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01 जनवरी 2009

टेक्सटाइल को संजीवनी की उम्मीद

कड़वी यादों के साथ नए साल में प्रवेश कर रहे टैक्टाइल क्षेत्र को आगे अच्छा दौर मिल सकता है। सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए दिए जा रहे राहत पैकेज और टैक्सटाइल कंपनियों द्वारा नए बाजारों की ओर रुख करने से निर्यात मांग में बढ़ोतरी की संभावना है। जिससे साल की दूसरी छमाही में इस क्षेत्र के विकास में तेज़ी आ सकती है। देश के टेक्सटाइल उद्योग की कुल आय का पचास फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा निर्यात से आता है। उसमें भी हमार टेक्सटाइल उत्पादों के बडे खरीदार अमेरिका और यूरोपीय देश है। आर्थिक संकट के चलते वहां से इन उत्पादों की मांग में भारी कमी आई है। इसके चलते देश की सभी टेक्सटाइल कंपनियों की हालत बेहद खराब है। इन क्षेत्र पर मंदी की मार ज्यादा गहरी इसलिए भी है कि वित्त वर्ष 2007-08 में रुपये की मजबूती से इनके निर्यात में गिरावट आई थी। वित्त वर्ष 2007-08 में देश से टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात 22 अरब ड़ॉलर रहा था।इस क्षेत्र की खस्ता हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल सितंबर और अक्टूबर में इसकी विकास दर नकारात्मक रही। टेक्सटाइल कंपनियों के नतीजाों को देखने से स्पष्ट हो जाता है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के अनुसार अक्टूबर में टेक्सटाइल क्षेत्र की विकास दर 7 फीसदी नकारात्मक रही। इस क्षेत्र के कंपनियों की बेलेंसशीट भी इनकी दुर्दशा की कहानी बताती है। इस वित्तीय वर्ष की पहली दोनों तिमाहियों में इनका मार्जिन लगातार कम हुआ है। दूसरी तिमाही में जब दुनिया का आर्थिक संकट गहराया, उस समय तो लगभग सभी कंपनियों की विकास दर नकारात्मक हो गई। इस क्षेत्र की सभी बड़ी कंपनियों जैसे अरविंद मिल्स, आलोक इंडस्ट्री, सेंचुरी टेक्सटाइल लिमिटेड, रमंड लिमिटेड, सियाराम सिल्क मिल्स और वेल्सपन इंडिया के इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मार्जिन पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले नकारात्मक रहे। इस अवधि में अरविंद मिल्स का लाभ मार्जिन 84 फीसदी, बांबे डाइंग का 80 फीसदी, सेंचुरी टेक्सटाइल का 60 फीसदी, रमंड का 60 फीसदी और वेल्सपन इंडिया का 97 फीसदी कम हुआ। वास्तव में इन कंपनियों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक ओर तो निर्यात मांग में कमी तो दूसरी ओर कपास के ऊंचे दाम, महंगा लोन, मुद्रा में हो रहे भारी उतार-चढ़ाव ने इनकी लागत में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसको देखते हुए इन कंपनियों के पास कार्यशील पूजीं की कमी हो गई है। साथ ही, इनके मार्जिन पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका असर कंपनियों के शेयरों में भी दिखाई दे रहा है। शेयर बाजार में सबसे ज्.यादा गिरावटवाले शेयरों में ये ही कंपनियां हैं। पिछले एक साल में टेक्सटाइल कंपनियों के शेयरों के दाम 65- 90 फीसदी तक गिर है। इस दौरान अरविंद मिल्स के शेयर 82 फीसदी, बांबे डाइंग के 81 फीसदी, सेंचुरी टेक्सटाइल के 86 फीसदी, रमंडस के 79 फीसदी वर्धमान के 68 फीसदी और सियाराम सिल्क के 76 फीसदी तक गिर गए। हालांकि इस गिरावट में दुनिया भर के शेयर बाजारों में आई गिरावट भी एक वजह है। देश में कृषि के बाद सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में कुछ राहत दी है। साथ ही आगे भी कुछ और राहत देने की कवायद चल रही है। सरकार प्रयास कर रही है कि इनके पास नगदी की कम न हो। इन हालात को देखते हुए यह कहना कि आने वाला साल कैसा रहेगा यह कहना मुश्किल हो जाता है। किंतु एक उम्मीद है कि स्थितियों में धीर-धीर बदलाव होगा। जैसा कि कन्फेडरशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के अध्यक्ष वी. के. डालमिया कहते है कि यदि सरकार हमारा साथ दे तो टेक्सटाइल उद्योग की हालत अगस्त-सितंबर से सुधर सकती है। ये सब पश्चिमी देशों में हालात न सुधर, उसके बावजूद हो सकता है। यदि वहां स्थितियों में सुधार हो गया तब तो कोई समस्या ही नही होगी। इसी तरह के विचार ज्यादातर जानकारों के हैं। इसके पीछे वजह है कि आज की विपरीत परि्िस्थतियों में भी टेक्सटाइल उत्पादों का लगभग 300 बिलियन डॉलर का बड़ा बाजार है। जिसमें भारत की हिस्सेदारी केवल चार फीसदी है। इस मंदी के महौल में भी बांग्लादेश और वियतनाम से अमेरिका को टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात 20 फीसदी तक बढ़ा है । इसको देखते हुए देश की कंपनियां अपनी उत्पादन लागत कम कर इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास में लगी हुई है। दूसरी ओर, अपैरल एक्सपोर्ट प्रमंोशन काउंसिल के चेयरमैन राकेश वैद्य कहते है कि अमेरिका और यूरोप के वित्तीय संकट को देखते हुए हमने लैटिन अमेरिका, अफ्रीक और मध्य-पूर्व में नये बाजारों की तलाश शुरू कर दी है। उम्मीद है कि 2009 के मध्य के बाद कपड़ो के निर्यात में बढ़ोतरी होगी। यदि ये प्रयास कामयाब होते है तो 2009 के सितंबर तक वास्तव में स्थितियों में सुधार आ सकती है। (Business Bhaskar)

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