April 17, 2011
पंजाब में 3,000 से अधिक महिलाओं के एक स्वयंसेवी समूह ने फुलकारी को अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। कुछ साल पहले तक पटियाला जिले के थुहा गांव की जसबीर ने सोचा भी नहीं था कि वह 40 वर्ष की उम्र में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन पाएगी। आज प्रशिक्षित कशीदाकार के रूप में जसबीर और गांव की अन्य महिलाएं अपने परिवारों और ग्रामीणों से सम्मान पा रही हैं। जसबीर के साथ काम करने वाली सुरेश रानी और प्रतिभा रानी की हालत तो और भी खराब थी, दोनों के पति क्रमश: बिहार और हरियाणा के प्रवासी मजदूर हैं। लेकिन आज उनके पास पैन कार्ड है और वे नियमित रूप से आयकर रिटर्न जमा करती हैं। यही नहीं अब ये सभी बाकी महिलाओं को भी फुलकारी कशीदाकारी करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। जसबीर कौर, सुरेश रानी और प्रतिभा रानी उन 3,000 महिलाओं में शामिल हैं, जो 50 स्वयंसेवी समूहों के रूप में काम कर रही हैं। इन समूहों को राज्य की पारंपरिक कढ़ाई 'फुलकारी' को मशहूर बनाने के लिए कई राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। इन ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प उत्पादों को मलेशिया, बहरीन और चीन की सरकारों के आमंत्रण पर वहां प्रदर्शित किया गया है। इसकी शुरुआत 1994 में पटियाला की रेखा मान ने की थी। आज रेखा और उनके साथ काम करने वाली महिलाएं फुलकारी से नए डिजाइन बनाकर उसे नए जमाने के रंग में ढाल रही हैं। पटियाला हैंडीक्राफ्ट वर्कशॉप कोऑपरेटिव सोसायटी (पीएचडब्ल्यूसीएस) ने 1997 में पंजाब सहकारी समिति के पास पंजीकरण कराया था। पंजीकरण होने के बाद राष्टï्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय की ओर से पंजाब में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्यम विकास प्रशिक्षण देने के प्रस्तावों की मानों बाढ़ सी आ गई। हकीकत यह है कि पंजाब के बैंक ऋण देने के लिए संगठित गैर सरकारी संगठन की तलाश में थे, जो मान पर जाकर खत्म हुई और उन्होंने ग्रामीण कलाकारों के लिए चलाई जा रही राज्य सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया।पंजाब में 2 लाख से भी अधिक महिलाएं फुलकारी की कढ़ाई करती हैं। हालांकि एक बेहतर विपणन तंत्र के अभाव में उनकी अच्छी कमाई नहीं हो पाती थी। भारत के बंटवारे के समय से ही पटियाला का अदालत बाजार इस हस्तशिल्प का मुख्य केंद्र रहा है और कलाकारों व खरीदारों को दुकानदारों की शर्त पर ही कारोबार करना पड़ता है।हालांकि पीएचडब्ल्यूसीएस से जुडऩे के बाद कशीदाकारों ने असंगठित बाजार के मुकाबले तिगुना कमाना शुरू कर दिया है। रंगों के समायोजन, डिजाइन और धागों पर लगातार शोध कर रहे डिजाइनरों ने इन कशीदाकारों को उनका काम और बेेहतर बनाने में मदद की।एक बड़ी मदद तब आई जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने 2006 में महिलाओं के इस समूह को स्फूर्ति (पारंपरिक उद्योग को पुनर्जीवित करने की योजना) के लिए चुना। इसके तहत समूह को 1 करोड़ रुपये और गांव में पंचायत की जमीन मिली । समिति गांव में एक जन सुविधा केंद्र का संचालन भी करती है। ग्रामीण महिलाओं को कशीदाकारी का प्रशिक्षण देने के साथ ही नवीनतम चलन की जानकारी भी दी जाती है। केंद्र पर मौजूद आधुनिक मशीनों की मदद से ग्रामीण उद्यमी कढ़ाई वाले परिधान भी बनाती हैं और उन्हें खुले बाजार में बेचती हैं। समिति को संस्थानों से भी थोक ऑर्डर मिलते हैं।समिति के लिए सबसे गर्व की बात यह है कि उनके डिजाइन को नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद और विवको (पंजाब स्टेट हैंडलूम वीवर्स एपेक्स को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड) में भी स्वीकार किये जाते हैं। स्फूर्ति फुलकारी क्लस्टर परियोजना की प्रमुख मान बताती हैं, 'हमने विवको के लिए पर्दे और कुशन कवर के डिजाइन बनाए हैं और ये उत्पाद अंतरराष्टï्रीय बाजार के लिए थे।'पंजाब का फुलकारी क्लस्टर 2007 के बाद से देश में क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत बनाए गए 79 क्लस्टरों में से एक है। बटुए, फाइल फोल्डर्स, कुशन कवर्स, पर्दे, हाथ के पंखे और मोबाइल कवर पर भी कढ़ाई कर क्लस्टर ने अपने उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार किया है। दरअसल अंतरराष्टï्रीय बाजारों में इन उत्पादों की भी काफी मांग है।मान ने बताया, 'हम निर्यात करने वाली दूसरी एजेंसियों के लिए भी डिजाइन बना रहे थे लेकिन अब हमने निर्यात भी करने का फैसला किया है। हमारी वेबसाइट पर इस बारे में काफी प्रस्ताव आ रहे हैं और हम सौदों के लिए बात कर रहे हैं।' इस क्लस्टर ने न सिर्फ लुप्त होती पारंपरिक कला को फलने-फूलने का मौका दिया है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है। अब यहां की महिलाएं केंद्र सरकार की स्वास्थ्य परियोजनाओं और बीमा कार्यक्रमों का हिस्सा बन गई हैं। (BS Hindi)
30 अप्रैल 2011
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