मुंबई February 05, 2009
देश की लगभग 40,000 करोड़ की पोल्ट्री इंडस्ट्री ने सोया और मक्के की खली को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत लाने की मांग उठाई है।
यह मांग इसलिए उठाई गई है ताकि इन जिंसों की कीमतों पर नियंत्रण बनाया जा सके। इससे इन जिंसों की पोल्ट्री किसानों की पहुंच भी बनी रहेगी। देश के पोल्ट्री किसानों की शीर्ष संस्था नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) ने यह कहा है कि सोया और मक्के की खली पोल्ट्री चारा का एक खास हिस्सा होता है।
कारोबारियों के जमाखोरी और सट्टेबाजी की वजह से ही इन जिंसों की कीमतों में अचानक से तेजी आई है। इस कमेटी के मुताबिक सोया खली की कीमतें फिलहाल 21,000-23,000 रुपये प्रति टन है। कुछ महीने पहले इनकी कीमतें 10,000-12,000 रु पये प्रति टन थी।
इस शीर्ष संस्था का कहना है कि मक्के की खली की कीमतें एक साल पहले 600-650 रुपये प्रति क्विंटल थीं जो बढ़कर 1,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। एनईसीसी ने अपने एक बयान में कहा है, 'कीमतों में अनुचित बढ़ोतरी मक्के की फारवर्ड ट्रेडिंग और कारोबारियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निर्यातकों के द्वारा जमाखोरी और सट्टेबाजी की वजह से ही हुई है।'
एनईसीसी की अध्यक्ष अनुराधा देसाइ ने बिजनेस स्टैंडर्ड को हाल ही बताया, 'अंडे के उत्पादन का ब्रेक इवन प्वाइंट(लाभ-अलाभ की स्थिति) 0.90 से 1.00 रुपये बढ़कर 2.25 रुपये हो गया है। वहीं ब्रॉयलर का मूल्य 27-28 रुपये से बढ़कर 47-48 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।'
कई पोल्ट्री फार्म के मालिकों को कार्यशील पूंजी के अभाव से जूझना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि उन्हें पिछले दो सालों में जबरदस्त घाटा हुआ है। छोटे और सीमांत किसानों के इस उद्योग में लगभग 15 फीसदी पोल्ट्री फार्म बंद होने की कगार पर हैं। (BS Hindi)
05 फ़रवरी 2009
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