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26 दिसंबर 2020

दिल्ली में अरहर और उड़द में मंदा, मसूर की कीमतों में तेजी

नई दिल्ली। स्थानीय मिलों की हाजिर मांग कमजोर होने से शनिवार को बर्मा की अरहर और उड़द की कीमतों में दिल्ली के नया बाजार में गिरावट दर्ज की गई, जबकि खरीद बढ़ने से मसूर की कीमतों में तेजी दर्ज की गई। हालांकि, दालों में थोक के साथ ही खुदरा बाजार में ग्राहकी कमजोर ही है।

स्थानीय मिलों की मांग कमजोर होने से बर्मा की नई अरहर की कीमतों में 50 रुपये का मंदा आकर भाव 5,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि पुरानी अरहर के दाम 5,700 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे। इसी तरह से चेन्नई से दिसंबर डिलीवरी के लिए लेमन अरहर की कीमतें 5,600 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर रही।

इस बीच 24 दिसंबर 2020 को महाराष्ट्र में 6,374 टन खरीफ 2019 की अरहर की निविदा को नेफेड ने 5,510 से 5,601 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर मंजूरी दी।

अरहर के आयात की समय सीमा 31 दिसंबर 2020 को समाप्त हो रही है, इसलिए व्यापारियों की नजर सरकार के फैसले पर रहेगी।

बर्मा उड़द एफएक्यू और एसक्यू की कीमतों में 50 रुपये की गिरावट आकर भाव दिल्ली में क्रमशः 7,275 से 7,300 प्रति क्विंटल और 8,250 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। हाजिर में आयातित अरहर का स्टॉक कम है, लेकिन मिलों की मांग भी कमजोर होने से भाव में मंदा आया।

हाजिर बाजार में आयातित स्टॉक कम होने के बावजूद भी दाल मिलों की मांग कमजोर होने से मुंबई और चेन्नई के बाजारों में शनिवार को बर्मा उड़द की कीमतों में 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गई। जबकि बर्मा उड़द एफएक्यू में कोलकाता के बाजार में 50 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई।

दाल मिलों की हाजिर मांग बढ़ने से दिल्ली में मध्य प्रदेश और कनाडा लाईन की मसूर की कीमतों में 25 से 50 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई।

मुंबई, हजीरा, मुंद्रा और कांडला बंदरगाह के साथ ही मुंबई के बाजारों में आस्ट्रेलिया के साथ ही कनाडा की क्रिमसन मसूर की कीमतों में 25 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई।

दूसरी और घरेलू मिलों की सीमित मात्रा में खरीद होने से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की मसूर के दाम लगभग स्थिर बने रहे।

हालांकि आयात ज्यादा होने के साथ ही चालू रबी में बुआई में हुई बढ़ोतरी से मसूर की कीमतों में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है, लेकिन केंद्र सरकार ने अगर 10 फीसदी आयात शुल्क पर मसूर के आयात की समय सीमा को नहीं बढ़ाया तो फिर हल्का सुधार बन सकता है।

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