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01 जनवरी 2009

विश्व अर्थव्यवस्था पर निर्भर बेस मेटल्स

बीता हुआ साल बेसमेटल्स के दामों में आए भारी उतार-चढ़ाव के लिए याद किया जाएगा तो नये साल में इनका भविष्य पूरी तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा पर निर्भर करेगा। बेसमेटल्स की खपत मुख्य रूप से उद्योगों में होती है। मंदी से इनकी मांग में भारी कमी आई है। इसी वजह से 2008 के मध्य तक तो इन धातुओं के दामों में तेज़ी रही किंतु उसके बाद जैसे-जैसे आर्थिक मंदी का असर गहराता गया, इनके दामों में लगातार गिरावट जारी है। मांग में होती कमी से इनका स्टॉक लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2008 में घरेलू बाजार में कॉपर में 67 फीसदी की गिरावट आई। इसके दाम 387 रुपये प्रति किलो से कम होकर 138 रुपये तक रह गए। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके दाम 4500 डॉलर प्रति टन के अपने उच्चतम स्तर से कम होकर 2870 डॉलर प्रति टन पर आ गए है। बीजिंग ओलंपिक के बाद चीन में मांग घटी है। हालांकि चीन द्वारा रणनीतिक रिजर्व बनाने के लिए कॉपर की कुछ खरीद जारी है किंतु उसका दामों पर खास असर नहीं है। विश्व भर में आटो उद्योग में छाई मंदी से घरेलू बाजारों सहित अंतरराष्ट्रीय बाजार में अल्यूमीनियम के दामों में गिरावट आई है। अमेरिका के विनिर्माण आकंड़े 26 साल के निचले स्तर पर आ गए हैं। जनवरी 2008 में एलएमई में इसका स्टॉक 9.29 लाख टन था जो बढ़कर 22.50 लाख टन हो गया है। ऐसे में अल्यूमीनियम के दाम अपने उच्चतम स्तर से 53 फीसदी कम होकर 1539 डॉलर प्रति टन पर आ गये हैं। घरेलू बाजार में भी इसके दाम जुलाई में 144 रुपये किलो के उच्च स्तर से घटकर 67 रुपये किलो पर पहुंच गए। आस्टेनिक स्टील (300 सीरीज) में प्रयुक्त होने वाली धातु निकिल पर भी विनिर्माण में मंदी का असर दिखाई दे रहा है। वर्ष 2008 की शुरू में निकिल के दाम घरेलू बाजार में 1416 रुपये किलो थे। जो 66 फीसदी कम होकर 475 रुपये किलो पर आ गए हैं। एलएमई में यह 33500 डॉलर प्रति टन से कम होकर 9900 डॉलर प्रति टन पर है। कमोडिटी विशेषज्ञ अभिषेक शर्मा के मुताबिक बेसमेटल्स का भविष्य पूरी तरह से विश्व की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। यदि अमेरिका की अर्थव्यवस्था में सुधार आता है तो इनके दामों में भी हमें सुधार देखने को मिलेगा। सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों से नए साल की दूसरी छमाही में बेसमेटल्स के दामों में सुधार आएगा। (Business Bhaskar)

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