नई दिल्ली January 12, 2009
उत्तर प्रदेश में गन्ने की किल्लत के बीच इसकी खरीदारी को लेकर चीनी मिल मालिकों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी है। इस वजह से 140-145 रुपये प्रति क्विंटल में बिकने वाला गन्ना 150-155 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है।
इस बीच, लागत बढ़ने के बावजूद चीनी के दाम में ठीक-ठाक बढ़ोतरी न होने से चीनी मिल मालिकों को घाटे की चिंता सताने लगी है। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार फिलहाल चीनी की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं होने देगी। वैसे सरकार सफेद चीनी के आयात का संकेत पहले ही दे चुकी है। मिल मालिकों के मुताबिक, 2100 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर चीनी बेचने से उन्हें हर हाल में घाटे का सामना करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि मिल मालिकों ने पिछले साल गन्ने की खरीदारी 110-115 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की थी। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक अधिकारी ने बताया, 'इसके अलावा मिलों को कुल उत्पादन का 10 फीसदी लेवी के रूप में और 1350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सरकार को देना पड़ता है। ऐसे में 2100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चीनी बेचने पर भी छोटी मिल को नुकसान उठाना पड़ सकता है।' इस साल उत्तर प्रदेश में गन्ने के उत्पादन में 30-35 फीसदी की कमी बतायी जा रही है। गन्ने की कमी के कारण मिल मालिक चीनी उत्पादन जारी रखने के लिए किसानों को बीज-खाद के नाम पर 10 रुपये प्रति क्विंटल का अतिरिक्त भुगतान कर रहे हैं। सहारनपुर स्थित दया शुगर मिल के सलाहकार डी के शर्मा कहते हैं, 'गन्ने की खरीदारी के लिए कड़ा मुकाबला चल रहा है। स्थिति 'प्राइस वार' तक की आ सकती है। गन्ने के अभाव में मिल अपनी उत्पादन क्षमता का 40 फीसदी भी उपयोग नहीं कर पा रही।' हालांकि, इस्मा 'प्राइस वार' की स्थिति से इनकार कर रहा है। इस्मा के मुताबिक, गन्ने की कीमत अधिक से अधिक पाने के लिए इस तरह की अफवाहें फैलायी जा रही है। चीनी के उत्पादन अनुमान को लेकर भी इस्मा और राज्य के मिल मालिकों में अंतर नजर आने लगा है। मिलों के मुताबिक, राज्य में चालू पेराई सीजन में अधिकतम 45 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। शर्मा कहते हैं, 'जैसे हालात हैं उसमें चीनी का उत्पादन 42 लाख टन हो सकता है, 50 लाख टन नहीं।' दूसरी ओर इस्मा इस अनुमान से असहमत है। उसका कहना है कि उत्तर प्रदेश के लिए कुल 55 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। भले ही यह 53 लाख टन हो जाए, लेकिन 45 लाख टन तक तो कभी नहीं जाएगा। मालूम हो कि पिछले सीजन में राज्य में 82 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। मिल मालिकों ने बताया कि इस सीजन में 20 फरवरी तक लगभग सभी चीनी मिलों में पेराई का काम पूरा हो जाएगा। सहकारी मिलों में तो जनवरी माह के आखिर में ही काम बंद होने की संभावना है। वैसे सामान्य तौर पर मार्च के आखिरी या अप्रैल के पहले हफ्ते तक पेराई का काम चलता है। (BS Hindi)
13 जनवरी 2009
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