मुंबई March 03, 2009
सरकार ने मंदी की मार झेल रहे 77,000 करोड़ रुपये के रत्न और आभूषण क्षेत्र को निराश कर दिया है।
कारोबार से जुड़े प्रतिनिधियों ने शुक्रवार को वाणिज्य सचिव गोपाल पिल्लई से मुलाकात की, लेकिन उनकी तरफ से कोई भी सकारात्मक संकेत नहीं मिला।
कारोबारियों से बातचीत करने के बाद पिल्लई ने कहा कि हम उद्योग से जुडे लोगों के सभी मसलों को वित्त मंत्रालय के सामने रखेंगे और इन सभी का समाधान निकालने की कोशिश करेंगे।
बहरहाल उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने पिल्लई की सभी बातों को धैर्यपूर्वक सुना। बातचीत के बारे में रत्न और आभूषण निर्यात प्रोत्साहन परिषद (जीजेईपीसी) के अध्यक्ष वसंत मेहता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। वहीं गीतांजलि जेम्स लिमिटेड के चेयरमैन मेहुल चोक्सी ने कहा कि मुलाकात सार्थक रही है। चौक्सी ने कहा कि पिल्लई ने हर मसले पर सकारात्मक जवाब दिया है।
हालांकि उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बैठक के दौरान कोई उम्मीद की बात नहीं हुई, हालांकि एक ही उम्मीद है कि चुनावी वर्ष होने के चलते कुछ राहत मिल सकती है। हालांकि चौक्सी का मानना है कि हमारी समस्याओं को देखते हुए बैंक ज्यादा सहानुभूतिपूर्वक हमारी मदद के लिए सामने आएंगे, जिससे समस्या का समाधान निकाला जा सके।
भारत के ग्रामीण इलाकों में सोने की उपलब्धता और जमा करने की समस्या है, जिसके लिए यह जरूरी है कि सोने के आयात का 25 प्रतिशत घरेलू आपूर्ति के लिए आरक्षित रखा जाए। उन्होंने कहा कि इससे न केवल ग्रामीण भारत में आपूर्ति करने में सहूलियत मिलेगी, जहां मांग बराबर बनी रहती है, बल्कि इससे आभूषण निर्यातकों को राहत मिलेगी। वे अपने विदेशी कारोबार में आई कमी से होने वाले नुकसान की भरपाई भी घरेलू बाजार से कर सकेंगे।
इस उद्योग की एक प्रमुख मांग थी कि वापस मिलने वाले सेवा कर से मुक्त किया जाए। सेवा कर को वापस लेने में 2 साल या कभी कभी इससे भी ज्यादा वक्त लग जाता है। इसके चलते आभूषण निर्माता को नकदी के संकट का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि सरकार सेवा कर जमा कराकर और उसे वापस करने के बीच जो ब्याज पाती है, वह नगण्य है।
अगर इस कर से मुक्ति मिल जाए तो इससे कारोबारियों का नकदी का संकट दूर होगा। खासकर ऐसे समय में बड़ी राहत मिल जाएगी, जब यह उद्योग मांग में भयंकर कमी का सामना कर रहा है। पिछले दिनों में सरकार ने 23 आयात एजेंसियों का नामांकन किया था, जिन्हें देश भर में सोने की आपूर्ति करनी थी।
उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इनमें से 4-5 ही काम कर रही हैं। अन्य एजेंसियां निष्क्रिय बनी हुई है, जिसके चलते आभूषण के कारोबारियों को ग्रामीण भारत में इसे उपलब्ध कराने में भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। इन ज्वैलर्स को आभूषण निर्माण के लिए सोने के निजी कारोबारियों महंगे दर पर सोने की खरीद करनी पड़ रही है।
इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि ग्रामीण बैंक और इन इलाकों के लिए नामित एजेंसियां अगर उस इलाके में मौजूद भी हैं तो वे मांग को पूरा नहीं कर रही हैं। खासकर शादी विवाह के मौसम में कमी होने की वजह से कारोबारियों को संकट का सामना करना पड़ रहा है और छोटे कारोबारी नुकसान उठा रहे हैं।
जीजेईपीसी इस बात की वकालत कर रही है कि सरकार या तो उन कंपनियों को सोने के आयात की अनुमति दे, जिनका टर्नओवर 500 करोड़ से ज्यादा है या कर रहित सोने के आयात के लिए बैंकों और अन्य एजेंसियों का नामित करे, जिससे उचित मूल्य पर सोना उपलब्ध हो सके।
इसके अलावा नियमन का मामला भी है। सूत्रों ने कहा कि सरकार ने बैंकों को डॉलर उपलब्ध कराने का जिम्मा दिया है, लेकिन उद्योग जगत को इससे फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि डॉलर के उपलब्ध न होने और उच्च ब्याज दरों के कारण दिक्कत हो रही है।
सरकार के दिशानिर्देशों के मुताबिक बैंक 7-8 प्रतिशत ब्याज पर डॉलर मुहैया कराते हैं, और उद्योग जगत की मांग है कि इसे 5-6 प्रतिशत पर लाया जाना चाहिए। बैंक उधारी देने के मामले में भी कोई मदद नहीं कर रहे हैं।
मंदी की वजह से कारोबार में आई गिरावट के चलते रत्न और आभूषण उद्योग से जुड़े लोग समस्याओं का उचित समाधान चाहते हैं, जिससे संकट का सामना किया जा सके।
सरकार की ओर से नहीं मिले राहत के संकेत
उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों की वाणिज्य सचिव से मुलाकात, फिर भी नहीं मिले अच्छे संकेतभारत में रत्न एवं आभूषण उद्योग का कुल कारोबार 77,000 करोड़ का, जो मंदी से प्रभावित हैसेवा कर को समाप्त करने, डॉलर पर ब्याज दरों में कटौती जैसी मांगेंघरेलू मांग पूरी करने के लिए नहीं मिल रहा है सोना (BS Hindi)
03 मार्च 2009
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