कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने आम निर्यातकों से यह बताने को कहा है कि वे कितनी मात्रा में आम निर्यात करेंगे। पिछले तीन महीने के दौरान भारत से जापान को होने वाले आम के निर्यात में कमी आई है। इसलिए एपीडा ने यह पहल की है। एपीडा ने हर निर्यातक को इस साल 50-70 टन और 2016 और 2017 के लिए क्रमश: 100 टन और 150 टन आम निर्यात का आश्वासन देने के लिए कहा है।
निर्यात के दौरान वैपर हीट ट्रीटमेंट (वाष्प उपचार) के जरिये आम की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है। निर्यात प्रमाणन के लिए आम की गुणवत्ता का निरीक्षण जरूरी होता है और इसकी गुणवत्ता प्रमाणित करने के लिए जापानी अधिकारी भारत आते हैं। एपीडा के उप महाप्रबंधक आर रवींद्र ने कहा, 'निर्यातकों के लिए 26 फरवरी तक निर्यात होने वाली मात्रा को न्यूनतम गुणवत्ता संबंधी प्रमाण देना अनिवार्य है। इसके बाद ही जापान के अधिकारी निर्यात की अनुमति देंगे।'
जापान ने वर्ष 2006-07 से भारत से आम आयात की अनुमति दी थी। आम की गुणवत्ता की जांच के लिए जापान के अधिकारी भारत आते रहे हैं जिनका खर्च एपीडा ने उठाया। इसके बाद निर्यातकों को खर्च उठाने के लिए कहा गया। चूंकि, निर्यात इतना नहीं हो रहा था जिससे जापानी अधिकारियों के दौरे का खर्च निकल सके, इसलिए निर्यातकों ने धीरे-धीरे इस खर्च में दिलचस्पी बंद कर दी। नतीजतन जापान को आम का निर्यात भी कम हो गया।
चेन्नई के एक आम निर्यातक ने कहा, 'जो लोग निर्यात का आवश्वासन देंगे, उन्हें सरकार की तरफ से कोटा आवंटित होगा और विशेष प्रमाणन की जरूरत नहीं होगी। निर्यात के आश्वासन के बिना निर्यात ऑर्डर आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रमाणन की आवश्यकता होगी।' 2010-11 में जापान को आम का निर्यात कम होकर 14.52 टन रह गया जो 2007-08 में 122 टन था। इसके बाद सरकार ने कई कदम उठाए जिससे निर्यात बढ़कर 2011-12 में 66.59 टन हो गया। जापान के बाजार में भारत के अल्फांसों को 'मनीला सुपर' के साथ प्रतिस्पद्र्धा करनी पड़ती है। (BS Hindi)
निर्यात के दौरान वैपर हीट ट्रीटमेंट (वाष्प उपचार) के जरिये आम की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है। निर्यात प्रमाणन के लिए आम की गुणवत्ता का निरीक्षण जरूरी होता है और इसकी गुणवत्ता प्रमाणित करने के लिए जापानी अधिकारी भारत आते हैं। एपीडा के उप महाप्रबंधक आर रवींद्र ने कहा, 'निर्यातकों के लिए 26 फरवरी तक निर्यात होने वाली मात्रा को न्यूनतम गुणवत्ता संबंधी प्रमाण देना अनिवार्य है। इसके बाद ही जापान के अधिकारी निर्यात की अनुमति देंगे।'
जापान ने वर्ष 2006-07 से भारत से आम आयात की अनुमति दी थी। आम की गुणवत्ता की जांच के लिए जापान के अधिकारी भारत आते रहे हैं जिनका खर्च एपीडा ने उठाया। इसके बाद निर्यातकों को खर्च उठाने के लिए कहा गया। चूंकि, निर्यात इतना नहीं हो रहा था जिससे जापानी अधिकारियों के दौरे का खर्च निकल सके, इसलिए निर्यातकों ने धीरे-धीरे इस खर्च में दिलचस्पी बंद कर दी। नतीजतन जापान को आम का निर्यात भी कम हो गया।
चेन्नई के एक आम निर्यातक ने कहा, 'जो लोग निर्यात का आवश्वासन देंगे, उन्हें सरकार की तरफ से कोटा आवंटित होगा और विशेष प्रमाणन की जरूरत नहीं होगी। निर्यात के आश्वासन के बिना निर्यात ऑर्डर आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रमाणन की आवश्यकता होगी।' 2010-11 में जापान को आम का निर्यात कम होकर 14.52 टन रह गया जो 2007-08 में 122 टन था। इसके बाद सरकार ने कई कदम उठाए जिससे निर्यात बढ़कर 2011-12 में 66.59 टन हो गया। जापान के बाजार में भारत के अल्फांसों को 'मनीला सुपर' के साथ प्रतिस्पद्र्धा करनी पड़ती है। (BS Hindi)
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