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16 जनवरी 2009

एमएसपी की लगाम छोड़ना नहीं चाहते नेता

नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से लगातार किसानों को बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने का दावा करने वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी कथनी के उलट काम किया है। गुरुवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में एमएसपी तय करने वाली संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को वैधानिक दर्जा देने की सिफारिश सहित कई ऐसी सिफारिशों को नामंजूर कर दिया गया जो किसानों के लिए फायदेमंद होतीं। साथ ही उनको खुले बाजार की नीतियों का फायदा देने और सस्ते कृषि उत्पादों के आयात से संरक्षण देने वाली साबित हो सकती हैं। मई, 2003 में एमएसपी के निर्धारण और उससे संबंधित नीति में बदलाव पर गठित प्रोफेसर वाई.के. अलघ समिति की सिफारिशों पर तैयार प्रस्ताव पर इस सीसीईए बैठक में विचार किया गया। दिलचस्प बात यह है कि इस बैठक में प्रस्ताव के एक हिस्से को मंजूरी दी गई और उसे ही सरकार ने बड़े कदम के रूप में पेश करने की कोशिश भी की है। सूत्रों के मुताबिक सीएसीपी को वैधानिक दर्जा देने के प्रस्ताव को भेजने वाले कृषि मंत्रालय ने ही बैठक में इसका विरोध करते हुए कहा कि सीएसीपी को सलाहकार संस्था ही बनी रहनी चाहिए।यानी सरकार नहीं चाहती कि विशेषज्ञों की टीम फसलों की जो उचित कीमत तय करना चाहती है वह अंतिम हो। अगर ऐसा होता तो चालू खरीफ विपणन सीजन (2008-09) के लिए सरकार धान के एमएसपी में सीएसीपी की सिफारिश में 50 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती नहीं कर पाती। दूसरी बड़ी सिफारिश थी फल और सब्जियों (हार्टिकल्चर) को एमएसपी के तहत लाना। अगर ऐसा हो जाता तो किसानों को बोरी से भी कम कीमत और कोल्ड स्टोर के किराये में ही आलू को बेचना नहीं पड़ता। प्रस्ताव का एक अहम हिस्सा यह था कि कृषि उत्पादों के आयात पर लगने वाले शुल्क को एमएसपी के साथ जोड़ा जाना चाहिए और शुल्क निर्धारण से पहले और कृषि जिन्सों के आयात-निर्यात के फैसलों पर सीएसीपी की राय ली जानी चाहिए। सीएसीपी के कई सदस्य और पूर्व अध्यक्ष भी एमएसपी और डयूटी निर्धारण नीति को जोड़ने के पक्षधर हैं। गुरुवार की बैठक में वाणिज्य मंत्रालय ने यह कहकर प्रस्ताव का विरोध किया कि इससे मुक्त व्यापार की धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। बेहतर होगा कि हम इस मामले में विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) की नीतियों को देखते हुए अपने फैसले लें। वाणिज्य मंत्रालय ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि एमएसपी तय करते समय उसके मंत्रालय के एक अधिकारी का सीएसीपी में होना जरूरी है ताकि इसे डब्लूटीओ के प्रावधानों के अनुरूप रखा जा सके। गुरुवार के फैसले से साबित होता है कि सरकार ने केवल दिखावा किया है और किसानों के लिए फायदेमंद साबित होने वाली अहम सिफारिशों को नामंजूर कर दिया गया। (Business Bhaskar)

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