दलहनों का आयात और प्रसंस्करण करने वालों ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से 5,000 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ दलहन उन्नयन कोष स्थापित करने की गुहार लगाई है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में इस्तेमाल की जा रही पुरानी तकनीक में सुधार करने के लिए इस कोष की जरूरत है। इंडिया पल्सेज ऐंड ग्रेंस मर्चेंटïï्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के अध्यक्ष प्रवीण डोंगरे का कहना है, 'संकटग्रस्त कपड़ा क्षेत्र में सुधार करने के लिए सरकार ने 30,000 करोड़ रुपये की तकनीकी सुधार कोष योजना (टीयूएफएस) की शुरुआत की, जिसके बाद तकनीक में सुधार के लिए इस क्षेत्र में भारी निवेश देखने को मिला। दलहन क्षेत्र में तकनीक के आधुनिकीकरण के लिए ऐसा ही कोई कोष क्यों नहीं स्थापित किया जा सकता है।'
अधिक प्रसंस्करण लागत और कम कीमतों के कारण रोजाना 5-10 टन क्षमता से युक्त करीब 15,000 दाल मिलें अप्रासंगिक होती जा रही हैं। मामूली मार्जिन पर काम करने के कारण पिछले कई सालों के दौरान इन मिलों की माली हालत खराब ही होती ही जा रही है। नई तकनीक के जरिये मिलों की क्षमता में सुधार होगा जिससे परिचालन लागत में कटौती करने का मौका मिलेगा। इसके फलस्वरूप दलहनों के प्रसंस्करण की लागत कम होगी और लोगों को कम कीमत पर पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध हो सकेगा।
देश में दलहनों का कुल उत्पादन करीब 1.9 करोड़ टन है। कुल उत्पादन में चने की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। चना प्रसंस्करण मिलों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है क्योंकि वे उत्पादन की अधिक लागत को उपभोक्ताओं पर नहीं थोप सकते हैं। सस्ता आयात भारत की चना प्रसंस्करण मिलों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। जिन मिलों ने परिचालन जारी रखा उन्हें नुकसान सहना पड़ता है। करीब 2.25 करोड़ टन सालाना खपत करने वाला भारत जरूरत से कम उत्पादन करने की वजह से सालाना 35 लाख टन दलहन आयात करता है। इस साल उत्पादन घटने के अनुमान के बीच दलहनों की कीमतें चढऩे की संभावना है।
डोंगरे ने कहा, 'यह सही वक्त है जब सरकार को दलहन प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए राहतों की घोषणा करनी चाहिए।' इस बीच दलहन कारोबारियों ने सरकार से आयात शुल्क लागू न करने की गुजारिश की है। इससे पहले वाणिज्य मंत्रालय ने स्थानीय किसानों के हितों की रक्षा करने और दलहनों की आपूर्ति को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव दिया था। शहर के दलहन आयातक पंचम इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक विमल कोठारी ने कहा, 'चूंकि भारत में आपूर्ति की कमी है, ऐसे में आयात शुल्क लागू करना उत्पादन को हतोत्साहित कर सकता है। दलहनों की कीमतें चढऩे से खाद्य महंगाई सूचकांक में भी इजाफा होगा।' (BS Hindi)
अधिक प्रसंस्करण लागत और कम कीमतों के कारण रोजाना 5-10 टन क्षमता से युक्त करीब 15,000 दाल मिलें अप्रासंगिक होती जा रही हैं। मामूली मार्जिन पर काम करने के कारण पिछले कई सालों के दौरान इन मिलों की माली हालत खराब ही होती ही जा रही है। नई तकनीक के जरिये मिलों की क्षमता में सुधार होगा जिससे परिचालन लागत में कटौती करने का मौका मिलेगा। इसके फलस्वरूप दलहनों के प्रसंस्करण की लागत कम होगी और लोगों को कम कीमत पर पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध हो सकेगा।
देश में दलहनों का कुल उत्पादन करीब 1.9 करोड़ टन है। कुल उत्पादन में चने की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। चना प्रसंस्करण मिलों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है क्योंकि वे उत्पादन की अधिक लागत को उपभोक्ताओं पर नहीं थोप सकते हैं। सस्ता आयात भारत की चना प्रसंस्करण मिलों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। जिन मिलों ने परिचालन जारी रखा उन्हें नुकसान सहना पड़ता है। करीब 2.25 करोड़ टन सालाना खपत करने वाला भारत जरूरत से कम उत्पादन करने की वजह से सालाना 35 लाख टन दलहन आयात करता है। इस साल उत्पादन घटने के अनुमान के बीच दलहनों की कीमतें चढऩे की संभावना है।
डोंगरे ने कहा, 'यह सही वक्त है जब सरकार को दलहन प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए राहतों की घोषणा करनी चाहिए।' इस बीच दलहन कारोबारियों ने सरकार से आयात शुल्क लागू न करने की गुजारिश की है। इससे पहले वाणिज्य मंत्रालय ने स्थानीय किसानों के हितों की रक्षा करने और दलहनों की आपूर्ति को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव दिया था। शहर के दलहन आयातक पंचम इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक विमल कोठारी ने कहा, 'चूंकि भारत में आपूर्ति की कमी है, ऐसे में आयात शुल्क लागू करना उत्पादन को हतोत्साहित कर सकता है। दलहनों की कीमतें चढऩे से खाद्य महंगाई सूचकांक में भी इजाफा होगा।' (BS Hindi)
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