March 03, 2009
किसी भी मुश्किल दिनों में सरकार के लिए यह बहुत सामान्य बात होती है कि वह चीनी, कपास और जूट का भंडार तैयार करने के लिए पैसे खर्च करे।
चीनी के मामले में दो सीजन पहले ऐसा हो चुका है। इसके अलावा सरकारी एजेंसियां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीद में भी शामिल होंगी।
इस वक्त किसी भी समूह के लिए सरकार से एल्युमीनियम या स्टील के भंडार को तैयार करने की गुजारिश करना असंभव मालूम पड़ रहा है। दरअसल इसके जरिए ही मौजूदा अभूतपूर्व मांग में तेजी और कीमतों में गिरावट की स्थिति से संभाला जा सकता है।
स्टेट रिजर्व ब्यूरो ऑफ चाइना (एसआरबीसी) आमतौर पर मुक्त अर्थव्यवस्था में 53 करोड़ डॉलर खर्च कर रही है ताकि सीधे स्थानीय उत्पादकों के जरिए 290,000 टन एल्युमीनियम खरीदा जा सके। उत्पादकों को राहत देने के लिए एसआरबीसी एल्युमीनियम की खरीद के लिए 530 डॉलर प्रति टन एलएमई कीमतों के लिहाज से प्रीमियम चुका रहा है।
उद्योग के अधिकारियों का मानना है कि चीन एल्युमीनियम का लगभग 10 लाख टन या इससे भी ज्यादा का स्टॉक बना सकता है। चीन एल्युमीनियम के लिए जो कुछ भी कर रहा है वह उसके रणनीतिक कदम का ही एक हिस्सा है। इसके जरिए दूसरे जिंसों की कीमतों को थोड़ी मदद या सहारा मिल सके जिनकी कीमतों में गिरावट आई है।
चीन के 4 लाख करोड़ युआन (58.5 करोड़ डॉलर) के आर्थिक पुनरुत्थान बजट का इस्तेमाल उन जिंसों का स्टॉक तैयार करने के लिए हो रहा है जिन पर मंदी की मार पड़ी है। चीन से ऐसे संकेत मिलने के बाद विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी यूसी रसल ने मास्को से यह गुजारिश की है कि वह भी अलौह धातु का भंडार तैयार करें ताकि कीमतों में होने वाली गिरावट को रोका जा सके और उत्पादकों के भंडार में बढ़ोतरी को रोका जा सके।
हालांकि रसल ने यह सलाह नहीं दी है कि एल्युमीनियम का कितना भंडार सरकार को तैयार करना चाहिए। इसके साथ ही यह अल्युमिनियम कंपनी चाहती है कि सरकार तब तक इसका भंडार बनाए रखे जब तक यह संकट खत्म नहीं हो जाता है। यहां सभी उत्पादकों के पास एल्युमीनियम का भंडार बढ़ रहा है और उनके मुनाफे में तेजी से कमी आ रही है।
एलएमई में कीमतें स्थानीय कीमतों से भी कम हैं। इसके अलावा निर्यात में भी अब कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही है। निर्यात नहीं होने से भी भंडार में बढ़ोतरी हो रही है। बहुत ज्यादा दर पर बेहतरीन एल्युमीनियम उत्पादों के आयात में भी बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि भारतीय उद्योग सरकार से ऐसी मदद के लिए फिलहाल कुछ नहीं कहना चाहेगी जैसा कि चीन और रुस अपने सरकार से गुजारिश कर रहे हैं।
सरकार को मालूम है कि चीन से आने वाले एल्युमीनियम फ्वॉयल और रॉल्ड उत्पादों का कम कीमतों के साथ आयात बढ़ रहा है जो स्थानीय एल्युमीनियम उत्पादकों को संरक्षण देने की लागत से कहीं कम है। वाणिज्य सचिव जी. के. पिल्लई का कहना है, 'निर्यात की मात्रा भी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि जिससे घरेलू उद्योग बर्बाद हो जाएं।'
भारत यह सही सोच है कि चीन ने भारत को अपना लक्ष्य बनाया है ताकि वहां कम कीमत पर बेचा जाए। इसकी वजह यह है कि चीन एक गैर बाजार अर्थव्यवस्था है जहां सभी सेक्टर में उत्पादन क्षमता बढ़ रही है। पिछले पांच सालों में चीन में एल्युमीनियम उत्पादन की क्षमता बढ़ी है और वर्ष 2008 में लगभग 134.4 लाख टन का उत्पादन हुआ है। विश्व में यह 398.3 लाख टन के साथ एक-तिहाई उत्पादन का हिस्सा बनाता है।
चीन ने स्पष्ट तौर पर एल्युमीनियम के उत्पादों की कीमत घटा दी है। इसकी वजह से देश में पहले की तरह ही समान दरों पर इसकी मांग बढ़ने की संभावना बहुत कम है। मंदी के इस दौर में चीन के पास लौह और अलौह धातुओं का अतिरिक्त भंडार होने से वह इसे भुनाने की कोशिश करेगा।
राष्ट्रीय एल्युमीनियम कंपनी अल्युमिना और एल्युमीनियम का महत्वपूर्ण निर्यातक की भूमिका में ही रहना चाहता है। आजकल नाल्को के अध्यक्ष सी. आर. प्रधान के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा है कि वैश्विक स्तर पर प्राथमिक एल्युमीनियम की खपत में वर्ष 2008 की अंतिम तिमाही में 12.7 फीसदी की भारी गिरावट आई है।
मांग में कमी होने से उत्पादकों को हर जगह अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है ताकि मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाया जा सके। लंदन के रिसर्च हाउस सीआरयू के मुताबिक जनवरी के अंत तक विश्व में 58 लाख टन धातु गलाने की क्षमता है जिसमें से चीन का हिस्सा 33 लाख टन है। इसके अलावा एल्युमीनियम के शेयर एलएमई, शंघाई फ्यूचर्स, निमेक्स, जापानीज पोर्ट्स में बढक़र 50 लाख टन हो गए हैं। (BS Hindi)
03 मार्च 2009
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