कोल्ड स्टोरेज का संचालन करने वाले कारोबारियों ने सरकार से बागवानी क्षेत्र में खरीद-बेच (आर्बिट्राज) की अनुमति देने की मांग की है ताकि पैदावार के बाद फलों और सब्जियों का नुकसान कम किया जा सके और ग्राहकों को ये उत्पाद उचित मूल्य पर मुहैया कराए जा सकें। अनुमानों के मुताबिक उपज के बाद उचित रखरखाव की कमी के कारण करीब 80,000 करोड़ रुपये के फल और सब्जियां बरबाद हो जाती हैं। बड़े उत्पादन केंद्रों में उचित कोल्ड स्टोरेज न होने के कारण किसानों को इन उत्पादों की औने-पौने दाम में बिक्री करनी पड़ती है और कई बार तो उत्पादन लागत से भी कम कीमत पर फलों और सब्जियों की बिकवाली की जाती है। साथ ही खराब मौसम के कारण फलों और सब्जियों के खराब होने का खतरा भी बरकरार रहता है। देश की सबसे बड़े वाणिज्यिक कोल्ड चेन में से एक ब्लू स्टार लिमिटेड के अध्यक्ष (चैनल बिजनेस ग्रुप) बी त्यागराजन ने कहा, 'सरकार को इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए आगामी बजट में कोल्ड स्टोरेज कंपनियों को बागवानी उत्पादों की खरीद-बिक्री की अनुमति दे देनी चाहिए।'
पिछले कई सालों से वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन क्षेत्र में न के बराबर निवेश देखने को मिला है क्योंकि इस क्षेत्र में निवेश पर उचित प्रतिफल नहीं मिलता। सरकार द्वारा कीमतें नियंत्रित करने से किसी भी निवेशक ने इस क्षेत्र में भारी भरकम निवेश की योजना नहीं बनाई है। मौजूदा निवेशक भी राहत के लिए जूझ रहे हैं। त्यागराजन ने कहा, 'वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन सिर्फ चार हालात में व्यावहारिक हो सकता है। पहली स्थिति यह कि अगर कोल्ड स्टार में सहेजी जाने वाली चीज सेब जितनी मूल्यवान हो, दूसरी यह कि केला, प्याज या आलू जैसी कोई चीज हो जिसकी खपत साल भर होती हो और जिसकी खरीद, पैदावार, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करने के लिए एकीकरण की जरूरत हो। तीसरी, निश्चित हालात बनाए रखने और अधिक मूल्य हासिल करने के लिए निर्यात की अनुमति होनी चाहिए और चौथी दशा में उन उत्पादों का प्रयोग खाद्य प्रसंस्करण में होना चाहिए। इससे अलग और किसी भी स्थिति में निवेशकों का पैसा गंवाना तय है।'
सरकार ने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड और राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजनाओं और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी कई सब्सिडी योजनाओं की पेशकश की है। मगर इन सभी योजनाओं के तहत सिर्फ बिचौलियों को लाभ मिलता है जबकि किसानों को अपना उत्पाद कम कीमतों पर बेचना पड़ता है और इसके उलट उपभोक्ताओं को अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं। त्यागराजन ने कहा, 'कोल्ड स्टोर उद्योग के हित में कदमों की सिफारिश के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाई जानी चाहिए। तकनीकी मानक तय हैं और उचित प्रोटोकॉल भी हैं इसलिए सब्सिडी सिर्फ उन्हीं कोल्ड स्टोर को दी जानी चाहिए।Ó जैसे-जैसे फलों और सब्जियों की कीमतें चढ़ेंगी, वैसे-वैसे नई कंपनियों के बाजार में आने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि उनकी कीमत अन्य के मुकाबले कम ही होगी।
इस बीच इस क्षेत्र ने वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को सांविधिक दर्जा देने की भी मांग की है। उनका कहना है कि सरकार इसके लिए चाहे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ एफएमसी के विलय के जरिये यह काम करे या फिर वायदा सौदा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) में संशोधन के जरिये। नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक संजय कौल का कहना है, 'एक स्वतंत्र नियामक हमें इस क्षेत्र के लिए लंबी अवधि की नीति बनाने में मदद करेगा।'
खाद्यान्न खरीद कुशलता के लिहाज से सुधार की पर्याप्त संभावनाएं देख रहे निजी क्षेत्र ने सरकार से मांग की है कि जिन जगहों पर सरकारी एजेंसियों की पहुंच नहीं है, वहां निजी क्षेत्र की कंपनियों की मदद लेने की अनुमति एफसीआई को दी जानी चाहिए। स्टार एग्री के निदेशक अमित अग्रवाल ने कहा, 'सरकार को हाल में शुरू किए गए मेक इन इंडिया के आधार पर ग्रो इन इंडिया के नजरिये से नीति बनानी चाहिए और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर कृषि उत्पादों की पैदावार बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही गोदामों को बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा दिया जाना चाहिए।' (BS Hindi)
पिछले कई सालों से वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन क्षेत्र में न के बराबर निवेश देखने को मिला है क्योंकि इस क्षेत्र में निवेश पर उचित प्रतिफल नहीं मिलता। सरकार द्वारा कीमतें नियंत्रित करने से किसी भी निवेशक ने इस क्षेत्र में भारी भरकम निवेश की योजना नहीं बनाई है। मौजूदा निवेशक भी राहत के लिए जूझ रहे हैं। त्यागराजन ने कहा, 'वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन सिर्फ चार हालात में व्यावहारिक हो सकता है। पहली स्थिति यह कि अगर कोल्ड स्टार में सहेजी जाने वाली चीज सेब जितनी मूल्यवान हो, दूसरी यह कि केला, प्याज या आलू जैसी कोई चीज हो जिसकी खपत साल भर होती हो और जिसकी खरीद, पैदावार, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करने के लिए एकीकरण की जरूरत हो। तीसरी, निश्चित हालात बनाए रखने और अधिक मूल्य हासिल करने के लिए निर्यात की अनुमति होनी चाहिए और चौथी दशा में उन उत्पादों का प्रयोग खाद्य प्रसंस्करण में होना चाहिए। इससे अलग और किसी भी स्थिति में निवेशकों का पैसा गंवाना तय है।'
सरकार ने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड और राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजनाओं और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी कई सब्सिडी योजनाओं की पेशकश की है। मगर इन सभी योजनाओं के तहत सिर्फ बिचौलियों को लाभ मिलता है जबकि किसानों को अपना उत्पाद कम कीमतों पर बेचना पड़ता है और इसके उलट उपभोक्ताओं को अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं। त्यागराजन ने कहा, 'कोल्ड स्टोर उद्योग के हित में कदमों की सिफारिश के लिए उच्चस्तरीय समिति बनाई जानी चाहिए। तकनीकी मानक तय हैं और उचित प्रोटोकॉल भी हैं इसलिए सब्सिडी सिर्फ उन्हीं कोल्ड स्टोर को दी जानी चाहिए।Ó जैसे-जैसे फलों और सब्जियों की कीमतें चढ़ेंगी, वैसे-वैसे नई कंपनियों के बाजार में आने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि उनकी कीमत अन्य के मुकाबले कम ही होगी।
इस बीच इस क्षेत्र ने वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को सांविधिक दर्जा देने की भी मांग की है। उनका कहना है कि सरकार इसके लिए चाहे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ एफएमसी के विलय के जरिये यह काम करे या फिर वायदा सौदा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) में संशोधन के जरिये। नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक संजय कौल का कहना है, 'एक स्वतंत्र नियामक हमें इस क्षेत्र के लिए लंबी अवधि की नीति बनाने में मदद करेगा।'
खाद्यान्न खरीद कुशलता के लिहाज से सुधार की पर्याप्त संभावनाएं देख रहे निजी क्षेत्र ने सरकार से मांग की है कि जिन जगहों पर सरकारी एजेंसियों की पहुंच नहीं है, वहां निजी क्षेत्र की कंपनियों की मदद लेने की अनुमति एफसीआई को दी जानी चाहिए। स्टार एग्री के निदेशक अमित अग्रवाल ने कहा, 'सरकार को हाल में शुरू किए गए मेक इन इंडिया के आधार पर ग्रो इन इंडिया के नजरिये से नीति बनानी चाहिए और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर कृषि उत्पादों की पैदावार बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही गोदामों को बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा दिया जाना चाहिए।' (BS Hindi)
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