कुल पेज दृश्य

13 जनवरी 2009

इस्पात उद्योग को 2-4 साल लग जाएंगे मंदी से उबरने में

January 12, 2009
शायद ही कोई भविष्यवक्ता होगा जिसे कुछ महीने पहले तक तेजी से तरक्की कर रहे इस्पात उद्योग की भावी दुर्दशा का कोई अनुमान होगा।
अब से कोई 6 साल पहले इस्पात की मांग तेजी से बढ़नी शुरू हुई थी, पर जुलाई 2008 के खत्म होते-होते इसके बाजार में जबरदस्त गिरावट हुई। उल्लेखनीय है कि उत्पादन मात्रा के लिहाज से इस्पात दुनिया की सबसे बड़ी कमोडिटी (जिंस) है। इंटरनैशनल आयरन एंड स्टील इंस्टीट्च्यूट के नए अवतार 'वर्ल्ड स्टील' की पहली बैठक में दुनिया के दिग्गज इस्पात निर्माता और आर्सेलरमित्तल प्रमुख लक्ष्मी निवास मित्तल ने भाग लिया। उन्होंने इस बैठक में उत्पादकों से भरोसा रखने को कहा और बताया कि लुढ़कती कीमतों के बीच इस्पात की मांग बढ़ेगी। वैसे इस क्षेत्र में चल रहा मंदी का दौर कोई सामान्य और चक्रीय मंदी नहीं है। बहरहाल दुनिया भर में पसरी आर्थिक मंदी और तरलता संकट ने सभी आधारभूत धातुओं और खनिजों के बाजार को अपनी चपेट में ले लिया। इससे संकेत मिलता है कि इस्पात निर्माताओं के लिए अगले कुछ महीने बुरे रहने वाले हैं। हालांकि, विचारणीय तथ्य यह कि आर्थिक मंदी का असर कब तक रहेगा और इस साल इस्पात उत्पादन में कितनी कमी होगी। वैसे 2008 में इस्पात उत्पादन के वैश्विक आंकड़े अभी एकत्रित किए जा रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि 2008 में इस्पात का उत्पादन 2007 की तुलना में थोड़ा घटने की उम्मीद है।बता दें कि 2007 में इस्पात का वैश्विक उत्पादन 1.324 अरब टन रहा था। पिछले साल तो मंदी के चलते आर्सेलरमित्तल, कोरस और सेवरस्टाल जैसी कंपनियो को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ी। दुनिया में इस्पात के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता चीन में पहली बार उत्पादन को नियंत्रित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं।प्रेक्षकों ने हमें बताया कि मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर अनुमान है कि 2009 में दुनिया के इस्पात उत्पादन में 10 से 13.9 फीसदी की कमी हो सकती है। भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) के चेयरमैन सुशील रूंगटा ने बताया, ''यदि 2009 में इस्पात उत्पादन में 10 फीसदी की कमी हुई (जैसा कि अनुमान है), तो वह मेरी याद में इस्पात के सालाना उत्पादन में सबसे ज्यादा कमी होगी।'' दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की बात करें तो इस्पात के वैश्विक सालाना उत्पादन में सबसे अधिक 8.7 फीसदी की कमी 1982 में हुई थी। शुक्र है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद की सालाना विकास दर अभी भी 6 फीसदी है। सेल उन इस्पात उत्पादों के उत्पादन पर जोर दे रही है, जिनकी अभी भी खूब मांग है। लेकिन सेल या दूसरी भारतीय कंपनियों के पास अपनी कंपनियों को इस्पात की गिरती कीमतों से बचाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। जुलाई 2008 में एक क्विंटल इस्पात की कीमत जहां 1,160 डॉलर प्रति टन थी, वहीं अब इसकी कीमत महज 500 से 550 डॉलर प्रति टन रह गई है। इस्पात निर्माता मांग में लंबे समय तक कमी रहने से आशंकित हैं। उन्हें लगता है कि इस्पात का वैश्विक उत्पादन वहां तक जाएगा, जहां पर 2007 में था। यही नहीं, विशेषज्ञ इस मुद्दे पर बंटे हुए कि कब इस्पात उत्पादन फिर से 1.324 अरब टन (2007 का उत्पादन) तक पहुंच जाएगा। मूडी से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया कि मंदी के असर को दूर करने के लिए हमें कम से कम 2013 तक इंतजार करना होगा। लंदन स्थित आयरन एंड स्टील स्टैस्टिक्स ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए फाइनैंशियल टाइम्स के पीटर मार्श ने बताया कि युद्धकालीन समय को छोड़ दें तो 1991 के बाद केवल 4 ऐसे मौके आए जब दुनिया के इस्पात उद्योग को गिरावट से उबरने में 4 साल या उससे ज्यादा समय लगे। मालूम हो कि मौजूदा आर्थिक मंदी के चलते इस्पात की मांग और कीमत में हुई कमी 1930 की आर्थिक मंदी के बाद सबसे ज्यादा है। अधिकारियों को उम्मीद नहीं है कि इस्पात की कीमतों में कोई बढ़ोतरी होगी। कुछ विश्लेषकों को उम्मीद है कि 2009 की दूसरी और तिमाही में इसकी कीमतों में थोड़ी तेजी होगी। लेकिन यह वृद्धि स्थायी होगी, इसकी गारंटी नहीं है। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: