नई दिल्ली। पंजीकृत भंडारगृहों [वेयरहाउसों] में रखी गई कृषि उपज की रसीद अब हुंडी का काम करेगी। इसके एवज में किसान बैंकों से कर्ज ले सकेंगे। इतना ही नहीं, वे अनाज, दाल, तिलहन या किसी अन्य कृषि उपज को गोदाम से उठाए बिना रसीद को ही बेचकर नकदी हासिल कर सकेंगे।
सरकार ने इस भंडारण रसीद को अब खरीद-फरोख्त योग्य बना दिया है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री केवी. थॉमस ने मंगलवार को इस तरह की रसीद को औपचारिक तौर पर लॉन्च करते हुए यह जानकारी दी।
किसानों को अभी 4 फीसदी ब्याज पर फसली कर्ज मिलता है। थॉमस ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में यह कोशिश होगी कि फसल कटाई के बाद की अवधि में भी किसानों को यही सस्ती दर चुकानी पड़े। सस्ते कर्ज के चलते किसान अपनी उपज भंडारगृहों में रखने को प्रोत्साहित होंगे।
भंडारगृहों में रखे माल के एवज में मिलने वाली इन रसीदों को 'वेयरहाउस [विकास एवं नियमन] कानून 2007 के तहत खरीद-बिक्री योग्य बनाया गया है। इनका नियमन वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी [डब्ल्यूडीआरए] के के हाथ में होगा।
क्या होंगे इन रसीदों के फायदे?
ये रसीदें अब निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट के तौर पर होंगी। इन्हें न सिर्फ जमानत के तौर पर बैंकों में रखा जा सकेगा, बल्कि खरीदा व बेचा भी जा सकेगा। इसलिए बैंकों को इस तरह की खरीद-बिक्री योग्य भंडारण रसीद पर अब ज्यादा भरोसा होगा। इनकी वजह से किसानों को अचानक जरूरत पड़ने पर अपनी उपज को सस्ते में नहीं बेचना पड़ेगा। वे इन रसीदों के बल पर बैंकों से अपनी जरूरतों के मुताबिक कर्ज ले सकेंगे। इन रसीदों के जारी होने से ग्रामीण क्षेत्र में नकदी की मात्रा बढ़ेगी। इसके साथ ही वैज्ञानिक ढंग से तैयार होने वाले भंडारगृहों का चलन भी बढ़ेगा। (Jagran)
28 अप्रैल 2011
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