01 जनवरी 2009
वायदा व हाजिर के चक्र में कमोडिटी
जिंसों में वायदा कारोबार वैसे तो भारत में कोई नया नहीं है लेकिन बीते साल में जब तमाम कृषि जिंसों के दाम आसमान चूमने लगे तो वायदा कारोबार को खलनायक के रूप में देखा जाने लगा। वर्ष 2008 के शुरू में वायदा को लेकर लोगों के दिमाग में पैदा हुए संदेह को अभिजीत सेन कमेटी की रिपोर्ट भी दूर करने में नाकाम रही। दरअसल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ऐसा मध्यमार्गी रास्ता अपनाया कि उसने न तो इसे मंजूर किया और न ही नकारा। यही वजह है कि अभिजीत सेन कमेटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर वायदा कारोबार समर्थक और विरोधी दोनों ही अपने-अपने तर्क गढ़ते रहे। वायदा कारोबार का समर्थन कर रही लॉबी ने तर्क दिया कि कमेटी के अध्ययन से यह स्थापित नहीं हो पाया कि वस्तुओं की हाजिर बाजार में तेजी को वायदा कारोबार से बढ़ावा मिलता है। कमेटी के सदस्य और शेतकारी संगठन के संस्थापक शरद जोशी का भी कहना है कि महज गलतफहमी के कारण जिंसों पर रोक लगी। लेकिन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे वायदा कारोबार की थ्योरी को खारिज भी नहीं किया। यही वजह है कि सरकार ने चार वस्तुओं चना, सोया रिफाइंड ऑयल, रबर और आलू वायदा पर लगी रोक तभी हटाई जब बाजार से तेजी गायब हो गई। अभी भी चार अन्य जिंसों के वायदा पर रोक जारी है। वायदा विरोध से कमोडिटी एक्सचेंजों की आक्रामक विस्तार योजना में निहित रही। देशव्यापी स्तर पर ऑनलाइन ट्रेडिंग के जरिये एक्सचेंज हर छोटे-बड़े शहर में पहुंच गए। इससे शेयर निवेशक इस ओर मुड़ गए लेकिन कृषि जिंसों के उत्पादक, व्यापारी और बड़े उपभोक्ता इससे नहीं जुड़े। तर्क दिया जाता है कि वायदा कारोबार से बाजार में गहराई आती है और मूल्य निर्धारण का इससे बढ़िया कोई तरीका नहीं है। लेकिन खासी पेचीदा प्रणाली होने के कारण किसान इससे जु़ड़ ही नहीं पाए जो कृषि जिंसों के हाजिर कारोबार के सबसे अहम खिलाड़ी हैं। दरअसल भारत में फ्यूचर एक्सचेंज के रास्ते पर हाजिर बाजार चलते दिखाई दिए।असंगठित रूप से काम कर रहे हाजिर बाजारों में व्यापारियों ने फ्यूचर ट्रेडिंग की तेजी का सहारा लेकर अपना मुनाफा बढ़ाने की कोशिश की।कोई शक नहीं है कि भारत में कृषि जिंसों का हाजिर व्यापार मुक्त नहीं है। तमाम तरह की सरकारी बंदिशें जिंसों के भाव को वास्तविक स्तर पर नहीं आने देती हैं। असंगठित होने से इस क्षेत्र में उत्पादक किसान उचित मूल्य पर अपना माल नहीं बेच पाते हैं। आम तौर देश के किसी एक क्षेत्र खासकर ग्रामीण उत्पादक क्षेत्र में किसी वस्तु के दाम इतने कम होते हैं कि किसान को लागत मिलना भी मुश्किल हो जाता है। उसी समय देश के दूसरे क्षेत्रों खासकर शहरों में उन्हीं वस्तुओं के दाम काफी ज्यादा होते हैं लेकिन वहां किसान अपना माल बेचने के लिए नहीं ले जा पाते हैं। देश के इलाकों में विभिन्न वस्तुओं के दामों में काफी ज्यादा अंतर होने से वायदा कारोबार के जरिये मूल्य निर्धारण का फायदा बेमानी हो जाता है। बीते साल स्पॉट एक्सचेंज के लिए सुगबुगाहट शुरू हो गई। इसके लिए कंपनियों का गठन किया गया। देशव्यापी ऑनलाइन तंत्र के जरिये उत्पादक किसान और खरीदार व्यापारी या उपभोक्ता सीधे जुड़ जाएंगे। निश्चित ही इससे न तो किसान को अपनी उपज बेचने के लिए आढ़तियों पर निर्भर रहना होगा और न ही व्यापारियों और उपभोक्ताओं के पास माल खरीदने के लिए सीमित स्रोत होंगे। (Business Bhaskar)
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