्रति क्विंटल करने के पक्ष में है। इस समय वित्त मंत्रालय भी प्रधानमंत्री के पास ही है। ऐसे में वित्त मंत्रालय का अलग से कोई प्रतिनिधित्व कैबिनेट में नहीं है। एमएसपी बढ़ने का सीधा मतलब है खाद्य सब्सिडी में बढ़ोतरी होना।पिछले साल 7.8 करोड़ टन के रिकार्ड गेहूं उत्पादन के चलते सरकार ने 220 लाख टन से अधिक गेहूं की रिकार्ड सरकारी खरीद की थी। इस साल बाजार में कीमतें लगभग स्थिर चल रही हैं। अभी तक की स्थिति के मुताबिक इस साल भी गेहूं का उत्पादन बढ़िया रहने के आसार हैं। जिसके चलते सरकारी खरीद भी अधिक होगी।पिछली सीसीईए बैठक में गेहूं के एमएसपी पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी थी कि इस पर फैसला करने के पहले हमें महंगाई को भी देखने की जरूरत है। एमएसपी में बढ़ोतरी का असर महंगाई दर पर नहीं जाना चाहिए। (Business Bhaskar)

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