मुंबई April 24, 2011
खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर पाबंदी के लिए सिफारिश करने के हक में नहीं है। मौजूदा समय में मंत्रालय नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले कार्य समूह के सुझावों के आधार पर सिफारिशों को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है। इस कार्य समूह में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।सिफारिशों को अंतिम रूप देने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय इसे प्रधानमंत्री को भेजेगा। कार्य समूह ने मजबूती के साथ आवश्यक वस्तुओं के वायदा कोराबार पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की थी। इसके उलट मंत्रालय कार्य समूह की उन सिफारिशों के समर्थन में है जिसमें इसने खास तौर से विभिन्न राज्यों में मौजूद कृषि उत्पाद विपणन समितियों में सुधार की बात की है ताकि खाद्यान्न की थोक व खुदरा कीमतों के बीच का अंतर कम हो सके। साथ ही कालाबाजारी रोकने के लिए आïवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की बात भी कार्य समूह ने की है। जिंस एक्सचेंजों पर आवश्यक वस्तुओं के कारोबार की बाबत मंत्रालय अभिजित सेन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ पैनल की राय के आधार पर चलेगा।एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, पैनल ने कहा था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि वायदा बाजार की वजह से जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं। इसके अलावा वायदा बाजार आयोग द्वारा की गई कार्य समूह के सामने पेश केस स्टडी में भी कहा गया था कि मौजूदा बाजार कीमत और वायदा कीमतों में किसी तरह का सहसंबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतें मांग व आपूर्ति के हिसाब से तय होती हैं। अरहर, उड़द और चावल का वायदा कारोबार नहीं होता, लेकिन इसकी कीमतें भी बढ़ रही हैं।दूसरी ओर वायदा कारोबार पर पाबंदी के बावजूद चीनी की कीमतें बढ़ रही थीं। वास्तव में चीनी की कीमतें वायदा कारोबार दोबारा शुरू होने के बाद गिरी हैं। एफएमसी के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने कहा - कार्य समूह के सामने पेश प्रेजेंटेशन पूरी तरह तथ्योंं पर आधारित था। आज किसानों के पास अपने उत्पादन बेचने के कई विकल्प हैं - या तो वह मंडी में अपना माल बेचे या फिर हाजिर बाजार में। एक ओर जहां हम जागरूकता कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं, लेकिन इस बात पर कम ही जोर दिया गया है कि किसानों को अच्छी कीमत की व्यवस्था की दरकार है और इस तरह उनका हित वायदा बाजार से जुड़ा हुआ है जहां वह हाजिर बाजार के मुकाबले ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से अपना माल बेच सकता है। भारत में 12 करोड़ किसान परिवार हैं और महज आठ साल के अपने अस्तित्व में वायदा बाजार बहुत ज्यादा सुधार नहीं कर सकता। वायदा बाजार महज प्राइस डिस्कवरी मैकेनिज्म है, जो किसानों को फसल, भंडारण, बिक्री, क्रेडिट आदि की योजना बनाने में मदद कर सकता है। जिंस एक्सचेंजों के नियमन की बाबत किसी तरह की शिकायत नहीं है और प्राइस डिस्कवरी पारदर्शी है। इसकी कोई वजह नहीं दिखती कि ऐसे महत्वपूर्ण उपकरणोंं पर पाबंदी क्यों लगाई जाए, जो किसानों की वास्तविक स्थिति में सुधार ला सकता है।ग्वारसीड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा - इस साल ग्वार सीड की कीमतें 2000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चली गईं। फसल के अनुमान, मांग, आपूर्ति आदि का विश्लेषण करने पर एफएमसी ने पाया कि उद्योग ने 17-18 लाख टन उत्पादन का भारी भरकम अनुमान लगाया था जबकि वास्तविक आवक 11-12 लाख टन की थी।इसके अलावा मांग में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई और कैरीओवर स्टॉक भी काफी कम था। कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हुई तब हमने लेनदेन की लागत घटाने के लिए मार्जिन हटा दिया, हालांकि इसे हमने तब दोबारा लागू कर दिया, जब कीमतें स्थिर हो गईं। इस बीच, निर्यातकों की लॉबी ने मार्जिन में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी की मांग की, फिर राजस्थान सरकार ने भी ऐसा ही कहा। हालांकि हमने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि ज्यादा मर्जिन से वैसे वास्तविक घरेलू उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता, जो खरीद के लिए ऊंची कीमतों संघर्ष कर रहे थे। ऊंचे मार्जिन से वास्तविक हेजर्स व ट्रेडर्स पर भी प्रभाव पड़ता। वहीं दूसरी ओर यह देखा गया कि ग्वारसीड से किसान समुदाय को काफी फायदा हुआ है और उन्होंने हर महीने 20-30 हजार क्विंटल की बिक्री की, न कि एक लाख टन का पूरा स्टॉक एक झटकेमें बेच दिया। जैसे कि वे पहले करते आ रहे थे। ऐसे में उन्होंने कीमत में उछाल का फायदा उठाया, जब कीमत वास्तव में 2800-2900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गया। जबकि नवंबर-दिसंबर 2010 के दौरान इसकी कीमतें 1970-2000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई थीं। (BS Hindi)
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