ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि दालों के उत्पादन में इससे पिछले साल के मुकाबले कमी आई हो। लेकिन चकित करने वाली बात इसकी कीमतों का सातवें आसमान पर पहुंचना है, खासकर इस साल जून के बाद से दालों की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। संभव है कि लगातार दो वर्षों में आपूर्ति कम रहने की वजह से ऐसा हुआ हो, क्योंकि निकट भविष्य में लगातार दो वर्षों तक आपूर्ति कमजोर रही हो, इसका उदाहरण नहीं दिखता है। इसके साथ ही दो मुख्य दलहन फसल अरहर और चने का उत्पादन 2014-15 में पिछले साल के मुकाबले कम रहा है। इसका असर भी कीमतों पर पड़ा है।
2014-15 से पहले 2011-12 में दालों के कुल उत्पादन में गिरावट आई थी, उस समय दलहन की पैदावार 1.709 करोड़ टन रही थी, जबकि इससे पिछले वर्ष 1.824 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था। हालांकि 2014-15 में 9.5 फीसदी कम उत्पादन के अनुमान से पैदावार कहीं ज्यादा कम रही और मांग बढऩे से भी इसकी कीमतों में तेजी को बढ़ावा मिला है। 2011-12 में उत्पादन घटने पर आयात के जरिये उसकी भरपाई की गई थी, जिससे कीमतों में इतनी तेजी नहीं आई है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जून से सितंबर 2010 में अरहर की देश भर में औसत खुदरा कीमत 67 रुपये से घटकर 61 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई थी, वहीं 2011 में इस दौरान कीमतें 62 रुपये से घटकर 61 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी। 2012 में देश भर में अरहर की औसत खुदरा कीमत 13 फीसदी और 2014 में 6 फीसदी बढ़ी थी।
लेकिन 2015 में जून से सितंबर के दौरान अरहर की औसत खुदरा कीमत 26 फीसदी तक बढ़ गई। हालांकि शहर के आधार पर कीमतों में थोड़ा अंतर हो सकता है। 2011-12 से तीन-चार वर्षों में दालों की मांग इसके उत्पादन से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है, जिसका पता राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों से भी पता चलता है। हालांकि इस साल दालों की कीमतों में जिस तरह से तेजी आई है, उसके पीछे वजह समझ नहीं आती।
2011-12 में अरहर के उत्पादन में 7.34 फीसदी की गिरावट थी, जबकि 2014-15 में 10 फीसदी कमी का अनुमान है। लेकिन क्या यह कीमतों में इतनी तेजी की वजह हो सकती है?2011-12 में चने के उत्पादन में 6.32 फीसदी की गिरावट आई थी। 2014-15 में भी चने के उत्पादन में 20 फीसदी की कमी आई है लेकिन कीमतों में करीब 32 फीसदी का इजाफा हुआ है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'यह कहना कठिन है कि 2011-12 में उत्पादन घटने के बाद भी 2014-15 के मुकाबले कीमतों में उतनी तेजी क्यों नहीं आई, क्योंकि स्थितियां एक सत्र से दूसरे सत्र में अगल होती हैं। BS Hindi
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