भारत सरकार को लगातार दूसरे साल भी किसानों से बड़े पैमाने पर कपास की खरीद
करनी होगी क्योंकि कपास के बड़े खरीदार चीन ने आयात में कटौती करने का
फैसला लिया। उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस वजह से कपास की
कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है। 30 सितंबर को खत्म हुए विपणन वर्ष
में निगम ने सरकार द्वारा तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 160
अरब रुपये खर्च कर 87 लाख गांठ कपास की खरीदारी की जबकि पिछले साल सीसीआई
ने महज 4,00,000 गांठों की खरीद की थी। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के
अध्यक्ष धीरेन शेठ ने कहा, 'सर्वाधिक आपूर्ति के दौर में कीमतें एमएसपी के
स्तर से भी नीचे चली जाएंगी क्योंकि चीन से मांग ना के बराबर है।' किसानों
की मदद के उद्देश्य से सरकारी खरीद करने से भारतीय किसानों को विदेश में
सस्ती दरों पर कपास नहीं बेचना पड़ेगा।
पिछले कुछ वर्षों से भारत के कपास निर्यात में चीन की हिस्सेदारी आधी से भी अधिक थी और रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद कीमतों में तेजी का रुख बना रहा लेकिन पिछले साल स्टॉक बढ़ाने के कार्यक्रम पर रोक लगाने के बाद देसी कपास की मांग को बढ़ावा देने के लिए चीन ने आयात कोटे में कटौती कर दी। चीन का आयात साल के पहले नौ महीनों में 42 फीसदी घटकर 11.6 लाख टन रह गया। भारतीय किसानों ने कपास की खेती तो शुरू कर दी लेकिन दक्षिण के कुछ हाजिर बाजारों में कीमतें एमएसपी से भी निचले स्तर पर पहुंच गई जिसकी वजह से भारतीय कपास निगम 4,100 रुपये प्रति 100 किग्रा की दर से खरीदारी कर रहा है। सीसीआई के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक बी के मिश्रा ने कहा, 'अब तक हमने 50 खरीद केंद्रों की शुरुआत की है। हमने पिछले साल की ही तरह पूरे देश में 300 केंद्र खोल सकते हैं। हमने चालू वर्ष के लिए कोई खरीद लक्ष्य तय नहीं किए हैं लेकिन उतना खरीदने की कोशिश करेंगे जितना किसान बेचना चाहेंगे।'
सीएआई के शेठ कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि सीसीआई इस वर्ष भी जबरदस्त खरीदारी कर सकता है क्योंकि निर्यात मांग कमजोर रही है और स्टॉक रिकॉर्ड उच्च स्तरों पर पहुंच चुके हैं। मिश्रा का कहना है कि इस वर्ष खरीदारी पिछले वर्ष के मुकाबले कम रहने की उम्मीद है क्योंकि इस वर्ष उत्पादन 1.5 फीसदी घटकर 3.77 करोड़ गांठ रहने का अनुमान है। इसके अलावा देसी कपड़ा इकाइयों के उपभोग में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है। वियतनाम और बांग्लादेश जैसे एशियाई खरीदारों की ओर से भी इस वर्ष मांग में तेजी आने की उम्मीद है हालांकि इस तेजी से चीन की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई कर पाना मुश्किल होगा। पश्चिमी गुजरात के एक निर्यातक धर्मेश लखानी का कहना है, 'चीनी बाजार बड़ा है। कोई देश उतनी खरीदारी नहीं कर सकता है।'
चीन के खरीदारों पर सांठगांठ का आरोप
तमिलनाडु के कोंगूनाडू क्षेत्र की कताई मिलों ने आरोप लगाया है कि चीन के धागा खरीदार आपस में सांठगांठ कर कारोबार कर रहे है और इससे कताई मिल मालिकों को कारोबार में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कताई मिल मालिकों ने इस बारे में केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय को पत्र भी दिया है। कताई मिल मालिकों के संगठन इंडियन टेक्सपे्रन्योर्स फेडरेशन ने कहा कि चीनी धागे के खरीदार और व्यापारी भारतीय धागा विनिर्माताओं को नुकसान हो रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से भारत के कपास निर्यात में चीन की हिस्सेदारी आधी से भी अधिक थी और रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद कीमतों में तेजी का रुख बना रहा लेकिन पिछले साल स्टॉक बढ़ाने के कार्यक्रम पर रोक लगाने के बाद देसी कपास की मांग को बढ़ावा देने के लिए चीन ने आयात कोटे में कटौती कर दी। चीन का आयात साल के पहले नौ महीनों में 42 फीसदी घटकर 11.6 लाख टन रह गया। भारतीय किसानों ने कपास की खेती तो शुरू कर दी लेकिन दक्षिण के कुछ हाजिर बाजारों में कीमतें एमएसपी से भी निचले स्तर पर पहुंच गई जिसकी वजह से भारतीय कपास निगम 4,100 रुपये प्रति 100 किग्रा की दर से खरीदारी कर रहा है। सीसीआई के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक बी के मिश्रा ने कहा, 'अब तक हमने 50 खरीद केंद्रों की शुरुआत की है। हमने पिछले साल की ही तरह पूरे देश में 300 केंद्र खोल सकते हैं। हमने चालू वर्ष के लिए कोई खरीद लक्ष्य तय नहीं किए हैं लेकिन उतना खरीदने की कोशिश करेंगे जितना किसान बेचना चाहेंगे।'
सीएआई के शेठ कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि सीसीआई इस वर्ष भी जबरदस्त खरीदारी कर सकता है क्योंकि निर्यात मांग कमजोर रही है और स्टॉक रिकॉर्ड उच्च स्तरों पर पहुंच चुके हैं। मिश्रा का कहना है कि इस वर्ष खरीदारी पिछले वर्ष के मुकाबले कम रहने की उम्मीद है क्योंकि इस वर्ष उत्पादन 1.5 फीसदी घटकर 3.77 करोड़ गांठ रहने का अनुमान है। इसके अलावा देसी कपड़ा इकाइयों के उपभोग में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है। वियतनाम और बांग्लादेश जैसे एशियाई खरीदारों की ओर से भी इस वर्ष मांग में तेजी आने की उम्मीद है हालांकि इस तेजी से चीन की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई कर पाना मुश्किल होगा। पश्चिमी गुजरात के एक निर्यातक धर्मेश लखानी का कहना है, 'चीनी बाजार बड़ा है। कोई देश उतनी खरीदारी नहीं कर सकता है।'
चीन के खरीदारों पर सांठगांठ का आरोप
तमिलनाडु के कोंगूनाडू क्षेत्र की कताई मिलों ने आरोप लगाया है कि चीन के धागा खरीदार आपस में सांठगांठ कर कारोबार कर रहे है और इससे कताई मिल मालिकों को कारोबार में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कताई मिल मालिकों ने इस बारे में केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय को पत्र भी दिया है। कताई मिल मालिकों के संगठन इंडियन टेक्सपे्रन्योर्स फेडरेशन ने कहा कि चीनी धागे के खरीदार और व्यापारी भारतीय धागा विनिर्माताओं को नुकसान हो रहा है।
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