रीयल एस्टेट कंपनियों को कर्ज मुहैया कराने में बैंकों को अच्छा खासा नुकसान झेलना पड़ रहा है। परियोजनाओं के ढांचागत विस्तार के लिए कंपनियां बैंकों से मोटी रकम तो ले रही हैं लेकिन इसे चुकाने में सक्षम नहीं हैं। इस वजह से बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) का स्तर साल दर साल बढ़ता जा रहा है। वित्त वर्ष 2007-08 से दिसंबर 2010 तक सवा दो लाख करोड़ रुपये व्यावसायिक बैंकों के एनपीए खाते में दर्ज हो चुके हैं। यानी बैंकों द्वारा बतौर कर्ज दी गई यह रकम डूब चुकी है।एनपीए स्तर पौने दो फीसदी से ऊपरभारी-भरकम नुकसान से परेशान बैंक अब रीयल एस्टेट परियोजनाओं को कर्ज देने में सख्ती बरत रहे हैं। कंपनियों के जरूरी दस्तावेजों के अभाव में उनकी अर्जी वापस भी की जा रही है। मार्च से दिसंबर 2010 के बीच बैंकों ने कुल 6 लाख 75 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बांटा है। इसमें से 13 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रकम एनपीए खाते में जा चुकी है। जिसकी उगाही की उम्मीद काफी कम है।
इंडियन बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि रीयल एस्टेट में एनपीए का प्रतिशत साल दर साल बढ़ने की वजह से बैंक अब कड़े कदम उठाने की तैयारी में हैं। सभी रीयल एस्टेट कंपनियों के कामकाज का विशेष रिकॉर्ड भी रखा जा रहा है। दूसरी ओर आरबीआई सावधानी बरतने के उद्देश्य से कर्ज नहीं चुकाने वाले व्यक्ति व कंपनियों का ब्योरा हासिल करने की एक नई योजना बना रही है। ताकि भविष्य में बैंकों के एनपीए का स्तर संतुलित रह सके।साल दर साल एनपीएवर्ष एनपीए रकम (करोड़ रुपये में) एनपीए प्रतिशत2007-08 4,50,978 1.592008-09 5,11,745 1.692009-10 5,70,139 1.952010-11(अप्रैल-दिसंबर 2010 तक) 6,75,703 1.79 (mahanagar Times)
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