15 अप्रैल 2011
किसान बढ़ा सकते हैं मिर्च का रकबा
मुंबई April 14, 2011 बेमौसम बारिश या अतिरिक्त मॉनसून की वजह से पैदा हुए खतरे से निपटने के लिए दक्षिण भारत के किसान आगामी खरीफ सीजन में मिर्च के रकबे में बढ़ोतरी को प्राथमिकता दे सकते हैं। एक ओर जहां दक्षिण भारत में कपास की पिछांत फसल को प्राथमिकता दी जाती रही है और ज्यादा से ज्यादा किसान इस ओर आकर्षित होते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पिछले खरीफ सीजन में बेमौसम बरसात ने कपास और तंबाकू जैसी फसलों को बचाने के जोखिम को रेखांकित किया है और इस संकट के दौर में मिर्च बेहतर फसल के रूप में उभरी है। इसके अलावा मिर्च से मिलने वाला प्रतिफल भी समान रूप से अच्छा रहा है। यहां तक कि दक्षिण भारत में बंजर पड़ी जमीन भी मिर्च की खेती में शामिल हो सकती है। बीटी बीज के बढ़ते इस्तेमाल से पैदावार में बढ़ोतरी को देखते हुए कपास पसंद की जाती थी, लेकिन मिर्च की पैदावार में भी सुधार हो रहा है (अगर पिछले साल हुई बेमौसम बारिश की वजह से फसल को हुए नुकसान को छोड़ दें तो)। मसाला बोर्ड के एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि खरीफ सीजन में जब बुआई शुरू होगी तब मिर्च के रकबे में 10-15 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है। कपास और तंबाकू के बजाय मिर्च को प्राथमिकता दिए जाने की वजह यह होगी कि मिर्च शुरुआती दौर में नर्सरी में उगाई जाती है और फिर इसे खेतों में लगाया जाता है, वहीं दूसरी ओर कपास और तंबाकू की बुआई सीधे होती है। ये चीजें मिर्च के मुकाबले कपास व तंबाकू को जोखिमभरा बना देती हैं। इस साल मिर्च के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है क्योंकि इसका रकबा घटा है। दिसंबर से जारी भारी बारिश की वजह से मिर्च के पौधे नर्सरी में ही रह गए, लिहाजा इसे खेतों में नहीं लगाया जा सका और कुल मिलाकर इसका रकबा घट गया। वहीं दूसरी ओर कपास के मामले में भी परेशानियां पैदा हुईं क्योंकि भारी बारिश की वजह से इसे भी नुकसान पहुंचा और अंतत: यह कपास की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बना। हाजिर बाजार में कपास की कीमतें एक साल पहले के मुकाबले 82 फीसदी बढ़ गईं। कारोबारियों को उम्मीद है कि मिर्च की पैदावार पिछले साल के मुकाबले इस साल 20 से 30 फीसदी कम होगी क्योंकि पिछले साल के मुकाबले ज्यादा पौधे खेतों तक नहीं पहुंच पाए। इस साल 70 से 80 लाख बोरी मिर्च उत्पादन रहने की संभावना है, जबकि पिछले साल 1.25 करोड़ बोरी मिर्च का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
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