भारतीय चीनी मिलों ने करीब 1,00,000 टन सफेद चीनी का निर्यात करने के लिए
कई प्रमुख देशों से करार किया है लेकिन कारोबारियों का कहना है कि निर्यात
शुरू होने के बावजूद सरकार द्वारा तय किए गए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को
पूरा करना कारोबारियों के लिए काफी मुश्किल होगा। भारत सरकार लगातार मिलों
को अंतरराष्टï्रीय बाजार में चीनी बेचने के लिए जोर दे रही है और सरकार
चाहती है कि मिलें चीनी बेचकर गन्ना किसानों का बकाया चुकाएं।
दुनिया में चीनी के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश ने पिछले नए नियमों की घोषणा कर चालू पेराई सीजन में बढ़ते स्टॉक को कम करने के लिए न्यूनतम 40 लाख टन चीनी निर्यात करने को जरूरी किया है। भारतीय कच्चा चीनी निर्यात पर सब्सिडी को बिहार विधानसभा चुनावों के खत्म होने से पहले अनुमति मिलने की उम्मीद नहीं है और मिलें आने वाले पेराई सीजन को देखते हुए धन जुटाने के लिए सफेद चीनी के निर्यात पर जोर दे रही हैं।
घाटे पर उत्पादन करते हुए भारतीय चीनी मिलों ने म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे एशियाई देशों से 90,000 टन चीनी के निर्यात के लिए करार किया है। अक्टूबर-नवंबर में निर्यात के लिए 390-410 डॉलर प्रति टन एफओबी की कीमत तय कर दी है। कारोबारी सूत्रों का कहना है कि मिलों को 1 अक्टूबर से शुरू हुए नए पेराई सीजन के लिए वित्तीय मदद की जरूरत होगी। एक वैश्विक फर्म में काम करने वाले मुंबई के एक कारोबारी का कहना है, 'कारोबारी करीब 400 डॉलर की दर पर सौदों को अंतिम रूप दे रहे हैं। अफगानिस्तान और म्यांमार से अच्छी मांग देखने को मिल रही है। मिलों को नई पेराई के लिए पैसे की जरूरत है और इसलिए वे कीमतों को लेकर समझौता करने को तैयार हैं।'
दुनिया में चीनी के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश ने पिछले नए नियमों की घोषणा कर चालू पेराई सीजन में बढ़ते स्टॉक को कम करने के लिए न्यूनतम 40 लाख टन चीनी निर्यात करने को जरूरी किया है। भारतीय कच्चा चीनी निर्यात पर सब्सिडी को बिहार विधानसभा चुनावों के खत्म होने से पहले अनुमति मिलने की उम्मीद नहीं है और मिलें आने वाले पेराई सीजन को देखते हुए धन जुटाने के लिए सफेद चीनी के निर्यात पर जोर दे रही हैं।
घाटे पर उत्पादन करते हुए भारतीय चीनी मिलों ने म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे एशियाई देशों से 90,000 टन चीनी के निर्यात के लिए करार किया है। अक्टूबर-नवंबर में निर्यात के लिए 390-410 डॉलर प्रति टन एफओबी की कीमत तय कर दी है। कारोबारी सूत्रों का कहना है कि मिलों को 1 अक्टूबर से शुरू हुए नए पेराई सीजन के लिए वित्तीय मदद की जरूरत होगी। एक वैश्विक फर्म में काम करने वाले मुंबई के एक कारोबारी का कहना है, 'कारोबारी करीब 400 डॉलर की दर पर सौदों को अंतिम रूप दे रहे हैं। अफगानिस्तान और म्यांमार से अच्छी मांग देखने को मिल रही है। मिलों को नई पेराई के लिए पैसे की जरूरत है और इसलिए वे कीमतों को लेकर समझौता करने को तैयार हैं।'
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