नई दिल्ली April 03, 2011
देश भर के प्रमुख शहरों में सब्जियों की किल्लत दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने सब्जियों की खेती के लिए क्लस्टर की योजना बनाई है। साथ ही हर राज्य की राजधानी या 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले दूसरे शहरों में से किसी एक में इसके भंडारण की व्यवस्था करने की योजना है।
ऐसे क्लस्टर के निर्माण से चुनिंदा शहरों में सब्जियों की मांग व आपूर्ति की समस्या दूर होगी और इस बाबत वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने साल 2011-12 के बजट में प्रस्ताव रखा है और इसके लिए 300 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।
इस योजना के क्रियान्वयन के लिए तैयार दिशा-निर्देश के मसौदे के मुताबिक, इस कार्यक्रम के संचालन में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका नहीं होगी। राज्य सरकारें शहरों की पहचान करेगी, जहां वह सब्जियों के लिए क्लस्टर स्थापित करना चाहती हों। पहचान किए गए इन शहरों में एक सर्वे किया जाएगा ताकि आपूर्ति की बाधाओं के बारे में जानकारी मिले और उस शहर के आसपास के उन इलाकों की क्षमता का आकलन किया जाएगा, जहां सब्जियों की खेती की जा सकती हो।
एक अधिकारी ने बताया कि सर्वे के आधार पर राज्य सरकारों को प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करनी होगी, जिसमें भौगोलिक व जलवायु के संबंध में सूचना के साथ-साथ सब्जियों के विकास की क्षमता और जमीन की उपलब्धता की जानकारी देनी होगी। इस रिपोर्ट में उन कदमों का भी जिक्र होगा जिसके जरिए मौजूदा बुनियादी ढांचा मसलन राज्यों में गोदामों का इस्तेमाल बेहतर तरीके से सब्जियों के भंडारण में किया जा सकता है।
अधिकारी ने बताया कि उचित कीमत पर सुरक्षित व अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जियों की लगातार उपलब्धता प्रमुख चुनौती है। इसके लिए कई मोर्चे पर मसलन उत्पादन, कटाई के बाद, भंडारण, परिवहन, विपणन, वितरण और नीतिगत सुधार पर कदम उठाने की जरूरत है।
सरकार ने सब्जी उत्पादकों को किसान एसोसिएशन के तौर पर संगठित करने और इन समूहों को मितव्ययिता का लाभ उठाने के बारे में जानकारी देने और सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियों व नगर निगमों के साथ तालमेल बिठाने की योजना है ताकि शहर के आसपास सब्जियों की खेती के लिए जमीन उपलब्ध हो जाए।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) इस योजना के लिए आवश्यक क्रेडिट उपलब्ध कराएगा। राज्यों के वानिकी निदेशालयों, वानिकी मिशन और सरकारें इस योजना को लागू कराने वाली प्रमुख एजेंसियां होंगी।
बढ़ेगी आपूर्ति
सब्जियों की खेती के लिए क्लस्टर बनाने की योजना, राज्यों की राजधानी या दूसरे शहरों में इसके भंडारण की होगी व्ययवस्था
सरकार ने इनके लिए बजट में 300 करोड़ रुपये का आवंटन किया है (BS hindi)
30 अप्रैल 2011
फुलकारी ने बढ़ाई खुशहाली
April 17, 2011
पंजाब में 3,000 से अधिक महिलाओं के एक स्वयंसेवी समूह ने फुलकारी को अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। कुछ साल पहले तक पटियाला जिले के थुहा गांव की जसबीर ने सोचा भी नहीं था कि वह 40 वर्ष की उम्र में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन पाएगी। आज प्रशिक्षित कशीदाकार के रूप में जसबीर और गांव की अन्य महिलाएं अपने परिवारों और ग्रामीणों से सम्मान पा रही हैं। जसबीर के साथ काम करने वाली सुरेश रानी और प्रतिभा रानी की हालत तो और भी खराब थी, दोनों के पति क्रमश: बिहार और हरियाणा के प्रवासी मजदूर हैं। लेकिन आज उनके पास पैन कार्ड है और वे नियमित रूप से आयकर रिटर्न जमा करती हैं। यही नहीं अब ये सभी बाकी महिलाओं को भी फुलकारी कशीदाकारी करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। जसबीर कौर, सुरेश रानी और प्रतिभा रानी उन 3,000 महिलाओं में शामिल हैं, जो 50 स्वयंसेवी समूहों के रूप में काम कर रही हैं। इन समूहों को राज्य की पारंपरिक कढ़ाई 'फुलकारी' को मशहूर बनाने के लिए कई राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। इन ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प उत्पादों को मलेशिया, बहरीन और चीन की सरकारों के आमंत्रण पर वहां प्रदर्शित किया गया है। इसकी शुरुआत 1994 में पटियाला की रेखा मान ने की थी। आज रेखा और उनके साथ काम करने वाली महिलाएं फुलकारी से नए डिजाइन बनाकर उसे नए जमाने के रंग में ढाल रही हैं। पटियाला हैंडीक्राफ्ट वर्कशॉप कोऑपरेटिव सोसायटी (पीएचडब्ल्यूसीएस) ने 1997 में पंजाब सहकारी समिति के पास पंजीकरण कराया था। पंजीकरण होने के बाद राष्टï्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय की ओर से पंजाब में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्यम विकास प्रशिक्षण देने के प्रस्तावों की मानों बाढ़ सी आ गई। हकीकत यह है कि पंजाब के बैंक ऋण देने के लिए संगठित गैर सरकारी संगठन की तलाश में थे, जो मान पर जाकर खत्म हुई और उन्होंने ग्रामीण कलाकारों के लिए चलाई जा रही राज्य सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया।पंजाब में 2 लाख से भी अधिक महिलाएं फुलकारी की कढ़ाई करती हैं। हालांकि एक बेहतर विपणन तंत्र के अभाव में उनकी अच्छी कमाई नहीं हो पाती थी। भारत के बंटवारे के समय से ही पटियाला का अदालत बाजार इस हस्तशिल्प का मुख्य केंद्र रहा है और कलाकारों व खरीदारों को दुकानदारों की शर्त पर ही कारोबार करना पड़ता है।हालांकि पीएचडब्ल्यूसीएस से जुडऩे के बाद कशीदाकारों ने असंगठित बाजार के मुकाबले तिगुना कमाना शुरू कर दिया है। रंगों के समायोजन, डिजाइन और धागों पर लगातार शोध कर रहे डिजाइनरों ने इन कशीदाकारों को उनका काम और बेेहतर बनाने में मदद की।एक बड़ी मदद तब आई जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने 2006 में महिलाओं के इस समूह को स्फूर्ति (पारंपरिक उद्योग को पुनर्जीवित करने की योजना) के लिए चुना। इसके तहत समूह को 1 करोड़ रुपये और गांव में पंचायत की जमीन मिली । समिति गांव में एक जन सुविधा केंद्र का संचालन भी करती है। ग्रामीण महिलाओं को कशीदाकारी का प्रशिक्षण देने के साथ ही नवीनतम चलन की जानकारी भी दी जाती है। केंद्र पर मौजूद आधुनिक मशीनों की मदद से ग्रामीण उद्यमी कढ़ाई वाले परिधान भी बनाती हैं और उन्हें खुले बाजार में बेचती हैं। समिति को संस्थानों से भी थोक ऑर्डर मिलते हैं।समिति के लिए सबसे गर्व की बात यह है कि उनके डिजाइन को नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद और विवको (पंजाब स्टेट हैंडलूम वीवर्स एपेक्स को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड) में भी स्वीकार किये जाते हैं। स्फूर्ति फुलकारी क्लस्टर परियोजना की प्रमुख मान बताती हैं, 'हमने विवको के लिए पर्दे और कुशन कवर के डिजाइन बनाए हैं और ये उत्पाद अंतरराष्टï्रीय बाजार के लिए थे।'पंजाब का फुलकारी क्लस्टर 2007 के बाद से देश में क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत बनाए गए 79 क्लस्टरों में से एक है। बटुए, फाइल फोल्डर्स, कुशन कवर्स, पर्दे, हाथ के पंखे और मोबाइल कवर पर भी कढ़ाई कर क्लस्टर ने अपने उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार किया है। दरअसल अंतरराष्टï्रीय बाजारों में इन उत्पादों की भी काफी मांग है।मान ने बताया, 'हम निर्यात करने वाली दूसरी एजेंसियों के लिए भी डिजाइन बना रहे थे लेकिन अब हमने निर्यात भी करने का फैसला किया है। हमारी वेबसाइट पर इस बारे में काफी प्रस्ताव आ रहे हैं और हम सौदों के लिए बात कर रहे हैं।' इस क्लस्टर ने न सिर्फ लुप्त होती पारंपरिक कला को फलने-फूलने का मौका दिया है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है। अब यहां की महिलाएं केंद्र सरकार की स्वास्थ्य परियोजनाओं और बीमा कार्यक्रमों का हिस्सा बन गई हैं। (BS Hindi)
पंजाब में 3,000 से अधिक महिलाओं के एक स्वयंसेवी समूह ने फुलकारी को अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। कुछ साल पहले तक पटियाला जिले के थुहा गांव की जसबीर ने सोचा भी नहीं था कि वह 40 वर्ष की उम्र में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन पाएगी। आज प्रशिक्षित कशीदाकार के रूप में जसबीर और गांव की अन्य महिलाएं अपने परिवारों और ग्रामीणों से सम्मान पा रही हैं। जसबीर के साथ काम करने वाली सुरेश रानी और प्रतिभा रानी की हालत तो और भी खराब थी, दोनों के पति क्रमश: बिहार और हरियाणा के प्रवासी मजदूर हैं। लेकिन आज उनके पास पैन कार्ड है और वे नियमित रूप से आयकर रिटर्न जमा करती हैं। यही नहीं अब ये सभी बाकी महिलाओं को भी फुलकारी कशीदाकारी करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। जसबीर कौर, सुरेश रानी और प्रतिभा रानी उन 3,000 महिलाओं में शामिल हैं, जो 50 स्वयंसेवी समूहों के रूप में काम कर रही हैं। इन समूहों को राज्य की पारंपरिक कढ़ाई 'फुलकारी' को मशहूर बनाने के लिए कई राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। इन ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प उत्पादों को मलेशिया, बहरीन और चीन की सरकारों के आमंत्रण पर वहां प्रदर्शित किया गया है। इसकी शुरुआत 1994 में पटियाला की रेखा मान ने की थी। आज रेखा और उनके साथ काम करने वाली महिलाएं फुलकारी से नए डिजाइन बनाकर उसे नए जमाने के रंग में ढाल रही हैं। पटियाला हैंडीक्राफ्ट वर्कशॉप कोऑपरेटिव सोसायटी (पीएचडब्ल्यूसीएस) ने 1997 में पंजाब सहकारी समिति के पास पंजीकरण कराया था। पंजीकरण होने के बाद राष्टï्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय की ओर से पंजाब में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्यम विकास प्रशिक्षण देने के प्रस्तावों की मानों बाढ़ सी आ गई। हकीकत यह है कि पंजाब के बैंक ऋण देने के लिए संगठित गैर सरकारी संगठन की तलाश में थे, जो मान पर जाकर खत्म हुई और उन्होंने ग्रामीण कलाकारों के लिए चलाई जा रही राज्य सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया।पंजाब में 2 लाख से भी अधिक महिलाएं फुलकारी की कढ़ाई करती हैं। हालांकि एक बेहतर विपणन तंत्र के अभाव में उनकी अच्छी कमाई नहीं हो पाती थी। भारत के बंटवारे के समय से ही पटियाला का अदालत बाजार इस हस्तशिल्प का मुख्य केंद्र रहा है और कलाकारों व खरीदारों को दुकानदारों की शर्त पर ही कारोबार करना पड़ता है।हालांकि पीएचडब्ल्यूसीएस से जुडऩे के बाद कशीदाकारों ने असंगठित बाजार के मुकाबले तिगुना कमाना शुरू कर दिया है। रंगों के समायोजन, डिजाइन और धागों पर लगातार शोध कर रहे डिजाइनरों ने इन कशीदाकारों को उनका काम और बेेहतर बनाने में मदद की।एक बड़ी मदद तब आई जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने 2006 में महिलाओं के इस समूह को स्फूर्ति (पारंपरिक उद्योग को पुनर्जीवित करने की योजना) के लिए चुना। इसके तहत समूह को 1 करोड़ रुपये और गांव में पंचायत की जमीन मिली । समिति गांव में एक जन सुविधा केंद्र का संचालन भी करती है। ग्रामीण महिलाओं को कशीदाकारी का प्रशिक्षण देने के साथ ही नवीनतम चलन की जानकारी भी दी जाती है। केंद्र पर मौजूद आधुनिक मशीनों की मदद से ग्रामीण उद्यमी कढ़ाई वाले परिधान भी बनाती हैं और उन्हें खुले बाजार में बेचती हैं। समिति को संस्थानों से भी थोक ऑर्डर मिलते हैं।समिति के लिए सबसे गर्व की बात यह है कि उनके डिजाइन को नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद और विवको (पंजाब स्टेट हैंडलूम वीवर्स एपेक्स को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड) में भी स्वीकार किये जाते हैं। स्फूर्ति फुलकारी क्लस्टर परियोजना की प्रमुख मान बताती हैं, 'हमने विवको के लिए पर्दे और कुशन कवर के डिजाइन बनाए हैं और ये उत्पाद अंतरराष्टï्रीय बाजार के लिए थे।'पंजाब का फुलकारी क्लस्टर 2007 के बाद से देश में क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत बनाए गए 79 क्लस्टरों में से एक है। बटुए, फाइल फोल्डर्स, कुशन कवर्स, पर्दे, हाथ के पंखे और मोबाइल कवर पर भी कढ़ाई कर क्लस्टर ने अपने उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार किया है। दरअसल अंतरराष्टï्रीय बाजारों में इन उत्पादों की भी काफी मांग है।मान ने बताया, 'हम निर्यात करने वाली दूसरी एजेंसियों के लिए भी डिजाइन बना रहे थे लेकिन अब हमने निर्यात भी करने का फैसला किया है। हमारी वेबसाइट पर इस बारे में काफी प्रस्ताव आ रहे हैं और हम सौदों के लिए बात कर रहे हैं।' इस क्लस्टर ने न सिर्फ लुप्त होती पारंपरिक कला को फलने-फूलने का मौका दिया है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है। अब यहां की महिलाएं केंद्र सरकार की स्वास्थ्य परियोजनाओं और बीमा कार्यक्रमों का हिस्सा बन गई हैं। (BS Hindi)
आठ लाख किसानों को क्रेडिट कार्ड
जयपुर । राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने चालू वित्त वर्ष में आठ लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने का लक्ष्य रखा है। बैंक इस वर्ष 29 हजार 723 करोड़ की ऋण सम्भावनाओं का आंकलन कर रहा है, जिसमें 24 हजार 563 करोड़ रूपए अल्पावधि ऋण और 5160 करोड़ रूपए दीर्घावधि ऋण के रूप में जारी किए जाने की सम्भावना है। इस आधार पर नाबार्ड ने राज्य सरकार और बैंकों को वित्तीय वष्ाü में कृçष्ा के लिए 27 हजार करोड़ रूपए के ऋण जारी करने का लक्ष्य निर्घारित किया है।नाबार्ड के राजस्थान कार्यालय के क्षेत्रीय प्रभारी के. मुरलीधर राव ने बताया कि राज्य में वर्तमान में करीब 40 लाख किसान क्रेडिट कार्ड जारी हो चुके हैं। अभी 16 लाख कार्ड जारी होने की और सम्भावनाएं हैं। इनमें से आठ लाख इस वित्त वष्ाü में और शेष्ा आठ लाख अगले वित्त वष्ाü में जारी किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि वित्त वष्ाü 2010-11 में नाबार्ड ने 5168.72 करोड़ की वित्तीय सहायता प्रदान की। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाएं विकसित करने के लिए नाबार्ड ने ग्रामीण आधारभूत संरचना संवर्घन निधि (आरआईडीएफ) योजना में गत वित्त वष्ाü में 1300.23 करोड़ के ऋण स्वीकृत कर करीब एक हजार करोड़ के ऋण वितरित किए हैं।9 जो गत वष्ाü की तुलना में 18 फीसदी अधिक है।उन्होंने बताया कि किसानों को सात प्रतिशत वाçष्ाüक ब्याज दर पर सस्ते फसली ऋण उपलब्ध कराने के लिए नाबार्ड ने सहकारी व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को ब्याज सहायता प्रदान की है। इसके अलावा एनजीओ को विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए अनुदान व सहायता दी जा रही है। (patrika)
नाबार्ड सहकारी बैंकों को सस्ती ब्याज दर पर पुनर्भरण उपलब्ध कराएं
नई दिल्ली। राजस्थान के सहकारिता मंत्राी परसादी लाल मीणा ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि किसानों को सस्ती ब्याज दर पर सहकारी कर्जें उपलब्ध कराने के लिए नाबार्ड सहकारी बैंकों को 2.5 (ढ़ाई) प्रतिशत की ब्याज दर पर पुनर्भरण सुविधा उपलब्ध करावें। उन्होंने वैद्यनाथन पैकेज के तहत केन्द्र व नाबार्ड के बीच हुए सहमति पत्रा के अनुसार वैंचमार्क बिन्दुओं के क्रियान्वयन की चर्चा करते हुए राज्य की ग्राम सेवा सहकारी समितियों को जारी होने वाली शेष 25 प्रतिशत राशि 105 करोड़ रु. एवं सहकारी बैंकों के लिए 11 करोड़ 51 लाख रुपए शीघ्र जारी कराने का आग्रह किया। मीणा नई दिल्ली में बुधवार को केन्द्रीय कृषि मंत्राी शरद पवार की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित राज्यों के सहकारिता मंत्रियों के सम्मेलन में बोल रहे थे। सम्मेलन में सहकारिता मंत्राी मीणा के साथ राजस्थान के प्रमुख शासन सचिव सहकारिता तपेश पवार एवं रजिस्ट्रार प्रेम सिंह मेहरा भी हिस्सा ले रहे थे। उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों की काश्तकारों तक सीधी पहुंच होने से लघु, सीमांत एवं जरुरतमंद किसानों सहित अधिकांश किसानों की ऋण जरुरतों को सहकारी बैंक ही पूरा करते हैं। राज्य में सहकारी बैंकों द्वारा 34 लाख 63 हजार काश्तकारों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए जा चुके हैं जो प्रदेश में वाणिज्यिक, ग्रामीण एवं निजी बैंकों द्वारा कुल वितरित किसान क्रेडिट कार्डों में 60 प्रतिशत से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में पिछले वर्ष 7 लाख से अधिक नए काश्तकारों सहित 22 लाख किसानों को रेकार्ड 5 हजार 500 करोड़ रु. के फसली सहकारी ऋण वितरित किए गए हैं, इस वर्ष ऋण सुविधा का और अधिक विस्तार करते हुए 6 हजार करोड़ रु. के फसली ऋण वितरित किए जाएंगे। समय पर ऋण चुकाने वाले काश्तकारों को पांच प्रतिशत और आगामी वर्ष चार प्रतिशत से ही वसूली की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने आदिवासी काश्तकारों को सहकारी फसली ऋण पर दो प्रतिशत का अतिरिक्त अनुदान देते हुए केवल दो प्रतिशत ब्याज दर पर फसली सहकारी ऋण उपलब्ध कराने का निर्णय किया है। सहकारी बैंकों के सीमित वित्तीय संसाधनों की चर्चा करते हुए सहकारिता मंत्राी मीणा ने कहा कि काश्तकारों तक अधिक से अधिक सहकारी ऋण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सहकारी बैंकों के सहयोग के लिए केन्द्र सरकार व नाबार्ड को आगे आना होगा। उन्हांेने सहकारी ऋणों के वितरण में नाबार्ड की भागीदारी को 45 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी करने का करते हुए ब्याज अनुदान को भी 3 प्रतिशत करने की मांग की। मीणा ने सहकारी ऋणों पर ब्याज अनुदान की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए इस सुविधा का लाभ काश्तकारों तक प्रभावी तरीके से पंहुचाने और बैंकां की तरलता बनाए रखने के लिए राजस्थान की अनुमानित अनुदान राशि 75 करोड़ रु. का राज्य अपेक्स बैंक स्तर पर रिवाल्विंग फण्ड बनाने या गत वर्ष के आधार पर 75 प्रतिशत राशि अग्रिम उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि दीर्घकालीन सहकारी साख संस्थाओं द्वारा वितरित फसली ऋणों पर भी 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान राशि उपलब्ध कराई जावें। सहकारिता मंत्राी परसादी लाल मीणा ने वैद्यनाथन पैकेज के एमओयू की चर्चा करते हुए कहा कि पेक्स के साथ ही सहकारी बैंकों का एक साथ कम्प्यूटरीकरण पर जोर देते हुए कहा कि इससे सहकारी साख संस्थाएं भी वाणिज्यिक बैंकांे की तरह कोर बैंकिंग, ऑन लाईन बैंकिंग सुविधाआंे से जुड़ सकेगी। उन्होंने सुदूर ग्रामीण इलाकों में रसोई गैस के वितरण का कार्य पेक्स को दिलाने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि राजस्थान में प्राथमिक स्तर से शीर्ष स्तर तक की अधिकांश प्रमुख सहकारी संस्थाआंे के चुनाव कराकर लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करते हुए संचालक मण्डल को अधिकार संपन्न बनाया गया हैं। 40 फीसदी नरेगा श्रमिकों के खातों का संधारण सहकारी बैंकों द्वारा किया जा रहा है। आदिवासी जिलों में 100 नई लेम्प्स खोलने का निर्णय लिया गया है। महिला सहकारी समितियों द्वारा मिड डे मील, लगभग 500 महिला समितियांे द्वारा उपभोक्ता सामग्री एवं खाद बीज वितरण केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है। राजस्थान सरकार सहकारिता को खासतौर से ग्रामीण विकास का प्रमुख जरिया बनाने के लिए प्रयासरत है और सहकारी सुविधाओं के विस्तार व व्यवस्था के सरलीकरण किया गया है। (Press Not)
महंगा दूध खरीदने के लिए रहें तैयार
अगले ही महीने से एक से दो रुपये प्रति लीटर बढ़ सकते हैं दाम आर.एस.राणा/नरेश बातिश/समरजीत सिंह नई दिल्ली/लुधियाना/जयपुर पहले से ही दूध की ऊंची कीमतों से परेशान उपभोक्ताओं को मई महीने में ज्यादा दाम चुकाने पड़ सकते हैं। मई महीने में दूध की कीमतों में एक से दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी होने की संभावना है। दरअसल गर्मियों का सीजन शुरू होते ही दूध के उत्पादन में कमी आनी शुरू हो गई है, जबकि कंपनियों ने दूध खरीद के दाम बढ़ा दिए हैं। पंजाब और जयपुर में भी कमोबेश यही हाल है। पिछले दो साल में कंपनियां दूध की कीमतों में 4 से 10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर चुकी हैं। 2009 में फूल क्रीम दूध का भाव दिल्ली में 24 रुपये प्रति लीटर था, जबकि मदर डेयरी के फूल क्रीम दूध का भाव इस समय 33 रुपये और अमूल के फूल क्रीम दूध का भाव 34 रुपये प्रति लीटर है। इसी तरह टोंड दूध के दाम पिछले दो साल में 5 रुपये और डबल टोंड दूध के दाम 4 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। फिलहाल टोंड दूध का भाव दिल्ली में 25 से 26 रुपये और डबल टोंड का मूल्य 22 से 23 रुपये प्रति लीटर है। सूत्रों के अनुसार फूल क्रीम दूध की कीमतों में करीब दो रुपये और टोंड तथा डबल टोंड दूध की कीमतों में एक रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी होने की संभावना है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर आर एस सोढी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि दूध उत्पादन का लीन सीजन शुरू होने के कारण दूध की खरीद कम हो गई है। इस समय कंपनी की दैनिक खरीद 96 से 97 लाख लीटर की है, जबकि पीक सीजन के समय 125-126 लाख लीटर की खरीद हो रही थी। उन्होंने बताया कि कंपनी पूरे देश में 70 लाख लीटर फ्रेश दूध की दैनिक सप्लाई करती है। दूध का खरीद भाव बढ़कर 410-415 रुपये प्रति किलो फैट हो गया है, जबकि पिछले साल इसका भाव 340-350 रुपये प्रति किलो फैट था। सोढी ने बताया कि दूध के खरीद दाम बढ़ चुके हैं, इसलिए कंपनियों पर बिक्री भाव बढ़ाने का दबाव बना हुआ है। दिल्ली में अमूल फूल क्रीम दूध का दाम 34 रुपये प्रति लीटर है, जबकि किसानों से सात फीसदी फैट दूध की खरीद 29.56 रुपये प्रति लीटर के आधार पर की जा रही है। इसके अलावा किसानों को एक-दो रुपये प्रति लीटर का बोनस भी दिया जाता है। दिल्ली में अमूल दूध की पैकिंग में सप्लाई करीब 17.5 लाख लीटर दैनिक की है। हरियाणा डेयरी को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के डायरेक्टर (मार्केटिंग) आर के चुकुल खरीद 5.50 लाख लीटर की हो रही है, जबकि मई-जून में खरीद कम होकर 3.5 लाख लीटर रहने की संभावना है। कंपनी इस समय 6.5 फीसदी फैट दूध का दाम किसानों को 24.50 रुपये प्रति लीटर के आधार पर दे रही है। इसमें पिछले सप्ताह 66 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई है। पारस डेयरी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गर्मियों का सीजन शुरू होने के कारण दूध की उपलब्धता कम हो गई है, जबकि दूध के खरीद दाम बढ़ गए हैं। ऐसे में कंपनियों पर दूध के दाम बढ़ाने का दबाव बना हुआ है। गर्मियों के इस सीजन में दूध की कमी आड़े नहीं आने देने के लिए पंजाब की निजी इकाइयों ने जहां पहले ही दूध पाउडर का भारी-भरकम स्टॉक कर रखा है, वहीं सहकारी दूध एजेंसी मिल्कफेड पंजाब दूध खरीद बढ़ाने के लिए इसके खरीद रेट बढ़ाने को तैयार है। इससे निजी कंपनियों पर भी दूध के खरीद रेट बढऩे का दबाव पड़ सकता है। मिल्कफेड पंजाब के चेयरमैन जीएस बब्बेहाली ने बताया कि दूध के खरीद रेट में कितनी बढ़ोतरी होगी, इस सबंध में अभी फैसला किया जाना बाकी है।मिल्कफेड अधिकारियों के मुताबिक दूध की कमी दूर करने के लिए हाल में करीब 1000 टन दूध पाउडर खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू की गई है। पंजाब मिल्क प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन के महासचिव एवं हरमन मिल्कफूड के एमडी रविंदर गर्ग के मुताबिक निजी कंपनियां पहले से ही किसानों को 4 रुपये प्रति फैट के लिहाज से भुगतान कर रही हैं। कंपनियां 28 रुपये के करीब प्रति लीटर दूध का भुगतान कर रही हैं जिसमें 2 रुपये प्रति लीटर का ट्रांसपोर्टेशन खर्च भी शामिल है। (Business Bhaskar)
Nabard’s rural infra loan disbursals fall in FY11
During fiscal 2010-11, Nabard could disburse only Rs12,060 crore, lower than Rs12,388 crore in the previous fiscal year
Mumbai: National Bank for Agriculture of Rural Development, or Nabard, has seen a fall in its disbursements of rural infrastructure loans due to capacity constraints by state governments to implement projects in the fiscal year ending 31 March 2011, despite higher sanctions.
During fiscal 2010-11, Nabard sanctioned project loans worth Rs18,315 crore as against Rs15,630 crore in the previous fiscal but could disburse only Rs12,060 crore, lower than Rs12,388 crore in the previous fiscal year.
“Disbursals from RIDF has been stagnated due to lack of capacity by the state governments to implement infrastructure projects. We are looking at ways on how to address this problem,” Prakash Bakshi, executive director of Nabard, said.
Nabard is the sectoral regulator for cooperative banks and regional rural banks (RRBs). The bank has been envisaged as the regulator for smaller micro finance institutions (MFIs) in the proposed micro finance bill.
During 2010-11, Nabard posted a 16.7% rise in its total loan book to Rs1,59,147 crore as against Rs1,36,292 crore in the year-ago period while crop loan assistance to cooperative banks and RRBs stood at Rs33,400 crore during 2010-11 as against Rs24,216 crore in the previous fiscal.
The bank plans to increase crop loan disbursals to Rs40,000 crore in the current fiscal, Bakshi said.
Under investment credit, Nabard offered loans worth Rs13,500 crore during 2009-10 for agriculture and allied sectors, non-farm sector activities and services sector to commercial banks, RRBs and cooperative banks as against Rs12,036 crore in 2009-10, a release said.
Under the self help group (SHG) bank-linkage programme, banks have so far cumulatively funded 50 lakh SHGs as on 31 March 2011, while total number of SHGs opened a savings account with banks stood at 70 lakh. (Mint)
Mumbai: National Bank for Agriculture of Rural Development, or Nabard, has seen a fall in its disbursements of rural infrastructure loans due to capacity constraints by state governments to implement projects in the fiscal year ending 31 March 2011, despite higher sanctions.
During fiscal 2010-11, Nabard sanctioned project loans worth Rs18,315 crore as against Rs15,630 crore in the previous fiscal but could disburse only Rs12,060 crore, lower than Rs12,388 crore in the previous fiscal year.
“Disbursals from RIDF has been stagnated due to lack of capacity by the state governments to implement infrastructure projects. We are looking at ways on how to address this problem,” Prakash Bakshi, executive director of Nabard, said.
Nabard is the sectoral regulator for cooperative banks and regional rural banks (RRBs). The bank has been envisaged as the regulator for smaller micro finance institutions (MFIs) in the proposed micro finance bill.
During 2010-11, Nabard posted a 16.7% rise in its total loan book to Rs1,59,147 crore as against Rs1,36,292 crore in the year-ago period while crop loan assistance to cooperative banks and RRBs stood at Rs33,400 crore during 2010-11 as against Rs24,216 crore in the previous fiscal.
The bank plans to increase crop loan disbursals to Rs40,000 crore in the current fiscal, Bakshi said.
Under investment credit, Nabard offered loans worth Rs13,500 crore during 2009-10 for agriculture and allied sectors, non-farm sector activities and services sector to commercial banks, RRBs and cooperative banks as against Rs12,036 crore in 2009-10, a release said.
Under the self help group (SHG) bank-linkage programme, banks have so far cumulatively funded 50 lakh SHGs as on 31 March 2011, while total number of SHGs opened a savings account with banks stood at 70 lakh. (Mint)
चांदी में खुदरा निवेशकों की बढ़ी भागीदारी
कोलकाता April 28, 2011
आप चाहें तो गुरुवार का दिन चांदी के नाम कर सकते हैं, जब 27 मार्च 1980 को हंट बंधुओं द्वारा की गई कालाबाजारी के चलते इसकी कीमतें धराशायी हो गई थीं या फिर इसे एक बेहतरीन मौके के रूप में देख सकते हैं क्योंकि खुदरा निवेशकों के बीच चांदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय जिंसों में से एक के रूप में मशहूर हो गई है। पिछले एक साल में चांदी की कीमतें 140 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं और अप्रैल 2010 के 27000 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले यह अप्रैल 2011 में 66,000 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है।इसके अलावा वैश्विक संकेतों मसलन कमजोर डॉलर और अमेरिकी सरकार द्वारा जारी मात्रात्मक सहजता (नकदी झोंकने) ने घरेलू बाजार में चांदी की कीमतों में बढ़ोतरी की है। बुधवार को फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के ने संकेत दिया था कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक मौद्रिक पैकेज जारी रखेगा और ब्याज दरों को शून्य के करीब रखेगा। इसके परिणामस्वरूप वायदा बाजार में गुरुवार को चांदी में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 71,290 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई।उच्च प्रतिफल से आकर्षित होकर खुदरा निवेशक चांदी में जमकर खरीदारी कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि इसकी कीमतें और बढ़ेंगी। इस समय न सिर्फ शेयर बाजार में निवेश करने वाले बल्कि वेतनभोगी वर्ग भी चांदी में आई तेजी में हाथ आजमा रहे हैं। चांदी के डीलरों का कहना है कि पिछले एक महीने में सिल्वर बार में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पंरपरागत रूप से ग्रामीण इलाकों में मौजूद लोग सिल्वर बार के सबसे बड़े उपभोक्ता होते हैं, लेकिन इस समय शहरी बाजार इस धातु की मांग बढ़ा रहा है।मई 2010 में एचडीएफसी बैंक ने 50 ग्राम वाले सिल्वर बार की बिक्री शुरू की थी और इस महीने बैंक ने 95 किलोग्राम से ज्यादा चांदी की बिक्री की। (BS Hindi)
आप चाहें तो गुरुवार का दिन चांदी के नाम कर सकते हैं, जब 27 मार्च 1980 को हंट बंधुओं द्वारा की गई कालाबाजारी के चलते इसकी कीमतें धराशायी हो गई थीं या फिर इसे एक बेहतरीन मौके के रूप में देख सकते हैं क्योंकि खुदरा निवेशकों के बीच चांदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय जिंसों में से एक के रूप में मशहूर हो गई है। पिछले एक साल में चांदी की कीमतें 140 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं और अप्रैल 2010 के 27000 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले यह अप्रैल 2011 में 66,000 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है।इसके अलावा वैश्विक संकेतों मसलन कमजोर डॉलर और अमेरिकी सरकार द्वारा जारी मात्रात्मक सहजता (नकदी झोंकने) ने घरेलू बाजार में चांदी की कीमतों में बढ़ोतरी की है। बुधवार को फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के ने संकेत दिया था कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक मौद्रिक पैकेज जारी रखेगा और ब्याज दरों को शून्य के करीब रखेगा। इसके परिणामस्वरूप वायदा बाजार में गुरुवार को चांदी में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 71,290 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई।उच्च प्रतिफल से आकर्षित होकर खुदरा निवेशक चांदी में जमकर खरीदारी कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि इसकी कीमतें और बढ़ेंगी। इस समय न सिर्फ शेयर बाजार में निवेश करने वाले बल्कि वेतनभोगी वर्ग भी चांदी में आई तेजी में हाथ आजमा रहे हैं। चांदी के डीलरों का कहना है कि पिछले एक महीने में सिल्वर बार में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पंरपरागत रूप से ग्रामीण इलाकों में मौजूद लोग सिल्वर बार के सबसे बड़े उपभोक्ता होते हैं, लेकिन इस समय शहरी बाजार इस धातु की मांग बढ़ा रहा है।मई 2010 में एचडीएफसी बैंक ने 50 ग्राम वाले सिल्वर बार की बिक्री शुरू की थी और इस महीने बैंक ने 95 किलोग्राम से ज्यादा चांदी की बिक्री की। (BS Hindi)
अक्षय तृतीया में आभूषणों पर छूट की चमक
मुंबई April 29, 2011
ब्रांडेड आभूषण निर्माता और खुदरा कारोबारी अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। इस साल 6 मई को अक्षय तृतीया है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन सोने की खरीदारी से घर में समृद्घि आती है। इसलिए ज्यादातर उपभोक्ता इस दिन सोने की खरीदारी को प्राथमिकता देते हैं। पिछले साल अक्षय तृतीया पर एक ही दिन में 45 टन सोने की बिक्री की सूचना मिली थी, लेकिन इस बार पीली धातु की कीमतों में तेजी के चलते ऐसा होना संभव नहीं लगता है। खुदरा आभूषण विक्रेता सोने के आभूषणों की निर्माण लागत में 50 फीसदी की छूट देकर उपभोक्ताओं पर पडऩे वाले बोझ में कमी की कोशिश कर रहे हैं जबकि हीरे जडि़त आभूषणों पर 25 फीसदी की छूट दी जा रही है। ऑरा ब्रांड के आभूषण निर्माता रोजी ब्लू के मुख्य कार्याधिकारी विजय जैन ने कहा, 'भारत में गहनों की खरीदारी केवल निवेश के नजरिए से नहीं की जाती है बल्कि इसका भावनात्मक महत्व भी होता है। अक्षय तृतीया पर बहुत अधिक बिक्री होती है। हमें उम्मीद है कि हमारी बिक्री उस दिन 50 फीसदी ज्यादा होगी।'रोजी ब्लू हीरा जडि़त आभूषणों पर 25 फीसदी की सीधी छूट दी जा रही है जबकि सोने के गहनों पर निर्माण शुल्क में 50 फीसदी की छूट दी जा रही है। सोने के गहनों पर यह छूट भारतीय मानक ब्यूरो के हॉलमार्क वाले 22 कैरेट गहनों पर दी जा रही है। कंपनी सोने के सिक्कों और बार के निर्माण शुल्क पर भी 50 फीसदी की छूट दे रही है। जैन ने कहा कि यह सब गहनों में दिलचस्पी रखने वालों को आकर्षित करने के लिए काफी है। ब्रांडेड ज्वैलरी निर्माता तनिष्क सादे सोने के गहनों पर निर्माण शुल्क में 25 फीसदी की छूट दे रही है, साथ ही हीरा जडि़त आभूषणों पर 15 फीसदी की छूट दे रही है। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि यह ऑफर शुक्रवार से शुरू हो रहा है और 8 मई तक चलेगा। इस शुभ अवसर का महत्व समझते हुए गीतांजलि जेम्स सभी ब्रांड के गहनों पर 30 फीसदी मूल्य के बराबर उपहार देने की योजना बना रही है। कंपनी यह उपहार नक्षत्र, गिली, अस्मी आदि सभी ब्रांड के गहनों पर दे रही है। महिला ग्राहकों को लुभाने के लिए जीजीएल ने नक्षत्र ब्रांड के तहत इस अवसर के लिए खास कान की बालियां पेश की हैं। गीतांजलि की स्वर्ण मुद्रिका नाम के सोने के सिक्कों की बिक्री पर भी खास जोर है। जीजीएल के अध्यक्ष मेहुल चोक्सी ने कहा, 'अक्षय तृतीया के दो-तीन दिनों में ही सालाना बिक्री का 10 फीसदी हिस्सा आ जाता है। इस दौरान सोने की 70 फीसदी बिक्री और हीरे की 30 फीसदी बिक्री का हमारा लक्ष्य है।' जीजीएल ने गिली ब्रांड के अंतर्गत उपभोक्ताओं को 5,000 रुपये से अधिक की खरीद करने पर 5 ग्राम का चांदी का सिक्का देने की योजना शुरू की है। पिछले एक साल में सोने की कीमत में 21.5 फीसदी का इजाफा हुआ है पिछली अक्षय तृतीया पर सोने की कीमत 18,215 थी जो बढ़कर 22,130 रुपये 10 ग्राम हो गई है। (BS Hindi)
ब्रांडेड आभूषण निर्माता और खुदरा कारोबारी अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। इस साल 6 मई को अक्षय तृतीया है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन सोने की खरीदारी से घर में समृद्घि आती है। इसलिए ज्यादातर उपभोक्ता इस दिन सोने की खरीदारी को प्राथमिकता देते हैं। पिछले साल अक्षय तृतीया पर एक ही दिन में 45 टन सोने की बिक्री की सूचना मिली थी, लेकिन इस बार पीली धातु की कीमतों में तेजी के चलते ऐसा होना संभव नहीं लगता है। खुदरा आभूषण विक्रेता सोने के आभूषणों की निर्माण लागत में 50 फीसदी की छूट देकर उपभोक्ताओं पर पडऩे वाले बोझ में कमी की कोशिश कर रहे हैं जबकि हीरे जडि़त आभूषणों पर 25 फीसदी की छूट दी जा रही है। ऑरा ब्रांड के आभूषण निर्माता रोजी ब्लू के मुख्य कार्याधिकारी विजय जैन ने कहा, 'भारत में गहनों की खरीदारी केवल निवेश के नजरिए से नहीं की जाती है बल्कि इसका भावनात्मक महत्व भी होता है। अक्षय तृतीया पर बहुत अधिक बिक्री होती है। हमें उम्मीद है कि हमारी बिक्री उस दिन 50 फीसदी ज्यादा होगी।'रोजी ब्लू हीरा जडि़त आभूषणों पर 25 फीसदी की सीधी छूट दी जा रही है जबकि सोने के गहनों पर निर्माण शुल्क में 50 फीसदी की छूट दी जा रही है। सोने के गहनों पर यह छूट भारतीय मानक ब्यूरो के हॉलमार्क वाले 22 कैरेट गहनों पर दी जा रही है। कंपनी सोने के सिक्कों और बार के निर्माण शुल्क पर भी 50 फीसदी की छूट दे रही है। जैन ने कहा कि यह सब गहनों में दिलचस्पी रखने वालों को आकर्षित करने के लिए काफी है। ब्रांडेड ज्वैलरी निर्माता तनिष्क सादे सोने के गहनों पर निर्माण शुल्क में 25 फीसदी की छूट दे रही है, साथ ही हीरा जडि़त आभूषणों पर 15 फीसदी की छूट दे रही है। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि यह ऑफर शुक्रवार से शुरू हो रहा है और 8 मई तक चलेगा। इस शुभ अवसर का महत्व समझते हुए गीतांजलि जेम्स सभी ब्रांड के गहनों पर 30 फीसदी मूल्य के बराबर उपहार देने की योजना बना रही है। कंपनी यह उपहार नक्षत्र, गिली, अस्मी आदि सभी ब्रांड के गहनों पर दे रही है। महिला ग्राहकों को लुभाने के लिए जीजीएल ने नक्षत्र ब्रांड के तहत इस अवसर के लिए खास कान की बालियां पेश की हैं। गीतांजलि की स्वर्ण मुद्रिका नाम के सोने के सिक्कों की बिक्री पर भी खास जोर है। जीजीएल के अध्यक्ष मेहुल चोक्सी ने कहा, 'अक्षय तृतीया के दो-तीन दिनों में ही सालाना बिक्री का 10 फीसदी हिस्सा आ जाता है। इस दौरान सोने की 70 फीसदी बिक्री और हीरे की 30 फीसदी बिक्री का हमारा लक्ष्य है।' जीजीएल ने गिली ब्रांड के अंतर्गत उपभोक्ताओं को 5,000 रुपये से अधिक की खरीद करने पर 5 ग्राम का चांदी का सिक्का देने की योजना शुरू की है। पिछले एक साल में सोने की कीमत में 21.5 फीसदी का इजाफा हुआ है पिछली अक्षय तृतीया पर सोने की कीमत 18,215 थी जो बढ़कर 22,130 रुपये 10 ग्राम हो गई है। (BS Hindi)
स्टील की मांग के मामले में अव्वल बनेगा भारत!
मुंबई April 29, 2011
वल्र्ड स्टील एसोसिएशन के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल स्टील की मांग में 5.9 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है। भारत में स्टील की मांग में 13.3 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है, इस लिहाज से वैश्विक स्तर पर स्टील की मांग में भारत का स्थान अग्रणी होगा।स्टील के कुल वैश्विक उत्पादन का 85 फीसदी एसोसिएशन के सदस्य ïउत्पादित करते हैं। स्टील की बाबत साल 2011 व 2012 में मध्यम अवधि के नजरिये के बारे में अपने न्यूजलेटर में एसोसिएशन ने कहा है - मजबूत अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे की जरूरतें और औद्योगिक उत्पादन के विस्तार के चलते आने वाले सालों में भारत में स्टील की मांग में मजबूत बढ़त की उम्मीद है। इसमें कहा गया है कि साल 2012 में भारत में स्टील की मांग 14.3 फीसदी को छू लेगी और कुल मांग 790 लाख टन सालाना पर पहुंच जाएगी।साल 2010 में भारत में 670 लाख टन स्टील का उत्पादन हुआ और यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा स्टील उत्पादक है। इस मामले में चीन पहले स्थान पर है और इसके बाद जापान, अमेरिका और रूस का स्थान है। वल्र्डस्टील इकनॉमिक कमेटी के चेयरमैन डेनियल नोवेगिल ने कहा - दुनिया भर में राहत पैकेज दिए जाने, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सुधार और कुल मिलाकर बाजार में सुधार के चलते साल 2009 की दूसरी छमाही में स्टील की मांग में सुधार नजर आने लगा था और साल 2010 में इसमें सतत सुधार परिलक्षित हुआ। उन्होंने कहा कि साल 2011 में दुनिया में स्टील की मांग में 5.9 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है।दुनिया के पश्चिमी क्षेत्रों में बढ़त की अगुआई अमेरिका करेगा। देश में साल 2011 में 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी और यह 905 लाख टन पर पहुंच जाएगा। यूरोपीय यूनियन में स्टील का इस्तेमाल 4.9 फीसदी की रफ्तार से बढऩे की भविष्यवाणी की गई है और निर्यात के चलते उद्योग जगत में हुए सुधार की बदौलत यह साल 2011 में 1518 लाख टन पर पहुंच जाएगा। वल्र्ड स्टील एसोसिएशन का कहना है - जर्मनी और फ्रांस जैसी यूरोजोन की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से ऑटो व मशीन निर्माण क्षेत्र में स्टील की मांग में मजबूत सुधार की भविष्यवाणी की गई है। अन्य अर्थव्यवस्थाओं (मसलन यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल और स्पेन) में स्टील के इस्तेमाल के मामले में धीमा विकास का अनुमान है, खास तौर से कमजोर निर्माण गतिविधियों के चलते।दूसरी ओर स्टील उपभोग के मामले में अग्रणी देश चीन में साल 2011 के दौरान 5 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है और यह 6050 लाख टन पर पहुंच जाएगा। साल 2012 में भी वहां 5 फीसदी की दर से ही बढ़त की संभावना है और यह 6350 लाख टन पर पहुंच जाएगा। एसोसिएशन ने हालांकि कहा है कि साल 2011 की पहली तिमाही में स्टील उत्पादन की रफ्तार को देखते हुए चीन में स्टील की मांग और ज्यादा हो सकती है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि जरूरत से ज्यादा गर्म हो चुकी अर्थव्यवस्था को थामने की चीन सरकार की कोशिश, खास तौर से रियल एस्टेट सेक्टर में, के चलते चीन में स्टील की मांग पर इस साल असर पड़ेगा।स्टील के अग्रणी बाजारों में से एक केंद्रीय व दक्षिण अमेरिका में साल 2011 के दौरान स्टील के इस्तेमाल में 6.6 फीसदी की बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की गई है और यह 488 लाख टन पर पहुंच जाएगा। साल 2012 में इस क्षेत्र में स्टील के इस्तेमाल में 8.3 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और यह 528 लाख टन पर पहुंच जाएगा। जापान में आए भूकंप व सुनामी के चलते पडऩे वाले प्रभाव का आकलन करने में हुई मुश्किल के बाद हालांकि भविष्यवाणी में संशोधन नहीं किया गया है। डब्ल्यूएसए ने कहा है कि भूकंप व सुनामी के चलते साल 2011 में स्टील के इस्तेमाल में गिरावट आएगी। (BS Hindi)
वल्र्ड स्टील एसोसिएशन के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल स्टील की मांग में 5.9 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है। भारत में स्टील की मांग में 13.3 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है, इस लिहाज से वैश्विक स्तर पर स्टील की मांग में भारत का स्थान अग्रणी होगा।स्टील के कुल वैश्विक उत्पादन का 85 फीसदी एसोसिएशन के सदस्य ïउत्पादित करते हैं। स्टील की बाबत साल 2011 व 2012 में मध्यम अवधि के नजरिये के बारे में अपने न्यूजलेटर में एसोसिएशन ने कहा है - मजबूत अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे की जरूरतें और औद्योगिक उत्पादन के विस्तार के चलते आने वाले सालों में भारत में स्टील की मांग में मजबूत बढ़त की उम्मीद है। इसमें कहा गया है कि साल 2012 में भारत में स्टील की मांग 14.3 फीसदी को छू लेगी और कुल मांग 790 लाख टन सालाना पर पहुंच जाएगी।साल 2010 में भारत में 670 लाख टन स्टील का उत्पादन हुआ और यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा स्टील उत्पादक है। इस मामले में चीन पहले स्थान पर है और इसके बाद जापान, अमेरिका और रूस का स्थान है। वल्र्डस्टील इकनॉमिक कमेटी के चेयरमैन डेनियल नोवेगिल ने कहा - दुनिया भर में राहत पैकेज दिए जाने, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सुधार और कुल मिलाकर बाजार में सुधार के चलते साल 2009 की दूसरी छमाही में स्टील की मांग में सुधार नजर आने लगा था और साल 2010 में इसमें सतत सुधार परिलक्षित हुआ। उन्होंने कहा कि साल 2011 में दुनिया में स्टील की मांग में 5.9 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है।दुनिया के पश्चिमी क्षेत्रों में बढ़त की अगुआई अमेरिका करेगा। देश में साल 2011 में 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी और यह 905 लाख टन पर पहुंच जाएगा। यूरोपीय यूनियन में स्टील का इस्तेमाल 4.9 फीसदी की रफ्तार से बढऩे की भविष्यवाणी की गई है और निर्यात के चलते उद्योग जगत में हुए सुधार की बदौलत यह साल 2011 में 1518 लाख टन पर पहुंच जाएगा। वल्र्ड स्टील एसोसिएशन का कहना है - जर्मनी और फ्रांस जैसी यूरोजोन की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से ऑटो व मशीन निर्माण क्षेत्र में स्टील की मांग में मजबूत सुधार की भविष्यवाणी की गई है। अन्य अर्थव्यवस्थाओं (मसलन यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल और स्पेन) में स्टील के इस्तेमाल के मामले में धीमा विकास का अनुमान है, खास तौर से कमजोर निर्माण गतिविधियों के चलते।दूसरी ओर स्टील उपभोग के मामले में अग्रणी देश चीन में साल 2011 के दौरान 5 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है और यह 6050 लाख टन पर पहुंच जाएगा। साल 2012 में भी वहां 5 फीसदी की दर से ही बढ़त की संभावना है और यह 6350 लाख टन पर पहुंच जाएगा। एसोसिएशन ने हालांकि कहा है कि साल 2011 की पहली तिमाही में स्टील उत्पादन की रफ्तार को देखते हुए चीन में स्टील की मांग और ज्यादा हो सकती है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि जरूरत से ज्यादा गर्म हो चुकी अर्थव्यवस्था को थामने की चीन सरकार की कोशिश, खास तौर से रियल एस्टेट सेक्टर में, के चलते चीन में स्टील की मांग पर इस साल असर पड़ेगा।स्टील के अग्रणी बाजारों में से एक केंद्रीय व दक्षिण अमेरिका में साल 2011 के दौरान स्टील के इस्तेमाल में 6.6 फीसदी की बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की गई है और यह 488 लाख टन पर पहुंच जाएगा। साल 2012 में इस क्षेत्र में स्टील के इस्तेमाल में 8.3 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और यह 528 लाख टन पर पहुंच जाएगा। जापान में आए भूकंप व सुनामी के चलते पडऩे वाले प्रभाव का आकलन करने में हुई मुश्किल के बाद हालांकि भविष्यवाणी में संशोधन नहीं किया गया है। डब्ल्यूएसए ने कहा है कि भूकंप व सुनामी के चलते साल 2011 में स्टील के इस्तेमाल में गिरावट आएगी। (BS Hindi)
ऑटो की बढ़ती रफ्तार से चमका एल्युमीनियम
नई दिल्ली April 29, 2011
ऑटो उद्योग की रफ्तार से एल्युमीनियम का कारोबार चमक रहा हैं। इस साल तांबा, निकल सहित और धातुओं की कीमतों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद काफी गिरावट आ चुकी हैं, लेकिन एल्युमीनियम के दाम अन्य धातुओं में गिरावट के बावजूद लगातार चढ़ रहे हैं और इस साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं। धातु विश्लेषकों का कहना है कि चीन, भारत , अमेरिका सहित कई देशों में ऑटो उद्योग की बिक्री लगातार बढ़ रही हैं। इसके साथ ही कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक का कारोबार भी रफ्तार पर हैं। यही कारण है कि एल्युमीनियम के दाम मजबूत बने हुए हैं। वर्ष 2011 के दौरान एल्यूमीनियम की खपत 9.5 फीसदी बढऩे का अनुमान हैं।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में एल्युमीनियम के दाम जनवरी 2011 से अब तक 12 फीसदी बढ़कर 2772 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। इस माह इसकी कीमतों में 6 फीसदी की तेजी आई हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में इस दौरान एल्युमीनियम के दाम 11 फीसदी बढ़े हैं। एमसीएक्स में मई अनुबंध के दाम 122 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं।ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि तांबा, निकल, सीसा, जस्ता धातुओं की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर से टूटने के बाद अब इनमें गिरावट का रुख हैं, लेकिन एल्युमीनियम के दाम इन धातुओं के उलट लगातार बढ़ रहे हैं। एल्युमीनियम की कीमतों में तेजी के इस संबंध में कमोडिटी इनसाइट डॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा का कहना है कि प्रमुख उपभोक्ता देश चीन में इस साल जनवरी-मार्च अवधि में ऑटो की बिक्री 8 फीसदी बढ़ी हैं। इसके साथ ही भारत में वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान ऑटो की बिक्री में 26 फीसदी का इजाफा हैं। पिछले माह भी ऑटो की बिक्री में 20 फीसदी का इजाफा हुआ था। बकौल शर्मा ऑटो उद्योग की मजबूत मांग के कारण ही अन्य धातुओं में गिरावट के बावजूद एल्युमीनियम के दाम तेज हैं। उनका कहना है तांबे के दाम 10,190 डॉलर , निकल करीब 29000 डॉलर प्रति टन का सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद तांबा 9320 डॉलर और निकल 26605 डॉलर प्रति टन पर गया हैं। नीलकंठ मेटल ट्रंडिंग कंपनी के दीपक अग्रवाल का कहना है कि घरेलू बाजार में कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में भी एल्युमीनियम की मांग तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे इसकी कीमतों में इजाफा हुआ हैं। (BS Hindi)
ऑटो उद्योग की रफ्तार से एल्युमीनियम का कारोबार चमक रहा हैं। इस साल तांबा, निकल सहित और धातुओं की कीमतों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद काफी गिरावट आ चुकी हैं, लेकिन एल्युमीनियम के दाम अन्य धातुओं में गिरावट के बावजूद लगातार चढ़ रहे हैं और इस साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं। धातु विश्लेषकों का कहना है कि चीन, भारत , अमेरिका सहित कई देशों में ऑटो उद्योग की बिक्री लगातार बढ़ रही हैं। इसके साथ ही कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक का कारोबार भी रफ्तार पर हैं। यही कारण है कि एल्युमीनियम के दाम मजबूत बने हुए हैं। वर्ष 2011 के दौरान एल्यूमीनियम की खपत 9.5 फीसदी बढऩे का अनुमान हैं।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में एल्युमीनियम के दाम जनवरी 2011 से अब तक 12 फीसदी बढ़कर 2772 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। इस माह इसकी कीमतों में 6 फीसदी की तेजी आई हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में इस दौरान एल्युमीनियम के दाम 11 फीसदी बढ़े हैं। एमसीएक्स में मई अनुबंध के दाम 122 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं।ऐंजल ब्रोकिंग के धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि तांबा, निकल, सीसा, जस्ता धातुओं की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर से टूटने के बाद अब इनमें गिरावट का रुख हैं, लेकिन एल्युमीनियम के दाम इन धातुओं के उलट लगातार बढ़ रहे हैं। एल्युमीनियम की कीमतों में तेजी के इस संबंध में कमोडिटी इनसाइट डॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा का कहना है कि प्रमुख उपभोक्ता देश चीन में इस साल जनवरी-मार्च अवधि में ऑटो की बिक्री 8 फीसदी बढ़ी हैं। इसके साथ ही भारत में वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान ऑटो की बिक्री में 26 फीसदी का इजाफा हैं। पिछले माह भी ऑटो की बिक्री में 20 फीसदी का इजाफा हुआ था। बकौल शर्मा ऑटो उद्योग की मजबूत मांग के कारण ही अन्य धातुओं में गिरावट के बावजूद एल्युमीनियम के दाम तेज हैं। उनका कहना है तांबे के दाम 10,190 डॉलर , निकल करीब 29000 डॉलर प्रति टन का सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद तांबा 9320 डॉलर और निकल 26605 डॉलर प्रति टन पर गया हैं। नीलकंठ मेटल ट्रंडिंग कंपनी के दीपक अग्रवाल का कहना है कि घरेलू बाजार में कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में भी एल्युमीनियम की मांग तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे इसकी कीमतों में इजाफा हुआ हैं। (BS Hindi)
फीकी पड़ी स्टॉकिस्टों की चाल
मुंबई April 29, 2011
कपास का उत्पादन बढऩे और निर्यात कोटा नहीं बढ़ाने से इस महीने कपास की कीमतों में 11 फीसदी तक की गिरावट आई है। गिरावट और रकबा बढऩे की खबर से स्टॉकिस्टों में बेचैनी बढऩे लगी है। इस वजह से स्टॉकिस्ट अपना माल बाजार में बेचना शुरू कर सकते हैं। गिरावट के बावजूद बीच-बीच में स्टॉकिस्टों की लिवाली और मुनाफावसूली के चलते कपास में उतार-चढ़ाव दिखते रहते हैं। इस हफ्ते के पहले कारोबारी दिन में कपास की कीमतें चढ़ीं तो अगले दिन इसके भाव गिरे।बुधवार को वायदा कारोबार में कपास की कीमतों में एक बार फिर कमी आई। एनसीडीईएक्स में कपास का अप्रैल अनुबंध 3 फीसदी की गिरावट के बाद 893 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर पहुंच गया है जबकि इस महीने की शुरुआत में यह 1236 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर था। हाजिर बाजार में शंकर 6 कपास की कीमत प्रति क्विंटल 15,400 रुपये और डीसीएच 32 प्रति क् िवंटल 21,000 रुपये पर चल रही है जो इस महीने की शुरुआत में क्रमश: 17,294 रुपये और 23,340 रुपये प्रति क्विंटल थी। इंडियन कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष किशोरी लाल झुनझुनवाला कहते हैं कि इस साल कपास के अच्छे उत्पादन को देखते हुए अनुमान था कि सरकार निर्यात कोटा बढ़ाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कारोबारियों ने इसी उम्मीद में जमकर खरीदारी कर ली। अब निर्यात कोटा बढऩे के आसार नहीं होने से स्टॉकिस्टों को घरेलू बाजार में माल बेचना पड़ेगा। किशोरी लाल कहते हैं कि पिछले साल की अपेक्षा उत्पादन और कैरी फॉरवर्ड स्टॉक ज्यादा होने से बाजार में कपास सरप्लस रहेगा। उनकी राय में बीटी कॉटन के बीजों के भाव बढऩे का भी असर नहीं पडऩे वाला है क्योंकि बीजों की बिक्री का कारोबार बहुत कम होता है। इस बार सरकार ने 55 लाख गाठ कपास निर्यात करने की छूट थी। कारोबारी इस सीमा को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं जबकि कपड़ा कारोबारी निर्यात पर रोक की मांग कर रहे हैं। कपास की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से कपड़ों के दाम भी बढ़े हैं। ऐंजल ब्रोकिंग में कमोडिटी विशेषज्ञ वेदिका नार्वेकर के अनुसार फिलहाल कपास के कीमतों में बढ़त की गुंजाइश नहीं दिख रही है। सरकारी एजेंसियों के अनुसार सीजन के अंत में 27.40 लाख गांठ का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक बचेगा। (BS Hindi)
कपास का उत्पादन बढऩे और निर्यात कोटा नहीं बढ़ाने से इस महीने कपास की कीमतों में 11 फीसदी तक की गिरावट आई है। गिरावट और रकबा बढऩे की खबर से स्टॉकिस्टों में बेचैनी बढऩे लगी है। इस वजह से स्टॉकिस्ट अपना माल बाजार में बेचना शुरू कर सकते हैं। गिरावट के बावजूद बीच-बीच में स्टॉकिस्टों की लिवाली और मुनाफावसूली के चलते कपास में उतार-चढ़ाव दिखते रहते हैं। इस हफ्ते के पहले कारोबारी दिन में कपास की कीमतें चढ़ीं तो अगले दिन इसके भाव गिरे।बुधवार को वायदा कारोबार में कपास की कीमतों में एक बार फिर कमी आई। एनसीडीईएक्स में कपास का अप्रैल अनुबंध 3 फीसदी की गिरावट के बाद 893 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर पहुंच गया है जबकि इस महीने की शुरुआत में यह 1236 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर था। हाजिर बाजार में शंकर 6 कपास की कीमत प्रति क्विंटल 15,400 रुपये और डीसीएच 32 प्रति क् िवंटल 21,000 रुपये पर चल रही है जो इस महीने की शुरुआत में क्रमश: 17,294 रुपये और 23,340 रुपये प्रति क्विंटल थी। इंडियन कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष किशोरी लाल झुनझुनवाला कहते हैं कि इस साल कपास के अच्छे उत्पादन को देखते हुए अनुमान था कि सरकार निर्यात कोटा बढ़ाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कारोबारियों ने इसी उम्मीद में जमकर खरीदारी कर ली। अब निर्यात कोटा बढऩे के आसार नहीं होने से स्टॉकिस्टों को घरेलू बाजार में माल बेचना पड़ेगा। किशोरी लाल कहते हैं कि पिछले साल की अपेक्षा उत्पादन और कैरी फॉरवर्ड स्टॉक ज्यादा होने से बाजार में कपास सरप्लस रहेगा। उनकी राय में बीटी कॉटन के बीजों के भाव बढऩे का भी असर नहीं पडऩे वाला है क्योंकि बीजों की बिक्री का कारोबार बहुत कम होता है। इस बार सरकार ने 55 लाख गाठ कपास निर्यात करने की छूट थी। कारोबारी इस सीमा को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं जबकि कपड़ा कारोबारी निर्यात पर रोक की मांग कर रहे हैं। कपास की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से कपड़ों के दाम भी बढ़े हैं। ऐंजल ब्रोकिंग में कमोडिटी विशेषज्ञ वेदिका नार्वेकर के अनुसार फिलहाल कपास के कीमतों में बढ़त की गुंजाइश नहीं दिख रही है। सरकारी एजेंसियों के अनुसार सीजन के अंत में 27.40 लाख गांठ का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक बचेगा। (BS Hindi)
29 अप्रैल 2011
बढ़ती लागत से दूध में उफान!
मुंबई April 26, 2011
एक ओर जहां खाद्य पदार्थों की कीमतों में भले ही थोड़ी बहुत नरमी देखने को मिली हो, लेकिन महंगाई से राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि बढ़ती गर्मी के साथ दूध की कीमतें एक बार फिर बढऩे वाली हैं। लागत में बढ़ोतरी से जूझ रहे संगठित दुग्ध उत्पादक एक बार फिर कीमतों में बढ़ोतरी की योजना बना रहे हैं और अगले महीने के आखिर तक 1 से 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। गर्मी के मौसम में गेहूं के भंडारण और परिवहन की लागत बढ़ गई है। संगठित क्षेत्र के अग्रणी उत्पादक मसलन अमूल ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) और मुंबई में महानंद ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाली कंपनी महानंद डेयरी ने इस महीने की शुरुआत में दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी है। ये कंपनियां एक बार फिर दूध की कीमतें बढ़ाने की योजना बना रही हैं। मौजूदा समय में महानंद के गाय के दूध की बिक्री 28 रुपये प्रति लीटर पर होती है।असंगठित क्षेत्र के उत्पादकों (डेरी चलाने वाले) ने इस महीने दो चरणोंं में दूध की कीमतें 6 रुपये प्रति लीटर बढ़ा चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में दूध बेचने वालों ने 2 रुपये का इजाफा किया था और सोमवार से उसने 4 रुपये प्रति लीटर की और बढ़ोतरी कर दी। इस तरह दूध 42 रुपये प्रति लीटर पर मिल रहा है। नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की चेयरमैन डॉ. अमृता पटेल ने कहा - ग्रामीण व शहरी लोगों के बढ़ती आमदनी की वजह से दूध की मांग में हो रही बढ़ोतरी को डेयरी उद्योग देख रहा है, ऐसे में अनाज के उपभोग के साथ-साथ सब्जियों, दूध और मांस की खपत भी बढ़ रही है। ऐसे समय में किसान चारे की बढ़ती कीमत व दूसरी लागत से जूझ रहा है और इस लागत को पाटने के लिए ज्यादा कीमत की मांग कर रहा है।डॉ. पटेल के मुताबिक, भारत में प्रति पशु 800-1000 लीटर सालाना दूध का उत्पादन होता है, जबकि वैश्विक औसत 7000-8000 लीटर सालाना है। चूंकि ज्यादातर दूध वैयक्तिक स्रोत से आता है, जिसके पास पशुधन में सुधार की खातिर निवेश के लिए साधन नहीं होता है। डॉ. पटेल ने कहा कि दूध उत्पादन में कॉरपोरेट के प्रवेश से समस्या का समाधान हो सकता है।दूसरा, भारतीय किसान चारे की उपलब्धता में 150 लाख टन की कमी झेल रहे हैं, इस वजह से उन्हें कम गुणवत्ता वाले चारे का इस्तेमाल करना पड़ता है। चारे की उपलब्धता में कमी के चलते इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। चारे की कीमतें अस्थायी रूप से हालांकि 2 फीसदी कम हुई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि देश भर में बारिश शुरू होने के बाद इसमें बढ़ोतरी होगी।इस बीच, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले शीरे की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है और यह एक महीने पहले के 2700-2800 रुपये प्रति टन के मुकाबले 3400-3600 रुपये प्रति टन पर पहुंच गया है। महानंद डेयरी के एक अधिकारी ने कहा - हमने 17 फरवरी को दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर तब बढ़ाई थी जब सरकार ने खरीद कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया था। बाकी बढ़ोतरी 6 अप्रैल को की गई। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अरंडी की कीमतें तीन महीने में बढ़कर 5400 रुपये प्रति टन हो गई हैं जबकि पहले यह 4900 रुपये प्रति टन थी। इस बीच, भारत में दूध की मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि पिछले दस साल से उत्पादन में सालाना बढ़ोतरी करीब 35 लाख टन की रही है। दूध की जरूरतों को देखते हुए साल 2021-22 में इसके 1800 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। (BS Hindi)
एक ओर जहां खाद्य पदार्थों की कीमतों में भले ही थोड़ी बहुत नरमी देखने को मिली हो, लेकिन महंगाई से राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि बढ़ती गर्मी के साथ दूध की कीमतें एक बार फिर बढऩे वाली हैं। लागत में बढ़ोतरी से जूझ रहे संगठित दुग्ध उत्पादक एक बार फिर कीमतों में बढ़ोतरी की योजना बना रहे हैं और अगले महीने के आखिर तक 1 से 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। गर्मी के मौसम में गेहूं के भंडारण और परिवहन की लागत बढ़ गई है। संगठित क्षेत्र के अग्रणी उत्पादक मसलन अमूल ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) और मुंबई में महानंद ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाली कंपनी महानंद डेयरी ने इस महीने की शुरुआत में दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी है। ये कंपनियां एक बार फिर दूध की कीमतें बढ़ाने की योजना बना रही हैं। मौजूदा समय में महानंद के गाय के दूध की बिक्री 28 रुपये प्रति लीटर पर होती है।असंगठित क्षेत्र के उत्पादकों (डेरी चलाने वाले) ने इस महीने दो चरणोंं में दूध की कीमतें 6 रुपये प्रति लीटर बढ़ा चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में दूध बेचने वालों ने 2 रुपये का इजाफा किया था और सोमवार से उसने 4 रुपये प्रति लीटर की और बढ़ोतरी कर दी। इस तरह दूध 42 रुपये प्रति लीटर पर मिल रहा है। नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की चेयरमैन डॉ. अमृता पटेल ने कहा - ग्रामीण व शहरी लोगों के बढ़ती आमदनी की वजह से दूध की मांग में हो रही बढ़ोतरी को डेयरी उद्योग देख रहा है, ऐसे में अनाज के उपभोग के साथ-साथ सब्जियों, दूध और मांस की खपत भी बढ़ रही है। ऐसे समय में किसान चारे की बढ़ती कीमत व दूसरी लागत से जूझ रहा है और इस लागत को पाटने के लिए ज्यादा कीमत की मांग कर रहा है।डॉ. पटेल के मुताबिक, भारत में प्रति पशु 800-1000 लीटर सालाना दूध का उत्पादन होता है, जबकि वैश्विक औसत 7000-8000 लीटर सालाना है। चूंकि ज्यादातर दूध वैयक्तिक स्रोत से आता है, जिसके पास पशुधन में सुधार की खातिर निवेश के लिए साधन नहीं होता है। डॉ. पटेल ने कहा कि दूध उत्पादन में कॉरपोरेट के प्रवेश से समस्या का समाधान हो सकता है।दूसरा, भारतीय किसान चारे की उपलब्धता में 150 लाख टन की कमी झेल रहे हैं, इस वजह से उन्हें कम गुणवत्ता वाले चारे का इस्तेमाल करना पड़ता है। चारे की उपलब्धता में कमी के चलते इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। चारे की कीमतें अस्थायी रूप से हालांकि 2 फीसदी कम हुई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि देश भर में बारिश शुरू होने के बाद इसमें बढ़ोतरी होगी।इस बीच, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले शीरे की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है और यह एक महीने पहले के 2700-2800 रुपये प्रति टन के मुकाबले 3400-3600 रुपये प्रति टन पर पहुंच गया है। महानंद डेयरी के एक अधिकारी ने कहा - हमने 17 फरवरी को दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर तब बढ़ाई थी जब सरकार ने खरीद कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया था। बाकी बढ़ोतरी 6 अप्रैल को की गई। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अरंडी की कीमतें तीन महीने में बढ़कर 5400 रुपये प्रति टन हो गई हैं जबकि पहले यह 4900 रुपये प्रति टन थी। इस बीच, भारत में दूध की मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि पिछले दस साल से उत्पादन में सालाना बढ़ोतरी करीब 35 लाख टन की रही है। दूध की जरूरतों को देखते हुए साल 2021-22 में इसके 1800 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। (BS Hindi)
28 अप्रैल 2011
उत्पादन बढऩे से दलहन आयात घटने के आसार
राहत भरी उम्मीद:- दालों के घरेलू उत्पादन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी होने से दालों की उपलब्धता ज्यादा रहेगी जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर दालों की उपलब्धता बनी रहेगी।अनुकूल मौसम से दालों के घरेलू उत्पादन में हुई बढ़ोतरी से चालू वित्त वर्ष में दलहन आयात में 30.5 फीसदी कमी आने की संभावना है। वित्त वर्ष 2010-11 में 36 लाख टन दालों का आयात हुआ था। जबकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में आयात घटकर 25 लाख टन ही रहने की संभावना है। उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2010-11 में दालों के घरेलू उत्पादन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार दालों का उत्पादन 146.6 लाख टन से बढ़कर 172.9 लाख टन होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि देश में दालों की खपत 185 से 190 लाख टन की होती है। घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी होने से दालों की उपलब्धता ज्यादा रहेगी जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर दालों की उपलब्धता बनी रहेगी।
सरकार ने दालों के निर्यात (काबुली चने को छोड़कर) पर मार्च 2012 तक के लिए रोक लगा रखी है जबकि इनका ड्यूटी फ्री आयात किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2010-11 में आयात की गई 36 लाख टन दालों में से सार्वजनिक कंपनियों पीईसी, एसटीसी, एमएमटीसी और नेफेड ने 5.44 लाख टन दालों का आयात किया। बाकी आयात प्राइवेट आयातकों द्वारा किया किया। सार्वजनिक कंपनियों ने कुल आयात में से करीब चार लाख टन दालों की सप्लाई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से की है।
आयातित दालों में लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 850 डॉलर प्रति टन चल रहा है। जबकि उड़द एफएक्यू का भाव 980 डॉलर और एसक्यू का भाव 1,120 डॉलर प्रति टन है। मूंग पेडीसेवा का भाव मुंबई बंदरगाह पर 1,350 से 1,400 डॉलर प्रति टन है।
घरेलू मंडियों में अरहर का भाव 3,500 से 3,600 रुपये और उड़द का भाव 3,800 से 4,000 रुपये तथा मूंग का भाव 3,800 से 4,000 रुपये और मसूर का भाव 4,000 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। चने का भाव दिल्ली में 2,200 से 2,225 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार दालों का उत्पादन 146.6 लाख टन से बढ़कर 172.9 लाख टन होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि देश में दालों की खपत 185 से 190 लाख टन की होती है। घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी होने से दालों की उपलब्धता ज्यादा रहेगी जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर दालों की उपलब्धता बनी रहेगी।
सरकार ने दालों के निर्यात (काबुली चने को छोड़कर) पर मार्च 2012 तक के लिए रोक लगा रखी है जबकि इनका ड्यूटी फ्री आयात किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2010-11 में आयात की गई 36 लाख टन दालों में से सार्वजनिक कंपनियों पीईसी, एसटीसी, एमएमटीसी और नेफेड ने 5.44 लाख टन दालों का आयात किया। बाकी आयात प्राइवेट आयातकों द्वारा किया किया। सार्वजनिक कंपनियों ने कुल आयात में से करीब चार लाख टन दालों की सप्लाई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से की है।
आयातित दालों में लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 850 डॉलर प्रति टन चल रहा है। जबकि उड़द एफएक्यू का भाव 980 डॉलर और एसक्यू का भाव 1,120 डॉलर प्रति टन है। मूंग पेडीसेवा का भाव मुंबई बंदरगाह पर 1,350 से 1,400 डॉलर प्रति टन है।
घरेलू मंडियों में अरहर का भाव 3,500 से 3,600 रुपये और उड़द का भाव 3,800 से 4,000 रुपये तथा मूंग का भाव 3,800 से 4,000 रुपये और मसूर का भाव 4,000 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। चने का भाव दिल्ली में 2,200 से 2,225 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
किसानों व व्यापारियों को लोन लेने में होगी आसानी
वेयरहाउस रिसीट को निगोशिएबल बनाने से अब व्यापारी या किसान बैंकों और वित्तीय संस्थानों से गोदामों में रखे माल के एवज में आसानी से लोन ले सकेंगे। अब तक किसानों और व्यापारियों को गोदाम में रखे माल के एवज में लोन लेने में दिक्कत आती थी।
-बाबूलाल गुप्ता अध्यक्ष, राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार महासंघ सुविधा :- बैंकों को इस तरह की निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स पर ज्यादा भरोसा रहेगा। किसान इन रिसीट्स के एवज में बैंकों से आसानी से लोन पा सकेंगे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लिक्विडिटी बढ़ेगी।क्या है प्रक्रिया व लाभकिसी गोदाम में स्टोर किए गए कृषि उत्पाद या कमोडिटी के एवज में जारी की जाती हैं निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स इन वेयरहाउस रिसीट्स को निगोशिएबल के रूप में जारी किया जाता है, इसलिए इसके बदले में बैंकों से लोन लिया जा सकता है निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को दूसरे किसानों को बेचा भी जा सकता है, ऐसे में इसका लाभ भी मिलेगा किसानों को निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स के तहत किसी गोदाम में स्टोर किए गए कृषि उत्पाद के मालिकाना हक को ट्रांसफर किया जा सकता हैदेश के किसानों एवं व्यापारियों के लिए अच्छी खबर है। आवश्यक धन के इंतजाम की खातिर किसानों को अब अपने कृषि उत्पादों को अंधाधुंध बेचने की जरूरत नहीं है। दरअसल, सरकार ने मंगलवार को निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स सिस्टम लांच कर दिया। इससे किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी बैंकों से लोन मिलने में आसानी होगी।
गौरतलब है कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स के तहत किसी गोदाम में स्टोर किए गए उससे जुड़े कृषि उत्पाद या कमोडिटी के मालिकाना हक को ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके लिए उस कमोडिटी को गोदाम से कहीं ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। चूंकि इन वेयरहाउस रिसीट्स को निगोशिएबल के रूप में जारी किया जाता है, इसलिए उन्हें गिरवी रखकर बैंकों से लोन लिया जा सकता है।
खाद्य एवं उपभोक्ता मामला मंत्री के.वी. थॉमस ने निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को लांच करने के बाद बताया, 'बैंकों को इस तरह की निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स पर ज्यादा भरोसा रहेगा। किसान इन रिसीट्स के एवज में बैंकों से आसानी से लोन पा सकेंगे। उन्होंने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को लांच कर दिए जाने से किसानों द्वारा पंजीकृत वेयरहाउस में स्टोर किए जाने वाले कृषि उत्पादों के एवज में लोन देने के लिए बैंक आगे आ सकते हैं। थॉमस ने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स की लांचिंग से ग्रामीण क्षेत्रों में लिक्विडिटी (तरलता) बढ़ेगी।
इसके अलावा विभिन्न कृषि उत्पादों की वेयरहाउसिंग वैज्ञानिक ढंग से करने के लिए किसान प्रेरित होंगे। वेयरहाउस रिसीट्स को वेयरहाउस (विकास व नियमन) एक्ट, 2007 के तहत निगोशिएबल बनाया जाता है। वहीं, वेयरहाउस रिसीट्स का नियमन वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूडीआरए) करती है।
थॉमस ने बताया, 'छोटे एवं सीमांत किसानों को 11' की ऊंची ब्याज दर पर लोन मिलता है जिससे उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मैं इस मसले को वित्त मंत्रालय के समक्ष उठा चुका हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि आगे चलकर फसल ऋण की तरह कटाई बाद प्रबंधन कर्ज भी 4 फीसदी की रियायती ब्याज दर पर मिलने लगेगा।
उन्होंने कहा कि फसल कटाई बाद मिलने वाले लोन से किसान अपने उत्पादों को कम ब्याज दर पर वेयरहाउस यानी गोदामों में रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे। थॉमस ने यह भी कहा कि देश में विश्वस्तरीय वेयरहाउसिंग सुविधाएं यानी गोदाम बनाने की सख्त जरूरत है क्योंकि एफसीआई द्वारा उत्तरी राज्यों में बड़ी मात्रा में खरीदा गया गेहं खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है।
इस बीच, वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन दिनेश राय ने बताया कि वेयरहाउस बनाने के लिए राज्यों में आवश्यक जमीन पाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को गैर कृषि उत्पादों के लिए भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
दिनेश ने बताया कि वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी को अब तक विभिन्न राज्यों से 11 लाख टन की वेयरहाउसिंग क्षमता हासिल करने के लिए 318 आवेदन मिले हैं। ये तमाम आवेदन वेयरहाउसिंग एक्ट के तहत पंजीकरण के लिए मिले हैं। (Business Bhaskar)
-बाबूलाल गुप्ता अध्यक्ष, राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार महासंघ सुविधा :- बैंकों को इस तरह की निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स पर ज्यादा भरोसा रहेगा। किसान इन रिसीट्स के एवज में बैंकों से आसानी से लोन पा सकेंगे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लिक्विडिटी बढ़ेगी।क्या है प्रक्रिया व लाभकिसी गोदाम में स्टोर किए गए कृषि उत्पाद या कमोडिटी के एवज में जारी की जाती हैं निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स इन वेयरहाउस रिसीट्स को निगोशिएबल के रूप में जारी किया जाता है, इसलिए इसके बदले में बैंकों से लोन लिया जा सकता है निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को दूसरे किसानों को बेचा भी जा सकता है, ऐसे में इसका लाभ भी मिलेगा किसानों को निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स के तहत किसी गोदाम में स्टोर किए गए कृषि उत्पाद के मालिकाना हक को ट्रांसफर किया जा सकता हैदेश के किसानों एवं व्यापारियों के लिए अच्छी खबर है। आवश्यक धन के इंतजाम की खातिर किसानों को अब अपने कृषि उत्पादों को अंधाधुंध बेचने की जरूरत नहीं है। दरअसल, सरकार ने मंगलवार को निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स सिस्टम लांच कर दिया। इससे किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी बैंकों से लोन मिलने में आसानी होगी।
गौरतलब है कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स के तहत किसी गोदाम में स्टोर किए गए उससे जुड़े कृषि उत्पाद या कमोडिटी के मालिकाना हक को ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके लिए उस कमोडिटी को गोदाम से कहीं ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। चूंकि इन वेयरहाउस रिसीट्स को निगोशिएबल के रूप में जारी किया जाता है, इसलिए उन्हें गिरवी रखकर बैंकों से लोन लिया जा सकता है।
खाद्य एवं उपभोक्ता मामला मंत्री के.वी. थॉमस ने निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को लांच करने के बाद बताया, 'बैंकों को इस तरह की निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स पर ज्यादा भरोसा रहेगा। किसान इन रिसीट्स के एवज में बैंकों से आसानी से लोन पा सकेंगे। उन्होंने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को लांच कर दिए जाने से किसानों द्वारा पंजीकृत वेयरहाउस में स्टोर किए जाने वाले कृषि उत्पादों के एवज में लोन देने के लिए बैंक आगे आ सकते हैं। थॉमस ने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स की लांचिंग से ग्रामीण क्षेत्रों में लिक्विडिटी (तरलता) बढ़ेगी।
इसके अलावा विभिन्न कृषि उत्पादों की वेयरहाउसिंग वैज्ञानिक ढंग से करने के लिए किसान प्रेरित होंगे। वेयरहाउस रिसीट्स को वेयरहाउस (विकास व नियमन) एक्ट, 2007 के तहत निगोशिएबल बनाया जाता है। वहीं, वेयरहाउस रिसीट्स का नियमन वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूडीआरए) करती है।
थॉमस ने बताया, 'छोटे एवं सीमांत किसानों को 11' की ऊंची ब्याज दर पर लोन मिलता है जिससे उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मैं इस मसले को वित्त मंत्रालय के समक्ष उठा चुका हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि आगे चलकर फसल ऋण की तरह कटाई बाद प्रबंधन कर्ज भी 4 फीसदी की रियायती ब्याज दर पर मिलने लगेगा।
उन्होंने कहा कि फसल कटाई बाद मिलने वाले लोन से किसान अपने उत्पादों को कम ब्याज दर पर वेयरहाउस यानी गोदामों में रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे। थॉमस ने यह भी कहा कि देश में विश्वस्तरीय वेयरहाउसिंग सुविधाएं यानी गोदाम बनाने की सख्त जरूरत है क्योंकि एफसीआई द्वारा उत्तरी राज्यों में बड़ी मात्रा में खरीदा गया गेहं खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है।
इस बीच, वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन दिनेश राय ने बताया कि वेयरहाउस बनाने के लिए राज्यों में आवश्यक जमीन पाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि निगोशिएबल वेयरहाउस रिसीट्स को गैर कृषि उत्पादों के लिए भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
दिनेश ने बताया कि वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी को अब तक विभिन्न राज्यों से 11 लाख टन की वेयरहाउसिंग क्षमता हासिल करने के लिए 318 आवेदन मिले हैं। ये तमाम आवेदन वेयरहाउसिंग एक्ट के तहत पंजीकरण के लिए मिले हैं। (Business Bhaskar)
कृषि भंडारण रसीद अब करेगी हुंडी का काम
नई दिल्ली। पंजीकृत भंडारगृहों [वेयरहाउसों] में रखी गई कृषि उपज की रसीद अब हुंडी का काम करेगी। इसके एवज में किसान बैंकों से कर्ज ले सकेंगे। इतना ही नहीं, वे अनाज, दाल, तिलहन या किसी अन्य कृषि उपज को गोदाम से उठाए बिना रसीद को ही बेचकर नकदी हासिल कर सकेंगे।
सरकार ने इस भंडारण रसीद को अब खरीद-फरोख्त योग्य बना दिया है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री केवी. थॉमस ने मंगलवार को इस तरह की रसीद को औपचारिक तौर पर लॉन्च करते हुए यह जानकारी दी।
किसानों को अभी 4 फीसदी ब्याज पर फसली कर्ज मिलता है। थॉमस ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में यह कोशिश होगी कि फसल कटाई के बाद की अवधि में भी किसानों को यही सस्ती दर चुकानी पड़े। सस्ते कर्ज के चलते किसान अपनी उपज भंडारगृहों में रखने को प्रोत्साहित होंगे।
भंडारगृहों में रखे माल के एवज में मिलने वाली इन रसीदों को 'वेयरहाउस [विकास एवं नियमन] कानून 2007 के तहत खरीद-बिक्री योग्य बनाया गया है। इनका नियमन वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी [डब्ल्यूडीआरए] के के हाथ में होगा।
क्या होंगे इन रसीदों के फायदे?
ये रसीदें अब निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट के तौर पर होंगी। इन्हें न सिर्फ जमानत के तौर पर बैंकों में रखा जा सकेगा, बल्कि खरीदा व बेचा भी जा सकेगा। इसलिए बैंकों को इस तरह की खरीद-बिक्री योग्य भंडारण रसीद पर अब ज्यादा भरोसा होगा। इनकी वजह से किसानों को अचानक जरूरत पड़ने पर अपनी उपज को सस्ते में नहीं बेचना पड़ेगा। वे इन रसीदों के बल पर बैंकों से अपनी जरूरतों के मुताबिक कर्ज ले सकेंगे। इन रसीदों के जारी होने से ग्रामीण क्षेत्र में नकदी की मात्रा बढ़ेगी। इसके साथ ही वैज्ञानिक ढंग से तैयार होने वाले भंडारगृहों का चलन भी बढ़ेगा। (Jagran)
सरकार ने इस भंडारण रसीद को अब खरीद-फरोख्त योग्य बना दिया है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री केवी. थॉमस ने मंगलवार को इस तरह की रसीद को औपचारिक तौर पर लॉन्च करते हुए यह जानकारी दी।
किसानों को अभी 4 फीसदी ब्याज पर फसली कर्ज मिलता है। थॉमस ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में यह कोशिश होगी कि फसल कटाई के बाद की अवधि में भी किसानों को यही सस्ती दर चुकानी पड़े। सस्ते कर्ज के चलते किसान अपनी उपज भंडारगृहों में रखने को प्रोत्साहित होंगे।
भंडारगृहों में रखे माल के एवज में मिलने वाली इन रसीदों को 'वेयरहाउस [विकास एवं नियमन] कानून 2007 के तहत खरीद-बिक्री योग्य बनाया गया है। इनका नियमन वेयरहाउस डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी [डब्ल्यूडीआरए] के के हाथ में होगा।
क्या होंगे इन रसीदों के फायदे?
ये रसीदें अब निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट के तौर पर होंगी। इन्हें न सिर्फ जमानत के तौर पर बैंकों में रखा जा सकेगा, बल्कि खरीदा व बेचा भी जा सकेगा। इसलिए बैंकों को इस तरह की खरीद-बिक्री योग्य भंडारण रसीद पर अब ज्यादा भरोसा होगा। इनकी वजह से किसानों को अचानक जरूरत पड़ने पर अपनी उपज को सस्ते में नहीं बेचना पड़ेगा। वे इन रसीदों के बल पर बैंकों से अपनी जरूरतों के मुताबिक कर्ज ले सकेंगे। इन रसीदों के जारी होने से ग्रामीण क्षेत्र में नकदी की मात्रा बढ़ेगी। इसके साथ ही वैज्ञानिक ढंग से तैयार होने वाले भंडारगृहों का चलन भी बढ़ेगा। (Jagran)
किसानों को माल गोदाम से जारी माल की रसीद पर ऋण की सुविधा
उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रोफेसर के.वी. थॉमस ने आज यहां परक्राम्य गोदाम रसीद प्रणाली (नेगोशिएबल वेयर हाउस रिसीप्ट सिस्टम) का उद्घाटन किया। इस व्यवस्था के अंतर्गत अब किसान माल गोदाम में जमा कराए जाने पर जारी की गई रसीद पर बैंकों से ऋण ले सकेंगे। भण्डार गृह विकास विनियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) द्वारा पंजीकृत गोदामों द्वारा जारी की गई रसीद, केंद्रीय कानून द्वारा समर्थित होंगी। पूरी तरह से परक्राम्य साधन के तौर पर इस्तेमाल की जा सकेगी। उल्लेखनीय है कि भण्डार गृह विकास विनियामक प्राधिकरण की स्थापना देश के सभी भण्डारण गृहों अर्थात माल गोदामों के विकास के उद्देश्य से अक्तूबर 2010 में की गई थी। इस अवसर पर अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि सरकार की यह पहल किसानों को उनका माल मजबूती में बेचने और व्यापार का उपकरण बनने से बचाव के साथ-साथ उन्हें आर्थिक सुविधा उपलब्ध कराएगी। भण्डारण गृहों के आधुनिकीकरण के महत्व पर बल देते हुए प्रोफेसर थॉमस ने उत्पादनों और सामान की देखभाल, भण्डारण और परिवहन के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिए। खेती पर दिए जाने वाले ऋण के ब्याज की वर्तमान दरों पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री थॉमस ने कहा कि उन्होंने फसल पर 4 प्रतिशत की रियायती दरों से ऋण की सुविधा उपलब्ध कराए जाने के बारे में बात की है, ताकि अन्न उत्पादकों को सहजता के साथ आर्थिक सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। (PIB )
27 अप्रैल 2011
यूपी में आम की पैदावार कम होने की आशंका
लखनऊ ।। देशभर में आम उत्पादन के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश में इस वर्ष प्रतिकूल मौसम होने की वजह से आम के उत्पादन में 50 फीसदी की कमी आने की संभावना है। भारतीय आम उत्पादक संघ के उपाध्यक्ष डी.के. वर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष प्रदेश में 50 से 60 टन प्रति हेक्टेयर की औसत से कुल 30 लाख टन आम की पैदावार हुई थी। इस वर्ष आम की पैदावार घटकर करीब 15 से 20 लाख टन होने की आशंका है। उन्होंने बताया कि राज्य में आम का उत्पादन मुख्य रूप से लखनऊ के मलीहाबाद और बख्शी का तालाब के अलावा सहारनपुर, सम्भल, अमरोहा तथा मुजफ्फरनगर जिलों में होता है। इन जिलों में इस वर्ष आम के पेड़ों पर बहुत कम बौर आया, जिसका असर आम के उत्पादन पर पड़ेगा। मलीहाबाद में आम के उत्पादन में लगे किसानों की मानें तो इस साल पिछले वर्ष की तुलना में एक तो कम बौर आया था और दूसरा कि बौर आने के समय बारिश और बदली छाया रहा। लखनऊ क्षेत्र दशहरी के अलावा लंगड़ा और चौसा आम के उत्पादन के लिए भी मशहूर है। यहां राज्य के कुल आम उत्पादन का 30 से 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। लखनऊ स्थित केंद्रीय सबट्रॉपिकल बागवानी संस्थान के कार्यकारी निदेशक (फसल उत्पादन विभाग) कैलाश कुमार ने कहा, 'आम में बौर आने के समय लगातार कई दिनों तक बारिश होने के साथ बादल छाए रहने से आम उत्पादन के लिए अनुकूल मौसम नहीं बन पाया। बादल छाए होने से बौर का विकास नहीं हो पाता है, जिससे उसमें कीड़े लगने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है। ऐसी स्थिति में बौर चौपट हो जाता है।' कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के दशहरी, लंगड़ा, चौसा और दूसरे किस्मों के स्वादिष्ट आमों के शौकीन लोगों को इस बार अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी। बाजार में आम की कीमत पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा होगी। किसानों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाला आम का सबसे बड़ा बाजार दिल्ली है। इसके अलावा पंजाब, राजस्थान, हैदराबाद, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर के बाजारों में में भी यहां पैदा होने वाले आम उपलब्ध रहते हैं। (Navbharat hindi)
मक्का, जौ के दाम बढऩे से फीड महंगा होने की संभावना
कच्चे माल जैसे मक्का, जौ और बाजरा के दाम बढऩे से कैटलफीड और पोल्ट्रीफीड की कीमतों में आठ से दस फीसदी तेजी आने की संभावना है। पिछले महीने भर में मक्का की कीमतों में 15 फीसदी, जौ की कीमतों में 10 फीसदी, सोयाबीन और बिनौला खली की कीमतों में क्रमश: पांच-पांच फीसदी की तेजी आई है। जबकि सरसों खल, चना चूरी और छिल्का में पशुआहार वालों की मांग मई-जून में बढ़ेगी।
किसान फोडर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नरेंद्र सिंह ने बताया कि कैटलफीड बनाने के लिए अनाज में मक्का, जौ और बाजरा का प्रयोग होता है। इसके अलावा सरसों, सायोबीन और बिनौला डीओसी तथा शीरे का प्रयोग होता है।
मक्का की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 175 रुपये और जौ तथा बाजरा की कीमतों में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। निर्यात मांग अच्छी होने से डीओसी के दाम भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में आगामी दिनों में करीब 200-250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,000-2,200 रुपये प्रति क्विंटल होने की संभावना है।
चेतक कैटलफीड एंड एग्रीकलचर इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर गौरव भारद्वाज ने बताया कि अप्रैल से जून के दौरान कैटलफीड में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान बढऩे की संभावना है। कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं इसीलिए आगामी दिनों में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
सूर्या फीड कंस्ट्रक्टर्स प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय बंसल ने बताया कि गर्मियों में अंडों की मांग कम हो जाती है। लेकिन मक्का, सोया डीओसी और बाजरा महंगा होने से पोल्ट्रीफीड महंगा हो गया है। इसीलिए पोल्ट्री फीड में मांग कम हो गई है। पोल्ट्री फीड में कंस्ट्रेंट फीड का भाव बढ़कर 2,800-3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
अबोहर स्थित कमल कॉटन कंपनी के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि गर्मियों का मौसम होने के कारण बिनौला और बिनौला खली में मांग कम हो गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का और चूरी में मांग बढ़ जाएगी। इसीलिए इनकी कीमतों में आगामी दिनों में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। हरियाणा और पंजाब में बिनौला खल का भाव 1,400-1,700 रुपये और बिनौले का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुनाल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर चेतन गोयल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों और चने की नई फसल आ रही है लेकिन मई में आवक कम हो जाएगी। इसलिए सरसों खल, चना चूरी और छिल्का की कीमतों में 75-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। सरसों खल का भाव 1,060-1,100 रुपये, चना चूरी का भाव 1,400-1,500 रुपये और छिल्का का भाव 950 से 1,000 रुपये तथा मूंगफली खल का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।बात पते की :- गर्मियों का मौसम होने से बिनौला और खली की मांग घट गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का व चूरी की मांग बढऩे से भाव में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
किसान फोडर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नरेंद्र सिंह ने बताया कि कैटलफीड बनाने के लिए अनाज में मक्का, जौ और बाजरा का प्रयोग होता है। इसके अलावा सरसों, सायोबीन और बिनौला डीओसी तथा शीरे का प्रयोग होता है।
मक्का की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 175 रुपये और जौ तथा बाजरा की कीमतों में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। निर्यात मांग अच्छी होने से डीओसी के दाम भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में आगामी दिनों में करीब 200-250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,000-2,200 रुपये प्रति क्विंटल होने की संभावना है।
चेतक कैटलफीड एंड एग्रीकलचर इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर गौरव भारद्वाज ने बताया कि अप्रैल से जून के दौरान कैटलफीड में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान बढऩे की संभावना है। कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं इसीलिए आगामी दिनों में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
सूर्या फीड कंस्ट्रक्टर्स प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय बंसल ने बताया कि गर्मियों में अंडों की मांग कम हो जाती है। लेकिन मक्का, सोया डीओसी और बाजरा महंगा होने से पोल्ट्रीफीड महंगा हो गया है। इसीलिए पोल्ट्री फीड में मांग कम हो गई है। पोल्ट्री फीड में कंस्ट्रेंट फीड का भाव बढ़कर 2,800-3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
अबोहर स्थित कमल कॉटन कंपनी के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि गर्मियों का मौसम होने के कारण बिनौला और बिनौला खली में मांग कम हो गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का और चूरी में मांग बढ़ जाएगी। इसीलिए इनकी कीमतों में आगामी दिनों में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। हरियाणा और पंजाब में बिनौला खल का भाव 1,400-1,700 रुपये और बिनौले का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुनाल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर चेतन गोयल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों और चने की नई फसल आ रही है लेकिन मई में आवक कम हो जाएगी। इसलिए सरसों खल, चना चूरी और छिल्का की कीमतों में 75-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। सरसों खल का भाव 1,060-1,100 रुपये, चना चूरी का भाव 1,400-1,500 रुपये और छिल्का का भाव 950 से 1,000 रुपये तथा मूंगफली खल का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।बात पते की :- गर्मियों का मौसम होने से बिनौला और खली की मांग घट गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का व चूरी की मांग बढऩे से भाव में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
गेहूं के दाम घटने से मैदा और आटा सस्ता होने की संभावना
गेहूं की कीमतों में आई गिरावट से आटा, मैदा और सूजी के दाम करीब दस फीसदी घटने की संभावना है। पिछले एक महीने में इनकी कीमतों में करीब 80 से 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है जबकि इस दौरान गेहूं की कीमतों में 160-165 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। गेहूं की सरकारी खरीद सुचारु रूप से न होने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाव घटकर 1,030 से 1,090 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं जबकि चालू विपणन सीजन के लिए एमएसपी 1,120 रुपये प्रति क्विंटल है।
दिल्ली फ्लोर मिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं उत्पादों आटा, मैदा और सूजी में मांग कमजोर है जबकि गेहूं की आवक बढऩे से कीमतों में गिरावट बनी हुई है। दिल्ली में आटा का भाव घटकर बुधवार को 680 रुपये, मैदा का भाव 830 रुपये और सूजी का 865 रुपये प्रति 50 किलो रह गया। इसकी कीमतों में और भी 60 से 90 रुपये प्रति 50 किलो की गिरावट आने की संभावना है।
दिल्ली में गेहूं की आवक उत्तर प्रदेश की मंडियों से हो रही है जबकि उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030 से 1,090 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। आगामी दिनों में आवक बढऩे पर गेहूं की कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। इसका असर आटा, मैदा और सूजी की कीमतों पर भी पड़ेगा।
श्री बालाजी फूड प्रोडक्ट्स के डायरेक्टर संदीप बंसल ने बताया कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में आटा का भाव घटकर 1,250-1,300 रुपये, मैदा का भाव 1,325-1400 रुपये और सूजी का भाव 1,400 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। पिछले महीने भर में इसकी कीमतों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आया है।
चालू महीने में राज्य की मंडियों में गेहूं की आवक बढ़ जाएगी जबकि अभी तक सरकारी खरीद शुरू नहीं हो पाई है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। बीएल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर एस. बी. गुप्ता ने बताया कि राजस्थान की मंडियों में महीने भर में गेहूं की कीमतों में करीब 150 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है। बुधवार को मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030-1,040 रुपये और आटा का भाव 1,320-1,340 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। मध्य प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,050 से 1,060 रुपये और आटा का भाव घटकर 1,350 से 1,360 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।बात पते की उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030 से 1,090 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। आगामी दिनों में आवक बढऩे पर गेहूं की कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
दिल्ली फ्लोर मिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं उत्पादों आटा, मैदा और सूजी में मांग कमजोर है जबकि गेहूं की आवक बढऩे से कीमतों में गिरावट बनी हुई है। दिल्ली में आटा का भाव घटकर बुधवार को 680 रुपये, मैदा का भाव 830 रुपये और सूजी का 865 रुपये प्रति 50 किलो रह गया। इसकी कीमतों में और भी 60 से 90 रुपये प्रति 50 किलो की गिरावट आने की संभावना है।
दिल्ली में गेहूं की आवक उत्तर प्रदेश की मंडियों से हो रही है जबकि उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030 से 1,090 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। आगामी दिनों में आवक बढऩे पर गेहूं की कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। इसका असर आटा, मैदा और सूजी की कीमतों पर भी पड़ेगा।
श्री बालाजी फूड प्रोडक्ट्स के डायरेक्टर संदीप बंसल ने बताया कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में आटा का भाव घटकर 1,250-1,300 रुपये, मैदा का भाव 1,325-1400 रुपये और सूजी का भाव 1,400 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। पिछले महीने भर में इसकी कीमतों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आया है।
चालू महीने में राज्य की मंडियों में गेहूं की आवक बढ़ जाएगी जबकि अभी तक सरकारी खरीद शुरू नहीं हो पाई है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। बीएल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर एस. बी. गुप्ता ने बताया कि राजस्थान की मंडियों में महीने भर में गेहूं की कीमतों में करीब 150 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है। बुधवार को मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030-1,040 रुपये और आटा का भाव 1,320-1,340 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। मध्य प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,050 से 1,060 रुपये और आटा का भाव घटकर 1,350 से 1,360 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।बात पते की उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,030 से 1,090 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। आगामी दिनों में आवक बढऩे पर गेहूं की कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
अब आपको भी सिर्फ 3 रुपए किलो मिलेगा गेहूं
अभी तक केवल गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को ही इस दर पर अनाज मिलता था लेकिन अब सरकार बीपीएल कार्ड धारकों और एपीएल कार्ड धारकों के बीच इस भेदभाव को खत्म करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। यही नहीं जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है उन्हे भी राशन की दुकानों से अनाज मिलेगा लेकिन इसके लिए उन्हे न्यूनतम समर्थन मूल्य चुकाना होगा।
खाद्य सुरक्षा विधेयक के मद्देनजर राशन प्रणाली में सुधार के लिए गठित उच्चस्तरीय कमेटी ने इस आश्य का मसौदा तैयार किया है जिसके तहत गरीबी रेखा के इस पार और उस पार रहने वाले लोगों के बीच अंतर को खत्म कर दिया जाएगा। खाद्य मंत्री पी जे थॉमस के मुताबिक ऐसे परिवारों की संख्या आठ से दस करोड़ के बीच हो सकती है।इस बारे में योजना आयोग और खाद्य मंत्रालय गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुख्यमंत्रियों की एक समिति का गठन किया है। और समिति की अध्यक्षता मोंटेक सिंह अहलूवालिया कर रहे हैं मई के दूसरे हफ्ते में इस समिति की बैठक होनी है जिसमें इस प्रस्ताव पर मोहर लग जाएगी।इससे उन लोगों को भी फायदा होगा जिनका राशन कार्ड नहीं बना है क्योकि उन्हे राशि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मिलेगा जो बाजार कीमत से काफी कम है। इस समय गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 11.70 और चावल का 16.70 रुपए प्रति किलो है। (Dainik Bhaskar)
खाद्य सुरक्षा विधेयक के मद्देनजर राशन प्रणाली में सुधार के लिए गठित उच्चस्तरीय कमेटी ने इस आश्य का मसौदा तैयार किया है जिसके तहत गरीबी रेखा के इस पार और उस पार रहने वाले लोगों के बीच अंतर को खत्म कर दिया जाएगा। खाद्य मंत्री पी जे थॉमस के मुताबिक ऐसे परिवारों की संख्या आठ से दस करोड़ के बीच हो सकती है।इस बारे में योजना आयोग और खाद्य मंत्रालय गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुख्यमंत्रियों की एक समिति का गठन किया है। और समिति की अध्यक्षता मोंटेक सिंह अहलूवालिया कर रहे हैं मई के दूसरे हफ्ते में इस समिति की बैठक होनी है जिसमें इस प्रस्ताव पर मोहर लग जाएगी।इससे उन लोगों को भी फायदा होगा जिनका राशन कार्ड नहीं बना है क्योकि उन्हे राशि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मिलेगा जो बाजार कीमत से काफी कम है। इस समय गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 11.70 और चावल का 16.70 रुपए प्रति किलो है। (Dainik Bhaskar)
लोकल ब्रोकरेज फर्मों की बड़ी हेराफेरी?
मुंबई : माना जा रहा है कि लोकल ब्रोकरेज फर्मों ने विदेशी निवेशकों को बिजनेस प्रोसेस आउटसोसर्सिंग(बीपीओ) सेवाएं देने की आड़ में विदेशी कमोडिटी एक्सचेंजों में करोड़ों के सौदे किए हैं। हाल में सोने और चांदी की कीमतों में तेजी आई है। भारतीय और विदेशी फ्यूचर्स मार्केट में इनकी कीमतों में अंतर का फायदा उठाने के लिए ये सौदे किए गए हैं। ब्रोकरों ने ये सौदे अपने खाते (प्रॉपराइटरी एकाउंट) से किए हैं। इस तरह के सौदों को आर्बिट्राज ट्रांजैक्शन कहा जाता है। भारतीय नियमों के मुताबिक, कमोडिटी ब्रोकर विदेशी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग नहीं कर सकते। वे न तो विदेशी एक्सचेंजों द्वारा बेचे जाने वाले टर्मिनल और न ही इंटरनेट एकाउंट्स से ऐसे सौदे कर सकते हैं। एक सूत्र ने बताया, 'स्थानीय ब्रोकर सोने-चांदी की कीमतों में हालिया तेजी से मुनाफे का मौका नहीं चूकना चाहते थे। ऐसे कम से 10-15 ब्रोकर हो सकते हैं, जिन्होंने इस तरह के सौदे किए हैं। इन लोगों ने भारत में सिल्वर फ्यूचर्स बेचे और कीमतों में अंतर का फायदा उठाने के लिए विदेश में सिल्वर फ्यूचर्स खरीदे।' कमोडिटी बाजार नियामक फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने हाल में ऐसे सौदों पर अंकुश लगाने की कोशिश की है। उसने कुछ बड़े ब्रोकरेज फर्मों को ऐसे सौदों की इजाजत नहीं दी। एफएमसी ने 28 मार्च को जारी सर्कुलर में लोकल एक्सचेंजों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उनका कोई सदस्य (ब्रोकर) विदेशी एक्सचेंजों में ट्रेडिंग करने वाले विदेशी निवेशकों को बीपीओ या नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग सर्विसेज (केपीओ) न दे। एफएमसी के चेयरमैन बी सी खटुआ ने कहा, 'मार्केट इंटेग्रिटी बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया है।' ईटी से बातचीत में उन्होंने कहा, 'विदेशी निवेशकों को इस तरह की केपीओ/बीपीओ सेवाएं देने वाली किसी फर्म और भारतीय कमोडिटी एक्सचेंजों के बीच किसी तरह का संबंध नहीं होना चाहिए।' खटुआ ने यह भी संकेत दिया कि कोई मार्केट इंटरमीडियरी इस तरह के सौदे में शामिल है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए औचक जांच की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उन्हें अभी इस तरह के सौदों की जानकारी नहीं है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बगैर संदेह के सर्कुलर जारी करना असामान्य है। भारतीय ब्रोकर्स अपनी चतुराई के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आर्बिट्राज सौदे के लिए एक अनोखा तरीका निकाला। उन्होंने भारत में सिल्वर फ्यूचर्स बेचा और कॉमेक्स में सिल्वर फ्यूचर्स खरीदा। कॉमेक्स न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज की डिवीजन है। मुंबई में बैठा आबिर्ट्राज ट्रेडर जो ऑर्डर पंच करता है, उसे दुबई (उदाहरण के लिए) में किसी विदेशी ग्राहक (बीपीओ) के लिए किए गए सौदे के रूप में दिखाया जाता है। इस व्यवस्था में दुबई स्थित इकाई किसी सहयोगी या रिश्तेदार या ब्रोकरेज फर्म के प्रमोटरों की सब्सिडियरी हो सकती है। दुबई स्थित इकाई विदेशी सौदे के लिए माजिर्न का भुगतान करती है। इस तरह के सौदों के तरीके की जानकारी रखने वाले एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के मुताबिक, विदेशी इकाई और भारतीय ब्रोकर के खातों का समय-समय पर निपटान किया जाता है। अंतिम चरण का ट्रांजैक्शन खासकर तब जब दांव गलत पड़ गया हो और विदेशी एक्सचेंज के साथ मार्क-टू-मार्केट नुकसान का निपटान करना हो तो उसकी रकम हवाला के रास्ते भेजी जाती है। ब्रोकरों का कहना है कि सर्कुलर जारी होने के बाद इस तरह के सौदों में थोड़ी कमी आई है, लेकिन इन्हें फिर से शुरू होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। एक ब्रोकर ने बताया कि इस तरह की ट्रेडिंग के लिए दूर स्थित कोई जगह चुनी जा सकती है, जहां एफएमसी द्वारा ऑडिट किए जाने की संभावना नाममात्र की हो। ट्रेडरों के मुताबिक, कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग के शुरुआती दिनों में इस तरह के सौदे खूब होते थे। तब कई अमीर रीटेल निवेशक विदेशी एक्सचेंजों में पोजीशन लेते थे। ब्रोकर्स खुलकर ऐसी सेवाएं देते थे और विदेश में मौजूदगी वाले कुछ ब्रोकर तो बड़े बैंकों से क्रेडिट लाइन (कर्ज की मंजूरी) का फायदा उठाते हुए अपने विदेशी कार्यालयों के जरिए ट्रांजैक्शन को अंजाम देते थे। ये बैंक उनके लिए फंड ट्रांसफर की सुविधा भी देते थे। लेकिन, रिजर्व बैंक (आरबीआई) के निर्देश के बाद एफएमसी द्वारा कुछ खास तरह के प्रतिबंध लगा दिए जाने से इस तरह के सौदों का वॉल्यूम घट गया। आरबीआई ने अपने निर्देश में कहा था कि डेरिवेटिव जिसके तहत निवेशक को कुछ रकम का भुगतान कर पोजीशन लेने का मौका मिलता है, उसे अंडरलायर के बगैर नहीं किया जा सकता। (ET Hindi)
छोटे शहरों में बढ़ी क्वॉलिटी टी की खपत
कोलकाता / गुवाहाटी : देश में चाय की खपत के मामले में टियर दो और तीन शहरों का योगदान बढ़ रहा है। क्रय शक्ति में वृद्धि के साथ इन शहरों के लोग अब अच्छी क्वॉलिटी वाली चाय खरीद रहे हैं। इस बार ऐसा पहली बार हुआ है कि अहमदाबाद के खरीदार अपनी पसंद की चाय खरीदने आसाम के बागानों में पहुंचे हैं। पश्चिमी भारत में चाय के वितरण का एक बड़ा केंद्र अहमदाबाद है। दुनिया की सबसे बड़ी चाय उत्पादक मैक्लॉयड रसेल इंडिया के डायरेक्टर, अजम मोनेम ने कहा, 'इस वर्ष चाय के लिए नजरिया काफी मजबूत है और भारतीय चाय को अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए। यह रोचक बात है कि टियर दो और तीन शहरों के लोग क्वालिटी टी की मांग कर रहे हैं और अच्छे स्वाद के लिए कुछ अधिक खर्च करने को तैयार हैं।' धनसेरी टी के चेयरमैन सी के धानुका भी मोनेम की राय से सहमत हैं। उन्होंने बताया, 'टियर दो शहरों से विशेष तौर पर क्वालिटी वाली चाय की मांग आ रही है। टियर तीन शहरों में भी क्वॉलिटी टी का टेस्ट डेवलप हो रहा है। क्वॉलिटी टी की खपत के मामले में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और दिल्ली जैसे शहर आगे हैं।' अच्छी क्वॉलिटी वाली चाय की बड़ी खपत करने वाले राज्यों में शामिल गुजरात असम से खरीदी जाने वाली चाय की मात्रा बढ़ाएगा। राज्य के चाय कारोबार विभाग के अधिकारी हाल ही में चाय के सौदे करने असम गए थे। इस समय गुजरात में सालाना लगभग 5.5-6 करोड़ टन चाय की खपत है और इसमें से कम से कम 50 से 60 फीसदी असम से आती है। गुजरात के चाय कारोबारी असम से खरीद में 15-20 फीसदी की वृद्धि करने पर विचार कर रहे हैं। गुजरात में प्रति व्यक्ति चाय की खपत लगभग 1.4 किलोग्राम है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 750 ग्राम का है। अहमदाबाद टी मर्चेंट एसोसिएशन (एटीएमएम) के प्रेसिडेंट, एच पी अग्रवाल ने कहा, 'गुजराती आमतौर पर दूध के साथ चाय पीते है और असम की चाय को काफी पसंद करते हैं।' गुवाहाटी टी ऑक्शन सेंटर (जीटीएसी) में बिकने वाली अच्छी क्वॉलिटी की लगभग 60 फीसदी चाय गुजरात जाती है। वेस्टर्न इंडिया टी डीलर एसोसिएशन के वाइस-प्रेसिडेंट, अशोक रेलिया ने कहा कि एक वर्ष में प्रति व्यक्ति चाय की खपत बढ़कर 1.5 किलोग्राम पर पहुंच जाएगी। उन्होंने बताया, 'चाय की मासिक खपत में लगभग 75 फीसदी ब्रांडेड वेराइटी की और बाकी खुली चाय होती है।' (ET Hindi)
वायदा पर पाबंदी नहीं चाहता खाद्य मंत्रालय
मुंबई April 24, 2011
खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर पाबंदी के लिए सिफारिश करने के हक में नहीं है। मौजूदा समय में मंत्रालय नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले कार्य समूह के सुझावों के आधार पर सिफारिशों को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है। इस कार्य समूह में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।सिफारिशों को अंतिम रूप देने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय इसे प्रधानमंत्री को भेजेगा। कार्य समूह ने मजबूती के साथ आवश्यक वस्तुओं के वायदा कोराबार पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की थी। इसके उलट मंत्रालय कार्य समूह की उन सिफारिशों के समर्थन में है जिसमें इसने खास तौर से विभिन्न राज्यों में मौजूद कृषि उत्पाद विपणन समितियों में सुधार की बात की है ताकि खाद्यान्न की थोक व खुदरा कीमतों के बीच का अंतर कम हो सके। साथ ही कालाबाजारी रोकने के लिए आïवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की बात भी कार्य समूह ने की है। जिंस एक्सचेंजों पर आवश्यक वस्तुओं के कारोबार की बाबत मंत्रालय अभिजित सेन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ पैनल की राय के आधार पर चलेगा।एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, पैनल ने कहा था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि वायदा बाजार की वजह से जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं। इसके अलावा वायदा बाजार आयोग द्वारा की गई कार्य समूह के सामने पेश केस स्टडी में भी कहा गया था कि मौजूदा बाजार कीमत और वायदा कीमतों में किसी तरह का सहसंबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतें मांग व आपूर्ति के हिसाब से तय होती हैं। अरहर, उड़द और चावल का वायदा कारोबार नहीं होता, लेकिन इसकी कीमतें भी बढ़ रही हैं।दूसरी ओर वायदा कारोबार पर पाबंदी के बावजूद चीनी की कीमतें बढ़ रही थीं। वास्तव में चीनी की कीमतें वायदा कारोबार दोबारा शुरू होने के बाद गिरी हैं। एफएमसी के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने कहा - कार्य समूह के सामने पेश प्रेजेंटेशन पूरी तरह तथ्योंं पर आधारित था। आज किसानों के पास अपने उत्पादन बेचने के कई विकल्प हैं - या तो वह मंडी में अपना माल बेचे या फिर हाजिर बाजार में। एक ओर जहां हम जागरूकता कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं, लेकिन इस बात पर कम ही जोर दिया गया है कि किसानों को अच्छी कीमत की व्यवस्था की दरकार है और इस तरह उनका हित वायदा बाजार से जुड़ा हुआ है जहां वह हाजिर बाजार के मुकाबले ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से अपना माल बेच सकता है। भारत में 12 करोड़ किसान परिवार हैं और महज आठ साल के अपने अस्तित्व में वायदा बाजार बहुत ज्यादा सुधार नहीं कर सकता। वायदा बाजार महज प्राइस डिस्कवरी मैकेनिज्म है, जो किसानों को फसल, भंडारण, बिक्री, क्रेडिट आदि की योजना बनाने में मदद कर सकता है। जिंस एक्सचेंजों के नियमन की बाबत किसी तरह की शिकायत नहीं है और प्राइस डिस्कवरी पारदर्शी है। इसकी कोई वजह नहीं दिखती कि ऐसे महत्वपूर्ण उपकरणोंं पर पाबंदी क्यों लगाई जाए, जो किसानों की वास्तविक स्थिति में सुधार ला सकता है।ग्वारसीड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा - इस साल ग्वार सीड की कीमतें 2000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चली गईं। फसल के अनुमान, मांग, आपूर्ति आदि का विश्लेषण करने पर एफएमसी ने पाया कि उद्योग ने 17-18 लाख टन उत्पादन का भारी भरकम अनुमान लगाया था जबकि वास्तविक आवक 11-12 लाख टन की थी।इसके अलावा मांग में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई और कैरीओवर स्टॉक भी काफी कम था। कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हुई तब हमने लेनदेन की लागत घटाने के लिए मार्जिन हटा दिया, हालांकि इसे हमने तब दोबारा लागू कर दिया, जब कीमतें स्थिर हो गईं। इस बीच, निर्यातकों की लॉबी ने मार्जिन में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी की मांग की, फिर राजस्थान सरकार ने भी ऐसा ही कहा। हालांकि हमने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि ज्यादा मर्जिन से वैसे वास्तविक घरेलू उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता, जो खरीद के लिए ऊंची कीमतों संघर्ष कर रहे थे। ऊंचे मार्जिन से वास्तविक हेजर्स व ट्रेडर्स पर भी प्रभाव पड़ता। वहीं दूसरी ओर यह देखा गया कि ग्वारसीड से किसान समुदाय को काफी फायदा हुआ है और उन्होंने हर महीने 20-30 हजार क्विंटल की बिक्री की, न कि एक लाख टन का पूरा स्टॉक एक झटकेमें बेच दिया। जैसे कि वे पहले करते आ रहे थे। ऐसे में उन्होंने कीमत में उछाल का फायदा उठाया, जब कीमत वास्तव में 2800-2900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गया। जबकि नवंबर-दिसंबर 2010 के दौरान इसकी कीमतें 1970-2000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई थीं। (BS Hindi)
खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर पाबंदी के लिए सिफारिश करने के हक में नहीं है। मौजूदा समय में मंत्रालय नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले कार्य समूह के सुझावों के आधार पर सिफारिशों को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है। इस कार्य समूह में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।सिफारिशों को अंतिम रूप देने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय इसे प्रधानमंत्री को भेजेगा। कार्य समूह ने मजबूती के साथ आवश्यक वस्तुओं के वायदा कोराबार पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की थी। इसके उलट मंत्रालय कार्य समूह की उन सिफारिशों के समर्थन में है जिसमें इसने खास तौर से विभिन्न राज्यों में मौजूद कृषि उत्पाद विपणन समितियों में सुधार की बात की है ताकि खाद्यान्न की थोक व खुदरा कीमतों के बीच का अंतर कम हो सके। साथ ही कालाबाजारी रोकने के लिए आïवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की बात भी कार्य समूह ने की है। जिंस एक्सचेंजों पर आवश्यक वस्तुओं के कारोबार की बाबत मंत्रालय अभिजित सेन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ पैनल की राय के आधार पर चलेगा।एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, पैनल ने कहा था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि वायदा बाजार की वजह से जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं। इसके अलावा वायदा बाजार आयोग द्वारा की गई कार्य समूह के सामने पेश केस स्टडी में भी कहा गया था कि मौजूदा बाजार कीमत और वायदा कीमतों में किसी तरह का सहसंबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि खाद्य पदार्थों की कीमतें मांग व आपूर्ति के हिसाब से तय होती हैं। अरहर, उड़द और चावल का वायदा कारोबार नहीं होता, लेकिन इसकी कीमतें भी बढ़ रही हैं।दूसरी ओर वायदा कारोबार पर पाबंदी के बावजूद चीनी की कीमतें बढ़ रही थीं। वास्तव में चीनी की कीमतें वायदा कारोबार दोबारा शुरू होने के बाद गिरी हैं। एफएमसी के चेयरमैन बी. सी. खटुआ ने कहा - कार्य समूह के सामने पेश प्रेजेंटेशन पूरी तरह तथ्योंं पर आधारित था। आज किसानों के पास अपने उत्पादन बेचने के कई विकल्प हैं - या तो वह मंडी में अपना माल बेचे या फिर हाजिर बाजार में। एक ओर जहां हम जागरूकता कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं, लेकिन इस बात पर कम ही जोर दिया गया है कि किसानों को अच्छी कीमत की व्यवस्था की दरकार है और इस तरह उनका हित वायदा बाजार से जुड़ा हुआ है जहां वह हाजिर बाजार के मुकाबले ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से अपना माल बेच सकता है। भारत में 12 करोड़ किसान परिवार हैं और महज आठ साल के अपने अस्तित्व में वायदा बाजार बहुत ज्यादा सुधार नहीं कर सकता। वायदा बाजार महज प्राइस डिस्कवरी मैकेनिज्म है, जो किसानों को फसल, भंडारण, बिक्री, क्रेडिट आदि की योजना बनाने में मदद कर सकता है। जिंस एक्सचेंजों के नियमन की बाबत किसी तरह की शिकायत नहीं है और प्राइस डिस्कवरी पारदर्शी है। इसकी कोई वजह नहीं दिखती कि ऐसे महत्वपूर्ण उपकरणोंं पर पाबंदी क्यों लगाई जाए, जो किसानों की वास्तविक स्थिति में सुधार ला सकता है।ग्वारसीड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा - इस साल ग्वार सीड की कीमतें 2000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चली गईं। फसल के अनुमान, मांग, आपूर्ति आदि का विश्लेषण करने पर एफएमसी ने पाया कि उद्योग ने 17-18 लाख टन उत्पादन का भारी भरकम अनुमान लगाया था जबकि वास्तविक आवक 11-12 लाख टन की थी।इसके अलावा मांग में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई और कैरीओवर स्टॉक भी काफी कम था। कीमतों में बढ़ोतरी शुरू हुई तब हमने लेनदेन की लागत घटाने के लिए मार्जिन हटा दिया, हालांकि इसे हमने तब दोबारा लागू कर दिया, जब कीमतें स्थिर हो गईं। इस बीच, निर्यातकों की लॉबी ने मार्जिन में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी की मांग की, फिर राजस्थान सरकार ने भी ऐसा ही कहा। हालांकि हमने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि ज्यादा मर्जिन से वैसे वास्तविक घरेलू उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता, जो खरीद के लिए ऊंची कीमतों संघर्ष कर रहे थे। ऊंचे मार्जिन से वास्तविक हेजर्स व ट्रेडर्स पर भी प्रभाव पड़ता। वहीं दूसरी ओर यह देखा गया कि ग्वारसीड से किसान समुदाय को काफी फायदा हुआ है और उन्होंने हर महीने 20-30 हजार क्विंटल की बिक्री की, न कि एक लाख टन का पूरा स्टॉक एक झटकेमें बेच दिया। जैसे कि वे पहले करते आ रहे थे। ऐसे में उन्होंने कीमत में उछाल का फायदा उठाया, जब कीमत वास्तव में 2800-2900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गया। जबकि नवंबर-दिसंबर 2010 के दौरान इसकी कीमतें 1970-2000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई थीं। (BS Hindi)
बढ़ी कीमतों से मेंथा बना खास
लखनऊ April 26, 2011
मेंथा तेल की लगातार चढ़ती कीमतों ने उत्तर प्रदेश में किसानों को एक बार फिर से इसकी खेती की तरफ मोड़ दिया है। प्रदेश में मेंथा का हब कहे जाने वाले बाराबंकी और लखनऊ जिले में इस बार मेंथा की खेती पर जोर है। इस सीजन में गन्ने का अपेक्षित भाव न मिलना भी मेंथा के लिए वरदान साबित हो रहा है। नकदी फसल के लिए इस समय किसानों को मेंथा सबसे मुफीद लग रहा है। कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस साल मेंथा के रकबे में बीते साल के मुकाबले 40 फीसदी की बढ़ोतरी तय है। बीते साल राज्य में मेंथा का रकबा 1.5 लाख हेक्टेयर रह गया था जिसके इस साल बढ़कर 2.10 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इन दिनों मेंथा की बुआई का सीजन चल रहा है और ऐसे में हो रही बारिश ने किसानों के उत्साह को दोगुना करने का काम किया है। अप्रैल में हुई दो बार की बारिश से किसानों को मेंथा की नर्सरी लगाने में सहारा मिला है। राज्य में मेंथा के बड़े खेतिहर और उन्नत किसान पुरस्कार से सम्मानित रामदरश का कहना है कि बीते साल मेंथा तेल की कीमत 600 से 700 रुपये लीटर की रही जबकि इस समय इस की कीमत 1200 रुपये लीटर चल रही है ऐसे में किसानों इस साल मेंथा गन्ने से ज्यादा लाभकारी लग रहा है। उनका कहना है कि इस बार कई ऐसे जिलों के लोग भी बाराबंकी से मेंथा की जड़ें ले जा रहे हैं जहां पहले इसकी खेती नही की जाती थी। वायदा बाजार की मानें तो आने वाले दिनों में भी मेंथा की कीमत में गिरावट के आसार नहीं हैं। बेहतर मॉनसून की भविष्यवाणी के बाद किसानों को फसल के भी अच्छी रहने की उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि देश के कुल मेंथा उत्पादन का 90 फीसदी उत्तर प्रदेश में होता है। उत्तर प्रदेश में मेंथा उत्पादक जिलों में बाराबंकी, अंबेडकरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ और लखनऊ का नाम शुमार होता है। महज 90 दिनों में तैयार हो जाने वाली इस फसल को किसान गेहंू की कटाई के बाद अप्रैल में लगाते हैं और जून अंत से लेकर जुलाई तक फसल तैयार हो जाती है। इस तरह मेंथा उत्पादक किसान आराम से खरीफ और रबी की फसल भी लेते हैं। कृषि वैज्ञानिक सुशील कुमार सिंह के मुताबिक देश में कुल 35000 टन से लेकर 40000 टन मेंथा का उत्पादन हर साल होता है जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में ही 30000 टन मेंथा का उत्पादन होता है।देश में हर साल 10000 टन मेंथा की खपत होती है जबकि शेष उत्पाद को चीन और अन्य यूरोपीय देशो को भेजा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जून और जुलाई में भी जब फसल तैयार हो आकर बाजार में आएगी तब भी दाम गिरने के आसार नहीं हैं। (BS Hindi)
मेंथा तेल की लगातार चढ़ती कीमतों ने उत्तर प्रदेश में किसानों को एक बार फिर से इसकी खेती की तरफ मोड़ दिया है। प्रदेश में मेंथा का हब कहे जाने वाले बाराबंकी और लखनऊ जिले में इस बार मेंथा की खेती पर जोर है। इस सीजन में गन्ने का अपेक्षित भाव न मिलना भी मेंथा के लिए वरदान साबित हो रहा है। नकदी फसल के लिए इस समय किसानों को मेंथा सबसे मुफीद लग रहा है। कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस साल मेंथा के रकबे में बीते साल के मुकाबले 40 फीसदी की बढ़ोतरी तय है। बीते साल राज्य में मेंथा का रकबा 1.5 लाख हेक्टेयर रह गया था जिसके इस साल बढ़कर 2.10 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इन दिनों मेंथा की बुआई का सीजन चल रहा है और ऐसे में हो रही बारिश ने किसानों के उत्साह को दोगुना करने का काम किया है। अप्रैल में हुई दो बार की बारिश से किसानों को मेंथा की नर्सरी लगाने में सहारा मिला है। राज्य में मेंथा के बड़े खेतिहर और उन्नत किसान पुरस्कार से सम्मानित रामदरश का कहना है कि बीते साल मेंथा तेल की कीमत 600 से 700 रुपये लीटर की रही जबकि इस समय इस की कीमत 1200 रुपये लीटर चल रही है ऐसे में किसानों इस साल मेंथा गन्ने से ज्यादा लाभकारी लग रहा है। उनका कहना है कि इस बार कई ऐसे जिलों के लोग भी बाराबंकी से मेंथा की जड़ें ले जा रहे हैं जहां पहले इसकी खेती नही की जाती थी। वायदा बाजार की मानें तो आने वाले दिनों में भी मेंथा की कीमत में गिरावट के आसार नहीं हैं। बेहतर मॉनसून की भविष्यवाणी के बाद किसानों को फसल के भी अच्छी रहने की उम्मीद जगी है। गौरतलब है कि देश के कुल मेंथा उत्पादन का 90 फीसदी उत्तर प्रदेश में होता है। उत्तर प्रदेश में मेंथा उत्पादक जिलों में बाराबंकी, अंबेडकरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ और लखनऊ का नाम शुमार होता है। महज 90 दिनों में तैयार हो जाने वाली इस फसल को किसान गेहंू की कटाई के बाद अप्रैल में लगाते हैं और जून अंत से लेकर जुलाई तक फसल तैयार हो जाती है। इस तरह मेंथा उत्पादक किसान आराम से खरीफ और रबी की फसल भी लेते हैं। कृषि वैज्ञानिक सुशील कुमार सिंह के मुताबिक देश में कुल 35000 टन से लेकर 40000 टन मेंथा का उत्पादन हर साल होता है जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में ही 30000 टन मेंथा का उत्पादन होता है।देश में हर साल 10000 टन मेंथा की खपत होती है जबकि शेष उत्पाद को चीन और अन्य यूरोपीय देशो को भेजा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जून और जुलाई में भी जब फसल तैयार हो आकर बाजार में आएगी तब भी दाम गिरने के आसार नहीं हैं। (BS Hindi)
ब्रांडेड आभूषण: उत्पाद शुल्क पर भ्रम
मुंबई April 25, 2011
आम बजट में ब्रांडेड आभूषणों पर 1 फीसदी उत्पाद शुल्क लगाने के प्रावधान के बाद 2 लाख करोड़ रुपये के घरेलू आभूषण बाजार में भ्रम बना हुआ है। आभूषण निर्माताओं द्वारा विरोध करने पर सरकार की तरफ से एक परिपत्र जारी किया गया था। इसके बावजूद अभी स्थिति साफ नहीं है।ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन बछराज बामलवा के मुताबिक, 'सबसे बड़ी दिक्कत तो ब्रांडेड आभूषण की परिभाषा को लेकर है। यह परिभाषा 50 साल पुरानी है। इस परिभाषा के मुताबिक किसी भी कंपनी का नाम या कोई चिन्ह अगर उसके आभूषणों पर अंकित है तो उसे ब्रांडेड माना जाएगा और उस पर उत्पाद शुल्क लगेगा। इस परिभाषा के तहत उत्पाद शुल्क विभाग के हर अधिकारी को श्रेणी तय करने और शुल्क वसूलने का अधिकार मिला हुआ है।'यह परिभाषा इस उद्योग की मौजूदा स्थिति के अनुकूल नहीं है। आभूषण उद्योग उन आभूषणों को ब्रांडेड मानता है जो नॉन-ब्रांडेड श्रेणी से ज्यादा कीमत पर बिकते हों। आम तौर पर कई आभूषण निर्माता खास तरह के आभूषण विशेष चिन्ह के साथ बनाते हैं। बेंगलुरु के आभूषण विक्रेता विनोद हयाग्रिव ने बताया कि ब्रांडेड उत्पाद की खास पहचान, लोगों को आकर्षित करने की खास क्षमता और इसकी कीमत अधिक होती है।आजकल, आभूषण निर्मात अपने आभूषणों पर खास चिन्ह इसलिए अंकित कर देते हैं ताकि वापसी के वक्त वे आसानी से अपने यहां के आभूषणों की पहचान कर सकें। 2005 में सरकार ने ब्रांडेड आभूषणों पर 2 फीसदी उत्पाद शुल्क लगाए गए थे लेकिन 2008 तक इससे सिर्फ 16 करोड़ रुपये का ही राजस्व हासिल हो पाया। यह रकम सरकार द्वारा राजस्व उगाही में खर्च होने वाले रकम का 10 फीसदी थी। इसलिए सरकार ने 2009 में इसे हटा लिया।हयाग्रिव ने कहा, 'उत्पाद शुल्क सिर्फ विनिर्मित वस्तुओं पर लगता रहा है। इसे अब सरकार रिटेल पर भी लागू करना चाहती है। पर इस शुल्क को कम से कम 10 साल के लिए हटाया जाना चाहिए। तब तक उम्मीद है कि उद्योग इतना परिपक्व हो जाएगा कि ऐसे शुल्क चुका सके।'इस बीच फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की) के आभूषण विभाग के अध्यक्ष और गीतांजलि जेम्स के चेयरमैन मेहुल चोकसी की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल उत्पाद शुल्क हटाने के मसले पर मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से मिलने वाला है। हयाग्रिव कहते हैं कि आभूषण उद्योग बहुत कम मुनाफे यानी 5 से 8 फीसदी पर काम कर रहा है और इतने कम मुनाफे पर दुनिया का कोई भी खुदरा कारोबार नहीं चल रहा। उनका कहना है कि शादी-विवाह के सीजन को देखते हुए सरकार को उत्पाद शुल्क हटा लेना चाहिए नहीं तो इस उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि सोने और चांदी की कीमतों में तेजी के बावजूद भारत में आभूषण कारोबार बढ़ रहा है। (BS Hindi)
आम बजट में ब्रांडेड आभूषणों पर 1 फीसदी उत्पाद शुल्क लगाने के प्रावधान के बाद 2 लाख करोड़ रुपये के घरेलू आभूषण बाजार में भ्रम बना हुआ है। आभूषण निर्माताओं द्वारा विरोध करने पर सरकार की तरफ से एक परिपत्र जारी किया गया था। इसके बावजूद अभी स्थिति साफ नहीं है।ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन बछराज बामलवा के मुताबिक, 'सबसे बड़ी दिक्कत तो ब्रांडेड आभूषण की परिभाषा को लेकर है। यह परिभाषा 50 साल पुरानी है। इस परिभाषा के मुताबिक किसी भी कंपनी का नाम या कोई चिन्ह अगर उसके आभूषणों पर अंकित है तो उसे ब्रांडेड माना जाएगा और उस पर उत्पाद शुल्क लगेगा। इस परिभाषा के तहत उत्पाद शुल्क विभाग के हर अधिकारी को श्रेणी तय करने और शुल्क वसूलने का अधिकार मिला हुआ है।'यह परिभाषा इस उद्योग की मौजूदा स्थिति के अनुकूल नहीं है। आभूषण उद्योग उन आभूषणों को ब्रांडेड मानता है जो नॉन-ब्रांडेड श्रेणी से ज्यादा कीमत पर बिकते हों। आम तौर पर कई आभूषण निर्माता खास तरह के आभूषण विशेष चिन्ह के साथ बनाते हैं। बेंगलुरु के आभूषण विक्रेता विनोद हयाग्रिव ने बताया कि ब्रांडेड उत्पाद की खास पहचान, लोगों को आकर्षित करने की खास क्षमता और इसकी कीमत अधिक होती है।आजकल, आभूषण निर्मात अपने आभूषणों पर खास चिन्ह इसलिए अंकित कर देते हैं ताकि वापसी के वक्त वे आसानी से अपने यहां के आभूषणों की पहचान कर सकें। 2005 में सरकार ने ब्रांडेड आभूषणों पर 2 फीसदी उत्पाद शुल्क लगाए गए थे लेकिन 2008 तक इससे सिर्फ 16 करोड़ रुपये का ही राजस्व हासिल हो पाया। यह रकम सरकार द्वारा राजस्व उगाही में खर्च होने वाले रकम का 10 फीसदी थी। इसलिए सरकार ने 2009 में इसे हटा लिया।हयाग्रिव ने कहा, 'उत्पाद शुल्क सिर्फ विनिर्मित वस्तुओं पर लगता रहा है। इसे अब सरकार रिटेल पर भी लागू करना चाहती है। पर इस शुल्क को कम से कम 10 साल के लिए हटाया जाना चाहिए। तब तक उम्मीद है कि उद्योग इतना परिपक्व हो जाएगा कि ऐसे शुल्क चुका सके।'इस बीच फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की) के आभूषण विभाग के अध्यक्ष और गीतांजलि जेम्स के चेयरमैन मेहुल चोकसी की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल उत्पाद शुल्क हटाने के मसले पर मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से मिलने वाला है। हयाग्रिव कहते हैं कि आभूषण उद्योग बहुत कम मुनाफे यानी 5 से 8 फीसदी पर काम कर रहा है और इतने कम मुनाफे पर दुनिया का कोई भी खुदरा कारोबार नहीं चल रहा। उनका कहना है कि शादी-विवाह के सीजन को देखते हुए सरकार को उत्पाद शुल्क हटा लेना चाहिए नहीं तो इस उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि सोने और चांदी की कीमतों में तेजी के बावजूद भारत में आभूषण कारोबार बढ़ रहा है। (BS Hindi)
एपीएमसी में संशोधन के लिए राजी
चंडीगढ़ April 25, 2011
अगले कुछ सालों में भारत के कृषि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के स्तर पर क्रांति दिख सकती है। उपज के बाद बुनियादी ढांचे से संबंधित नुकसान को कम करने के लिए रास्ते सुझाने के लिए भारत सरकार के कृषि विभाग द्वारा गठित समिति अपनी शुरुआती सिफारिशों के साथ तैयार है।इस समिति की अध्यक्षता महाराष्ट्र के मार्केटिंग ऐंड कोऑपरेशन मंत्री हर्षवर्धन पाटिल कर रहे हैं। चंडीगढ़ में इस समिति की दो दिनों की बैठक सोमवार को खत्म हुई। बैठक में समिति ने वे प्रस्ताव तैयार किए जो जल्द ही केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के समक्ष नई दिल्ली में प्रस्तुत किए जाएंगे। इस समिति को राज्यों को एपीएमसी कानून पर राजी करने का काम भी दिया गया है। पाटिल के मुताबिक इसे 16 राज्यों ने स्वीकार कर लिया है और 7 राज्य इस पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं। बिहार और केरल में ऐसा कोई भी कानून नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि मामूली बदलाव के साथ राज्य इसे अपनाने पर राजी हो सकते हैं।पाटिल ने संकेत दिए कि कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका हो सकती है। उन्होंने कहा कि शीत भंडार और दूसरे लॉजिस्टिक कामों में निजी क्षेत्र की भूमिका हो सकती है और भंडार तैयार करने के लिए सरकार द्वारा जमीन मुहैया कराना और फिर निजी क्षेत्र द्वारा पैसा लगाना एक विकल्प हो सकता है। उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए कि अनाजों की खरीदारी में निजी क्षेत्र के प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।इस बैठक में किसानों, उद्योग संघों और कारोबारियों के नुमाइंदे शामिल हुए। पाटिल ने कहा कि किसान अपने उपज की अच्छी कीमत चाहते हैं और वे निजी खरीदारों को तब ही प्रवेश देने के पक्षधर हैं जब उन्हें बेहतर कीमत मिले। उन्होंने कहा कि कृषि मार्केटिंग सुधारों की जरूरत इसलिए है ताकि किसानों को आकर्षक कीमतों पर अपनी उपज बेचने के विकल्प मिल सकें। पाटिल ने कहा कि किसानों को एक ही जगह पर अनाज बेचने को बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। समिति किसानों के समक्ष उपलब्ध विकल्पों और उन्हें बेहतर कीमत दिलाने के रास्तों पर विचार कर रही है। समिति की सिफारिशों के आधार पर इन मसलों पर केंद्र सरकार कोई अंतिम फैसला करेगी। इस बैठक में 15 राज्यों के कृषि मंत्रियों ने हिस्सा लिया। वहीं अन्य राज्यों ने अपने-अपने प्रतिनिधि इस बैठक में भेजे। (BS Hindi)
अगले कुछ सालों में भारत के कृषि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के स्तर पर क्रांति दिख सकती है। उपज के बाद बुनियादी ढांचे से संबंधित नुकसान को कम करने के लिए रास्ते सुझाने के लिए भारत सरकार के कृषि विभाग द्वारा गठित समिति अपनी शुरुआती सिफारिशों के साथ तैयार है।इस समिति की अध्यक्षता महाराष्ट्र के मार्केटिंग ऐंड कोऑपरेशन मंत्री हर्षवर्धन पाटिल कर रहे हैं। चंडीगढ़ में इस समिति की दो दिनों की बैठक सोमवार को खत्म हुई। बैठक में समिति ने वे प्रस्ताव तैयार किए जो जल्द ही केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के समक्ष नई दिल्ली में प्रस्तुत किए जाएंगे। इस समिति को राज्यों को एपीएमसी कानून पर राजी करने का काम भी दिया गया है। पाटिल के मुताबिक इसे 16 राज्यों ने स्वीकार कर लिया है और 7 राज्य इस पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं। बिहार और केरल में ऐसा कोई भी कानून नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि मामूली बदलाव के साथ राज्य इसे अपनाने पर राजी हो सकते हैं।पाटिल ने संकेत दिए कि कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका हो सकती है। उन्होंने कहा कि शीत भंडार और दूसरे लॉजिस्टिक कामों में निजी क्षेत्र की भूमिका हो सकती है और भंडार तैयार करने के लिए सरकार द्वारा जमीन मुहैया कराना और फिर निजी क्षेत्र द्वारा पैसा लगाना एक विकल्प हो सकता है। उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए कि अनाजों की खरीदारी में निजी क्षेत्र के प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।इस बैठक में किसानों, उद्योग संघों और कारोबारियों के नुमाइंदे शामिल हुए। पाटिल ने कहा कि किसान अपने उपज की अच्छी कीमत चाहते हैं और वे निजी खरीदारों को तब ही प्रवेश देने के पक्षधर हैं जब उन्हें बेहतर कीमत मिले। उन्होंने कहा कि कृषि मार्केटिंग सुधारों की जरूरत इसलिए है ताकि किसानों को आकर्षक कीमतों पर अपनी उपज बेचने के विकल्प मिल सकें। पाटिल ने कहा कि किसानों को एक ही जगह पर अनाज बेचने को बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। समिति किसानों के समक्ष उपलब्ध विकल्पों और उन्हें बेहतर कीमत दिलाने के रास्तों पर विचार कर रही है। समिति की सिफारिशों के आधार पर इन मसलों पर केंद्र सरकार कोई अंतिम फैसला करेगी। इस बैठक में 15 राज्यों के कृषि मंत्रियों ने हिस्सा लिया। वहीं अन्य राज्यों ने अपने-अपने प्रतिनिधि इस बैठक में भेजे। (BS Hindi)
बढ़ती लागत से दूध में उफान!
मुंबई April 26, 2011
एक ओर जहां खाद्य पदार्थों की कीमतों में भले ही थोड़ी बहुत नरमी देखने को मिली हो, लेकिन महंगाई से राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि बढ़ती गर्मी के साथ दूध की कीमतें एक बार फिर बढऩे वाली हैं। लागत में बढ़ोतरी से जूझ रहे संगठित दुग्ध उत्पादक एक बार फिर कीमतों में बढ़ोतरी की योजना बना रहे हैं और अगले महीने के आखिर तक 1 से 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। गर्मी के मौसम में गेहूं के भंडारण और परिवहन की लागत बढ़ गई है। संगठित क्षेत्र के अग्रणी उत्पादक मसलन अमूल ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) और मुंबई में महानंद ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाली कंपनी महानंद डेयरी ने इस महीने की शुरुआत में दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी है। ये कंपनियां एक बार फिर दूध की कीमतें बढ़ाने की योजना बना रही हैं। मौजूदा समय में महानंद के गाय के दूध की बिक्री 28 रुपये प्रति लीटर पर होती है।असंगठित क्षेत्र के उत्पादकों (डेरी चलाने वाले) ने इस महीने दो चरणोंं में दूध की कीमतें 6 रुपये प्रति लीटर बढ़ा चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में दूध बेचने वालों ने 2 रुपये का इजाफा किया था और सोमवार से उसने 4 रुपये प्रति लीटर की और बढ़ोतरी कर दी। इस तरह दूध 42 रुपये प्रति लीटर पर मिल रहा है। नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की चेयरमैन डॉ. अमृता पटेल ने कहा - ग्रामीण व शहरी लोगों के बढ़ती आमदनी की वजह से दूध की मांग में हो रही बढ़ोतरी को डेयरी उद्योग देख रहा है, ऐसे में अनाज के उपभोग के साथ-साथ सब्जियों, दूध और मांस की खपत भी बढ़ रही है। ऐसे समय में किसान चारे की बढ़ती कीमत व दूसरी लागत से जूझ रहा है और इस लागत को पाटने के लिए ज्यादा कीमत की मांग कर रहा है।डॉ. पटेल के मुताबिक, भारत में प्रति पशु 800-1000 लीटर सालाना दूध का उत्पादन होता है, जबकि वैश्विक औसत 7000-8000 लीटर सालाना है। चूंकि ज्यादातर दूध वैयक्तिक स्रोत से आता है, जिसके पास पशुधन में सुधार की खातिर निवेश के लिए साधन नहीं होता है। डॉ. पटेल ने कहा कि दूध उत्पादन में कॉरपोरेट के प्रवेश से समस्या का समाधान हो सकता है।दूसरा, भारतीय किसान चारे की उपलब्धता में 150 लाख टन की कमी झेल रहे हैं, इस वजह से उन्हें कम गुणवत्ता वाले चारे का इस्तेमाल करना पड़ता है। चारे की उपलब्धता में कमी के चलते इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। चारे की कीमतें अस्थायी रूप से हालांकि 2 फीसदी कम हुई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि देश भर में बारिश शुरू होने के बाद इसमें बढ़ोतरी होगी।इस बीच, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले शीरे की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है और यह एक महीने पहले के 2700-2800 रुपये प्रति टन के मुकाबले 3400-3600 रुपये प्रति टन पर पहुंच गया है। महानंद डेयरी के एक अधिकारी ने कहा - हमने 17 फरवरी को दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर तब बढ़ाई थी जब सरकार ने खरीद कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया था। बाकी बढ़ोतरी 6 अप्रैल को की गई। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अरंडी की कीमतें तीन महीने में बढ़कर 5400 रुपये प्रति टन हो गई हैं जबकि पहले यह 4900 रुपये प्रति टन थी। इस बीच, भारत में दूध की मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि पिछले दस साल से उत्पादन में सालाना बढ़ोतरी करीब 35 लाख टन की रही है। दूध की जरूरतों को देखते हुए साल 2021-22 में इसके 1800 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। (BS Hindi)
एक ओर जहां खाद्य पदार्थों की कीमतों में भले ही थोड़ी बहुत नरमी देखने को मिली हो, लेकिन महंगाई से राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि बढ़ती गर्मी के साथ दूध की कीमतें एक बार फिर बढऩे वाली हैं। लागत में बढ़ोतरी से जूझ रहे संगठित दुग्ध उत्पादक एक बार फिर कीमतों में बढ़ोतरी की योजना बना रहे हैं और अगले महीने के आखिर तक 1 से 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है। गर्मी के मौसम में गेहूं के भंडारण और परिवहन की लागत बढ़ गई है। संगठित क्षेत्र के अग्रणी उत्पादक मसलन अमूल ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) और मुंबई में महानंद ब्रांड के नाम से दूध बेचने वाली कंपनी महानंद डेयरी ने इस महीने की शुरुआत में दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी है। ये कंपनियां एक बार फिर दूध की कीमतें बढ़ाने की योजना बना रही हैं। मौजूदा समय में महानंद के गाय के दूध की बिक्री 28 रुपये प्रति लीटर पर होती है।असंगठित क्षेत्र के उत्पादकों (डेरी चलाने वाले) ने इस महीने दो चरणोंं में दूध की कीमतें 6 रुपये प्रति लीटर बढ़ा चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में दूध बेचने वालों ने 2 रुपये का इजाफा किया था और सोमवार से उसने 4 रुपये प्रति लीटर की और बढ़ोतरी कर दी। इस तरह दूध 42 रुपये प्रति लीटर पर मिल रहा है। नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की चेयरमैन डॉ. अमृता पटेल ने कहा - ग्रामीण व शहरी लोगों के बढ़ती आमदनी की वजह से दूध की मांग में हो रही बढ़ोतरी को डेयरी उद्योग देख रहा है, ऐसे में अनाज के उपभोग के साथ-साथ सब्जियों, दूध और मांस की खपत भी बढ़ रही है। ऐसे समय में किसान चारे की बढ़ती कीमत व दूसरी लागत से जूझ रहा है और इस लागत को पाटने के लिए ज्यादा कीमत की मांग कर रहा है।डॉ. पटेल के मुताबिक, भारत में प्रति पशु 800-1000 लीटर सालाना दूध का उत्पादन होता है, जबकि वैश्विक औसत 7000-8000 लीटर सालाना है। चूंकि ज्यादातर दूध वैयक्तिक स्रोत से आता है, जिसके पास पशुधन में सुधार की खातिर निवेश के लिए साधन नहीं होता है। डॉ. पटेल ने कहा कि दूध उत्पादन में कॉरपोरेट के प्रवेश से समस्या का समाधान हो सकता है।दूसरा, भारतीय किसान चारे की उपलब्धता में 150 लाख टन की कमी झेल रहे हैं, इस वजह से उन्हें कम गुणवत्ता वाले चारे का इस्तेमाल करना पड़ता है। चारे की उपलब्धता में कमी के चलते इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। चारे की कीमतें अस्थायी रूप से हालांकि 2 फीसदी कम हुई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि देश भर में बारिश शुरू होने के बाद इसमें बढ़ोतरी होगी।इस बीच, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले शीरे की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है और यह एक महीने पहले के 2700-2800 रुपये प्रति टन के मुकाबले 3400-3600 रुपये प्रति टन पर पहुंच गया है। महानंद डेयरी के एक अधिकारी ने कहा - हमने 17 फरवरी को दूध की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर तब बढ़ाई थी जब सरकार ने खरीद कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया था। बाकी बढ़ोतरी 6 अप्रैल को की गई। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, पशुचारे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अरंडी की कीमतें तीन महीने में बढ़कर 5400 रुपये प्रति टन हो गई हैं जबकि पहले यह 4900 रुपये प्रति टन थी। इस बीच, भारत में दूध की मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि पिछले दस साल से उत्पादन में सालाना बढ़ोतरी करीब 35 लाख टन की रही है। दूध की जरूरतों को देखते हुए साल 2021-22 में इसके 1800 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। (BS Hindi)
25 अप्रैल 2011
एंडोसल्फान पर राष्ट्रव्यापी रोक व्यावहारिक नहीं : पवार
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि एंडोसल्फान कीटनाशक पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाना व्यावहारिक नहीं है। एंडोसल्फान को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है।इस कीटनाशक को 1950 में पेश किया गया था। इसका सब्जियों, फलों, धान, कपास, काजू, चाय, कॉफी और तंबाकू जैसी 70 फसलों में इस्तेमाल होता है। केरल में इस कीटनाशक पर 2003 से प्रतिबंध है। कर्नाटक सरकार ने भी दो माह पूर्व इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।पवार ने बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान इस बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘यदि हमें एंडोसल्फान पर राष्ट्रव्यापी पाबंदी लगानी है, तो इसके लिए अन्य राज्यों से भी विचार-विमर्श करना होगा। हम सिर्फ किसी एक के आग्रह पर इस पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं।’’ पिछले दो दशक के दौरान कई देशों ने एंडोसल्फान के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नुकसान को स्वीकार किया है और इसके इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया है। देश में एंडोसल्फान का सालाना उत्पादन 9,000 टन है।इसी बीच, कृषि मंत्री ने सहकारिताओं को भारतीय कृषि जगत का मजबूत खंभा बताते हुए वित्त मंत्री से प्रणव मुखर्जी से इनको आयकर छूट देने का आग्रह किया है। पवार ने राज्य के सहकारिता मंत्रियों की राष्ट्रीय स्तर की बैठक को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मैंने वित्त मंत्री को पत्र लिखकर सहकारी सोसायटियों को आयकर से मुक्त करने का आग्रह किया है।’’ देश में सहकारी सोसायटियों की संख्या छह लाख है और इनके सदस्यों की संख्या 25 करोड़ है। (ND TV)
एंडोसल्फान की आड़ में नई साजिश
अरविंद कुमार सेन भारतीय खेतों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक एंडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाने का मुद्दा राजनीतिक रंग लेता जा रहा है। केरल सरकार के बाद कर्नाटक सरकार भी एंडोसल्फान के इस्तेमाल पर रोक लगा चुकी है। केरल सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए एंडोसल्फान का उपयोग गैरकानूनी घोषित कर दिया था। यूरोपीय यूनियन और कुछ एनजीओ के दबाव में एंडोसल्फान की लड़ाई वास्तविक मुद्दे से भटक गई है और अब कुछ राज्यों की सरकारें आनन-फानन में इस कीटनाशक पर रोक लगाने की तैयारी में हैं। एंडोसल्फान का मुद्दा तथ्यों से हटकर आरोप-प्रत्यारोप पर सिमट आया है और इस छद्म खेल का सारा खामियाजा आखिरकार निर्दोष किसानों को ही भुगतना पड़ेगा। चुनावी मौसम में केरल सरकार ने एंडोसल्फान पर दांव खेलकर जो पृष्ठभूमि तैयार की है, किसानों और देसी कीटनाशक कंपनियों को इसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ेगी। एंडोसल्फान एक ऐसा कीटनाशक है, जिसका छिड़काव फल-सब्जियों को कीट-मकोड़ों से बचाने के लिए किया जाता है। पिछले चार दशकों से भारतीय किसान एंडोसल्फान का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा एंडोसल्फान निर्माता देश है और एंडोसल्फान के वैश्विक कारोबार के 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर भारतीय कंपनियों का कब्जा है। भारत से लगभग 180 करोड़ रुपये के एंडोसल्फान का निर्यात किया जाता है और अकेले गुजरात ही दुनिया का 55 फीसदी से ज्यादा एंडोसल्फान उत्पादित करता है। पिछले 55 सालों से भारत में एंडोसल्फान का उत्पादन किया जा रहा है और कुछ समय पहले तक इसका बड़े पैमाने पर यूरोप को भी निर्यात किया जाता है। एंडोसल्फान पर ताजा विवाद की शुरुआत 2001 में हुई, जब एकमात्र एंडोसल्फान निर्माता यूरोपीय कंपनी बेयर क्रॉप साइंस ने इसका उत्पादन बंद करने का फैसला किया। एंडोसल्फान को अपने पोर्टफोलियो से हटाने के बाद बेयर क्रॉप साइंस ने यूरोपीय यूनियन के देशों पर इस कीटनाशक के बहिष्कार के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। इसी दबाव के बीच 2005 में यूरोपीय संघ ने अपने सदस्य देशों से कहा कि वह ऐसे पौधों को संरक्षण वाले उत्पादों का प्रयोग बंद करें, जिसके निर्माण में एंडोसल्फान का इस्तेमाल होता है। 2005 में यूरोपीय यूनियन ने एंडोसल्फान को पीओपी यानी परसिसटेंट आर्गेनिक पॉल्यूटेंट की सूची में शामिल करने का अभियान छेड़ दिया। असल में यूरोपीय कंपनियों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए स्टॉकहोम सम्मेलन से पहले एंडोसल्फान को प्रतिबंधित जैविक प्रदूषक की सूची में डालने के लिए यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। यूरोपीय यूनियन की आर्थिक सहायता से भारत के कई गैरसरकारी संगठनों ने भी एंडोसल्फान को मानव स्वास्थ्य के लिए बड़े खतरे के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। एनजीओ और मौकापरस्त नेताओं के गठजोड़ से देश में बनी इसी ताकतवर लॉबी ने यूरोपीय देशों के दबाव में खेती से जुड़ी तमाम समस्याओं के लिए एंडोसल्फान को उत्तरदायी ठहराया, नतीजन हड़बड़ी में कदम उठाए जाने लगे। कुछ एनजीओ की रपटों में यह दावा किया जा रहा है कि केरल के कारगोड़ जिले के लोगों पर एंडोसल्फान का बेहद प्रतिकूल असर हुआ है। यूरोपीय संस्थानों के कृषि जानकारों के हवाले से एंडोसल्फान के इस्तेमाल पर रोक लगाने की सलाह दी जा रही है। एंडोसल्फान से होने वाले नुकसान का अध्ययन करने के लिए ताबड़तोड़ तरीके से कई समितियों का गठन किया गया, लेकिन अधिकांश समितियों का कहना है कि एंडोसल्फान के मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव का कोई सबूत नहीं है। फरवरी 2001 में तमिलनाडु के फ्रेडरिक वनस्पति शोध संस्थान ने मानव रक्त, गायों व इलाके के पेड़-पौधों पर शोध करने के बाद कहा कि एंडोसल्फान के कोई अंश इनमें नहीं पाए गए। केरल कृषि विश्वविद्यालय को भी अपने शोध में एंडोसल्फान से मानव स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिली। इसी तरह कृषि मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति ने भी एंडोसल्फान और मानव स्वास्थ्य के बीच कोई संबंध होने से इनकार किया। यहां तक कि केरल सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने भी 2003 में अपनी रपट में कहा था कि एंडोसल्फान से मानव स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे में उसे कोई सबूत नहीं मिला है। सवाल उठता है कि इन सब सुझावों को दरकिनार करते हुए केरल सरकार ने एंडोसल्फान पर रोक लगाने का फैसला क्यों किया? जाहिर है कि पश्चिम की साम्राज्यवादी नीतियों के विरोध का ढोंग करने वाले वाममोर्चा के नेतृत्व वाली केरल सरकार का यह फैसला राजनीति से प्रेरित है। केरल सरकार इस फैसले के जरिए अपनी किसान हितैषी छवि चमकाने की कोशिश में जुटी है, लेकिन इस फैसले के नतीजे का अनुमान केरल के वाम योजनाकारों ने नहीं लगाया है। हकीकत यह है कि देश में इस्तेमाल होने वाले 120 लाख लीटर एंडोसल्फान में से केरल की भागीदारी सबसे कम है। गुजरात, आंध्र प्रदेश व मध्य प्रदेश समेत देश के दूसरे राज्यों में एंडोसल्फान का व्यापक इस्तेमाल किया जाता है और कहीं से भी किसानों ने इसके दुष्प्रभाव की शिकायत नहीं की है। पिछले दिनों गुजरात के किसानों ने एक खास एनजीओ की अगुवाई में चलाए जा रहे इस एंडोसल्फान विरोधी अभियान का विरोध किया था। असल में वैश्विक स्तर पर रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का कारोबार तेल के बाद दूसरा स्थान रखता है और इस कारोबार को हथियाने के लिए यूरोपीय व अमेरिकी कंपनियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। यूरोपीय कंपनियां एंडोसल्फान पर रोक लगाकर उसकी जगह अपने महंगे कीटनाशकों की आपूर्ति करना चाहती हैं। फसलों की सुरक्षा में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के अंतरराष्ट्रीय बाजार की तीन बड़ी कंपनियां यूरोपीय हैं और ये कंपनियां वैश्विक कीटनाशक कारोबार के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर काबिज है। एंडोसल्फान दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला कीटनाशक है, लेकिन इसके कारोबार पर भारतीय कंपनियों का एकाधिकार है। लिहाजा, यूरोपीय कंपनियां एंडोसल्फान को बाजार से बाहर करने पर तुली हुई हैं। स्टॉकहोम सम्मेलन के मद्देनजर अप्रैल माह में 172 देशों की बैठक होने वाली है, जो एंडोसल्फान को पीओपी सूची में शामिल करने के बारे में अंतिम फैसला करेगी। इनमें 27 यूरोपीय संघ के देश और 21 अफ्रीकी देश एंडोसल्फान के विरोध में ही फैसला लेने की सिफारिश करेंगे। यूरोप को निर्यात होने वाले कोको पर प्रतिबंध के डर से अफ्रीकी देशों के पास यूरोपीय यूनियन की नाजायज मांग का समर्थन करने के सिवाए कोई चारा नहीं है। यूरोपीय व अफ्रीकी देश एंडोसल्फान की वैश्विक खपत का महज 12 फीसदी इस्तेमाल करते हैं। लिहाजा, इसका खामियाजा हमारे किसानों को ही भुगतना पड़ेगा। सुखद संकेत यह कि इस लड़ाई में अर्जेटीना व चीन भारत का साथ दे रहे हैं और भारत सरकार को यूरोपीय पैसों के बल पर उछल रही एनजीओ लॉबी के दबाव में आए बगैर इस किसान विरोधी कदम का पुरजोर विरोध जारी रखना चाहिए। (sampden feturers)
22 अप्रैल 2011
गेहूं खरीद में सरकारी एजेंसियों को करनी पड़ेगी मशक्कत
/ चंडीगढ़ April 19, 2011
खराब मौसम की वजह से गेहूं की फसल प्रभावित होने की वजह से पंजाब और हरियाणा की सरकारी खरीद एजेंसियों को इस साल थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। इन दोनों राज्यों में इस साल आवक कम है और केंद्र के 2.63 करोड़ टन के खरीद लक्ष्य में इनका योगदान 1.8 करोड़ टन रहने का अनुमान है। मंडी आवक के विश्लेषण के बाद पिछले साल की तुलना में काफी फर्क दिखता है। पिछले साल पंजाब में 18 अप्रैल को 61.6 लाख टन गेहूं की आवक दर्ज की गई थी लेकिन इस साल 18 अप्रैल को यह महज 9.1 लाख टन रही। इसी तारीख को हरियाणा ने पिछले साल के 48.3 लाख टन के मुकाबले 20.7 लाख टन गेहूं की आवक दर्ज की। इन दोनों राज्यों में सरकारी खरीद का अधिकांश काम 30 अप्रैल तक खत्म हो जाता है। पर खराब मौसम की वजह से इस साल सरकारी खरीद 30 अप्रैल के 10 से 15 दिन बाद तक चलने की उम्मीद है।दोनों राज्यों में कटाई में देरी की वजह यह है कि किसान मौसम ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि अनाज की नमी कम हो सके। गेहूं में 12 फीसदी नमी मान्य है। भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों ने बताया कि जो किसान खेत में फसल के सूखने का इंतजार नहीं कर सकते वे मंडियों में आढ़तियों द्वारा अनाज सूखाने की सेवा का इस्तेमाल कर रहे हैं। करनाल के गेहूं शोध संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक खराब मौसम की वजह से उपज पर तो बहुत असर नहीं पड़ेगा लेकिन गेहूं की गुणवत्ता को लेकर सजग रहना होगा। यहां की खरीद एजेंसियों को अभी तक गेहूं पर प्रति क्विंटल 50 रुपये बोनस देने की बाबत आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। केंद्र सरकार ने 1120 रुपये प्रति क्विंटल पर 50 रुपये का बोनस देने का फैसला किया है और इसे चुनाव आयोग से भी हरी झंडी मिल गई है। होशियारपुर के एक किसान कुलविंदर सिंह ने कहा, 'एक बार घोषित होने के बाद बोनस वापस नहीं लिया जा सकता और ऐसे में हमें देर से पैसा मिलेगा।'गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर बेचने को किसान मजबूर हैं। कारोबारियों के मुताबिक सरकारी खरीद एजेंसियां सक्रिय नहीं हैं इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों को पंजाब और हरियाणा की तुलना में कम कीमत पर गेहूं बेचना पड़ रहा है। प्रदेश में कारोबारी 1100 से 1140 रुपये प्रति क्विंटल के बीच गेहूं खरीद रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में कारोबारी ज्यादा सक्रिय इसलिए नहीं हैं क्योंकि यहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 12 फीसदी कर लगाया जाता है। (BS Hindi)
खराब मौसम की वजह से गेहूं की फसल प्रभावित होने की वजह से पंजाब और हरियाणा की सरकारी खरीद एजेंसियों को इस साल थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। इन दोनों राज्यों में इस साल आवक कम है और केंद्र के 2.63 करोड़ टन के खरीद लक्ष्य में इनका योगदान 1.8 करोड़ टन रहने का अनुमान है। मंडी आवक के विश्लेषण के बाद पिछले साल की तुलना में काफी फर्क दिखता है। पिछले साल पंजाब में 18 अप्रैल को 61.6 लाख टन गेहूं की आवक दर्ज की गई थी लेकिन इस साल 18 अप्रैल को यह महज 9.1 लाख टन रही। इसी तारीख को हरियाणा ने पिछले साल के 48.3 लाख टन के मुकाबले 20.7 लाख टन गेहूं की आवक दर्ज की। इन दोनों राज्यों में सरकारी खरीद का अधिकांश काम 30 अप्रैल तक खत्म हो जाता है। पर खराब मौसम की वजह से इस साल सरकारी खरीद 30 अप्रैल के 10 से 15 दिन बाद तक चलने की उम्मीद है।दोनों राज्यों में कटाई में देरी की वजह यह है कि किसान मौसम ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि अनाज की नमी कम हो सके। गेहूं में 12 फीसदी नमी मान्य है। भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों ने बताया कि जो किसान खेत में फसल के सूखने का इंतजार नहीं कर सकते वे मंडियों में आढ़तियों द्वारा अनाज सूखाने की सेवा का इस्तेमाल कर रहे हैं। करनाल के गेहूं शोध संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक खराब मौसम की वजह से उपज पर तो बहुत असर नहीं पड़ेगा लेकिन गेहूं की गुणवत्ता को लेकर सजग रहना होगा। यहां की खरीद एजेंसियों को अभी तक गेहूं पर प्रति क्विंटल 50 रुपये बोनस देने की बाबत आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। केंद्र सरकार ने 1120 रुपये प्रति क्विंटल पर 50 रुपये का बोनस देने का फैसला किया है और इसे चुनाव आयोग से भी हरी झंडी मिल गई है। होशियारपुर के एक किसान कुलविंदर सिंह ने कहा, 'एक बार घोषित होने के बाद बोनस वापस नहीं लिया जा सकता और ऐसे में हमें देर से पैसा मिलेगा।'गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर बेचने को किसान मजबूर हैं। कारोबारियों के मुताबिक सरकारी खरीद एजेंसियां सक्रिय नहीं हैं इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों को पंजाब और हरियाणा की तुलना में कम कीमत पर गेहूं बेचना पड़ रहा है। प्रदेश में कारोबारी 1100 से 1140 रुपये प्रति क्विंटल के बीच गेहूं खरीद रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में कारोबारी ज्यादा सक्रिय इसलिए नहीं हैं क्योंकि यहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 12 फीसदी कर लगाया जाता है। (BS Hindi)
अहम हुआ भंडारण का मसला
चंडीगढ़ April 19, 2011
भंडारण के मसले को सरकार काफी अहमियत दे रही है। देश में भंडारण की स्थिति और नए गोदामों की जरूरत का अध्ययन करने के लिए योजना आयोग के सदस्य डॉ. अभिजीत सेन की अध्यक्षता में गठित समिति अगले महीने अपनी रिपोर्ट देने वाली है। योजना आयोग के इन्फ्रास्ट्रक्चर विभाग ने भी खुले और छत वालेगोदाम बनाने को लेकर अध्ययन करने के लिए एक कंसल्टेंट मॉट मैक्डॉनल्ड को नियुक्त किया है। उम्मीद है कि यह रिपोर्ट भी जल्द ही आ जाएगी। इसके बाद इस खाद्य विभाग और भारतीय खाद्य निगम की राय मांगी जाएगी और फिर इसे सेन समिति के पास भेज दिया जाएगा। भारत सरकार का अनुमान है कि अनाज को सडऩे से बचाने के लिए देश भर में 20 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित करने की जरूरत है। गोदाम बनाने की जगह को लेकर सरकारी विभागों के बीच मतभेद है। सलाहकारों का मत है कि गोदाम उन राज्यों में बनाए जाने चाहिए जहां अनाज की खपत होती हो। वहीं अधिकारियों का मानना है कि उत्पादक राज्य में गोदाम बनने चाहिए। इनका तर्क है कि उत्पादक राज्य 3 से 4 हफ्ते में काफी अनाज खरीदता है और इसे इतने कम समय में खपत वाले राज्य में भेजना संभव नहीं है।भंडारण की समस्या को सुलझाने पर इसलिए भी खास तौर पर ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि इस साल रिकॉर्ड 2.63 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल यह 2.25 करोड़ टन था। अगर खाद्य सुरक्षा कानून लागू हो जाता है तो वैज्ञानिक तरीके से अनाज का भंडार अनिवार्य हो जाएगा।भारत में अभी छत वाले गोदामों की भंडारण क्षमता 4.2 करोड़ टन है। पिछले कुछ साल में उत्पादन में हुई बढ़ोतरी की वजह से यह कम पड़ता जा रहा है। सार्वजनिक वितरण के लिए सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले अनाज को छत वाले और खुले गोदामों में रखा जाता है। इसमें रखा हुआ अनाज खराब मौसम से प्रभावित होकर कई बार खाने लायक नहीं बचता। जबकि कोठी में रखा जाने वाले अनाज पर तापमान और खराब मौसम का असर नहीं पड़ता और यह लंबे समय तक उपभोग के लायक रहता है। निगम सूत्रों के मुताबिक 40 दिनों में पंजाब से तकरीबन 1 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद होने की उम्मीद है।रेलवे की अपनी सीमाएं होने की वजह से महीने में 10 लाख टन से ज्यादा अनाज दूसरे प्रदेश में नहीं ले जाया जा सकता। इसलिए गेहूं उत्पादक राज्यों में गोदाम बनाना ज्यादा उपयोगी होगा। भारत में सिर्फ अदाणी समूह ने पंजाब के मोगा और हरियाणा के कैथल में कोठी तैयार किए हैं। इनमें से हर की क्षमता 2 लाख टन है और इनमें गेहूं का भंडार किया जाता है। (BS Hindi)
भंडारण के मसले को सरकार काफी अहमियत दे रही है। देश में भंडारण की स्थिति और नए गोदामों की जरूरत का अध्ययन करने के लिए योजना आयोग के सदस्य डॉ. अभिजीत सेन की अध्यक्षता में गठित समिति अगले महीने अपनी रिपोर्ट देने वाली है। योजना आयोग के इन्फ्रास्ट्रक्चर विभाग ने भी खुले और छत वालेगोदाम बनाने को लेकर अध्ययन करने के लिए एक कंसल्टेंट मॉट मैक्डॉनल्ड को नियुक्त किया है। उम्मीद है कि यह रिपोर्ट भी जल्द ही आ जाएगी। इसके बाद इस खाद्य विभाग और भारतीय खाद्य निगम की राय मांगी जाएगी और फिर इसे सेन समिति के पास भेज दिया जाएगा। भारत सरकार का अनुमान है कि अनाज को सडऩे से बचाने के लिए देश भर में 20 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित करने की जरूरत है। गोदाम बनाने की जगह को लेकर सरकारी विभागों के बीच मतभेद है। सलाहकारों का मत है कि गोदाम उन राज्यों में बनाए जाने चाहिए जहां अनाज की खपत होती हो। वहीं अधिकारियों का मानना है कि उत्पादक राज्य में गोदाम बनने चाहिए। इनका तर्क है कि उत्पादक राज्य 3 से 4 हफ्ते में काफी अनाज खरीदता है और इसे इतने कम समय में खपत वाले राज्य में भेजना संभव नहीं है।भंडारण की समस्या को सुलझाने पर इसलिए भी खास तौर पर ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि इस साल रिकॉर्ड 2.63 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल यह 2.25 करोड़ टन था। अगर खाद्य सुरक्षा कानून लागू हो जाता है तो वैज्ञानिक तरीके से अनाज का भंडार अनिवार्य हो जाएगा।भारत में अभी छत वाले गोदामों की भंडारण क्षमता 4.2 करोड़ टन है। पिछले कुछ साल में उत्पादन में हुई बढ़ोतरी की वजह से यह कम पड़ता जा रहा है। सार्वजनिक वितरण के लिए सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले अनाज को छत वाले और खुले गोदामों में रखा जाता है। इसमें रखा हुआ अनाज खराब मौसम से प्रभावित होकर कई बार खाने लायक नहीं बचता। जबकि कोठी में रखा जाने वाले अनाज पर तापमान और खराब मौसम का असर नहीं पड़ता और यह लंबे समय तक उपभोग के लायक रहता है। निगम सूत्रों के मुताबिक 40 दिनों में पंजाब से तकरीबन 1 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद होने की उम्मीद है।रेलवे की अपनी सीमाएं होने की वजह से महीने में 10 लाख टन से ज्यादा अनाज दूसरे प्रदेश में नहीं ले जाया जा सकता। इसलिए गेहूं उत्पादक राज्यों में गोदाम बनाना ज्यादा उपयोगी होगा। भारत में सिर्फ अदाणी समूह ने पंजाब के मोगा और हरियाणा के कैथल में कोठी तैयार किए हैं। इनमें से हर की क्षमता 2 लाख टन है और इनमें गेहूं का भंडार किया जाता है। (BS Hindi)
घबराहट में बिकवाली कर रही हैं सहकारी चीनी मिलें
मुंबई April 19, 2011
नकदी की जरूरतें पूरी करने के लिए महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलें घबराहट में बिकवाली कर रही हैं। पिछले सप्ताह इन मिलों ने 200 करोड़ रुपये कीमत की 8 लाख टन चीनी की बिकवाली की क्योंकि इन्हें गन्ने का भुगतान, कर्मचारियों के वेतन और गन्ने के मालभाड़े के भुगतान के लिए नकदी की जरूरत थी। 2550 रुपये प्रति क्विंटल की एक्स-मिल कीमतों के मुकाबले कुछ मिलों ने 2400 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया। कुछ मिलों ने 2555 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया जबकि एक्स-मिल कीमतें 2730 रुपये प्रति क्विंटल थी। केंद्र द्वारा घोषित अतिरिक्त गैर-लेवी कोटा और भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की वजह से भी ऐसा हुआ।एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा - गैर-लेवी चीनी के अतिरिक्त कोटे का पिछले साल की समान अवधि से कोई अंतर्संबंध नहीं है, लिहाजा इसने मिलों की समस्याओं में इजाफा किया। जनवरी में केंद्र ने चीनी का 17 लाख टन गैर-लेवी कोटा जारी किया था जबकि जनवरी 2010 में यह 11 लाख टन था। फरवरी में 16.2 लाख टन गैर-लेवी कोटा था जबकि फरवरी 2010 में यह 13 लाख टन रहा था। मार्च में यह 13 लाख टन था जबकि एक साल पहले की समान अवधि यानी मार्च 2010 में यह 11.7 लाख टन रहा था। अप्रैल में गैर-लेवी चीनी का कोटा 15.8 लाख टन जारी किया गया है जबकि अप्रैल 2010 में यह 12.8 लाख टन रहा था। मासिक समय-सीमा में इतनी बड़ी मात्रा की बिक्री काफी मुश्किल रही क्योंंकि कुछ महीने में मांग कम थी और कम कीमत के चलते चीनी का उठाव नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त अगर मिलें तय समय सीमा में चीनी की बिक्री में नाकाम रहती हैं तो यह कोटा अपने आप लेवी कोटा में तब्दील हो जाता है और इसमें मिलों को कम से कम 700 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान होता है। इसलिए मिलें अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए थोक मूल्य से नीचे या यहां तक कि एक्स-मिल कीमतों से नीचे चीनी बेचना पसंद करती हैं।उद्योग के सूत्रों का कहना है कि पिछले साल अक्टूबर महीने में शुरू हुए पेराई सीजन से ही मिलों पर वित्तीय दबाव है। साल 2010-11 में 141 सहकारी मिलों ने पेराई सीजन में भागीदारी की। मिलों को औसत लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। अगर हम उपोत्पाद के जरिए मिले राजस्व को भी इसमें समायोजित कर दें तब भी चीनी की बिक्री पर शुद्ध नकद नुकसान 1250 से 1750 रुपये प्रति टन का है और यह पिछले 10 महीने से हो रहा है। इन मिलों को अब तक 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नकद नुकसान हो चुका है और इसके परिणामस्वरूप आने वाले दिनों में इन पर गंभीर वित्तीय दबाव देखने को मिलेगा।पश्चिमी महाराष्ट्र के एक सहकारी मिल के चेयरमैन ने कहा कि उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में हर साल बढ़ोतरी हो रही है और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व कर्नाटक जैसे राज्यों द्वारा कानूनी रूप से न्यूनतम कीमत चुकाए जाने की बाध्यता के उलट उनके द्वारा एफआरपी से ज्यादा का भुगतान किया जा रहा है। (BS Hindi)
नकदी की जरूरतें पूरी करने के लिए महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलें घबराहट में बिकवाली कर रही हैं। पिछले सप्ताह इन मिलों ने 200 करोड़ रुपये कीमत की 8 लाख टन चीनी की बिकवाली की क्योंकि इन्हें गन्ने का भुगतान, कर्मचारियों के वेतन और गन्ने के मालभाड़े के भुगतान के लिए नकदी की जरूरत थी। 2550 रुपये प्रति क्विंटल की एक्स-मिल कीमतों के मुकाबले कुछ मिलों ने 2400 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया। कुछ मिलों ने 2555 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया जबकि एक्स-मिल कीमतें 2730 रुपये प्रति क्विंटल थी। केंद्र द्वारा घोषित अतिरिक्त गैर-लेवी कोटा और भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने की वजह से भी ऐसा हुआ।एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा - गैर-लेवी चीनी के अतिरिक्त कोटे का पिछले साल की समान अवधि से कोई अंतर्संबंध नहीं है, लिहाजा इसने मिलों की समस्याओं में इजाफा किया। जनवरी में केंद्र ने चीनी का 17 लाख टन गैर-लेवी कोटा जारी किया था जबकि जनवरी 2010 में यह 11 लाख टन था। फरवरी में 16.2 लाख टन गैर-लेवी कोटा था जबकि फरवरी 2010 में यह 13 लाख टन रहा था। मार्च में यह 13 लाख टन था जबकि एक साल पहले की समान अवधि यानी मार्च 2010 में यह 11.7 लाख टन रहा था। अप्रैल में गैर-लेवी चीनी का कोटा 15.8 लाख टन जारी किया गया है जबकि अप्रैल 2010 में यह 12.8 लाख टन रहा था। मासिक समय-सीमा में इतनी बड़ी मात्रा की बिक्री काफी मुश्किल रही क्योंंकि कुछ महीने में मांग कम थी और कम कीमत के चलते चीनी का उठाव नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त अगर मिलें तय समय सीमा में चीनी की बिक्री में नाकाम रहती हैं तो यह कोटा अपने आप लेवी कोटा में तब्दील हो जाता है और इसमें मिलों को कम से कम 700 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान होता है। इसलिए मिलें अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए थोक मूल्य से नीचे या यहां तक कि एक्स-मिल कीमतों से नीचे चीनी बेचना पसंद करती हैं।उद्योग के सूत्रों का कहना है कि पिछले साल अक्टूबर महीने में शुरू हुए पेराई सीजन से ही मिलों पर वित्तीय दबाव है। साल 2010-11 में 141 सहकारी मिलों ने पेराई सीजन में भागीदारी की। मिलों को औसत लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। अगर हम उपोत्पाद के जरिए मिले राजस्व को भी इसमें समायोजित कर दें तब भी चीनी की बिक्री पर शुद्ध नकद नुकसान 1250 से 1750 रुपये प्रति टन का है और यह पिछले 10 महीने से हो रहा है। इन मिलों को अब तक 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नकद नुकसान हो चुका है और इसके परिणामस्वरूप आने वाले दिनों में इन पर गंभीर वित्तीय दबाव देखने को मिलेगा।पश्चिमी महाराष्ट्र के एक सहकारी मिल के चेयरमैन ने कहा कि उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में हर साल बढ़ोतरी हो रही है और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व कर्नाटक जैसे राज्यों द्वारा कानूनी रूप से न्यूनतम कीमत चुकाए जाने की बाध्यता के उलट उनके द्वारा एफआरपी से ज्यादा का भुगतान किया जा रहा है। (BS Hindi)
गुजरात व महाराष्ट्र में महंगे होंगे बीटी कपास के बीज
हैदराबाद April 20, 2011
देश में कपास के सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात ने बीटी कपास के बीज की कीमतें बढ़ाने की तैयारी कर ली है, जबकि उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए आंध्र प्रदेश इसकी कीमतें बढ़ाने की घोषणा करने में सकुचा रहा है।बीज कंपनी के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि गुजरात सरकार ने बीटी बीजी-1 व बीजी-2 हाइब्रिड कपास बीज की कीमतें प्रति पैकेट (450 ग्राम) 200 रुपये बढ़ाने का फैसला किया है और जल्द इसकी घोषणा हो सकती है। खरीफ सीजन के दौरान गुजरात में 65 लाख पैकेट बीज की जरूरत होने का अनुमान है, ऐसे में कीमत में बढ़ोतरी से बीज कंपनियों को 130 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी।कपास उत्पादक राज्यों में बीज कंपनियां बीटी कपास के बीज के अधिकतम खुदरा मूल्य में जल्द से जल्द इजाफा करने की मांग कर रहे हैं ताकि नई कीमत की छपाई के साथ इसकी पैकिंग कर सकें और जून में शुरू होने वाले खरीफ सीजन से पहले विभिन्न इलाकों में ऐसे पैकेट की आपूर्ति की जा सके।बुधवार को गुजरात सरकार ने कीमत की बाबत बीज कंपनियों की राय जानने के लिए उनके साथ बैठक की। इसके अलावा देश भर में बीटी कपास के बीज की आपूर्ति में कमी की खबर को देखते हुए कंपनियों से इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के इंतजाम के बारे में भी बात हुई। बीज कंपनियों द्वारा कीमत बढ़ोतरी के निवेदन पर सहमति जताने की बाबत इस कदम को सौदेबाजी के रूप में देखा जा रहा है।वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश सरकार ने बीज नियंत्रण अधिनियम बनाकर कंपनियों को पहली बार 2006 में और फिर 2008 में बीटी कपास की कीमतों में कमी करने के लिए बाध्य किया था। बीजी-1 की कीमतें प्रति पैकेट 1800 रुपये से घटकर 650 रुपये पर आ गई थी जबकि बीजी-2 की कीमतें 925 रुपये से घटकर 750 रुपये पर आ गई थी। अन्य राज्य भी इसी राह पर चल पड़े थे।बीटी कपास के बीज की बढ़ती मांग के साथ बीज उद्योग इसे पूरा करने में सक्षम नजर नहीं आए। कंपनियों ने कहा कि बीटी कपास के बीज की बढ़ती लागत से उनकी लाभदायकता पर असर पड़ रहा है और इसी वजह से वे मांग के मुकाबले आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा पहले ही बीजी-1 की कीमतें 825 रुपये प्रति पैकेट और बीजी-2 की कीमतें 1000 रुपये प्रति पैकेट कर चुका है।जब कंपनियों ने कीमत बढ़ोतरी के लिए राज्यों से संपर्क साधा तब इन राज्यों ने आंध्र प्रदेश की ओर नजरें दौड़ाई ताकि वह इस बाबत कोई फैसला ले सके। क्योंकि आंध्र प्रदेश कंपनियों को आश्वासन देने के बाद भी कीमत में बढ़ोतरी की घोषणा करने में सकुचा रहा है।बीज कंपनियों के मुताबिक, कपास के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में भी जल्द ही बीज की कीमतों में बढ़ोतरी की घोषणा हो सकती है। हालांकि राज्यों में चिंता का विषय बीटी कपास के बीज की आपूर्ति में कमी है। खरीफ 2011 के दौरान करीब 46 लाख पैकेट बीज की कमी की आशंका है। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि कंपनियां उन इलाकों में बीज की ज्यादा आपूर्ति करेगी, जहां इसकी कीमतें ज्यादा हैं। ऐसे में राज्यों को इस मुद्दे पर जल्दी फैसला लेना होगा क्योंकि गुजरात व आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कपास का पूरा रकबा बीटी कपास के तहत आ चुका है। (BS Hindi)
देश में कपास के सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात ने बीटी कपास के बीज की कीमतें बढ़ाने की तैयारी कर ली है, जबकि उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए आंध्र प्रदेश इसकी कीमतें बढ़ाने की घोषणा करने में सकुचा रहा है।बीज कंपनी के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि गुजरात सरकार ने बीटी बीजी-1 व बीजी-2 हाइब्रिड कपास बीज की कीमतें प्रति पैकेट (450 ग्राम) 200 रुपये बढ़ाने का फैसला किया है और जल्द इसकी घोषणा हो सकती है। खरीफ सीजन के दौरान गुजरात में 65 लाख पैकेट बीज की जरूरत होने का अनुमान है, ऐसे में कीमत में बढ़ोतरी से बीज कंपनियों को 130 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी।कपास उत्पादक राज्यों में बीज कंपनियां बीटी कपास के बीज के अधिकतम खुदरा मूल्य में जल्द से जल्द इजाफा करने की मांग कर रहे हैं ताकि नई कीमत की छपाई के साथ इसकी पैकिंग कर सकें और जून में शुरू होने वाले खरीफ सीजन से पहले विभिन्न इलाकों में ऐसे पैकेट की आपूर्ति की जा सके।बुधवार को गुजरात सरकार ने कीमत की बाबत बीज कंपनियों की राय जानने के लिए उनके साथ बैठक की। इसके अलावा देश भर में बीटी कपास के बीज की आपूर्ति में कमी की खबर को देखते हुए कंपनियों से इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के इंतजाम के बारे में भी बात हुई। बीज कंपनियों द्वारा कीमत बढ़ोतरी के निवेदन पर सहमति जताने की बाबत इस कदम को सौदेबाजी के रूप में देखा जा रहा है।वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश सरकार ने बीज नियंत्रण अधिनियम बनाकर कंपनियों को पहली बार 2006 में और फिर 2008 में बीटी कपास की कीमतों में कमी करने के लिए बाध्य किया था। बीजी-1 की कीमतें प्रति पैकेट 1800 रुपये से घटकर 650 रुपये पर आ गई थी जबकि बीजी-2 की कीमतें 925 रुपये से घटकर 750 रुपये पर आ गई थी। अन्य राज्य भी इसी राह पर चल पड़े थे।बीटी कपास के बीज की बढ़ती मांग के साथ बीज उद्योग इसे पूरा करने में सक्षम नजर नहीं आए। कंपनियों ने कहा कि बीटी कपास के बीज की बढ़ती लागत से उनकी लाभदायकता पर असर पड़ रहा है और इसी वजह से वे मांग के मुकाबले आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा पहले ही बीजी-1 की कीमतें 825 रुपये प्रति पैकेट और बीजी-2 की कीमतें 1000 रुपये प्रति पैकेट कर चुका है।जब कंपनियों ने कीमत बढ़ोतरी के लिए राज्यों से संपर्क साधा तब इन राज्यों ने आंध्र प्रदेश की ओर नजरें दौड़ाई ताकि वह इस बाबत कोई फैसला ले सके। क्योंकि आंध्र प्रदेश कंपनियों को आश्वासन देने के बाद भी कीमत में बढ़ोतरी की घोषणा करने में सकुचा रहा है।बीज कंपनियों के मुताबिक, कपास के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में भी जल्द ही बीज की कीमतों में बढ़ोतरी की घोषणा हो सकती है। हालांकि राज्यों में चिंता का विषय बीटी कपास के बीज की आपूर्ति में कमी है। खरीफ 2011 के दौरान करीब 46 लाख पैकेट बीज की कमी की आशंका है। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि कंपनियां उन इलाकों में बीज की ज्यादा आपूर्ति करेगी, जहां इसकी कीमतें ज्यादा हैं। ऐसे में राज्यों को इस मुद्दे पर जल्दी फैसला लेना होगा क्योंकि गुजरात व आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कपास का पूरा रकबा बीटी कपास के तहत आ चुका है। (BS Hindi)
दोगुनी आवक से 12 फीसदी टूटी अरंडी
राजकोट April 19, 2011
कमजोर मांग के बीच आवक दोगुनी होने के कारण पिछले 10 दिनों में अरंडी की कीमतें 12 फीसदी से ज्यादा लुढ़क गई हैं। कारोबारियों को लगता है कि बढ़ती आपूर्ति और कमजोर मांग से इसकी कीमतें और गिर सकती हैं। अरंडी की कीमतें 1025-1050 रुपये प्रति 20 किलोग्राम से गिरकर 920-930 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर आ गई हैं। अहमदाबाद स्थित जिंस विश्लेषक बीरेन वकील ने कहा - किसानों ने यह सोचकर अपना उत्पाद बेचना शुरू कर दिया है कि अरंडी की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होगी। आपूर्ति में किल्लत की वजह से करीब डेढ महीने पहले अरंडी की कीमतें 1300-1320 रुपये प्रति 20 किलोग्राम थीं। कीमतों के उच्चस्तर पर रहने के दौरान किसानों ने अरंडी का स्टॉक इसलिए बनाए रखा कि इसकी कीमतें और बढ़ सकती हैं। लेकिन उच्चस्तर से कीमतें में गिरावट शुरू हो गई क्योंकि मांग में कमी आ गई थी। कीमतों में गिरावट को देखते हुए किसान अपना स्टॉक खाली करने को बाध्य हो गए।कारोबारियों के मुताबिक, अगले एक महीने तक अरंडी की आवक में मजबूती बनी रह सकती है और यह 1.3 लाख बोरी से 1.40 लाख बोरी तक हो सकती है। उन्होंने कहा कि मई में आवक में कमी शुरू हो सकती है। बीरेन वकील ने कहा कि जब तक चीन की मांग सामने नहीं आती, अरंडी की कीमतें गिरावट का रुख ही दर्शाएगी। अगले एख महीने तक इसमें तेजी की संभावना नहीं है। उसके बाद बाजार मांग पर निर्भर करेगा।राजकोट के कारोबारी हरिभाई पटेल ने कहा - हाजिर बाजार में मांग काफी कम है। एक ओर जहां बाजार में अरंडी की खरीद के लिए निर्यातक सामने नहीं आ रहे हैं, वहीं इसकी आवक काफी ज्यादा है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से कीमतें गिर रही हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल इसकी कीमतों में उछाल की कोई वजह नहीं है।राजकोठ कमोडिटी एक्सचेंज (आरसीएक्स) के प्रेसिडेंट राजूभाई पोबारू ने कहा - निर्यात मांग मई के मध्य से शुरू होने की संभावना है, तब तक कीमतों में गिरावट जारी रहेगी। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के सर्वे के मुताबिक, साल 2010-11 में अरंडी का रकबा 14 फीसदी बढ़कर 8.59 लाख हेकक्टेयर पर पहुंच गया है।साल 2010-11 में अरंडी का कुल उत्पादन 11.90 लाख टन रहने की संभावना है, जो पिछले साल के 9.78 लाख टन के मुकाबले 22 फीसदी ज्यादा है। (BS Hindi)
कमजोर मांग के बीच आवक दोगुनी होने के कारण पिछले 10 दिनों में अरंडी की कीमतें 12 फीसदी से ज्यादा लुढ़क गई हैं। कारोबारियों को लगता है कि बढ़ती आपूर्ति और कमजोर मांग से इसकी कीमतें और गिर सकती हैं। अरंडी की कीमतें 1025-1050 रुपये प्रति 20 किलोग्राम से गिरकर 920-930 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर आ गई हैं। अहमदाबाद स्थित जिंस विश्लेषक बीरेन वकील ने कहा - किसानों ने यह सोचकर अपना उत्पाद बेचना शुरू कर दिया है कि अरंडी की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होगी। आपूर्ति में किल्लत की वजह से करीब डेढ महीने पहले अरंडी की कीमतें 1300-1320 रुपये प्रति 20 किलोग्राम थीं। कीमतों के उच्चस्तर पर रहने के दौरान किसानों ने अरंडी का स्टॉक इसलिए बनाए रखा कि इसकी कीमतें और बढ़ सकती हैं। लेकिन उच्चस्तर से कीमतें में गिरावट शुरू हो गई क्योंकि मांग में कमी आ गई थी। कीमतों में गिरावट को देखते हुए किसान अपना स्टॉक खाली करने को बाध्य हो गए।कारोबारियों के मुताबिक, अगले एक महीने तक अरंडी की आवक में मजबूती बनी रह सकती है और यह 1.3 लाख बोरी से 1.40 लाख बोरी तक हो सकती है। उन्होंने कहा कि मई में आवक में कमी शुरू हो सकती है। बीरेन वकील ने कहा कि जब तक चीन की मांग सामने नहीं आती, अरंडी की कीमतें गिरावट का रुख ही दर्शाएगी। अगले एख महीने तक इसमें तेजी की संभावना नहीं है। उसके बाद बाजार मांग पर निर्भर करेगा।राजकोट के कारोबारी हरिभाई पटेल ने कहा - हाजिर बाजार में मांग काफी कम है। एक ओर जहां बाजार में अरंडी की खरीद के लिए निर्यातक सामने नहीं आ रहे हैं, वहीं इसकी आवक काफी ज्यादा है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से कीमतें गिर रही हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल इसकी कीमतों में उछाल की कोई वजह नहीं है।राजकोठ कमोडिटी एक्सचेंज (आरसीएक्स) के प्रेसिडेंट राजूभाई पोबारू ने कहा - निर्यात मांग मई के मध्य से शुरू होने की संभावना है, तब तक कीमतों में गिरावट जारी रहेगी। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के सर्वे के मुताबिक, साल 2010-11 में अरंडी का रकबा 14 फीसदी बढ़कर 8.59 लाख हेकक्टेयर पर पहुंच गया है।साल 2010-11 में अरंडी का कुल उत्पादन 11.90 लाख टन रहने की संभावना है, जो पिछले साल के 9.78 लाख टन के मुकाबले 22 फीसदी ज्यादा है। (BS Hindi)
काजू निर्यात में 5 फीसदी की गिरावट
बेंगलुरु April 20, 2011
घरेलू बाजार में मजबूत मांग और कच्चे काजू की किल्लत की वजह से वित्त वर्ष 2010-11 में काजू का निर्यात नरम रहा। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है और पिछले वित्त वर्ष में कुल निर्यात में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और कुल मात्रा 1 लाख टन से थोड़ी ज्यादा रही। साल 2009-10 में देश से 1,08,120 टन काजू का निर्यात हुआ था।हालांकि वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाला काजू निर्यात संवर्धन परिषद विभिन्न बंदरगाहों पर मौजूद सीमा शुल्क कार्यालयों से आंकड़ों का संकलन अभी नहीं कर पाया है, लेकिन उद्योग के विशेषज्ञों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2010-11 में कुल निर्यात 1.02 लाख टन से 1.05 लाख टन के बीच रह सकता है। कीमत के हिसाब से भारतीय निर्यातकों की आय हालांकि 10 फीसदी से ज्यादा बढऩे का अनुमान है और यह 3200 करोड़ रुपये रह सकता है जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 2906 करोड़ रुपये रहा था।मुंबई के एक कारोबारी पंकज संपत ने बताया - मुख्यत: अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की तरफ से मांग में सुस्ती की वजह से पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय काजू की हिस्सेदारी घटती रही है। जापान से मांग में बढ़त स्थिर रही है, वहीं ऑस्ट्रेलिया की तरफ से खरीदारी नगण्य रही है। उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से पश्चिम एशिया व अरब देशों से मांग में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। भारतीय निर्यातकों के लिए निर्यात भाव पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी बढ़कर 350 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल निर्यात भाव यानी निर्यात से मिलने वाली कीमत 275 रुपये प्रति किलोग्राम थी। निर्यात में गिरावट की दूसरी मुख्य वजह कच्चे काजू की किल्लत है। उन्होंने कहा कि पश्चिम अफ्रीकी देशों से आपूर्ति की स्थिति काफी सख्त है। घरेलू फसल की कटाई अभी शुरू हुई है और शुरुआती अनुमान के मुताबिक करीब 5 लाख टन काजू का उत्पादन हो सकता है।इस साल कर्नाटक व केरल में फसल सामान्य रहने की खबर है, वहीं महाराष्ट्र, गोवा व कोंकण क्षेत्र में यह सामान्य से कम रहेगा। काजू व कोकोआ विकास निदेशालय का अनुमान है कि इस साल 7 लाख टन काजू का उत्पादन होगा, जो पिछले साल के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा है। इस साल काजू का रकबा 9.2 लाख हेक्टेयर रहा है जबकि पिछले साल 8.9 लाख हेक्टेयर था। इस तरह इसमें 3.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। निदेशालय पिछले तीन साल से हर साल रकबे में करीब 20,000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी करता रहा है।मंगलूर के एक निर्यातक ने कहा - निर्यात में सुस्ती की वजह से निर्यातक बहुत ज्यादा परेशान नहीं हैं क्योंकि घरेलू बाजार से उन्हें भारी भरकम रिटर्न मिल रहा है। लोगों की बढ़ती आय की वजह से देश में काजू की खपत में बढ़ोतरी हो रही है। घरेलू बाजार में गुणवत्ता के हिसाब से काजू की कीमतें 375 रुपये प्रति किलोग्राम से 475 रुपये प्रति किलोग्राम हैं। (BS Hindi)
घरेलू बाजार में मजबूत मांग और कच्चे काजू की किल्लत की वजह से वित्त वर्ष 2010-11 में काजू का निर्यात नरम रहा। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है और पिछले वित्त वर्ष में कुल निर्यात में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और कुल मात्रा 1 लाख टन से थोड़ी ज्यादा रही। साल 2009-10 में देश से 1,08,120 टन काजू का निर्यात हुआ था।हालांकि वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाला काजू निर्यात संवर्धन परिषद विभिन्न बंदरगाहों पर मौजूद सीमा शुल्क कार्यालयों से आंकड़ों का संकलन अभी नहीं कर पाया है, लेकिन उद्योग के विशेषज्ञों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2010-11 में कुल निर्यात 1.02 लाख टन से 1.05 लाख टन के बीच रह सकता है। कीमत के हिसाब से भारतीय निर्यातकों की आय हालांकि 10 फीसदी से ज्यादा बढऩे का अनुमान है और यह 3200 करोड़ रुपये रह सकता है जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 2906 करोड़ रुपये रहा था।मुंबई के एक कारोबारी पंकज संपत ने बताया - मुख्यत: अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की तरफ से मांग में सुस्ती की वजह से पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय काजू की हिस्सेदारी घटती रही है। जापान से मांग में बढ़त स्थिर रही है, वहीं ऑस्ट्रेलिया की तरफ से खरीदारी नगण्य रही है। उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से पश्चिम एशिया व अरब देशों से मांग में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। भारतीय निर्यातकों के लिए निर्यात भाव पिछले साल के मुकाबले 27 फीसदी बढ़कर 350 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल निर्यात भाव यानी निर्यात से मिलने वाली कीमत 275 रुपये प्रति किलोग्राम थी। निर्यात में गिरावट की दूसरी मुख्य वजह कच्चे काजू की किल्लत है। उन्होंने कहा कि पश्चिम अफ्रीकी देशों से आपूर्ति की स्थिति काफी सख्त है। घरेलू फसल की कटाई अभी शुरू हुई है और शुरुआती अनुमान के मुताबिक करीब 5 लाख टन काजू का उत्पादन हो सकता है।इस साल कर्नाटक व केरल में फसल सामान्य रहने की खबर है, वहीं महाराष्ट्र, गोवा व कोंकण क्षेत्र में यह सामान्य से कम रहेगा। काजू व कोकोआ विकास निदेशालय का अनुमान है कि इस साल 7 लाख टन काजू का उत्पादन होगा, जो पिछले साल के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा है। इस साल काजू का रकबा 9.2 लाख हेक्टेयर रहा है जबकि पिछले साल 8.9 लाख हेक्टेयर था। इस तरह इसमें 3.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। निदेशालय पिछले तीन साल से हर साल रकबे में करीब 20,000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी करता रहा है।मंगलूर के एक निर्यातक ने कहा - निर्यात में सुस्ती की वजह से निर्यातक बहुत ज्यादा परेशान नहीं हैं क्योंकि घरेलू बाजार से उन्हें भारी भरकम रिटर्न मिल रहा है। लोगों की बढ़ती आय की वजह से देश में काजू की खपत में बढ़ोतरी हो रही है। घरेलू बाजार में गुणवत्ता के हिसाब से काजू की कीमतें 375 रुपये प्रति किलोग्राम से 475 रुपये प्रति किलोग्राम हैं। (BS Hindi)
पंजाब और हरियाणा में बढ़ेगा कपास का रकबा!
चंडीगढ़ April 21, 2011
बेहतर मॉनसून, अनुकूल मौसम और अच्छी कीमतों के चलते उत्तर भारत के दो राज्यों पंजाब व हरियाणा में कपास का रकबा बढऩे की संभावना है। अधिकारियों के मुताबिक, अनुकूल परिस्थितियों के चलते दोनों राज्यों में रकबे में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। पंजाब-हरियाणा में कपास की बुआई सामान्यत: अप्रैल के आखिरी हफ्ते में शुरू होती है। हरियाणा के अधिकारियों के मुताबिक, इस साल यहां कपास के रकबे का लक्ष्य 5.50 लाख हेक्टेयर रखा गया है जबकि पिछले साल 4.92 लाख हेक्टेयर था। पिछले कुछ सालों से हरियाणा में कपास के रकबे का लक्ष्य 6 लाख हेक्टेयर रखा जाता रहा है जबकि यह सिर्फ 1990 के दशक में एक बार हासिल हुआ था। इस बार लक्ष्य को संशोधित कर 5.5 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इस बार कपास का रकबा कई वजहों से लक्ष्य को पार कर जाएगा।पिछले साल सूखे की वजह से कपास का रकबा कम हुआ था। लंबे समय तक सूखे के चलते किसान सिंचाई का इंतजाम करने लगे थे, लेकिन भूजल का गिरता स्तर एक अन्य समस्या थी। हालांकि पिछले मॉनसून से बारिश की स्थिति में सुधार हुआ है और इस साल भी मॉनसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की गई है।पंजाब और हरियाणा के किसानों ने पिछले साल कपास की फसल के अच्छा मुनाफा हासिल किया है। कपास की आधिकारिक कीमतों के मुताबिक, इसमें 100 फीसदी की उछाल आई है और किसानों को 7000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला है। अधिकारियों को उम्मीद है कि बेहतर रकम के चलते दोनों राज्यों के कपास उत्पादक इसके रकबे में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इसी तरह पंजाब ने पिछले साल 4.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई का लक्ष्य हासिल किया था।पवार ने की निर्यात सीमा बढ़ाने की वकालतकपास की घटती कीमतों को देख केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने एक बार फिर से इसके अधिकतम 55 लाख गांठ की निर्यात सीमा को हटाने की बात उठाई है। एक गांठ में 170 किलोग्राम कपास होता है।अधिकारियों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में पवार ने कहा है कि कपास निर्यात की सीमा को नहीं बढ़ाए जाने की वजह से किसानों को उनकी फसल का उचित रिटर्न नहीं मिल रहा है। इस महीने की शुरुआत में भी पवार ने यह मांग की थी। चालू सीजन के लिए सरकार ने 55 लाख गांठ निर्यात की सीमा तय कर रखी है।हालांकि, घरेलू कीमतें बढऩे का तर्क देकर कपड़ा मंत्रालय निर्यात सीमा हटाने का विरोध करता रहा है। वहीं पवार का कहना है कि इस साल पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी अधिक यानी 3.39 करोड़ टन कपास उत्पादन की संभावना है, ऐसे में निर्यात करने के लिए पर्याप्त मात्रा में अतिरिक्त कपास उपलब्ध है। (BS Hindi)
बेहतर मॉनसून, अनुकूल मौसम और अच्छी कीमतों के चलते उत्तर भारत के दो राज्यों पंजाब व हरियाणा में कपास का रकबा बढऩे की संभावना है। अधिकारियों के मुताबिक, अनुकूल परिस्थितियों के चलते दोनों राज्यों में रकबे में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। पंजाब-हरियाणा में कपास की बुआई सामान्यत: अप्रैल के आखिरी हफ्ते में शुरू होती है। हरियाणा के अधिकारियों के मुताबिक, इस साल यहां कपास के रकबे का लक्ष्य 5.50 लाख हेक्टेयर रखा गया है जबकि पिछले साल 4.92 लाख हेक्टेयर था। पिछले कुछ सालों से हरियाणा में कपास के रकबे का लक्ष्य 6 लाख हेक्टेयर रखा जाता रहा है जबकि यह सिर्फ 1990 के दशक में एक बार हासिल हुआ था। इस बार लक्ष्य को संशोधित कर 5.5 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इस बार कपास का रकबा कई वजहों से लक्ष्य को पार कर जाएगा।पिछले साल सूखे की वजह से कपास का रकबा कम हुआ था। लंबे समय तक सूखे के चलते किसान सिंचाई का इंतजाम करने लगे थे, लेकिन भूजल का गिरता स्तर एक अन्य समस्या थी। हालांकि पिछले मॉनसून से बारिश की स्थिति में सुधार हुआ है और इस साल भी मॉनसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की गई है।पंजाब और हरियाणा के किसानों ने पिछले साल कपास की फसल के अच्छा मुनाफा हासिल किया है। कपास की आधिकारिक कीमतों के मुताबिक, इसमें 100 फीसदी की उछाल आई है और किसानों को 7000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला है। अधिकारियों को उम्मीद है कि बेहतर रकम के चलते दोनों राज्यों के कपास उत्पादक इसके रकबे में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इसी तरह पंजाब ने पिछले साल 4.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई का लक्ष्य हासिल किया था।पवार ने की निर्यात सीमा बढ़ाने की वकालतकपास की घटती कीमतों को देख केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने एक बार फिर से इसके अधिकतम 55 लाख गांठ की निर्यात सीमा को हटाने की बात उठाई है। एक गांठ में 170 किलोग्राम कपास होता है।अधिकारियों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में पवार ने कहा है कि कपास निर्यात की सीमा को नहीं बढ़ाए जाने की वजह से किसानों को उनकी फसल का उचित रिटर्न नहीं मिल रहा है। इस महीने की शुरुआत में भी पवार ने यह मांग की थी। चालू सीजन के लिए सरकार ने 55 लाख गांठ निर्यात की सीमा तय कर रखी है।हालांकि, घरेलू कीमतें बढऩे का तर्क देकर कपड़ा मंत्रालय निर्यात सीमा हटाने का विरोध करता रहा है। वहीं पवार का कहना है कि इस साल पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी अधिक यानी 3.39 करोड़ टन कपास उत्पादन की संभावना है, ऐसे में निर्यात करने के लिए पर्याप्त मात्रा में अतिरिक्त कपास उपलब्ध है। (BS Hindi)
21 अप्रैल 2011
सामान्य मानसून से महंगाई कम होने की सम्भावना
नई दिल्ली। सामान्य मानसून होने से इस वर्ष सरकार को खाद्य और समग्र महंगाई दर को काबू में रखने में कुछ मदद मिलने की सम्भावना है। बारिश पर 60 फीसदी निर्भर देश की कृषि में भी इस वर्ष अर्थशास्त्रियों ने तीन फीसदी से अधिक की दर से विकास होने की सम्भावना जताई है।
जून से सितम्बर महीने के लिए मौसम का दीर्घकालिक पूर्वानुमान जारी करते हुए केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं भूविज्ञान मंत्री पवन कुमार बंसल ने यहां मंगलवार को कहा कि 98 फीसदी मानसूनी बारिश के साथ इस वर्ष मानसून के सामान्य रहने की सम्भावना है।
उन्होंने भारतीय मौसम विभाग का हवाला देकर कहा, "मानसून के असामान्य रहने, यानी, 90 फीसदी से कम या 110 फीसदी से अधिक रहने की बहुत कम सम्भावना है। पांच फीसदी तकनीकी गलती के साथ इस साल मानसून लगभग 98 फीसदी रहने की आशा है।"
खाद्य महंगाई की दर में हालांकि लगातार तीन हफ्तों से गिरावट देखी जा रही है, फिर भी दो अप्रैल को समाप्त सप्ताह में यह 8.28 फीसदी दर्ज की गई। समग्र महंगाई दर मार्च महीने में 8.98 फीसदी दर्ज की गई है। IBN karobar
जून से सितम्बर महीने के लिए मौसम का दीर्घकालिक पूर्वानुमान जारी करते हुए केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं भूविज्ञान मंत्री पवन कुमार बंसल ने यहां मंगलवार को कहा कि 98 फीसदी मानसूनी बारिश के साथ इस वर्ष मानसून के सामान्य रहने की सम्भावना है।
उन्होंने भारतीय मौसम विभाग का हवाला देकर कहा, "मानसून के असामान्य रहने, यानी, 90 फीसदी से कम या 110 फीसदी से अधिक रहने की बहुत कम सम्भावना है। पांच फीसदी तकनीकी गलती के साथ इस साल मानसून लगभग 98 फीसदी रहने की आशा है।"
खाद्य महंगाई की दर में हालांकि लगातार तीन हफ्तों से गिरावट देखी जा रही है, फिर भी दो अप्रैल को समाप्त सप्ताह में यह 8.28 फीसदी दर्ज की गई। समग्र महंगाई दर मार्च महीने में 8.98 फीसदी दर्ज की गई है। IBN karobar
कम गर्मी के बीच इस साल रहेगा सामान्य मानसून
मौसम विभाग ने इस साल सामान्य मानसून रहने की भविष्यवाणी की है हालांकि मध्य अप्रैल तक मौसम में नमी बने रहना और तापमान का नहीं बढ़ना देश में समय पर मानसून के प्रवेश की दिशा में कुछ बाधा उत्पन्न कर सकता है.
मानसून में बाधा उत्पन्न होने के बारे में पूछे जाने पर मौसम विभाग के महानिदेशक अजीत त्यागी ने कहा, ‘अभी इस विषय पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यदि कुछ समय ऐसा ही मौसम रहा तो कुछ प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि अभी अप्रैल है और गर्मी आयेगी.’
उन्होंने कहा, ‘हमने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में कम गर्मी पड़ेगी.’ नमी भरे मौसम एवं अपेक्षाकृत कम तापमान के कारण मानसून प्रभावित होने से किसानों के समय पर बुवाई नहीं होने की आशंका के बारे में पूछे जाने पर पृथ्वी विज्ञान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा, ‘इस साल सामान्य मानसून रहेगा. अभी जरूर गर्मी नहीं आई है लेकिन मई-जून में गर्मी पड़ेगी और वर्षा होगी. मानसून आने पर किसान बुवाई करेंगे जिसके बारे में वैज्ञानिक आकलन सामान्य रहने की उम्मीद है.’
उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर केरल में मानसून एक जून तक प्रवेश करता है और दिल्ली में इसका 29 जून को प्रवेश होता है. दक्षिण पश्चिम मानसून 2011 के आकलन को पेश करते हुए बंसल ने कहा कि जून से सितंबर तक देश में सामान्य मानसून रहेगा जो जिसका दीर्घावधि प्रतिशत (96 से 104) रहने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि दीर्घावधि प्रतिशत अगर 90 से कम होता है तो कम वर्षा की आशंका रहती है. बंसल ने कहा कि मात्रात्मक रूप में इस वर्ष दीर्घावधि प्रतिशत के रूप में देशभर में 98 प्रतिशत वर्षा होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि मौमस विभाग जून 2011 में मानसून के बारे में एक और पूर्वानुमान जारी करेगा.
मंत्री ने कहा कि 2009 में सामने आये अल निनो प्रभाव के कमजोर होने के बाद उत्पन्न ला निना प्रभाव भी अब कमजोर हो रहा है जो जून 2011 तक जारी रहेगा. इसके बाद यह ‘एन्सो’ स्थिति (अप्रभावी स्थिति) में तब्दील होगा. एन्सो स्थिति और हिन्द महासागर में तापमान जैसे कारकों का भारत में मानसून पर प्रभाव पड़ता है.
उन्होंने कहा कि हिन्द महासागर में हाल की घटनाओं के कारण कमजोर नकारात्मक डाइपोल उत्पन्न होने की संभावना है हालांकि इसका भारत में मानसून पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा. इससे पहले, मौसम विभाग ने अन्य वर्षों की तुलना में इस साल कम गर्मी पड़ने और चिलचिलाती धूप वाले दिनों की संख्या कम होने की भविष्यवाणी की थी.
मौसम विभाग (आईएमडी) कहा था कि जहां तक अप्रैल में गर्मी का प्रश्न है, पूरे उत्तर भारत में अप्रैल माह में तापमान 38 से 40 डिग्री सेल्सियस बने रहने की उम्मीद है. देश के पूर्वी हिस्से में तापमान सामान्य से एक से दो डिग्री कम रहेगा जबकि कुछ क्षेत्रो में यह 3 से 4 डिग्री कम होगा.
प्रायद्वीपीय एवं मध्य भारत में तापमान सामान्य बना रहेगा. त्यागी ने मानसून पर विभिन्न कारकों के प्रभाव के बारे में कहा, ‘प्रशांत महासागर में ला नीनो और अल नीनो प्रभाव का मानसून पर असर पड़ता है. पिछले ला निनो का देश में मानसून पर अच्छा प्रभाव पड़ा था. ला नीनो प्रभाव अब कमजोर हो रहा है लेकिन यह मई-जून तक जारी रह सकता है. आने वाले मानसून पर हालांकि इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.’ (Aaj Tak)
मानसून में बाधा उत्पन्न होने के बारे में पूछे जाने पर मौसम विभाग के महानिदेशक अजीत त्यागी ने कहा, ‘अभी इस विषय पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यदि कुछ समय ऐसा ही मौसम रहा तो कुछ प्रभाव पड़ सकता है. हालांकि अभी अप्रैल है और गर्मी आयेगी.’
उन्होंने कहा, ‘हमने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में कम गर्मी पड़ेगी.’ नमी भरे मौसम एवं अपेक्षाकृत कम तापमान के कारण मानसून प्रभावित होने से किसानों के समय पर बुवाई नहीं होने की आशंका के बारे में पूछे जाने पर पृथ्वी विज्ञान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा, ‘इस साल सामान्य मानसून रहेगा. अभी जरूर गर्मी नहीं आई है लेकिन मई-जून में गर्मी पड़ेगी और वर्षा होगी. मानसून आने पर किसान बुवाई करेंगे जिसके बारे में वैज्ञानिक आकलन सामान्य रहने की उम्मीद है.’
उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर केरल में मानसून एक जून तक प्रवेश करता है और दिल्ली में इसका 29 जून को प्रवेश होता है. दक्षिण पश्चिम मानसून 2011 के आकलन को पेश करते हुए बंसल ने कहा कि जून से सितंबर तक देश में सामान्य मानसून रहेगा जो जिसका दीर्घावधि प्रतिशत (96 से 104) रहने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि दीर्घावधि प्रतिशत अगर 90 से कम होता है तो कम वर्षा की आशंका रहती है. बंसल ने कहा कि मात्रात्मक रूप में इस वर्ष दीर्घावधि प्रतिशत के रूप में देशभर में 98 प्रतिशत वर्षा होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि मौमस विभाग जून 2011 में मानसून के बारे में एक और पूर्वानुमान जारी करेगा.
मंत्री ने कहा कि 2009 में सामने आये अल निनो प्रभाव के कमजोर होने के बाद उत्पन्न ला निना प्रभाव भी अब कमजोर हो रहा है जो जून 2011 तक जारी रहेगा. इसके बाद यह ‘एन्सो’ स्थिति (अप्रभावी स्थिति) में तब्दील होगा. एन्सो स्थिति और हिन्द महासागर में तापमान जैसे कारकों का भारत में मानसून पर प्रभाव पड़ता है.
उन्होंने कहा कि हिन्द महासागर में हाल की घटनाओं के कारण कमजोर नकारात्मक डाइपोल उत्पन्न होने की संभावना है हालांकि इसका भारत में मानसून पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा. इससे पहले, मौसम विभाग ने अन्य वर्षों की तुलना में इस साल कम गर्मी पड़ने और चिलचिलाती धूप वाले दिनों की संख्या कम होने की भविष्यवाणी की थी.
मौसम विभाग (आईएमडी) कहा था कि जहां तक अप्रैल में गर्मी का प्रश्न है, पूरे उत्तर भारत में अप्रैल माह में तापमान 38 से 40 डिग्री सेल्सियस बने रहने की उम्मीद है. देश के पूर्वी हिस्से में तापमान सामान्य से एक से दो डिग्री कम रहेगा जबकि कुछ क्षेत्रो में यह 3 से 4 डिग्री कम होगा.
प्रायद्वीपीय एवं मध्य भारत में तापमान सामान्य बना रहेगा. त्यागी ने मानसून पर विभिन्न कारकों के प्रभाव के बारे में कहा, ‘प्रशांत महासागर में ला नीनो और अल नीनो प्रभाव का मानसून पर असर पड़ता है. पिछले ला निनो का देश में मानसून पर अच्छा प्रभाव पड़ा था. ला नीनो प्रभाव अब कमजोर हो रहा है लेकिन यह मई-जून तक जारी रह सकता है. आने वाले मानसून पर हालांकि इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.’ (Aaj Tak)
19 अप्रैल 2011
उठने लगी हैं जीरे में भी लहरें
मुंबई April 17, 2011
घरेलू और वैश्विक हालात से अब यह साफ है कि जीरे की कीमतों में गिरावट का दौर खत्म हो गया है। उत्पादन कम होने की आशंका के कारण विदेशी बाजारों में जीरे की कीमतें ऊंची हो गई हैं। इसका असर घरेलू बाजार पर भी पड़ सकता है।पिछले एक महीने में जीरे की कीमतों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। जीरे की सबसे बड़ी मंडी ऊंझा (गुजरात) में एक महीने पहले जीरा 16,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था जबकि 15 अप्रैल को इसका भाव 15,585 रुपये क्ंिवटल था। जियोजित कॉमटे्रड के प्रमुख विशेषज्ञ आनंद जेम्स के अनुसार नई फसल की मंडियों में आवक अच्छी थी लेकिन अब आवक कमजोर पडऩे लगी है। गुरुवार को मंडियों में 30,000 बोरी (एक बोरी बराबर 55 किलोग्राम) जीरा पहुंचा जबकि बीते सोमवार को 32,000 बोरियां आई थीं। इससे पिछले सप्ताह में हर रोज 40,000 बोरी जीरे की आवक हो रही थी।ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं कि जीरे में गिरावट का दौर खत्म हो चुका है क्योंकि मंडियों में आवक कमजोर हो चुकी है और मांग में तेजी बनी हुई है। विदेशी रुझानों का असर भी घरेलू बाजार पर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय जीरे के दाम 3340-3400 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं जबकि घरेलू बाजार में 3150-3200 डॉलर। इस साल देश में 24-25 लाख बोरी जीरा उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल करीब 29 लाख बोरी जीरे का उत्पादन हुआ था। इस बार पिछले साल का (कैरी फॉरवर्ड) स्टॉक भी चार लाख बोरी ही है जबकि पिछले साल करीब 10 लाख बोरी का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक था। कम उत्पादन की वजह दिसंबर में गुजरात में असमय बरसात को माना जा रहा है। इस असर फसल पर पड़ा और उत्पादन करीब 25 फीसदी घटा। जो फसल मंडियों में आ रही है, उसकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। उधर, तुर्की और सीरिया में भी फसल कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं। तुर्की में नई फसल मई के अंतिम सप्ताह तक मंडियों में आ पाएगी, तभी पता चलेगा कि उत्पादन कितना कम हुआ है। (BS Hindi)
घरेलू और वैश्विक हालात से अब यह साफ है कि जीरे की कीमतों में गिरावट का दौर खत्म हो गया है। उत्पादन कम होने की आशंका के कारण विदेशी बाजारों में जीरे की कीमतें ऊंची हो गई हैं। इसका असर घरेलू बाजार पर भी पड़ सकता है।पिछले एक महीने में जीरे की कीमतों में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। जीरे की सबसे बड़ी मंडी ऊंझा (गुजरात) में एक महीने पहले जीरा 16,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था जबकि 15 अप्रैल को इसका भाव 15,585 रुपये क्ंिवटल था। जियोजित कॉमटे्रड के प्रमुख विशेषज्ञ आनंद जेम्स के अनुसार नई फसल की मंडियों में आवक अच्छी थी लेकिन अब आवक कमजोर पडऩे लगी है। गुरुवार को मंडियों में 30,000 बोरी (एक बोरी बराबर 55 किलोग्राम) जीरा पहुंचा जबकि बीते सोमवार को 32,000 बोरियां आई थीं। इससे पिछले सप्ताह में हर रोज 40,000 बोरी जीरे की आवक हो रही थी।ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं कि जीरे में गिरावट का दौर खत्म हो चुका है क्योंकि मंडियों में आवक कमजोर हो चुकी है और मांग में तेजी बनी हुई है। विदेशी रुझानों का असर भी घरेलू बाजार पर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय जीरे के दाम 3340-3400 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं जबकि घरेलू बाजार में 3150-3200 डॉलर। इस साल देश में 24-25 लाख बोरी जीरा उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल करीब 29 लाख बोरी जीरे का उत्पादन हुआ था। इस बार पिछले साल का (कैरी फॉरवर्ड) स्टॉक भी चार लाख बोरी ही है जबकि पिछले साल करीब 10 लाख बोरी का कैरी फॉरवर्ड स्टॉक था। कम उत्पादन की वजह दिसंबर में गुजरात में असमय बरसात को माना जा रहा है। इस असर फसल पर पड़ा और उत्पादन करीब 25 फीसदी घटा। जो फसल मंडियों में आ रही है, उसकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। उधर, तुर्की और सीरिया में भी फसल कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं। तुर्की में नई फसल मई के अंतिम सप्ताह तक मंडियों में आ पाएगी, तभी पता चलेगा कि उत्पादन कितना कम हुआ है। (BS Hindi)
कम हुई तांबे की ऐंठन
नई दिल्ली April 18, 2011
विदेश में तांबे की मांग कमजोर होने से इसके भाव में गिरावट आई है। पर चीन, जापान, यूरोप, अमेरिका में तांबे की मांग कम हो गई है। धातु विश्लेषकों का कहना है कि महंगाई को काबू करने के लिए कई देश ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। इससे अंतरराष्टï्रीय बाजार में तांबे की मांग कम हुई हैं, जिससे लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई)में तांबे का स्टॉक बढ़ रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक अगले दो-तीन महीनों तक तांबे की मांग कमजोर ही रहने के आसार हैं। ऐसे में इसकी कीमतों में और गिरावट आ सकती है। चीन में तांबे के आयात में सालाना 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।पिछले 10 दिन में एलएमई पर तांबे का भाव 9,895 डॉलर प्रति टन से घटकर 9,435 डॉलर प्रति टन हो गया है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अप्रैल अनुबंध तांबे का भाव 440 रुपये प्रति किलो से घटकर 417 रुपये प्रति किलो रह गया है।ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठï धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'चीन, यूरोप, जापान से तांबे की खरीद कमजोर पड़ी है, जिससे इसकी कीमतों में नरमी का रुख दिख रहा है।' इस बारे में कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने बताया, 'कई देशों ने महंगाई पर काबू करने के लिए ब्याज दरों में इजाफा किया है। इस वजह से बाजार में तरलता कम हुई है, जिसका असर धातुओं की खरीद पर भी पड़ रहा है।'तांबे की खरीद घटने से एलएमई में इसका स्टॉक लगातार बढ़कर 10 महीने के उच्चतम स्तर को छू चुका है। पिछले 10 दिन में यह स्टॉक 5,000 टन से ज्यादा बढ़कर 4,50,425 टन हो गया है। हाल ही में जारी इंटरनैशनल कॉपर स्टडी ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार जापान में भूकंप, पश्चिम एशिया में राजनीतिक उथलपुथल, मौद्रिक नीति में बदलाव का तांबे पर नकारात्मक असर पड़ा है। इसके मुताबिक 2011 में तांबे का खनन उत्पादन 4.6 फीसदी बढऩे का अनुमान है। शर्मा का कहना है कि अगले दो-तीन हफ्ते में एमसीएक्स पर तांबे के भाव घटकर 390 रुपये प्रति किलो तक आ सकते हैं। मॉनसून सत्र और जापान में निर्माण में तेजी आने पर तांबे की मांग बढ़ सकती है। गुप्ता कहते हैं कि यूरो के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है, इस कारण तांबे का भाव नरम रह सकता है। दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में तांबे के दाम गिरने से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें घट गई हैं। (BS Hindi)
विदेश में तांबे की मांग कमजोर होने से इसके भाव में गिरावट आई है। पर चीन, जापान, यूरोप, अमेरिका में तांबे की मांग कम हो गई है। धातु विश्लेषकों का कहना है कि महंगाई को काबू करने के लिए कई देश ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। इससे अंतरराष्टï्रीय बाजार में तांबे की मांग कम हुई हैं, जिससे लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई)में तांबे का स्टॉक बढ़ रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक अगले दो-तीन महीनों तक तांबे की मांग कमजोर ही रहने के आसार हैं। ऐसे में इसकी कीमतों में और गिरावट आ सकती है। चीन में तांबे के आयात में सालाना 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।पिछले 10 दिन में एलएमई पर तांबे का भाव 9,895 डॉलर प्रति टन से घटकर 9,435 डॉलर प्रति टन हो गया है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अप्रैल अनुबंध तांबे का भाव 440 रुपये प्रति किलो से घटकर 417 रुपये प्रति किलो रह गया है।ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठï धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'चीन, यूरोप, जापान से तांबे की खरीद कमजोर पड़ी है, जिससे इसकी कीमतों में नरमी का रुख दिख रहा है।' इस बारे में कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने बताया, 'कई देशों ने महंगाई पर काबू करने के लिए ब्याज दरों में इजाफा किया है। इस वजह से बाजार में तरलता कम हुई है, जिसका असर धातुओं की खरीद पर भी पड़ रहा है।'तांबे की खरीद घटने से एलएमई में इसका स्टॉक लगातार बढ़कर 10 महीने के उच्चतम स्तर को छू चुका है। पिछले 10 दिन में यह स्टॉक 5,000 टन से ज्यादा बढ़कर 4,50,425 टन हो गया है। हाल ही में जारी इंटरनैशनल कॉपर स्टडी ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार जापान में भूकंप, पश्चिम एशिया में राजनीतिक उथलपुथल, मौद्रिक नीति में बदलाव का तांबे पर नकारात्मक असर पड़ा है। इसके मुताबिक 2011 में तांबे का खनन उत्पादन 4.6 फीसदी बढऩे का अनुमान है। शर्मा का कहना है कि अगले दो-तीन हफ्ते में एमसीएक्स पर तांबे के भाव घटकर 390 रुपये प्रति किलो तक आ सकते हैं। मॉनसून सत्र और जापान में निर्माण में तेजी आने पर तांबे की मांग बढ़ सकती है। गुप्ता कहते हैं कि यूरो के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है, इस कारण तांबे का भाव नरम रह सकता है। दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्टï्रीय बाजार में तांबे के दाम गिरने से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें घट गई हैं। (BS Hindi)
बारिश से गेहूं उपज पर नहीं होगा ज्यादा असर
नई दिल्ली April 18, 2011
सरकार ने हाल की बारिश से गेहूं की फसल को कोई क्षति होने की आशंकाओं को निर्मूल बताया है और कहा है कि इससे इस फसल की उपज और उत्पादन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, सरकार को यह लगता है कि बारिश के कारण मंडियों में गेहूं की आवक पर असर पड़ सकता है। केंद्रीय कृषि आयुक्त गुरबचन सिंह ने कहा, 'हाल की बरसात का गेहूं की उत्पादकता और उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।' हालांकि, उन्होंने कहा कि ठंडे मौसम के कारण गेहूं में नमी पैदा होती है जिसके कारण मंडियों में गेहूं की आवक में देर हो सकती है। उल्लेखनीय है कि प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों पंजाब और हरियाणा की मंडियों में गेहूं की आवक में पहले ही दो सप्ताह की देर हो गई है। कृषि आयुक्त के मुताबिक बारिश से नम हुए गेहूं को सुखाने के बाद ही इसे मंडियों में लाया जा सकेगा। इस मौसम में पश्चिमी विक्षोभ के कारण देश में पश्चिमी उत्तरी इलाकों में हर साल थोड़ी बहुत वर्षा हो जाती है।गुरबचन सिंह ने कहा कि अगर अत्यधिक बारिश, ओला वृष्टि और हवा चलती है तो यह चिंता की बात होती है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ अभी भी जारी है और पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार कुछ अधिक है। सिंह ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में 60 प्रतिशत गेहूं की फसल की कटाई अभी भी की जानी है। आयुक्त ने कहा कि कटाई में कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि मौसम विभाग ने अगले 15 दिनों तक मौसम के साफ रहने की भविष्यवाणी की है। देश में चालू फसल वर्ष में 8.42 करोड़ टन गेहूं उत्पादन की उम्मीद है।गेहूं की खरीद 69 फीसदी कमदेश में गेहूं की खरीद चालू वर्ष में अब तक 38.38 लाख टन है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 69 प्रतिशत कम है। पंजाब और हरियाणा में इस फसल की आवक अभी तेज नहीं हुई है। एफसीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार एफसीआई ने वर्ष भर पहले की समान अवधि में 123.62 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। अब तक पंजाब में सरकारी एजेंसियों और निजी मिल मालिकों ने 6.05 लाख टन गेहूं खरीदी है।हरियाणा में विशेष गिरदावरीखराब मौसम की वजह से फसल को हुए नुकसान के आकलन के लिए हरियाणा में खास गिरदावरी (राजस्व आकलन) की घोषणा राज्य के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डïा ने की। इस बारे में संबंधित क्षेत्रों के आयुक्तों को सूचना भेज दी गई है। उपायुक्तों ने प्रभावित इलाकों का दौरा कर नुकसान का जायजा लिया। (BS Hindi)
सरकार ने हाल की बारिश से गेहूं की फसल को कोई क्षति होने की आशंकाओं को निर्मूल बताया है और कहा है कि इससे इस फसल की उपज और उत्पादन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, सरकार को यह लगता है कि बारिश के कारण मंडियों में गेहूं की आवक पर असर पड़ सकता है। केंद्रीय कृषि आयुक्त गुरबचन सिंह ने कहा, 'हाल की बरसात का गेहूं की उत्पादकता और उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।' हालांकि, उन्होंने कहा कि ठंडे मौसम के कारण गेहूं में नमी पैदा होती है जिसके कारण मंडियों में गेहूं की आवक में देर हो सकती है। उल्लेखनीय है कि प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों पंजाब और हरियाणा की मंडियों में गेहूं की आवक में पहले ही दो सप्ताह की देर हो गई है। कृषि आयुक्त के मुताबिक बारिश से नम हुए गेहूं को सुखाने के बाद ही इसे मंडियों में लाया जा सकेगा। इस मौसम में पश्चिमी विक्षोभ के कारण देश में पश्चिमी उत्तरी इलाकों में हर साल थोड़ी बहुत वर्षा हो जाती है।गुरबचन सिंह ने कहा कि अगर अत्यधिक बारिश, ओला वृष्टि और हवा चलती है तो यह चिंता की बात होती है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ अभी भी जारी है और पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार कुछ अधिक है। सिंह ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में 60 प्रतिशत गेहूं की फसल की कटाई अभी भी की जानी है। आयुक्त ने कहा कि कटाई में कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि मौसम विभाग ने अगले 15 दिनों तक मौसम के साफ रहने की भविष्यवाणी की है। देश में चालू फसल वर्ष में 8.42 करोड़ टन गेहूं उत्पादन की उम्मीद है।गेहूं की खरीद 69 फीसदी कमदेश में गेहूं की खरीद चालू वर्ष में अब तक 38.38 लाख टन है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 69 प्रतिशत कम है। पंजाब और हरियाणा में इस फसल की आवक अभी तेज नहीं हुई है। एफसीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार एफसीआई ने वर्ष भर पहले की समान अवधि में 123.62 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। अब तक पंजाब में सरकारी एजेंसियों और निजी मिल मालिकों ने 6.05 लाख टन गेहूं खरीदी है।हरियाणा में विशेष गिरदावरीखराब मौसम की वजह से फसल को हुए नुकसान के आकलन के लिए हरियाणा में खास गिरदावरी (राजस्व आकलन) की घोषणा राज्य के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डïा ने की। इस बारे में संबंधित क्षेत्रों के आयुक्तों को सूचना भेज दी गई है। उपायुक्तों ने प्रभावित इलाकों का दौरा कर नुकसान का जायजा लिया। (BS Hindi)
आंधी, बारिश से हरियाणा व पंजाब में गेहूं फसल प्रभावित
जमीनी हकीकत - गेहूं की खरीद अब तक करीब 69 फीसदी कम रही है। पंजाब और हरियाणा में अभी तक गेहूं की आवक तेज नहीं हो पाई है। हाल की बारिश से आवक तेज होने में और देरी होगी। इससे सरकारी खरीद पिछड़ जाएगी।सरकारी आकलन - साल की बारिश से गेहूं की पैदावार पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। हालांकि उन्होंने माना कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण मौसम की ठंडक से गेहूं की फसल पकने में देरी होगी और इससे मंडियों में आवक शुरू होने में समय लग सकता है।पिछले दिनों उत्तरी राज्यों में आंधी, तूफान और बारिश से पंजाब के कई इलाकों में गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचने का अंदेशा है। इससे गेहूं की सरकारी खरीद प्रभावित हो सकती है। गेहूं की फसल में देरी होने के कारण गेहूं की खरीद शुरू से ही धीमी चल रही है। दूसरी ओर सरकार ने कहा है कि बारिश से गेहूं की पैदावार और कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।पंजाब के कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि प्राथमिक जानकारी के अनुसार तूफान से मोगा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में गेहूं की फसल को 10 से 35 फीसदी का नुकसान हुआ है। फिरोजपुर जिले के कपूरथला में बारिश होने के कारण 4,000 एकड़ एरिया में गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा है। गुरदासपुर में कुछ इलाकों में खुले मैदान में रखा करीब 5,000 टन गेहूं बारिश से भीग गया। हालांकि कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पंजाब में 90 फीसदी से ज्यादा गेहूं अभी खेतों में खड़ा है। बारिश से कट चुके गेहूं को ही ज्यादा नुकसान हुआ है। खेतों में खड़े गेहूं को ज्यादा नुकसान होने का अंदेशा नहीं है। वैसे इस समय बारिश गेहूं की फसल के लिए ठीक नहीं है। हरियाणा के जींद और सोनीपत जिलों में बारिश से फसल प्रभावित होने का अंदेसा है। बारिश होने के कारण पंजाब और हरियाणा में गेहूं की खरीद प्रभावित होने का अंदेशा है। पंजाब में 110 लाख टन और हरियाणा में करीब 65 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद होने का अनुमान है। कृषि विभाग के अधिकारी ने बताया कि इस साल गेहूं की खरीद दोनों राज्यों में पिछले साल के मुकाबले करीब चार फीसदी ज्यादा रहने का अनुमान था लेकिन बारिश होने के कारण इस पर असर पड़ सकता है। खेतों में खड़ी गेहूं की फसल बारिश में भीग गई है। इस वजह से गेहूं फसल की कटाई धूप निकलने पर सूखने के बाद ही हो पाएगी। इस वजह से गेहूं की आवक में देरी होगी और सरकारी खरीद प्रभावित होगी। मौजूदा सीजन में सरकारी नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अभी तक सिर्फ 38.38 लाख टन गेहूं की खरीद कर पाई है। जबकि पिछले साल इस अवधि में 123.62 लाख टन गेहूं की खरीद हो गई थी। इस तरह गेहूं की खरीद अब तक करीब 69 फीसदी कम रही है। पंजाब और हरियाणा में अभी तक गेहूं की आवक तेज नहीं हो पाई है। हाल की बारिश से आवक तेज होने में और देरी होगी। इससे सरकारी खरीद पिछड़ जाएगी।दूसरी ओर कृषि आयुक्त गुरबचन सिंह ने कहा है कि हाल की बारिश से गेहूं की पैदावार पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। हालांकि उन्होंने माना कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण मौसम की ठंडक से गेहूं की फसल पकने में देरी होगी और इससे मंडियों में आवक शुरू होने में समय लग सकता है। उन्होंने बताया कि अभी भी मंडियों में गेहूं की आवक करीब दो सप्ताह लेट हो चुकी है। (Business Bhaskar)
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