28 फ़रवरी 2009
कीमती धातुओं के आयात के लिए और एजेंसियां होंगी नॉमिनेट
अहमदाबाद: लेखानुदान में निराशा झेल चुके जेम्स और ज्वैलरी सेगमेंट के लिए गुरुवार को पेश अंतरिम फॉरेन ट्रेड पॉलिसी कुछ खुशियां लेकर आई। वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमलनाथ द्वारा पेश नई पॉलिसी में और एजेंसियों को कीमती धातुओं के आयात के लिए नॉमिनेट किया जा सकेगा। अभी डायमंड इंडिया लिमिटेड, एमएसटीसी लिमिटेड, जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल और स्टार ट्रेडिंग को ही कीमती धातुओं के आयात की इजाजत है। इंडस्ट्री ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे सोने की अनियमित आपूर्ति को दुरुस्त किया जा सकेगा और जेम्स और ज्वैलरी निर्यात में भी मदद मिलेगी। दूसरी छूट जैसे प्रीमियर ट्रेडिंग हाउस के लिए स्लैब को 10,000 करोड़ रुपए के टर्नओवर से घटाकर 7,500 करोड़ रुपए करने और काम किए गए मांगों के ऊपर आयात प्रतिबंध हटाने से भी इंडस्ट्री राहत की सांस ले रही है। एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स (ईपीसीजी) स्कीम के तहत सरकार ने निर्यात में पांच फीसदी से अधिक गिरावट आने पर निर्यात शर्तों में ढील दी है। इसके अलावा सूरत को भी टाउन ऑफ एक्सपोर्ट एक्सीलेंस का दर्जा दिया है। जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के चेयरमैन वसंत मेहता का कहना है, 'सोने के आयात के लिए ज्यादा एजेंसियों को इजाजत देने के कदम को जेम्स और ज्वैलरी कारोबार के लिए अच्छा कदम माना जा सकता है। लंबे समय से हम यह मांग कर रहे थे क्योंकि सोने के वितरण में एकरूपता नहीं है। इस अनियमित आपूर्ति के कारण पूरे निर्यात पर असर पड़ रहा था। इसे अब सुलझाया जा सकेगा।' कंसल्टेंट भी इस बात से सहमत हैं। एटी कर्नी के प्रिंसिपल नीलेश हुंदेकारी का कहना है, 'इस कदम से न सिर्फ निर्यातकों को बल्कि घरेलू इंडस्ट्री को भी लाभ मिलेगा। आपूर्तिकर्ताओं की संख्या बढ़ने से इंडस्ट्री घरेलू बाजार में भी बेहतर कर सकेगी। घरेलू इंडस्ट्री पिछले चार साल से यह 19 फीसदी की सीएजीआर के साथ बढ़ रही है।' उनका कहना है कि आज की तारीख में भारतीय सोने का बाजार 27 अरब डॉलर का है और इसमें सबसे ज्यादा योगदान शादी उद्योग का है। इंडस्ट्री का कहना है कि इस कदम से ज्वैलरी निर्यात भी बढ़ेगा। जीजेईपीसी के पूर्व चेयरमैन संजय कोठारी का कहना है, 'कीमती धातु के आयात के लिए अधिक एजेंसियों को नामित करने से सोने की आपूर्ति बेहतर हो सकेगी और इससे ज्वैलरी निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा निर्यात में पांच फीसदी से अधिक गिरावट होने पर छूट की घोषणा से निर्यातकों को राहत मिलेगी।' (ET Hindi)
खरीदारों की बेरूखी से सोने में गिरावट जारी
नई दिल्ली : फुटकर कारोबारियों और आभूषण निर्माताओं द्वारा खरीदारी से हाथ खींच लेने से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सर्राफा बाजार में शुक्रवार को लगातार तीसरे दिन भी मंदी का दौर जारी रहा। दिल्ली में सोने के भाव में 50 रुपये की कमी दर्ज की गई और यह 15,300 रुपये प्रति दस ग्राम पर बंद हुआ। विदेशों से मंदी की खबरों के बीच चांदी के भाव भी 450 रुपये की गिरावट के साथ 21,450 रुपये प्रति किलो पर बंद हुए।लंदन में सोना में लगातार पांचवे दिन गिरावट देखने को मिली। सितंबर के बाद की यह सबसे बड़ी गिरावट है। 18 फरवरी को यह 1006.20 डालर प्रति आउंस को छू गया था। बाजार सूत्रों के अनुसार ऊंची कीमत होने के कारण फुटकर कारोबारियों और आभूषण निर्माताओं ने खरीदारी से हाथ खींच लिए हैं। चांदी तैयार के भाव 450 रुपये के नुकसान के साथ 21,450 रुपये और चांदी साप्ताहिक डिलिवरी के भाव 830 रुपये की गिरावट के साथ 21,660 रुपये प्रति किलो पर बंद हुए। सोना स्टैंडर्ड और आभूषण के भाव 50-50 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 15,300 रुपये और 15,150 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुए। (ET Hindi)
कागज, खाद्य और दवा उद्योग में स्टार्च की मांग से कीमतें उछलीं
मुंबई February 26, 2009
घरेलू बाजार के स्टार्च निर्माताओं को स्टार्च की मांग बढ़ने से काफी राहत मिली है। पिछले एक महीने से घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं ने स्टार्च की मांग बढ़ा दी है इसकी वजह से बाजार धारणा में मजबूती आई है।
इस उद्योग के खिलाड़ी मांग के बने रहने के प्रति बेहद आशावान हैं और उनका मानना है कि स्टार्च की कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं। स्टार्च मक्के से बनाया जाता है और इसके उपभोक्ताओं में कपड़ा उद्योग, दवा का क्षेत्र , कागज उद्योग और तरल ग्लूकोज निर्माता भी शामिल हैं।
स्टार्च उद्योग की मांग में पिछले साल गिरावट देखी गई थी। जिसकी वजह से इस उद्योग की जितनी क्षमता है उसके उपयोग में कमी आ गई। इसके अलावा ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य होने से मक्के की कीमतों में मजबूती आ गई और स्टार्च बनाने वालों की दिक्कतें भी बढ़ गईं।
मांग में कमी आने की वजह से स्टार्च की कीमतों में भी कमी आई और 50 किलोग्राम की बोरी 650 रुपये हो गई। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के प्रबंध निदेशक विशाल मजीठिया का कहना है, 'हालांकि अब स्टार्च की एक बोरी की कीमत 750 रुपये प्रति बोरी है। हमें उम्मीद है कि अप्रैल से एक बोरी की कीमत 800 रुपये हो जाएगी।'
प्रतिदिन उद्योगों की कुल मक्के की मड़ाई क्षमता 5,000 टन प्रति दिन है। मांग में बढ़ोतरी होने की वजह से जितनी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया था वह 75 फीसदी तक कम हो गया था अब उसमें सुधार हुआ है और यह इसका उपयोग 90 फीसदी तक हो रहा है।
दिल्ली के भारत स्टार्च इंडस्ट्री के महाप्रबंधक नवीन विज का कहना है, 'फूड इंडस्ट्री और कागज उद्योग में स्टार्च की खूब मांग बढ़ गई है। इसी वजह से उत्तरी भारत के बाजार में स्टार्च की कीमतें एक बोरी पर 100 रुपये और एक टन पर 2000 रुपया बढ़ गया है। वैसे कपड़ा उद्योग अभी थोड़ा मंदा पड़ा है इसी वजह से स्टार्च की उतनी मांग नहीं है।'
विज का कहना है कि आने वाले महीनों में कागज उद्योग के लिए मांग और बढ़ेगी और चुनाव को देखते हुए इस उद्योग में ज्यादा बढ़ोतरी होगी। इससे स्टार्च की कीमतों में बढ़ोतरी तो होगी ही या कीमतें स्थिर रहेंगी।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस. सेठ का कहना है कि मांग में मजबूती का रुख बना रहेगा। ऋद्धि सिद्धि ग्लूको बॉयल्स, गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट, सांघवी फूड्स कुछ बड़ी स्टार्च कंपनियों में शुमार हैं।
स्टार्च बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल में आने वाले मक्के की कीमतें 820-840 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर हैं। नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव एक्सचेंज पर बुधवार को मक्के का एक महीने का अनुबंध 818 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि पहले यह 823 रुपये पर बंद हुआ था।
मंदी में लौटीं खुशियां
प्रति 50 किलो की स्टार्च की बोरी में 100 रुपये का उछाल मांग में स्थिरता बने रहने की उम्मीदस्टार्च की कीमतों में हो सकता है और इजाफापिछले साल थी स्टार्च उद्योग की मांग में गिरावट (BS Hindi)
घरेलू बाजार के स्टार्च निर्माताओं को स्टार्च की मांग बढ़ने से काफी राहत मिली है। पिछले एक महीने से घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं ने स्टार्च की मांग बढ़ा दी है इसकी वजह से बाजार धारणा में मजबूती आई है।
इस उद्योग के खिलाड़ी मांग के बने रहने के प्रति बेहद आशावान हैं और उनका मानना है कि स्टार्च की कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं। स्टार्च मक्के से बनाया जाता है और इसके उपभोक्ताओं में कपड़ा उद्योग, दवा का क्षेत्र , कागज उद्योग और तरल ग्लूकोज निर्माता भी शामिल हैं।
स्टार्च उद्योग की मांग में पिछले साल गिरावट देखी गई थी। जिसकी वजह से इस उद्योग की जितनी क्षमता है उसके उपयोग में कमी आ गई। इसके अलावा ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य होने से मक्के की कीमतों में मजबूती आ गई और स्टार्च बनाने वालों की दिक्कतें भी बढ़ गईं।
मांग में कमी आने की वजह से स्टार्च की कीमतों में भी कमी आई और 50 किलोग्राम की बोरी 650 रुपये हो गई। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के प्रबंध निदेशक विशाल मजीठिया का कहना है, 'हालांकि अब स्टार्च की एक बोरी की कीमत 750 रुपये प्रति बोरी है। हमें उम्मीद है कि अप्रैल से एक बोरी की कीमत 800 रुपये हो जाएगी।'
प्रतिदिन उद्योगों की कुल मक्के की मड़ाई क्षमता 5,000 टन प्रति दिन है। मांग में बढ़ोतरी होने की वजह से जितनी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया था वह 75 फीसदी तक कम हो गया था अब उसमें सुधार हुआ है और यह इसका उपयोग 90 फीसदी तक हो रहा है।
दिल्ली के भारत स्टार्च इंडस्ट्री के महाप्रबंधक नवीन विज का कहना है, 'फूड इंडस्ट्री और कागज उद्योग में स्टार्च की खूब मांग बढ़ गई है। इसी वजह से उत्तरी भारत के बाजार में स्टार्च की कीमतें एक बोरी पर 100 रुपये और एक टन पर 2000 रुपया बढ़ गया है। वैसे कपड़ा उद्योग अभी थोड़ा मंदा पड़ा है इसी वजह से स्टार्च की उतनी मांग नहीं है।'
विज का कहना है कि आने वाले महीनों में कागज उद्योग के लिए मांग और बढ़ेगी और चुनाव को देखते हुए इस उद्योग में ज्यादा बढ़ोतरी होगी। इससे स्टार्च की कीमतों में बढ़ोतरी तो होगी ही या कीमतें स्थिर रहेंगी।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस. सेठ का कहना है कि मांग में मजबूती का रुख बना रहेगा। ऋद्धि सिद्धि ग्लूको बॉयल्स, गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट, सांघवी फूड्स कुछ बड़ी स्टार्च कंपनियों में शुमार हैं।
स्टार्च बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल में आने वाले मक्के की कीमतें 820-840 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर हैं। नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव एक्सचेंज पर बुधवार को मक्के का एक महीने का अनुबंध 818 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि पहले यह 823 रुपये पर बंद हुआ था।
मंदी में लौटीं खुशियां
प्रति 50 किलो की स्टार्च की बोरी में 100 रुपये का उछाल मांग में स्थिरता बने रहने की उम्मीदस्टार्च की कीमतों में हो सकता है और इजाफापिछले साल थी स्टार्च उद्योग की मांग में गिरावट (BS Hindi)
अंगूर की शराब और फसल की देख-रेख के लिए बोर्ड
पुणे February 26, 2009
मुल्क में अंगूर के प्रसंस्करण की गतिविधियों का नियमन करने और शराब उत्पादन के स्तर को और सुधारने के लिए सरकार ने पुणे में इंडियन ग्रेप प्रोसेसिंग बोर्ड (आईजीपीबी) स्थापित किया है।
नेशनल टी बोर्ड जैसे संस्थानों की तरह ही आईजीपीबी के पास भी शराब उत्पादन के लिए नियमन का अधिकार होगा। खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बुधवार को पुणे में आईजीपीबी का उद्धाटन किया।
इस नए बोर्ड में शराब उद्योग, अंगूर के किसान, खाद्य प्रसंस्करण, राज्य सरकार, राज्य शराब बोर्ड, शोध संस्थान, होटल उद्योग और दूसरे प्रतिष्ठान से जुड़े प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। नया बोर्ड अंगूरों की फसल और शराब उत्पादन की गुणवत्ता पर नियंत्रण और उसके स्तर को बेहतर बनाने की कवायद करेंगे।
बोर्ड भविष्य में प्रसंस्कृत अंगूरों के उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए योजनाओं का मसौदा भी तैयार कर सकता है। आईसीपीबी को बनाने के लिए एक कंसल्टेंसी मिटकॉन को जिम्मा सौंपा गया है ।
इसके निदेशक प्रदीप बवाडेकर का कहना है, 'आईजीपी एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करेगी और अच्छे काम के माहौल और कड़े दिशा निर्देशों का पालन करेगी। इसके अलावा यह शोध और विकास, गुणवत्ता को बढ़ाने, बाजार का शोध, भारतीय शराब के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमोशन पर भी ध्यान देगी।'
आजकल भारतीय किसान 16 लाख टन अंगूर सालाना 60,000 हेक्टेयर जमीन पर उपजाते हैं। (BS Hindi)
मुल्क में अंगूर के प्रसंस्करण की गतिविधियों का नियमन करने और शराब उत्पादन के स्तर को और सुधारने के लिए सरकार ने पुणे में इंडियन ग्रेप प्रोसेसिंग बोर्ड (आईजीपीबी) स्थापित किया है।
नेशनल टी बोर्ड जैसे संस्थानों की तरह ही आईजीपीबी के पास भी शराब उत्पादन के लिए नियमन का अधिकार होगा। खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बुधवार को पुणे में आईजीपीबी का उद्धाटन किया।
इस नए बोर्ड में शराब उद्योग, अंगूर के किसान, खाद्य प्रसंस्करण, राज्य सरकार, राज्य शराब बोर्ड, शोध संस्थान, होटल उद्योग और दूसरे प्रतिष्ठान से जुड़े प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। नया बोर्ड अंगूरों की फसल और शराब उत्पादन की गुणवत्ता पर नियंत्रण और उसके स्तर को बेहतर बनाने की कवायद करेंगे।
बोर्ड भविष्य में प्रसंस्कृत अंगूरों के उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए योजनाओं का मसौदा भी तैयार कर सकता है। आईसीपीबी को बनाने के लिए एक कंसल्टेंसी मिटकॉन को जिम्मा सौंपा गया है ।
इसके निदेशक प्रदीप बवाडेकर का कहना है, 'आईजीपी एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करेगी और अच्छे काम के माहौल और कड़े दिशा निर्देशों का पालन करेगी। इसके अलावा यह शोध और विकास, गुणवत्ता को बढ़ाने, बाजार का शोध, भारतीय शराब के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमोशन पर भी ध्यान देगी।'
आजकल भारतीय किसान 16 लाख टन अंगूर सालाना 60,000 हेक्टेयर जमीन पर उपजाते हैं। (BS Hindi)
मूल धातुओं के उत्पादकों की क्रेडिट रेटिंग घटी
मुंबई February 26, 2009
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अलौह धातु उत्पादन करने वाली कंपनियों की रेटिंग घटा दी है, जिससे भविष्य में इनकी फंड उगाही योजना पर असर पड़ सकता है। क्रिसिल को मध्यम अवधि में कंपनियों की आय पर दबाव रहने की उम्मीद है।
क्रिसिल ने स्टरलाइट और वेदांत एल्युमीनियम की रेटिंग एए प्लस से घटाकर एए कर दी है। हालांकि उसने वेदांत समूह की अन्य कंपनियों भारत एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक और मद्रास एल्युमीनियम की दीर्घकालीन ऋण रेटिंग कायम रखा है।
रेटिंग एजेंसी ने देश की विशालतम एल्युमीनियम विनिर्माता कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की रेटिंग एए से घटाकर एए माइनस कर दी है। (BS Hindi)
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अलौह धातु उत्पादन करने वाली कंपनियों की रेटिंग घटा दी है, जिससे भविष्य में इनकी फंड उगाही योजना पर असर पड़ सकता है। क्रिसिल को मध्यम अवधि में कंपनियों की आय पर दबाव रहने की उम्मीद है।
क्रिसिल ने स्टरलाइट और वेदांत एल्युमीनियम की रेटिंग एए प्लस से घटाकर एए कर दी है। हालांकि उसने वेदांत समूह की अन्य कंपनियों भारत एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक और मद्रास एल्युमीनियम की दीर्घकालीन ऋण रेटिंग कायम रखा है।
रेटिंग एजेंसी ने देश की विशालतम एल्युमीनियम विनिर्माता कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की रेटिंग एए से घटाकर एए माइनस कर दी है। (BS Hindi)
मुनाफावसूली से सोने में आई गिरावट
नई दिल्ली February 26, 2009
सोने में वैश्विक उछाल के बाद अब गिरावट का दौर शुरू हो गया है। हाजिर और वायदा बाजार में इस पीली धातु में दो दिनों से मुनाफावसूली जारी है।
सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि आगामी महीना यानी कि मार्च में सोने के दाम में 800-900 रुपये प्रति 10 ग्राम की गिरावट आ सकती है। मार्च महीने में कोई शादी नहीं है और इस महीने में लोग कर बचत करने के उपाय में लगे रहते हैं। साथ ही होली के कारण भी लोगों का खर्च बढ़ जाता है।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक बिक्री के लिहाज से मार्च महीना हमेशा से मंदा रहा है। 27 फरवरी को आखिरी शादी है और पूरे मार्च माह में कोई शादी नहीं है। इसलिए लोगों की खरीदारी कमोबेश पूरी हो चुकी है। मांग के अभाव में सोने के दाम में गिरावट की पूरी उम्मीद की जा रही है।
गुरुवार को सोना 15,350 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर रहा। सर्राफा बाजार संघ के प्रधान विमल गोयल कहते हैं, पिछले 20-30 सालों से हम मार्च माह के दौरान मंदी देखते आ रहे हैं। मांग नहीं निकलने से सोना 14,500 रुपये के स्तर पर पहुंच सकता है। एक अन्य कारोबारी पवन झिलानी भी इस बात से सहमति जताते हैं।
उनके मुताबिक शादी-ब्याह की खरीदारी पूरी हो चुकी है और कीमत अधिक होने से सामान्य तौर पर होने वाली खरीदारी भी लगभग बंद है। इसलिए कीमत का गिरना लाजिमी है। वैसे भी सोना अपने उच्चतम स्तर पर चल रहा है और यहां से गिरावट की ही संभावना है। कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि होली व मार्च क्लोजिंग का मौसम होने के कारण लोगों का खर्च भी इस माह में बढ़ जाता है और खरीदारी प्रभावित रहती है।
उधर वायदा बाजार में कमजोर वैश्विक रुख के बीच कारोबारियों की ओर से बिकवाली जारी रखे जाने से वायदा बाजार में सोने की कीमत में आज भी 1.45 फीसदी की कमी दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में अप्रैल डिलिवरी के लिए सोने की कीमत 1.45 फीसदी घटकर 15,270 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई।
इसमें 7,427 लॉटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार का रुख जून महीने की डिलिवरी में देखा गया। इसमें 418 लाटों के लिए हुए कारोबार में सोने की कीमत 1.39 फीसदी लुढ़ककर 15,273 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई। वहीं अगस्त डिलिवरी के लिए कीमत 1.28 फीसदी गिरकर 15,311 रुपये प्रति 10 ग्राम रिकार्ड की गई। बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के मद्देनजर कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से सोने की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस बीच न्यूयार्क मकर्ेंटाइल एक्सचेंज में सोने की कीमत 16.20 डॉलर गिरकर 950 डॉलर प्रति औंस दर्ज की गई है।
चांदी भी लुढ़की
कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में आज 1.81 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मार्च डिलिवरी के लिए चांदी की कीमत 1.81 फीसदी गिरकर 22,350 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई।
इसमें 4,141 लाटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार जुलाई डिलिवरी के तीन लाटों के लिए हुए कारोबार में चांदी की कीमत 1.76 फीसदी गिरकर 22,735 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई। जबकि मई महीने की डिलिवरी के लिए कीमत 1.53 फीसदी गिरकर 22,585 रुपये प्रति किलो हो गई।
इसमें 1,030 लाटों के लिए कारोबार हुआ। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के कारण कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। (BS Hindi)
सोने में वैश्विक उछाल के बाद अब गिरावट का दौर शुरू हो गया है। हाजिर और वायदा बाजार में इस पीली धातु में दो दिनों से मुनाफावसूली जारी है।
सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि आगामी महीना यानी कि मार्च में सोने के दाम में 800-900 रुपये प्रति 10 ग्राम की गिरावट आ सकती है। मार्च महीने में कोई शादी नहीं है और इस महीने में लोग कर बचत करने के उपाय में लगे रहते हैं। साथ ही होली के कारण भी लोगों का खर्च बढ़ जाता है।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक बिक्री के लिहाज से मार्च महीना हमेशा से मंदा रहा है। 27 फरवरी को आखिरी शादी है और पूरे मार्च माह में कोई शादी नहीं है। इसलिए लोगों की खरीदारी कमोबेश पूरी हो चुकी है। मांग के अभाव में सोने के दाम में गिरावट की पूरी उम्मीद की जा रही है।
गुरुवार को सोना 15,350 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर रहा। सर्राफा बाजार संघ के प्रधान विमल गोयल कहते हैं, पिछले 20-30 सालों से हम मार्च माह के दौरान मंदी देखते आ रहे हैं। मांग नहीं निकलने से सोना 14,500 रुपये के स्तर पर पहुंच सकता है। एक अन्य कारोबारी पवन झिलानी भी इस बात से सहमति जताते हैं।
उनके मुताबिक शादी-ब्याह की खरीदारी पूरी हो चुकी है और कीमत अधिक होने से सामान्य तौर पर होने वाली खरीदारी भी लगभग बंद है। इसलिए कीमत का गिरना लाजिमी है। वैसे भी सोना अपने उच्चतम स्तर पर चल रहा है और यहां से गिरावट की ही संभावना है। कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि होली व मार्च क्लोजिंग का मौसम होने के कारण लोगों का खर्च भी इस माह में बढ़ जाता है और खरीदारी प्रभावित रहती है।
उधर वायदा बाजार में कमजोर वैश्विक रुख के बीच कारोबारियों की ओर से बिकवाली जारी रखे जाने से वायदा बाजार में सोने की कीमत में आज भी 1.45 फीसदी की कमी दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में अप्रैल डिलिवरी के लिए सोने की कीमत 1.45 फीसदी घटकर 15,270 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई।
इसमें 7,427 लॉटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार का रुख जून महीने की डिलिवरी में देखा गया। इसमें 418 लाटों के लिए हुए कारोबार में सोने की कीमत 1.39 फीसदी लुढ़ककर 15,273 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई। वहीं अगस्त डिलिवरी के लिए कीमत 1.28 फीसदी गिरकर 15,311 रुपये प्रति 10 ग्राम रिकार्ड की गई। बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के मद्देनजर कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से सोने की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस बीच न्यूयार्क मकर्ेंटाइल एक्सचेंज में सोने की कीमत 16.20 डॉलर गिरकर 950 डॉलर प्रति औंस दर्ज की गई है।
चांदी भी लुढ़की
कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में आज 1.81 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मार्च डिलिवरी के लिए चांदी की कीमत 1.81 फीसदी गिरकर 22,350 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई।
इसमें 4,141 लाटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार जुलाई डिलिवरी के तीन लाटों के लिए हुए कारोबार में चांदी की कीमत 1.76 फीसदी गिरकर 22,735 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई। जबकि मई महीने की डिलिवरी के लिए कीमत 1.53 फीसदी गिरकर 22,585 रुपये प्रति किलो हो गई।
इसमें 1,030 लाटों के लिए कारोबार हुआ। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के कारण कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। (BS Hindi)
गुजरात में देर से मिलेंगे मीठे रसीले आम
राजकोट February 26, 2009
गुजरात के लोगों को फल के राजा आम के रसीले और मीठे स्वाद को चखने का मौका इस साल गर्मी में देर से मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में आम की आवक में 15 से 20 दिनों की देरी हो सकती है।
इसकी वजह यह है कि ठंड के मौसम में अनियमितता से आम की बौर खराब हो गई है। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक इस साल ठंड के मौसम में काफी अस्थिरता रही और इसी वजह से आम की बौर खराब हो गए। खासतौर पर गुजरात के सौराष्ट्र के इलाके में आम की किस्म 'केसर' के बौर भी बर्बाद हो गए। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बी. के. किकानी का कहना है, 'इस साल गुजरात में आम के लिए ठंड का मौसम उतना अच्छा नहीं था। यह वक्त आम की बौर तैयार होने का समय होता है ऐसे में मौसम ठीक नहीं है ऐसे में नुकसान हो सकता है। इस साल गर्मी में आम की आवक देर से होगी।'
गुजरात में लगभग तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती की जाती है। गुजरात राज्य के जूनागढ़, भावनगर, बलसाड, नवसारी, सासन और तलाला गिर, विस्वादर, सवर्णकुंडला और कच्छ कुछ ऐसे इलाके हैं जहां आम की खेती होती है।
पिछले साल तालाला कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी)में 10 लाख आम के बक्से आए, इन बक्सों में हर एक में 10 किलोग्राम आम होता है। इस बाजार समिति में केसर आम की किस्में खासतौर पर मिलती है।
तलाला एपीएमसी के सचिव हरसुखभाई जरसानिया ने किस्मों की बात करते हुए कहा, 'इस साल 10-15 मई तक केसर आम की किस्में बाजार में आनी शुरू हो जाएगी। आमतौर पर यह हर साल मार्च के अंतिम हफ्ते में ही आना शुरू हो जाता है। दरअसल अब आम के पेड़ पर बौर देर से लगेगी। सामान्य हालात में आम की बौर जनवरी के अंतिम हफ्ते और फरवरी के मध्य के बीच आते हैं। लेकिन इस साल इस आम के आने में काफी देरी हो सकती है क्योंकि ठंड का मौसम उतना बढ़िया नहीं था।'
कच्छ के बाटुकसिन्ह जाडेजा का कहना है, 'आम के उत्पादन के बारे में अभी कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन इस मौसम में आम की आवक में देरी जरूर होगी। मौसम में अब थोड़ी गर्मी आना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो खराब मौसम की वजह से कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।' (BS Hindi)
गुजरात के लोगों को फल के राजा आम के रसीले और मीठे स्वाद को चखने का मौका इस साल गर्मी में देर से मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में आम की आवक में 15 से 20 दिनों की देरी हो सकती है।
इसकी वजह यह है कि ठंड के मौसम में अनियमितता से आम की बौर खराब हो गई है। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक इस साल ठंड के मौसम में काफी अस्थिरता रही और इसी वजह से आम की बौर खराब हो गए। खासतौर पर गुजरात के सौराष्ट्र के इलाके में आम की किस्म 'केसर' के बौर भी बर्बाद हो गए। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बी. के. किकानी का कहना है, 'इस साल गुजरात में आम के लिए ठंड का मौसम उतना अच्छा नहीं था। यह वक्त आम की बौर तैयार होने का समय होता है ऐसे में मौसम ठीक नहीं है ऐसे में नुकसान हो सकता है। इस साल गर्मी में आम की आवक देर से होगी।'
गुजरात में लगभग तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती की जाती है। गुजरात राज्य के जूनागढ़, भावनगर, बलसाड, नवसारी, सासन और तलाला गिर, विस्वादर, सवर्णकुंडला और कच्छ कुछ ऐसे इलाके हैं जहां आम की खेती होती है।
पिछले साल तालाला कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी)में 10 लाख आम के बक्से आए, इन बक्सों में हर एक में 10 किलोग्राम आम होता है। इस बाजार समिति में केसर आम की किस्में खासतौर पर मिलती है।
तलाला एपीएमसी के सचिव हरसुखभाई जरसानिया ने किस्मों की बात करते हुए कहा, 'इस साल 10-15 मई तक केसर आम की किस्में बाजार में आनी शुरू हो जाएगी। आमतौर पर यह हर साल मार्च के अंतिम हफ्ते में ही आना शुरू हो जाता है। दरअसल अब आम के पेड़ पर बौर देर से लगेगी। सामान्य हालात में आम की बौर जनवरी के अंतिम हफ्ते और फरवरी के मध्य के बीच आते हैं। लेकिन इस साल इस आम के आने में काफी देरी हो सकती है क्योंकि ठंड का मौसम उतना बढ़िया नहीं था।'
कच्छ के बाटुकसिन्ह जाडेजा का कहना है, 'आम के उत्पादन के बारे में अभी कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन इस मौसम में आम की आवक में देरी जरूर होगी। मौसम में अब थोड़ी गर्मी आना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो खराब मौसम की वजह से कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।' (BS Hindi)
कृषि उत्पादन ने किया निराश
नई दिल्ली February 27, 2009
खरीफ सत्र के दौरान विभिन्न फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट के कारण चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के उत्पादन में पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 2.2 फीसदी कमी दर्ज हुई ।
जबकि वित्त वर्ष 2007-08 की अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही के दौरान कृषि वन और मत्स्यिकी क्षेत्रों में 6.9 फीसदी वृध्दि दर दर्ज हुई थी। केंद्रीय साख्यिकी संस्थान ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृध्दि दर के तिमाही आंकड़े जारी किए।
इन आंकड़ों में कृषि क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के लिए चालू वित्त वर्ष के खरीफ सत्र में मोटे अनाज दाल तिलहन गन्ना और कपास के उत्पादन को जिम्मेदार ठहराया हालांकि चावल के उत्पादन में थोड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
सीएसओ ने एक बयान में कहा, '2008-09 के दौरान चावल में 3.4 फीसदी की वृध्दि दर दर्ज हुई जबकि मोटे अनाज के उत्पादन में 13.2 फीसदी की कमी और दालों के उत्पादन में 24.7 फीसदी की कमी दर्ज हुई।'
कृषि क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के बारे में योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन ने कहा कि यदि आप इस साल के दूसरे उत्पादन अनुमान का पिछले साल के दूसरे अनुमान से मुकाबला करे तो इस वर्ष भी उत्पादन में वृध्दि ही दिखेगी।
इस क्षेत्र की मौजूदा वृध्दि दर सरकार द्वारा इस महीने की शुरुआत में जारी उत्पादन के संबंध में जारी दूसरे अनुमान पर आधारित है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 18 फीसदी रह गया है पर विश्व के इस दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश में अभी भी 60 फीसदी लोगों जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं।
सीएसओ ने कहा कि वाणिज्यिक फसलों में चालू वित्त वर्ष के दौरान खरीफ सत्र में तिलहन का उत्पादन 21. 2 फीसदी घटा जबकि कपास और गन्ने का उत्पादन भी क्रमश: 14.4 फीसदी और 16.6 फीसदी गिरने का अनुमान है।
हालांकि फल सब्जी से जुड़ी फसलों में छह फीसदी पशुधन में 5.5 फीसदी और मत्स्यिकी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। (BS Hindi)
खरीफ सत्र के दौरान विभिन्न फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट के कारण चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के उत्पादन में पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 2.2 फीसदी कमी दर्ज हुई ।
जबकि वित्त वर्ष 2007-08 की अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही के दौरान कृषि वन और मत्स्यिकी क्षेत्रों में 6.9 फीसदी वृध्दि दर दर्ज हुई थी। केंद्रीय साख्यिकी संस्थान ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृध्दि दर के तिमाही आंकड़े जारी किए।
इन आंकड़ों में कृषि क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के लिए चालू वित्त वर्ष के खरीफ सत्र में मोटे अनाज दाल तिलहन गन्ना और कपास के उत्पादन को जिम्मेदार ठहराया हालांकि चावल के उत्पादन में थोड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
सीएसओ ने एक बयान में कहा, '2008-09 के दौरान चावल में 3.4 फीसदी की वृध्दि दर दर्ज हुई जबकि मोटे अनाज के उत्पादन में 13.2 फीसदी की कमी और दालों के उत्पादन में 24.7 फीसदी की कमी दर्ज हुई।'
कृषि क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के बारे में योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन ने कहा कि यदि आप इस साल के दूसरे उत्पादन अनुमान का पिछले साल के दूसरे अनुमान से मुकाबला करे तो इस वर्ष भी उत्पादन में वृध्दि ही दिखेगी।
इस क्षेत्र की मौजूदा वृध्दि दर सरकार द्वारा इस महीने की शुरुआत में जारी उत्पादन के संबंध में जारी दूसरे अनुमान पर आधारित है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 18 फीसदी रह गया है पर विश्व के इस दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश में अभी भी 60 फीसदी लोगों जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं।
सीएसओ ने कहा कि वाणिज्यिक फसलों में चालू वित्त वर्ष के दौरान खरीफ सत्र में तिलहन का उत्पादन 21. 2 फीसदी घटा जबकि कपास और गन्ने का उत्पादन भी क्रमश: 14.4 फीसदी और 16.6 फीसदी गिरने का अनुमान है।
हालांकि फल सब्जी से जुड़ी फसलों में छह फीसदी पशुधन में 5.5 फीसदी और मत्स्यिकी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। (BS Hindi)
सोना कारोबार में स्टॉकिस्ट हावी
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में करीब 12 डॉलर की तेजी आने से घरेलू बाजारों में सोने की तेजी को बल मिला है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) वायदा कारोबार में भी करीब 510 रुपए की तेजी देखने को मिली। हालांकि घरेलू बाजार में ऊंचे भावों में सोने में मांग का अभाव है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ-साथ घरेलू बाजारों में भी सोने में स्टॉकिस्टों की सट्टेबाजी चरम पर है। इसलिए निवेशकों को ऊंचे स्तरों पर खरीदारी से परहेज करना चाहिए।दिल्ली के भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के भावों में करीब 12 डॉलर प्रति औंस की तेजी आने से दिल्ली सराफा बाजार में भी सोने के भावों में 80 रुपए की तेजी आकर भाव 15,350 रुपए प्रति दस ग्राम हो गए। अंतराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में 12 डॉलर की तेजी आकर भाव 951 डॉलर प्रति औंस हो गए। जानकारों के अनुसार घरेलू बाजार में निवेशकों के साथ-साथ गहनों की मांग का भी अभाव है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार की तेजी से घरेलू बाजार में इसके भाव तेज बने रह सकते हैं। मुनाफावसूली से घरेलू बाजारों में चालू सप्ताह में सोने की कीमतों में करीब 4 फीसदी की गिरावट आई थी जबकि एमसीएक्स पर भी सोने के अप्रैल महीने के वायदा में इस दौरान लगभग 4.3 फीसदी गिरावट आई थी। अंतराष्ट्रीय बाजार का हाल अंतराष्ट्रीय बाजार में 9 फरवरी को सोने के दाम 900 डॉलर प्रति औंस पर थे। इन भावों में निवेशकों की भारी खरीदारी से 20 फरवरी को कीमतें बढ़कर ऊपर में 1005 डॉलर प्रति औंस हो गई थी। लेकिन ऊंचे भावों में मुनाफावसूली से चालू सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके भावों में करीब 67 डॉलर की गिरावट आकर नीचे में भाव 938 प्रति औंस रह गए थे। शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम 938 डॉलर पर खुले और निवेशकों की खरीद बढ़ने से 12 डॉलर की तेजी आकर भाव 951 डॉलर प्रति औंस हो गए। घरेलू बाजार की स्थिति ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि दिल्ली सर्राफा बाजार में 9 फरवरी को सोने के दाम 14,320 रुपए प्रति दस ग्राम थे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी के असर से घरेलू बाजार में भी 20 फरवरी तक इसकी कीमतों में करीब 11 फीसदी की बढ़त आकर ऊंचे में भाव 15,910 रुपए प्रति दस ग्राम हो गए। ऊंचे भावों में निवेशकों की मुनाफावसूली से चालू सप्ताह में इसके भावों में करीब 4 फीसदी की गिरावट आकर भाव 15,350 रुपए प्रति दस ग्राम रह गये। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले घटकर 51 रुपए के स्तर पर पहुंच गया। ऐसा निर्यातकों की ओर से डॉलर में मांग बढ़ने से हुआ है। दूसरा कच्चे तेलों की कीमतों में भी चालू सप्ताह में करीब चार-पांच डॉलर प्रति बैरल का सुधर करीब 43 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। जिससे सोने की तेजी को बल मिला है। दिल्ली के ज्वैलर्स वीके गोयल ने बताया कि इतने ऊंचे भाव में आम निवेशक बाजार से दूरी बनाए हुए हैं। ब्याह-शादियों का सीजन भी लगभग समाप्त हो गया है। इसलिए मार्च महीने में गहनों की मांग भी कमजोर रहेगी। वैसे भी मार्च क्लोजिंग का असर पर खरीद पर पड़ेगा। ऐसे में घरेलू बाजार में मांग को देखते हुए तो भाव में गिरावट की उम्मीद है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुख पर ही घरेलू बाजारों की तेजी-मंदी निर्भर करेगी।सोने का आयात घटामुंबई बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने बताया कि ऊंचे भावों का आलम ये है कि फरवरी महीने में देश में सोने का आयात ही नहीं हुआ। पिछले वर्ष फरवरी महीने में सोने का आयात 23 टन का हुआ था। जनवरी महीने में भी देश में सोने का मात्र दो टन का आयात हुआ है। जबकि पिछले वर्ष जनवरी महीने में 18 टन सोने का आयात हुआ था। देश में कुल खपत का करीब 80 फीसदी सोना आयात होता है। इसलिए घरेलू बाजारों में सोने की तेजी-मंदी अंतरराष्ट्रीय बाजार के भावों पर निर्भर करती है।वायदा बाजारपॉसिबल वैल्थ ट्रेड के डायरेक्टर हनीश कुमार सिन्हा ने बताया कि मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर फरवरी महीने में सोने ने रिकार्ड स्तर छुआ। एमसीएक्स पर अप्रैल महीना वायदा के भाव नौ अप्रैल को 13,915 रुपए थे, लेकिन निवेशकों की भारी खरीद से 20 फरवरी को इसके दाम रिकार्डस्तर 16,040 रुपए प्रति दस ग्राम हो गए। इस दौरान इसमें करीब 15.5 फीसदी की तेजी आई। इन भावों में मुनाफावसूली आने से चालू सप्ताह में करीब 4.3 फीसदी की गिरावट आकर भाव नीचे में 15,350 रुपए प्रति दस ग्राम रह गए थे। शुक्रवार को अप्रैल महीने के वायदा भाव में करीब 510 रुपए की तेजी आकर 15,680 रुपए प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखा गया। (Business Bhaskar...R S Rana)
उत्पादक क्षेत्रों में बारिश न होने से बोल्ड क्वालिटी इलायची की कमी
इलायची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में पिछले डेढ़ महीने से वर्षा नहीं हुई है। इसलिए बोल्ड क्वालिटी (आठ एमएम) के माल कम आने से भावों में तेजी की आने लगी है। इस समय इलायची की पांचवीं तुड़ाई चल रही है तथा बोल्ड क्वालिटी की आवक मात्र 10 से 15 फीसदी की ही हो रही है। जबकि निर्यातकों की मांग अच्छी बनी हुई है। भारत से बोल्ड क्वालिटी की इलायची का निर्यात ज्यादा होता है। ऐसे में अगर आगामी आठ-दस दिनों में वर्षा नहीं होती है तो इलायची के भावों में मजबूती आ सकती है। केरल की कुमली मंडी के इलायची व्यापारी अरुण अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि उत्पादक क्षेत्रों में पिछले डेढ़ महीने से वर्षा नहीं हुई है जिसकी वजह से बोल्ड क्वालिटी के मालों की आवक घटकर 10 से 15 फीसदी ही रह गई है। बोल्ड क्वालिटी में निर्यातकों की मांग अच्छी बनी हुई है इसलिए अगर अगले आठ-दस दिन फसल के लिए लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होंगे। इस दौरान अगर वर्षा नहीं होती है फिर इलायची के मौजूदा भावों में तेजी बन सकती है।उत्पादक मंडी में इलायची के भाव 6.5 एमएम के 590 से 600 रुपये, 7 एमएम के 615 से 620 रुपये, 7.5 एमएम के 640 से 650 रुपये और 8 एमएम के भाव 675 से 680 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। अगर वर्षा नहीं होती है तो फिर छठी तुड़ाई में इलायची की आवक तो कम रहेगी ही साथ ही बोल्ड क्वालिटी की आवक न के बराबर होगी। उत्पादक क्षेत्रों में सामान्य वर्षा होती रहे तो इलायची की सात से आठ तुड़ाई तक हो जाती हैं।मुंबई स्थित इलायची के निर्यातक मूलचंद रुबारल ने बताया कि निर्यातकों की मांग बराबर बनी हुई है। भारतीय इलायची के भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्यारह से साढ़े पंद्रह डॉलर प्रति किलो क्वालिटी के अनुसार चल रहे हैं। उधर ग्वाटेमाला की इलायची के भाव ग्यारह से तेरह डॉलर प्रति किलो क्वालिटी के अनुसार बोले जा रहे हैं। भारतीय इलायची की क्वाल्टिी ग्वाटेमाला से अच्छी होने के कारण भारत से मांग बराबर बनी हुई है। ग्वाटेमाला के मुकाबले भारतीय इलायची का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग ढ़ाई से तीन डॉलर प्रति किलो तेज रहता है। उन्होंने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में इलायची का उत्पादन 12,000 टन होने की संभावना है जोकि पिछले वर्ष से ज्यादा है। पिछले वर्ष प्रतिकूल मौसम से देश में इलायची का उत्पादन घटकर 9भ्त्तक् टन का ही हुआ था। उधर ग्वाटेमाला में इलायची का उत्पादन पिछले वर्ष के 22,000 टन के मुकाबले घटकर 18,000 से 19,000 टन ही होने की आशंका है। प्रतिकूल मौसम से वहां उत्पादन में गिरावट आई है।भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी तक देश से इलायची का निर्यात बढ़कर 475 टन का हो चुका है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 400 टन का ही हुआ था। (Business Bhaskar...R S Rana)
फरवरी में ऊंचे भाव पर सोने का आयात शून्य
भले ही सोना नई ऊंचाइयां छू रहा हो लेकिन इसकी मांग और खपत काफी घट गई है। यही वजह है कि सोने का आयात फरवरी माह में शून्य पर पहुंच गया। जनवरी में आयात 90 फीसदी घटकर मात्र 10 फीसदी रह गया था। लेकिन इससे अप्रभावित विदेशी बाजार में सोना और चढ़ गया। इसके साथ घरेलू बाजार में भी गिरावट थम और भाव बढ़ने लगे। ऊंचे भाव का असर सोने के आयात पर पड़ा है। विदेशी बाजार में सोने की कीमतों में भारी तेजी से देश में फरवरी महीने में सोने का आयात ही नहीं हुआ। मुंबई बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने बताया कि पिछले वर्ष फरवरी महीने में देश में 23 टन सोने का आयात हुआ था। इस साल जनवरी माह में सिर्फ दो टन सोने का आयात हुआ था जो पिछले साल के जनवरी माह के मुकाबले 90 फीसदी कम रहा था। पिछले वर्ष जनवरी महीने में देश में 18 टन सोने का आयात हुआ था।लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में शुक्रवार को सोने की कीमतों में 24 डॉलर की धमाकेदार तेजी आई और भाव 962 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 26 फरवरी को सोने के भाव 945 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुए थे। अंतरराष्ट्रीय तेजी के असर से दिल्ली सराफा बाजार में भी सोने की कीमतों में 80 रुपये की तेजी आकर भाव 15,350 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट और कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी से भी सोने की तेजी को बल मिला है।ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष एस. सी. जैन ने बताया कि भाव ऊंचे होने के कारण घरेलू बाजारों में सोने में मांग काफी कमजोर है। ब्याह-शादियों का सीजन भी लगभग समाप्त हो गया है। मार्च महीने में क्लोजिंग के कारण भी खरीद कम होती है। ऐसे में आगामी दिनों में घरेलू बाजारों में सोने की कीमतों में गिरावट ही आनी चाहिए। सोना आयात शून्य पर पहुंचने के तथ्य को ज्यादा अहमियत न देते हुए जैन का मानना है कि भारतीय सोने के भाव विदेशी बाजार के अनुसार ही तय होंगे क्योंकि पिछले वर्षो के खपत आंकड़ों के अनुसार भारत घरेलू खपत का करीब 80 फीसदी सोना विदेशों से आयात करता है।अंतरराष्ट्रीय बाजार में चालू महीने में सोने के भाव बढ़कर 1005 डॉलर प्रति औंस पर हो गये थे जिसके कारण दिल्ली सराफा बाजार में भी सोने के रिकार्ड भाव 15,910 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए थे। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट और चालू सप्ताह में कच्चे तेल की कीमतों में सुधार आया है। (Business Bhaskar....R S Rana)
भारतीय पाम तेल आयातक कंपनी पर आर्ब्रिटेशन शुरू
मलेशिया की पाम तेल निर्यातक कंपनी कालमार्ट सिस्टम्स (एम) बीएचडी ने भारतीय डिफाल्टर आयातकों के खिसाफ मलेशिया के पाम ऑयल रिफाइनर्स एसोसिएशन में मध्यस्थता (आर्ब्रिटेशन) की कार्यवाही शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल के अंत में वैश्विक बाजारों में पाम तेल की कीमतों में आई गिरावट की वजह से भारतीय आयातकों ने पाम तेल के आयात सौदों की डिलीवरी लेने से इंकार कर दिया था। इस क्रम में मलेशियाई निर्यातकों ने कई भारतीय कंपनियां को डिफाल्टर करार दिया है। जिनमें से कई को ब्लैक लिस्टेड भी होना पड़ा। कालमार्ट के प्रबंध निदेशक एन. वी. अवलानी ने बताया कि भारत की कंपनी रॉयल एनर्जी लिमिटेड अनुबंध की शर्तो को पूरा नहीं कर सकी है। लिहाजा उस कं पनी के खिलाफ आर्ब्रिटेशन की प्रक्रिया शुरू की गई है। उन्होंने बताया कि पिछले साल रॉयल एनर्जी को करीब दो हजार टन पाम फैटी एसिड डिस्टीलेट बेचा गया था। यह सौदा करीब 712.50 डॉलर प्रति टन मुंबई पोर्ट डिलीवरी के भाव हुआ था। लेकि न कंपनी ने सौदे का थोड़े से माल की डिलीवरी ली है। भारी मात्रा की डिलीवरी निरस्त कर दी। जिससे निर्यातक को नुकसान उठाना पड़ा। रॉयल एनर्जी मुंबई की कंपनी है, जो बायोडीजल बनाती है। कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशेष अग्रवाल ने बताया कि इस मामले में ऑर्ब्रिटेटर चुनने की प्रक्रिया जारी है। उन्होंने बताया कि कालमार्ट से एक -एक हजार टन के दो आयात सौदे हुए थे। जिसमें से एक सौदे की डिलीवरी कंपनी ले चुकी है। लेकिन उसके बाद वैश्विक बाजारों में पाम तेल की कीमतों में आई तगड़ी गिरावट की वजह से कंपनी को दूसरे सौदे क डिलीवरी निरस्त करनी पड़ी। मौजूदा समय में पीएफएडी 330 डॉलर प्रति टन के एफओबी भाव पर माल बेच रही है। कालमार्ट के अवलानी ने कहा कि डिलीवरी के लिए भाव में बदलाव के साथ कंपनी डिलीवरी तिथि में भी बदलाव कर रही है। लेकिन रॉयल एनर्जी लिमिटेड अब तक लेटर ऑफ क्रेडिट जारी नहीं कर पाई है। उधर अग्रवाल ने इस तरह के आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए कहा कि उनकी कंपनी हर महीने करीब एक से दो हजार टन मात्रा का आयात कर रही है। (Business Bhaskar)
आगामी सीजन में गन्ना उत्पादन बढ़ने का सरकारी दावा
घरेलू बाजारों में चीनी की कीमतों में जारी तेजी को रोकने के क्रम में अब सरकार ने एक और दूसरा रास्ता अपनाया है। सरकार ने अगले साल के दौरान देश में गन्ने का उत्पादन बढ़ने की संभावना जताई है। कृषि सचिव टी नंद कुमार ने दावा किया है कि किसानों को गन्ने की बेहतर कीमतें मिलने की वजह से आगामी सीजन के दौरान गन्ने का रकबा बढ़ सकता है। जिसका असर गन्ने और चीनी के उत्पादन पर पड़ना तय है। चालू सीजन के दौरान गन्ने के उत्पादन में करीब 17 फीसदी की गिरावट आने से चीनी उत्पादन में भी कमी देखी जा रही है। ऐसे में करीब 29.04 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन होने की संभावना है। जिससे करीब 165 लाख टन चीनी उत्पादन होने की उम्मीद जताई जा रही है। कृषि सचिव टी नंद कुमार ने बताया कि मौजूदा समय में चल रहे प्राईसवार से किसानों को गन्ने की बेहतर कीमतें मिल रही हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की कीमत 140 से 145 रुपये क्विंटल है। जिस पर चीनी मिलें किसानों को 15 रुपये अतिरिक्त कीमत दे रही हैं। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार आगामी सीजन के लिए गन्ने के एसएमपी में इजाफा करने पर विचार कर रही है। जिसकी घोषणा जल्दी ही होने की उम्मीद है। खाद्य मंत्रालय ने आगामी सीजन के लिए गन्ने के एसएमपी को मौजूदा 81.18 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 107.76 रुपये प्रति क्विंटल करने का सुझाव दिया है। चीनी की बढ़ती कीमतों पर नकेल लगाने के लिए सरकार ने एसएमपी बढ़ाने का संकेत दिया है। दरअसल मौजूदा साल का उत्पादन और पिछले साल के बकाया स्टॉक के साथ चीनी घरेलू खपत के मुकाबले उपलब्धता कम रह सकती है। इस बीच यदि गन्ने के रकबे में इजाफा होता है तो बाजार में आगामी सीजन के दौरान चीनी के उत्पादन में भी बढ़त का संदेश जाएगा। जिसका असर कीमतों में नरमी के रुप में देखा जा सकता है। मार्च के बाद से देश के कई हिस्सों में गन्ने की रोपाई का काम शुरू हो जाएगा। (Business Bhaskar)
हट सकती है गैर बासमती निर्यात की रोक : एफएओ
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) का आंकलन है कि इस साल भारत में चावल की बंपर फसल होने के कारण गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाया जा सकता है। संगठन की फरवरी माह की मार्केट मॉनीटर रिपोर्ट में कहा गया है कि चावल निर्यात पर प्रतिबंध अप्रैल या मई में हट सकता है। आम चुनाव अगले कुछ महीनों में होने वाले है। ऐसे में चावल निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का नीतिगत फैसला नई सरकार मई के अंत या जून के शुरू में ही ले सकेगी। दुनिया के प्रमुख चावल आपूर्तिकर्ता देशों में प्रमुख भारत व मिस्र ने अपने यहां महंगाई की आशंका को देखते हुए निर्यात पर रोक लगा रखी है। सरकार ने अप्रैल में गैर बासमती चावल निर्यात पर रोक लगाई थी। प्रतिबंध हटाने के बाद चावल निर्यात बढ़ सकता है। इस साल अब तक 40 लाख टन चावल निर्यात हो चुका है जबकि पिछले साल इस दौरान 36 लाख टन निर्यात हुआ था। भारत से बासमती चावल का बड़े पैमाने पर निर्यात हो रहा है। वर्ष 2008-09 के दौरान भारत में 9.88 करोड़ टन धान पैदा होने का अनुमान है। (Business Bhaskar)
27 फ़रवरी 2009
आवक बढ़ने के बाद भी निर्यातकों की मांग से हल्दी में तेजी का रुख
हल्दी की आवक उत्पादक मंडियों इरोड़ और निजामाबाद में बढ़कर 20 हजार बोरी (एक बोरी 70 किलो) की हो गई है। आवक बढ़ने के बावजूद निर्यातकों और स्टॉकिस्टों की मांग अच्छी होने से पिछले दो-तीन दिनों में 125 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी देखी गई। चालू फसल सीजन में देश में हल्दी का उत्पादन तो पिछले वर्ष के लगभग बराबर ही होने की संभावना है लेकिन बकाया स्टॉक पिछले वर्ष से काफी कम है। इसलिए हल्दी के भावों में तेजी का रुख कायम रह सकता है। वायदा बाजार में भी पिछले दो दिनों में करीब छह फीसदी की तेजी आ चुकी है।निजामाबाद मंडी के हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू सीजन में हल्दी की पैदावार 42 लाख बोरी होने की संभावना है जबकि पिछले वर्ष इसकी पैदावार 43 लाख बोरी की हुई थी। हालांकि पैदावार में तो पिछले साल के मुकाबले ज्यादा कमी नहीं आने का अनुमान नहीं है लेकिन उत्पादक मंडियों में हल्दी का बकाया स्टॉक मात्र पांच से छह लाख बोरी का ही बचा है। पिछले वर्ष नई फसल की आवक के समय बकाया स्टॉक करीब 13 से 14 लाख बोरी का बचा था। अत: उत्पादन और बकाया स्टॉक मिलाकर चालू सीजन में कुल उपलब्धता 47 से 48 लाख बोरी की होगी। घरेलू और निर्यात को मिलाकर सालाना हल्दी की कुल खपत करीब 46 से 47 लाख बोरी की होती है। ऐसे में अगले वर्ष नई फसल के समय बकाया स्टॉक लगभग न के बराबर बचेगा। इसलिए चालू सीजन में हल्दी के भाव तेज ही बने रहने की संभावना है।इरोड़ मंडी के हल्दी व्यापारी सुभाष चंद ने बताया कि भावों में तेजी को देखते हुए किसानों की बिकवाली भी हल्की है। पिछले तीन दिनों में यहां इसके भावों में करीब 150 रुपये की तेजी आकर भाव 4400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इस दौरान मंडी में नई फसल की आवक बढ़कर करीब 13,000 बोरी की हो गई। निर्यातकों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की अच्छी मांग से तेजी को बल मिल रहा है। उधर निजामाबाद मंडी में भी आवक बढ़कर 7,000 बोरी की हो गई तथा यहां इसके भाव में 125 रुपये की तेजी आकर भाव 4150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। अन्य उत्पादक मंडियों सांगली, वारंगल, डुग्गीराला, नानंदेड, सेलम और बुहरानपुर आदि में नई फसल की आवक होली के बाद ही बनेगी। ऐसे में आवक का दबाव बढ़ने पर हल्की गिरावट तो आ सकती है लेकिन पूरे सीजन भाव तेज ही बने रहने की संभावना है। नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में स्टॉकिस्टों की सक्रियता से हल्दी में पिछले दो दिनों में छह फीसदी की तेजी आकर मई महीने के वायदा भाव बढ़कर 4535 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उत्पादक मंडियों में आवक कम होने से स्टॉकिस्टों का मनोबल बढ़ा हुआ है। इसलिए वायदा बाजार में इसके भावों में और भी तेजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी तक भारत से हल्दी के निर्यात में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 47,000 टन का हो चुका है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 40,715 टन का हुआ था। (BS Hindi)
राजस्थान में जौ उत्पादन अस्सी फीसदी बढ़ने की संभावना
राजस्थान में इस साल जौ की पैदावार बढ़कर 9.85 लाख टन होने का अनुमान है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब 80 फीसदी ज्यादा होगी। राज्य के दौसा व भीलवाड़ा की मंडियों में नए माल की आवक शुरू होने से पिछले तीन दिन में पुराने जौ की कीमतों में 12 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है जबकि नया जौ पिछले वर्ष की तुलना में करीब बीस फीसदी सस्ता बिक रहा है।राजस्थान कृषि निदेशालय के मुख्य सांख्यिकीय अधिकारी पन्नालाल के अनुसार राज्य में इस साल रबी सीजन के दौरान जौ का रकबा करीब चालीस फीसदी बढ़कर 3.54 लाख हैक्टेयर रहा। वहीं मौसम अनुकूल रहने से उत्पादकता भी 21.65 क्विंटल से बढ़कर 27.88 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होने की संभावना के चलते जौ उत्पादन 9.85 लाख टन होने का अनुमान लगाया गया है। पिछले वर्ष रबी सीजन में मौसम खराब होने से सभी जिंसों की पैदावार में कमी आई थी। जौ का भी उत्पादन घटकर 5.40 लाख टन रह गया था। इस लिहाज से देखें तो इस साल जौ की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले 80 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान है।जयुपर के थोक व्यापारी चंद्रभान ने बताया कि दौसा व भीलवाड़ा में रोजाना 1000 से 1500 बोरी नया जौ आने लगा है। दौसा में नए जौ के भाव 700 से 725 रुपए व भीलवाड़ा में 800 से 825 रुपए क्विंटल खुले हैं जो कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब बीस फीसदी कम है। उन्होंने बताया कि इस साल राजस्थान और हरियाणा में ही करीब पांच लाख बोरी जौ का स्टॉक बचा होने के अलावा उत्पादन में बढ़ोतरी का भी अनुमान है। इससे जौ में पिछले वर्ष जैसे भाव बने रहना मुकिश्ल है। लेकिन जौ के भाव 700 रुपए से नीचे उतरने की संभावना भी कम है क्योंकि इस भाव पर माल्ट फैक्ट्रियां और स्टॉकिस्ट खरीदने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। जयपुर के ही एक अन्य थोक कारोबारी के. जी. झालानी के मुताबिक नए जौ की आवक शुरू होने से स्टॉकिस्टों ने पुराना माल निकालना शुरू कर दिया है। इससे सोमवार से गुरुवार तक चार दिन में जयपुर मंडी में पुराने जौ के भाव करीब 12 फीसदी घटकर 750 से 800 रुपए क्विंटल रह गए। उन्होंने बताया कि मांग में कमी और उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ पुराना माल काफी होने से फिलहाल जौ में सुधार की संभावना कम है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष अगस्त में जौ के भाव 1100 रुपए क्विंटल तक पहुंच गए थे।केंद्र सरकार ने चालू वर्ष 2008-09 में देश में जौ के उत्पादन का लक्ष्य 15 लाख टन का रखा है। पिछले वर्ष 2007-08 में देश में जौ का उत्पादन 12.3 लाख टन का हुआ था। देश में जौ का उत्पादन मुख्यत: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा और गुजरात में होता है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग माल्ट इंडस्ट्री में होता है। पिछले साल देश में जौ का अच्छा निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar)
फर्टिलाइजर में 5 साल में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत
नई दिल्ली: भारत अगले पांच साल में इस स्थिति में पहुंच सकता है कि उसे उर्वरकों के आयात की जरूरत न पड़े। सरकार उर्वरकों के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए बंद पड़े 8 कारखानों को चालू करने की योजना बना रही है। इसमें कुल 32,000 करोड़ रुपए निवेश करना होगा। यह योजना इस लिहाज से अहम है कि देश के भारी-भरकम सब्सिडी बिल में उर्वरकों की प्रमुख हिस्सेदारी है। उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी ने गुरुवार को संवाददाताओं को यहां बताया कि ये कारखाने चालू हो जाएं तो पांच वर्षों में उर्वरक आपूर्ति और मांग के बीच 60-70 लाख टन का अंतर खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पांच साल के भीतर मांग और आपूर्ति का अंतर समाप्त हो जाएगा। उस समय तक मांग करीब 2.8 करोड़ टन होने की संभावना है। चतुर्वेदी ने बताया कि इस समय उर्वरक उत्पादन करीब दो करोड़ टन है जबकि सालाना मांग करीब 2.6 करोड़ टन है। इस वित्त वर्ष की शुरुआत में वैश्विक बाजार में उर्वरक की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण 2008-09 में फर्टिलाइजर सब्सिडी बिल दोगुना होकर 1,02,000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। आयात घटाने के लिए पिछले साल अक्टूबर में कैबिनेट ने सचिवों की विशेषाधिकार प्राप्त समिति के गठन को मंजूरी दी थी और इसका मुखिया उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी को बनाया गया था ताकि फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआईएल) की पांच इकाइयों और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन (एचएफसीएल) की तीन इकाइयों को नए सिरे से चालू करने के लिए उपयुक्त वित्तीय मॉडल चुना जा सके। उर्वरक मंत्रालय के अनुमान के अनुसार इन कारखानों को चालू करने के लिए हर कारखाने पर कम से कम 4,000 करोड़ रुपए का निवेश करना पड़ेगा। एक कारखाने से करीब 12 लाख टन उर्वरक उत्पादन हो सकेगा। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गुरुवार को एचएफसीएल की असम इकाई ब्रह्मापुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन में घाटे के बावजूद उत्पादन जारी रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। (ET Hindi)
कीमती धातुओं के आयात के लिए और एजेंसियां होंगी नॉमिनेट
अहमदाबाद: लेखानुदान में निराशा झेल चुके जेम्स और ज्वैलरी सेगमेंट के लिए गुरुवार को पेश अंतरिम फॉरेन ट्रेड पॉलिसी कुछ खुशियां लेकर आई। वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमलनाथ द्वारा पेश नई पॉलिसी में और एजेंसियों को कीमती धातुओं के आयात के लिए नॉमिनेट किया जा सकेगा। अभी डायमंड इंडिया लिमिटेड, एमएसटीसी लिमिटेड, जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल और स्टार ट्रेडिंग को ही कीमती धातुओं के आयात की इजाजत है। इंडस्ट्री ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे सोने की अनियमित आपूर्ति को दुरुस्त किया जा सकेगा और जेम्स और ज्वैलरी निर्यात में भी मदद मिलेगी। दूसरी छूट जैसे प्रीमियर ट्रेडिंग हाउस के लिए स्लैब को 10,000 करोड़ रुपए के टर्नओवर से घटाकर 7,500 करोड़ रुपए करने और काम किए गए मांगों के ऊपर आयात प्रतिबंध हटाने से भी इंडस्ट्री राहत की सांस ले रही है। एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स (ईपीसीजी) स्कीम के तहत सरकार ने निर्यात में पांच फीसदी से अधिक गिरावट आने पर निर्यात शर्तों में ढील दी है। इसके अलावा सूरत को भी टाउन ऑफ एक्सपोर्ट एक्सीलेंस का दर्जा दिया है। जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के चेयरमैन वसंत मेहता का कहना है, 'सोने के आयात के लिए ज्यादा एजेंसियों को इजाजत देने के कदम को जेम्स और ज्वैलरी कारोबार के लिए अच्छा कदम माना जा सकता है। लंबे समय से हम यह मांग कर रहे थे क्योंकि सोने के वितरण में एकरूपता नहीं है। इस अनियमित आपूर्ति के कारण पूरे निर्यात पर असर पड़ रहा था। इसे अब सुलझाया जा सकेगा।' कंसल्टेंट भी इस बात से सहमत हैं। एटी कर्नी के प्रिंसिपल नीलेश हुंदेकारी का कहना है, 'इस कदम से न सिर्फ निर्यातकों को बल्कि घरेलू इंडस्ट्री को भी लाभ मिलेगा। आपूर्तिकर्ताओं की संख्या बढ़ने से इंडस्ट्री घरेलू बाजार में भी बेहतर कर सकेगी। घरेलू इंडस्ट्री पिछले चार साल से यह 19 फीसदी की सीएजीआर के साथ बढ़ रही है।' उनका कहना है कि आज की तारीख में भारतीय सोने का बाजार 27 अरब डॉलर का है और इसमें सबसे ज्यादा योगदान शादी उद्योग का है। इंडस्ट्री का कहना है कि इस कदम से ज्वैलरी निर्यात भी बढ़ेगा। जीजेईपीसी के पूर्व चेयरमैन संजय कोठारी का कहना है, 'कीमती धातु के आयात के लिए अधिक एजेंसियों को नामित करने से सोने की आपूर्ति बेहतर हो सकेगी और इससे ज्वैलरी निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा निर्यात में पांच फीसदी से अधिक गिरावट होने पर छूट की घोषणा से निर्यातकों को राहत मिलेगी।' (ET Hindi)
कालीमिर्च कारोबार में छाई मंदी
कोच्चि February 26, 2009
वैश्विक कालीमिर्च बाजार इस समय 2006 के संकट के बाद सबसे गंभीर दौर से गुजर रहा है। सभी उत्पादक इलाकों में दिन प्रतिदिन कालीमिर्च की कीमतें धराशायी हो रही हैं।
इस समय भारत में इसकी कीमतें 2006 के बाद गिरकर सबसे कम स्तर, 10,200 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। जून 2006 में एएसटीए ग्रेड की कालीमिर्च की कीमत गिरकर 6500-7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं तब सरकार ने निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी।
तीन साल पहले कालीमिर्च के कारोबार में संकट वैश्विक मांग में आई गिरावट की वजह से आया था। इस समय भी पूरी दुनिया में इसकी मांग में कमी आई है। खासकर यूरोप और अमेरिका इस गिरावट के पीछे प्रमुख वजह बनकर उभरे हैं।
यूरोपीय संघ और अमेरिका में मंदी के चलते रिटेल कारोबार प्रभावित हुआ और वहां पर इसकी खुदरा मांग में 40 प्रतिशत की कमी आई है। अब इस कारोबार को उबरने के लिए कोई समुचित उपाय नहीं सूझ रहा है।
कहा यह जा रहा है कि यूरोप स्टॉकिस्ट कालीमिर्च की खरीद के मामले में कोई जल्दी नहीं दिखा रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के ज्यादातर आयातकों के पास इस समय बड़ा स्टॉक है और उन्होंने खरीदारी उस समय की थी जब 2008 में कीमतें उच्चतम स्तर पर थीं। अब वे चाहते हैं कि पुराने स्टॉक से छुटकारा पा लिया जाए।
कोच्चि के एक प्रमुख निर्यातक के मुताबिक अमेरिका के खरीदार इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। यहां तक कि कालीमिर्च के सभी उत्पादक देशों ने इसकी कीमतें कम कर दी हैं। वियतनाम ने कीमतें कम करके 2000 डॉलर प्रति टन से कम कर दी है, लेकिन आयातक देशों की ओर से कोई मांग न होने के चलते स्थिति खराब है।
वहां पर 500 जीएल के लिए कीमतें 1650 डॉलर, 550 जीएल के लिए 1750 डॉलर और एएसटीए के लिए 1950 डॉलर प्रति टन कर दी है। लेकिन इतनी कम कीमतों के बावजूद भी मांग बहुत कमजोर है।
इससे लगता है कि भविष्य में कीमतें और नीचे जाएंगी। यूरोप के खरीदारों ने संकेत दिया है कि जीएल 500 को 1,500 डॉलर प्रति टन पर बेहतर समर्थन मिल सकता है। भारत ने 2250 डॉलर प्रति टन से कीमतें कम करके मार्च-जून के लिए 2100 डॉलर प्रति टन कर दिया है, लेकिन खरीदार नदारद हैं।
ऐसा ही कुछ संकट अन्य देशों के साथ भी है। ब्राजील ने 2150 डॉलर और इंडोनेशिया ने 2050 डॉलर प्रति टन का भाव लगाया है। अगर पिछले साल की समान अवधि से तुलना करें तो कीमतों को देखने से संकट का साफ पता चलता है।
वियतनाम ने मार्च 2008 में एएसटीए कालीमिर्च 4250 डॉलर प्रति टन के भाव से बेचा था, जो इस समय 2300 डॉलर प्रति टन पर बेचने को तैयार है। अगर मंदी का यह दौर आने वाले दिनों में भी जारी रहा, जो कालीमिर्च के कारोबार में ऐतिहासिक मंदी छाने का अनुमान लगाया जा रहा है। (BS HIndi)
वैश्विक कालीमिर्च बाजार इस समय 2006 के संकट के बाद सबसे गंभीर दौर से गुजर रहा है। सभी उत्पादक इलाकों में दिन प्रतिदिन कालीमिर्च की कीमतें धराशायी हो रही हैं।
इस समय भारत में इसकी कीमतें 2006 के बाद गिरकर सबसे कम स्तर, 10,200 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। जून 2006 में एएसटीए ग्रेड की कालीमिर्च की कीमत गिरकर 6500-7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं तब सरकार ने निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी।
तीन साल पहले कालीमिर्च के कारोबार में संकट वैश्विक मांग में आई गिरावट की वजह से आया था। इस समय भी पूरी दुनिया में इसकी मांग में कमी आई है। खासकर यूरोप और अमेरिका इस गिरावट के पीछे प्रमुख वजह बनकर उभरे हैं।
यूरोपीय संघ और अमेरिका में मंदी के चलते रिटेल कारोबार प्रभावित हुआ और वहां पर इसकी खुदरा मांग में 40 प्रतिशत की कमी आई है। अब इस कारोबार को उबरने के लिए कोई समुचित उपाय नहीं सूझ रहा है।
कहा यह जा रहा है कि यूरोप स्टॉकिस्ट कालीमिर्च की खरीद के मामले में कोई जल्दी नहीं दिखा रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के ज्यादातर आयातकों के पास इस समय बड़ा स्टॉक है और उन्होंने खरीदारी उस समय की थी जब 2008 में कीमतें उच्चतम स्तर पर थीं। अब वे चाहते हैं कि पुराने स्टॉक से छुटकारा पा लिया जाए।
कोच्चि के एक प्रमुख निर्यातक के मुताबिक अमेरिका के खरीदार इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। यहां तक कि कालीमिर्च के सभी उत्पादक देशों ने इसकी कीमतें कम कर दी हैं। वियतनाम ने कीमतें कम करके 2000 डॉलर प्रति टन से कम कर दी है, लेकिन आयातक देशों की ओर से कोई मांग न होने के चलते स्थिति खराब है।
वहां पर 500 जीएल के लिए कीमतें 1650 डॉलर, 550 जीएल के लिए 1750 डॉलर और एएसटीए के लिए 1950 डॉलर प्रति टन कर दी है। लेकिन इतनी कम कीमतों के बावजूद भी मांग बहुत कमजोर है।
इससे लगता है कि भविष्य में कीमतें और नीचे जाएंगी। यूरोप के खरीदारों ने संकेत दिया है कि जीएल 500 को 1,500 डॉलर प्रति टन पर बेहतर समर्थन मिल सकता है। भारत ने 2250 डॉलर प्रति टन से कीमतें कम करके मार्च-जून के लिए 2100 डॉलर प्रति टन कर दिया है, लेकिन खरीदार नदारद हैं।
ऐसा ही कुछ संकट अन्य देशों के साथ भी है। ब्राजील ने 2150 डॉलर और इंडोनेशिया ने 2050 डॉलर प्रति टन का भाव लगाया है। अगर पिछले साल की समान अवधि से तुलना करें तो कीमतों को देखने से संकट का साफ पता चलता है।
वियतनाम ने मार्च 2008 में एएसटीए कालीमिर्च 4250 डॉलर प्रति टन के भाव से बेचा था, जो इस समय 2300 डॉलर प्रति टन पर बेचने को तैयार है। अगर मंदी का यह दौर आने वाले दिनों में भी जारी रहा, जो कालीमिर्च के कारोबार में ऐतिहासिक मंदी छाने का अनुमान लगाया जा रहा है। (BS HIndi)
कागज, खाद्य और दवा उद्योग में स्टार्च की मांग से कीमतें उछलीं
मुंबई February 26, 2009
घरेलू बाजार के स्टार्च निर्माताओं को स्टार्च की मांग बढ़ने से काफी राहत मिली है। पिछले एक महीने से घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं ने स्टार्च की मांग बढ़ा दी है इसकी वजह से बाजार धारणा में मजबूती आई है।
इस उद्योग के खिलाड़ी मांग के बने रहने के प्रति बेहद आशावान हैं और उनका मानना है कि स्टार्च की कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं। स्टार्च मक्के से बनाया जाता है और इसके उपभोक्ताओं में कपड़ा उद्योग, दवा का क्षेत्र , कागज उद्योग और तरल ग्लूकोज निर्माता भी शामिल हैं।
स्टार्च उद्योग की मांग में पिछले साल गिरावट देखी गई थी। जिसकी वजह से इस उद्योग की जितनी क्षमता है उसके उपयोग में कमी आ गई। इसके अलावा ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य होने से मक्के की कीमतों में मजबूती आ गई और स्टार्च बनाने वालों की दिक्कतें भी बढ़ गईं।
मांग में कमी आने की वजह से स्टार्च की कीमतों में भी कमी आई और 50 किलोग्राम की बोरी 650 रुपये हो गई। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के प्रबंध निदेशक विशाल मजीठिया का कहना है, 'हालांकि अब स्टार्च की एक बोरी की कीमत 750 रुपये प्रति बोरी है। हमें उम्मीद है कि अप्रैल से एक बोरी की कीमत 800 रुपये हो जाएगी।'
प्रतिदिन उद्योगों की कुल मक्के की मड़ाई क्षमता 5,000 टन प्रति दिन है। मांग में बढ़ोतरी होने की वजह से जितनी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया था वह 75 फीसदी तक कम हो गया था अब उसमें सुधार हुआ है और यह इसका उपयोग 90 फीसदी तक हो रहा है।
दिल्ली के भारत स्टार्च इंडस्ट्री के महाप्रबंधक नवीन विज का कहना है, 'फूड इंडस्ट्री और कागज उद्योग में स्टार्च की खूब मांग बढ़ गई है। इसी वजह से उत्तरी भारत के बाजार में स्टार्च की कीमतें एक बोरी पर 100 रुपये और एक टन पर 2000 रुपया बढ़ गया है। वैसे कपड़ा उद्योग अभी थोड़ा मंदा पड़ा है इसी वजह से स्टार्च की उतनी मांग नहीं है।'
विज का कहना है कि आने वाले महीनों में कागज उद्योग के लिए मांग और बढ़ेगी और चुनाव को देखते हुए इस उद्योग में ज्यादा बढ़ोतरी होगी। इससे स्टार्च की कीमतों में बढ़ोतरी तो होगी ही या कीमतें स्थिर रहेंगी।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस. सेठ का कहना है कि मांग में मजबूती का रुख बना रहेगा। ऋद्धि सिद्धि ग्लूको बॉयल्स, गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट, सांघवी फूड्स कुछ बड़ी स्टार्च कंपनियों में शुमार हैं।
स्टार्च बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल में आने वाले मक्के की कीमतें 820-840 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर हैं। नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव एक्सचेंज पर बुधवार को मक्के का एक महीने का अनुबंध 818 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि पहले यह 823 रुपये पर बंद हुआ था।
मंदी में लौटीं खुशियां
प्रति 50 किलो की स्टार्च की बोरी में 100 रुपये का उछाल मांग में स्थिरता बने रहने की उम्मीदस्टार्च की कीमतों में हो सकता है और इजाफापिछले साल थी स्टार्च उद्योग की मांग में गिरावट (BS Hindi)
घरेलू बाजार के स्टार्च निर्माताओं को स्टार्च की मांग बढ़ने से काफी राहत मिली है। पिछले एक महीने से घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं ने स्टार्च की मांग बढ़ा दी है इसकी वजह से बाजार धारणा में मजबूती आई है।
इस उद्योग के खिलाड़ी मांग के बने रहने के प्रति बेहद आशावान हैं और उनका मानना है कि स्टार्च की कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं। स्टार्च मक्के से बनाया जाता है और इसके उपभोक्ताओं में कपड़ा उद्योग, दवा का क्षेत्र , कागज उद्योग और तरल ग्लूकोज निर्माता भी शामिल हैं।
स्टार्च उद्योग की मांग में पिछले साल गिरावट देखी गई थी। जिसकी वजह से इस उद्योग की जितनी क्षमता है उसके उपयोग में कमी आ गई। इसके अलावा ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य होने से मक्के की कीमतों में मजबूती आ गई और स्टार्च बनाने वालों की दिक्कतें भी बढ़ गईं।
मांग में कमी आने की वजह से स्टार्च की कीमतों में भी कमी आई और 50 किलोग्राम की बोरी 650 रुपये हो गई। मुंबई के सहयाद्री स्टार्च के प्रबंध निदेशक विशाल मजीठिया का कहना है, 'हालांकि अब स्टार्च की एक बोरी की कीमत 750 रुपये प्रति बोरी है। हमें उम्मीद है कि अप्रैल से एक बोरी की कीमत 800 रुपये हो जाएगी।'
प्रतिदिन उद्योगों की कुल मक्के की मड़ाई क्षमता 5,000 टन प्रति दिन है। मांग में बढ़ोतरी होने की वजह से जितनी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया था वह 75 फीसदी तक कम हो गया था अब उसमें सुधार हुआ है और यह इसका उपयोग 90 फीसदी तक हो रहा है।
दिल्ली के भारत स्टार्च इंडस्ट्री के महाप्रबंधक नवीन विज का कहना है, 'फूड इंडस्ट्री और कागज उद्योग में स्टार्च की खूब मांग बढ़ गई है। इसी वजह से उत्तरी भारत के बाजार में स्टार्च की कीमतें एक बोरी पर 100 रुपये और एक टन पर 2000 रुपया बढ़ गया है। वैसे कपड़ा उद्योग अभी थोड़ा मंदा पड़ा है इसी वजह से स्टार्च की उतनी मांग नहीं है।'
विज का कहना है कि आने वाले महीनों में कागज उद्योग के लिए मांग और बढ़ेगी और चुनाव को देखते हुए इस उद्योग में ज्यादा बढ़ोतरी होगी। इससे स्टार्च की कीमतों में बढ़ोतरी तो होगी ही या कीमतें स्थिर रहेंगी।
अखिल भारतीय स्टार्च निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष अमोल एस. सेठ का कहना है कि मांग में मजबूती का रुख बना रहेगा। ऋद्धि सिद्धि ग्लूको बॉयल्स, गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट, सांघवी फूड्स कुछ बड़ी स्टार्च कंपनियों में शुमार हैं।
स्टार्च बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल में आने वाले मक्के की कीमतें 820-840 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर हैं। नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव एक्सचेंज पर बुधवार को मक्के का एक महीने का अनुबंध 818 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि पहले यह 823 रुपये पर बंद हुआ था।
मंदी में लौटीं खुशियां
प्रति 50 किलो की स्टार्च की बोरी में 100 रुपये का उछाल मांग में स्थिरता बने रहने की उम्मीदस्टार्च की कीमतों में हो सकता है और इजाफापिछले साल थी स्टार्च उद्योग की मांग में गिरावट (BS Hindi)
अंगूर की शराब और फसल की देख-रेख के लिए बोर्ड
पुणे February 26, 2009
मुल्क में अंगूर के प्रसंस्करण की गतिविधियों का नियमन करने और शराब उत्पादन के स्तर को और सुधारने के लिए सरकार ने पुणे में इंडियन ग्रेप प्रोसेसिंग बोर्ड (आईजीपीबी) स्थापित किया है।
नेशनल टी बोर्ड जैसे संस्थानों की तरह ही आईजीपीबी के पास भी शराब उत्पादन के लिए नियमन का अधिकार होगा। खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बुधवार को पुणे में आईजीपीबी का उद्धाटन किया।
इस नए बोर्ड में शराब उद्योग, अंगूर के किसान, खाद्य प्रसंस्करण, राज्य सरकार, राज्य शराब बोर्ड, शोध संस्थान, होटल उद्योग और दूसरे प्रतिष्ठान से जुड़े प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। नया बोर्ड अंगूरों की फसल और शराब उत्पादन की गुणवत्ता पर नियंत्रण और उसके स्तर को बेहतर बनाने की कवायद करेंगे।
बोर्ड भविष्य में प्रसंस्कृत अंगूरों के उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए योजनाओं का मसौदा भी तैयार कर सकता है। आईसीपीबी को बनाने के लिए एक कंसल्टेंसी मिटकॉन को जिम्मा सौंपा गया है ।
इसके निदेशक प्रदीप बवाडेकर का कहना है, 'आईजीपी एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करेगी और अच्छे काम के माहौल और कड़े दिशा निर्देशों का पालन करेगी। इसके अलावा यह शोध और विकास, गुणवत्ता को बढ़ाने, बाजार का शोध, भारतीय शराब के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमोशन पर भी ध्यान देगी।'
आजकल भारतीय किसान 16 लाख टन अंगूर सालाना 60,000 हेक्टेयर जमीन पर उपजाते हैं। (BS HIndi)
मुल्क में अंगूर के प्रसंस्करण की गतिविधियों का नियमन करने और शराब उत्पादन के स्तर को और सुधारने के लिए सरकार ने पुणे में इंडियन ग्रेप प्रोसेसिंग बोर्ड (आईजीपीबी) स्थापित किया है।
नेशनल टी बोर्ड जैसे संस्थानों की तरह ही आईजीपीबी के पास भी शराब उत्पादन के लिए नियमन का अधिकार होगा। खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बुधवार को पुणे में आईजीपीबी का उद्धाटन किया।
इस नए बोर्ड में शराब उद्योग, अंगूर के किसान, खाद्य प्रसंस्करण, राज्य सरकार, राज्य शराब बोर्ड, शोध संस्थान, होटल उद्योग और दूसरे प्रतिष्ठान से जुड़े प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। नया बोर्ड अंगूरों की फसल और शराब उत्पादन की गुणवत्ता पर नियंत्रण और उसके स्तर को बेहतर बनाने की कवायद करेंगे।
बोर्ड भविष्य में प्रसंस्कृत अंगूरों के उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए योजनाओं का मसौदा भी तैयार कर सकता है। आईसीपीबी को बनाने के लिए एक कंसल्टेंसी मिटकॉन को जिम्मा सौंपा गया है ।
इसके निदेशक प्रदीप बवाडेकर का कहना है, 'आईजीपी एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करेगी और अच्छे काम के माहौल और कड़े दिशा निर्देशों का पालन करेगी। इसके अलावा यह शोध और विकास, गुणवत्ता को बढ़ाने, बाजार का शोध, भारतीय शराब के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमोशन पर भी ध्यान देगी।'
आजकल भारतीय किसान 16 लाख टन अंगूर सालाना 60,000 हेक्टेयर जमीन पर उपजाते हैं। (BS HIndi)
मूल धातुओं के उत्पादकों की क्रेडिट रेटिंग घटी
मुंबई February 26, 2009
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अलौह धातु उत्पादन करने वाली कंपनियों की रेटिंग घटा दी है, जिससे भविष्य में इनकी फंड उगाही योजना पर असर पड़ सकता है। क्रिसिल को मध्यम अवधि में कंपनियों की आय पर दबाव रहने की उम्मीद है।
क्रिसिल ने स्टरलाइट और वेदांत एल्युमीनियम की रेटिंग एए प्लस से घटाकर एए कर दी है। हालांकि उसने वेदांत समूह की अन्य कंपनियों भारत एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक और मद्रास एल्युमीनियम की दीर्घकालीन ऋण रेटिंग कायम रखा है।
रेटिंग एजेंसी ने देश की विशालतम एल्युमीनियम विनिर्माता कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की रेटिंग एए से घटाकर एए माइनस कर दी है। (BS Hindi)
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अलौह धातु उत्पादन करने वाली कंपनियों की रेटिंग घटा दी है, जिससे भविष्य में इनकी फंड उगाही योजना पर असर पड़ सकता है। क्रिसिल को मध्यम अवधि में कंपनियों की आय पर दबाव रहने की उम्मीद है।
क्रिसिल ने स्टरलाइट और वेदांत एल्युमीनियम की रेटिंग एए प्लस से घटाकर एए कर दी है। हालांकि उसने वेदांत समूह की अन्य कंपनियों भारत एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक और मद्रास एल्युमीनियम की दीर्घकालीन ऋण रेटिंग कायम रखा है।
रेटिंग एजेंसी ने देश की विशालतम एल्युमीनियम विनिर्माता कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की रेटिंग एए से घटाकर एए माइनस कर दी है। (BS Hindi)
मुनाफावसूली से सोने में आई गिरावट
नई दिल्ली February 26, 2009
सोने में वैश्विक उछाल के बाद अब गिरावट का दौर शुरू हो गया है। हाजिर और वायदा बाजार में इस पीली धातु में दो दिनों से मुनाफावसूली जारी है।
सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि आगामी महीना यानी कि मार्च में सोने के दाम में 800-900 रुपये प्रति 10 ग्राम की गिरावट आ सकती है। मार्च महीने में कोई शादी नहीं है और इस महीने में लोग कर बचत करने के उपाय में लगे रहते हैं। साथ ही होली के कारण भी लोगों का खर्च बढ़ जाता है।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक बिक्री के लिहाज से मार्च महीना हमेशा से मंदा रहा है। 27 फरवरी को आखिरी शादी है और पूरे मार्च माह में कोई शादी नहीं है। इसलिए लोगों की खरीदारी कमोबेश पूरी हो चुकी है। मांग के अभाव में सोने के दाम में गिरावट की पूरी उम्मीद की जा रही है।
गुरुवार को सोना 15,350 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर रहा। सर्राफा बाजार संघ के प्रधान विमल गोयल कहते हैं, पिछले 20-30 सालों से हम मार्च माह के दौरान मंदी देखते आ रहे हैं। मांग नहीं निकलने से सोना 14,500 रुपये के स्तर पर पहुंच सकता है। एक अन्य कारोबारी पवन झिलानी भी इस बात से सहमति जताते हैं।
उनके मुताबिक शादी-ब्याह की खरीदारी पूरी हो चुकी है और कीमत अधिक होने से सामान्य तौर पर होने वाली खरीदारी भी लगभग बंद है। इसलिए कीमत का गिरना लाजिमी है। वैसे भी सोना अपने उच्चतम स्तर पर चल रहा है और यहां से गिरावट की ही संभावना है। कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि होली व मार्च क्लोजिंग का मौसम होने के कारण लोगों का खर्च भी इस माह में बढ़ जाता है और खरीदारी प्रभावित रहती है।
उधर वायदा बाजार में कमजोर वैश्विक रुख के बीच कारोबारियों की ओर से बिकवाली जारी रखे जाने से वायदा बाजार में सोने की कीमत में आज भी 1.45 फीसदी की कमी दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में अप्रैल डिलिवरी के लिए सोने की कीमत 1.45 फीसदी घटकर 15,270 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई।
इसमें 7,427 लॉटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार का रुख जून महीने की डिलिवरी में देखा गया। इसमें 418 लाटों के लिए हुए कारोबार में सोने की कीमत 1.39 फीसदी लुढ़ककर 15,273 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई। वहीं अगस्त डिलिवरी के लिए कीमत 1.28 फीसदी गिरकर 15,311 रुपये प्रति 10 ग्राम रिकार्ड की गई। बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के मद्देनजर कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से सोने की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस बीच न्यूयार्क मकर्ेंटाइल एक्सचेंज में सोने की कीमत 16.20 डॉलर गिरकर 950 डॉलर प्रति औंस दर्ज की गई है।
चांदी भी लुढ़की
कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में आज 1.81 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मार्च डिलिवरी के लिए चांदी की कीमत 1.81 फीसदी गिरकर 22,350 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई।
इसमें 4,141 लाटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार जुलाई डिलिवरी के तीन लाटों के लिए हुए कारोबार में चांदी की कीमत 1.76 फीसदी गिरकर 22,735 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई। जबकि मई महीने की डिलिवरी के लिए कीमत 1.53 फीसदी गिरकर 22,585 रुपये प्रति किलो हो गई।
इसमें 1,030 लाटों के लिए कारोबार हुआ। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के कारण कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। (BS Hindi)
सोने में वैश्विक उछाल के बाद अब गिरावट का दौर शुरू हो गया है। हाजिर और वायदा बाजार में इस पीली धातु में दो दिनों से मुनाफावसूली जारी है।
सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि आगामी महीना यानी कि मार्च में सोने के दाम में 800-900 रुपये प्रति 10 ग्राम की गिरावट आ सकती है। मार्च महीने में कोई शादी नहीं है और इस महीने में लोग कर बचत करने के उपाय में लगे रहते हैं। साथ ही होली के कारण भी लोगों का खर्च बढ़ जाता है।
सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक बिक्री के लिहाज से मार्च महीना हमेशा से मंदा रहा है। 27 फरवरी को आखिरी शादी है और पूरे मार्च माह में कोई शादी नहीं है। इसलिए लोगों की खरीदारी कमोबेश पूरी हो चुकी है। मांग के अभाव में सोने के दाम में गिरावट की पूरी उम्मीद की जा रही है।
गुरुवार को सोना 15,350 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर रहा। सर्राफा बाजार संघ के प्रधान विमल गोयल कहते हैं, पिछले 20-30 सालों से हम मार्च माह के दौरान मंदी देखते आ रहे हैं। मांग नहीं निकलने से सोना 14,500 रुपये के स्तर पर पहुंच सकता है। एक अन्य कारोबारी पवन झिलानी भी इस बात से सहमति जताते हैं।
उनके मुताबिक शादी-ब्याह की खरीदारी पूरी हो चुकी है और कीमत अधिक होने से सामान्य तौर पर होने वाली खरीदारी भी लगभग बंद है। इसलिए कीमत का गिरना लाजिमी है। वैसे भी सोना अपने उच्चतम स्तर पर चल रहा है और यहां से गिरावट की ही संभावना है। कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि होली व मार्च क्लोजिंग का मौसम होने के कारण लोगों का खर्च भी इस माह में बढ़ जाता है और खरीदारी प्रभावित रहती है।
उधर वायदा बाजार में कमजोर वैश्विक रुख के बीच कारोबारियों की ओर से बिकवाली जारी रखे जाने से वायदा बाजार में सोने की कीमत में आज भी 1.45 फीसदी की कमी दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में अप्रैल डिलिवरी के लिए सोने की कीमत 1.45 फीसदी घटकर 15,270 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई।
इसमें 7,427 लॉटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार का रुख जून महीने की डिलिवरी में देखा गया। इसमें 418 लाटों के लिए हुए कारोबार में सोने की कीमत 1.39 फीसदी लुढ़ककर 15,273 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज की गई। वहीं अगस्त डिलिवरी के लिए कीमत 1.28 फीसदी गिरकर 15,311 रुपये प्रति 10 ग्राम रिकार्ड की गई। बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के मद्देनजर कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से सोने की कीमत में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस बीच न्यूयार्क मकर्ेंटाइल एक्सचेंज में सोने की कीमत 16.20 डॉलर गिरकर 950 डॉलर प्रति औंस दर्ज की गई है।
चांदी भी लुढ़की
कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में आज 1.81 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में मार्च डिलिवरी के लिए चांदी की कीमत 1.81 फीसदी गिरकर 22,350 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई।
इसमें 4,141 लाटों के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार जुलाई डिलिवरी के तीन लाटों के लिए हुए कारोबार में चांदी की कीमत 1.76 फीसदी गिरकर 22,735 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई। जबकि मई महीने की डिलिवरी के लिए कीमत 1.53 फीसदी गिरकर 22,585 रुपये प्रति किलो हो गई।
इसमें 1,030 लाटों के लिए कारोबार हुआ। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार वैश्विक बाजार में कमजोर रुख के कारण कारोबारियों की ओर से बिकवाली किए जाने से चांदी की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। (BS Hindi)
गुजरात में देर से मिलेंगे मीठे रसीले आम
राजकोट February 26, 2009
गुजरात के लोगों को फल के राजा आम के रसीले और मीठे स्वाद को चखने का मौका इस साल गर्मी में देर से मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में आम की आवक में 15 से 20 दिनों की देरी हो सकती है।
इसकी वजह यह है कि ठंड के मौसम में अनियमितता से आम की बौर खराब हो गई है। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक इस साल ठंड के मौसम में काफी अस्थिरता रही और इसी वजह से आम की बौर खराब हो गए। खासतौर पर गुजरात के सौराष्ट्र के इलाके में आम की किस्म 'केसर' के बौर भी बर्बाद हो गए। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बी. के. किकानी का कहना है, 'इस साल गुजरात में आम के लिए ठंड का मौसम उतना अच्छा नहीं था। यह वक्त आम की बौर तैयार होने का समय होता है ऐसे में मौसम ठीक नहीं है ऐसे में नुकसान हो सकता है। इस साल गर्मी में आम की आवक देर से होगी।'
गुजरात में लगभग तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती की जाती है। गुजरात राज्य के जूनागढ़, भावनगर, बलसाड, नवसारी, सासन और तलाला गिर, विस्वादर, सवर्णकुंडला और कच्छ कुछ ऐसे इलाके हैं जहां आम की खेती होती है।
पिछले साल तालाला कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी)में 10 लाख आम के बक्से आए, इन बक्सों में हर एक में 10 किलोग्राम आम होता है। इस बाजार समिति में केसर आम की किस्में खासतौर पर मिलती है।
तलाला एपीएमसी के सचिव हरसुखभाई जरसानिया ने किस्मों की बात करते हुए कहा, 'इस साल 10-15 मई तक केसर आम की किस्में बाजार में आनी शुरू हो जाएगी। आमतौर पर यह हर साल मार्च के अंतिम हफ्ते में ही आना शुरू हो जाता है। दरअसल अब आम के पेड़ पर बौर देर से लगेगी। सामान्य हालात में आम की बौर जनवरी के अंतिम हफ्ते और फरवरी के मध्य के बीच आते हैं। लेकिन इस साल इस आम के आने में काफी देरी हो सकती है क्योंकि ठंड का मौसम उतना बढ़िया नहीं था।'
कच्छ के बाटुकसिन्ह जाडेजा का कहना है, 'आम के उत्पादन के बारे में अभी कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन इस मौसम में आम की आवक में देरी जरूर होगी। मौसम में अब थोड़ी गर्मी आना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो खराब मौसम की वजह से कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।' (BS Hindi)
गुजरात के लोगों को फल के राजा आम के रसीले और मीठे स्वाद को चखने का मौका इस साल गर्मी में देर से मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में आम की आवक में 15 से 20 दिनों की देरी हो सकती है।
इसकी वजह यह है कि ठंड के मौसम में अनियमितता से आम की बौर खराब हो गई है। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक इस साल ठंड के मौसम में काफी अस्थिरता रही और इसी वजह से आम की बौर खराब हो गए। खासतौर पर गुजरात के सौराष्ट्र के इलाके में आम की किस्म 'केसर' के बौर भी बर्बाद हो गए। जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बी. के. किकानी का कहना है, 'इस साल गुजरात में आम के लिए ठंड का मौसम उतना अच्छा नहीं था। यह वक्त आम की बौर तैयार होने का समय होता है ऐसे में मौसम ठीक नहीं है ऐसे में नुकसान हो सकता है। इस साल गर्मी में आम की आवक देर से होगी।'
गुजरात में लगभग तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती की जाती है। गुजरात राज्य के जूनागढ़, भावनगर, बलसाड, नवसारी, सासन और तलाला गिर, विस्वादर, सवर्णकुंडला और कच्छ कुछ ऐसे इलाके हैं जहां आम की खेती होती है।
पिछले साल तालाला कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी)में 10 लाख आम के बक्से आए, इन बक्सों में हर एक में 10 किलोग्राम आम होता है। इस बाजार समिति में केसर आम की किस्में खासतौर पर मिलती है।
तलाला एपीएमसी के सचिव हरसुखभाई जरसानिया ने किस्मों की बात करते हुए कहा, 'इस साल 10-15 मई तक केसर आम की किस्में बाजार में आनी शुरू हो जाएगी। आमतौर पर यह हर साल मार्च के अंतिम हफ्ते में ही आना शुरू हो जाता है। दरअसल अब आम के पेड़ पर बौर देर से लगेगी। सामान्य हालात में आम की बौर जनवरी के अंतिम हफ्ते और फरवरी के मध्य के बीच आते हैं। लेकिन इस साल इस आम के आने में काफी देरी हो सकती है क्योंकि ठंड का मौसम उतना बढ़िया नहीं था।'
कच्छ के बाटुकसिन्ह जाडेजा का कहना है, 'आम के उत्पादन के बारे में अभी कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन इस मौसम में आम की आवक में देरी जरूर होगी। मौसम में अब थोड़ी गर्मी आना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो खराब मौसम की वजह से कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।' (BS Hindi)
लाल मिर्च की आवक में अभी देरी
गुंटूर February 26, 2009
इस बार मिर्च का मौसम तीन महीने देरी से शुरू होने के आसार हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि पिछले साल बुआई के दौरान देर से बारिश हुई थी। सामान्यतया जनवरी के तीसरे सप्ताह में मिर्च आनी शुरू हो जाती है।
इस समय गुंटूर के बाजार में करीब 30,000 से 40,000 बोरी मिर्च प्रतिदिन आ रही है। उम्मीद की जा रही है कि मार्च तक इसकी आवक बढ़कर 100,000 बोरी हो जाएगी। कारोबारियों का अनुमान है कि इस साल कुल 60 लाख बोरी मिर्च का उत्पादन होगा, जबकि पिछले साल 90 लाख बोरी उत्पादन हुआ था।
मिर्च की सामान्य किस्में, जिन्हें ठंडाघर में नहीं रखा जाता है, इस समय 2600-5,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही हैं। कोल्ड स्टोरेज वाली सामान्य मिर्च 5,100-6,200 रुपये प्रति क्विंटल है। कम्मम में कारोबारी लाल मिर्च के लिए 4,500-5,300 रुपये प्रति क्विंटल दे रहे हैं जबकि तालू का रेट 2,100-2,400 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
मिर्च के सेलेक्शन ग्रेड सेक्रेटरी वी हरिनारायण राव ने कहा कि कीमतें अभी और बढ़ेंगी, क्योंकि ताजी मिर्च की आवक मार्च में शुरू होगी। गुंटूर से मिर्च श्रीलंका, मैक्सिको, अमेरिका, नेपाल, खाड़ी देशों और बांग्लादेश को निर्यात की जाती है।
इन देशों में से पहले तीन देश बड़े आयातक हैं। राव ने कहा कि नीलामी में इस समय 5,00 किसान और 370 खरीदार काम कर रहे हैं। बाजार में गुंटूर, प्रकासम, खम्मम, वारंगल, कृष्णा, नेल्लौर, नालगोंडा, आदिलाबाद, कुर्नूल, अनंतपुर और महबूबनगर जिलों से मिर्च आती है। (BS Hindi)
इस बार मिर्च का मौसम तीन महीने देरी से शुरू होने के आसार हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि पिछले साल बुआई के दौरान देर से बारिश हुई थी। सामान्यतया जनवरी के तीसरे सप्ताह में मिर्च आनी शुरू हो जाती है।
इस समय गुंटूर के बाजार में करीब 30,000 से 40,000 बोरी मिर्च प्रतिदिन आ रही है। उम्मीद की जा रही है कि मार्च तक इसकी आवक बढ़कर 100,000 बोरी हो जाएगी। कारोबारियों का अनुमान है कि इस साल कुल 60 लाख बोरी मिर्च का उत्पादन होगा, जबकि पिछले साल 90 लाख बोरी उत्पादन हुआ था।
मिर्च की सामान्य किस्में, जिन्हें ठंडाघर में नहीं रखा जाता है, इस समय 2600-5,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही हैं। कोल्ड स्टोरेज वाली सामान्य मिर्च 5,100-6,200 रुपये प्रति क्विंटल है। कम्मम में कारोबारी लाल मिर्च के लिए 4,500-5,300 रुपये प्रति क्विंटल दे रहे हैं जबकि तालू का रेट 2,100-2,400 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
मिर्च के सेलेक्शन ग्रेड सेक्रेटरी वी हरिनारायण राव ने कहा कि कीमतें अभी और बढ़ेंगी, क्योंकि ताजी मिर्च की आवक मार्च में शुरू होगी। गुंटूर से मिर्च श्रीलंका, मैक्सिको, अमेरिका, नेपाल, खाड़ी देशों और बांग्लादेश को निर्यात की जाती है।
इन देशों में से पहले तीन देश बड़े आयातक हैं। राव ने कहा कि नीलामी में इस समय 5,00 किसान और 370 खरीदार काम कर रहे हैं। बाजार में गुंटूर, प्रकासम, खम्मम, वारंगल, कृष्णा, नेल्लौर, नालगोंडा, आदिलाबाद, कुर्नूल, अनंतपुर और महबूबनगर जिलों से मिर्च आती है। (BS Hindi)
रिकार्ड गिरावट पर खुला रुपया
मुंबई February 27, 2009
भारतीय रुपया आज 21 पैसे की कमजोरी लेकर 50.67 प्रति डॉलर के रिकार्ड निचले स्तर पर खुला।
भारतीय रुपया कल भी लगातार चौथे दिन गिरावट के साथ बंद हुआ था। कल भारतीय रुपया 53 पैसे की कमजोरी लेकर 50.48 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था।
महीने का आखिरी दिनों के कारण आयातकों द्वारा डॉलर की मांग में तेजी आई है। इसके अलावा तेल रिफाइनरियों द्वारा कच्चे तेल की खरीदारी से डॉलर की मांग में तेजी का लाजिमी है, ऐसे में रुपया लगातार दबाव में देखा जा रहा है। (BS Hindi)
भारतीय रुपया आज 21 पैसे की कमजोरी लेकर 50.67 प्रति डॉलर के रिकार्ड निचले स्तर पर खुला।
भारतीय रुपया कल भी लगातार चौथे दिन गिरावट के साथ बंद हुआ था। कल भारतीय रुपया 53 पैसे की कमजोरी लेकर 50.48 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था।
महीने का आखिरी दिनों के कारण आयातकों द्वारा डॉलर की मांग में तेजी आई है। इसके अलावा तेल रिफाइनरियों द्वारा कच्चे तेल की खरीदारी से डॉलर की मांग में तेजी का लाजिमी है, ऐसे में रुपया लगातार दबाव में देखा जा रहा है। (BS Hindi)
26 फ़रवरी 2009
सोना-चांदी में मुनाफावसूली
सोने व चांदी के मूल्य अंतरराष्ट्रीय ही नहीं बल्कि घरेलू बाजार में भी गिरते नजर आए। दिल्ली सराफा बाजार में बुधवार को सोना 425 रुपये की गिरावट के साथ 15,360 रुपये प्रति दस ग्राम रह गया जबकि चांदी 1100 रुपये की गिरकर 22,000 रुपये प्रति किलो रह गई।ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि ऊंचे भावों में मांग घटने और मुनाफावसूली आने से सोने और चांदी में गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बुधवार को सोने के भाव 965 डॉलर प्रति औंस पर खुले तथा सात डॉलर की गिरावट आकर 958 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। 23 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का मूल्य 991 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी के भाव 13.90 डॉलर प्रति औंस पर खुले तथा निवेशकों की मुनाफावसूली से भाव घटकर 13.60 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। 23 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमतें 14.41 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुई थी।दिल्ली स्थित गोयल ज्वैलर्स के विमल कुमार गोयल ने बताया कि ब्याह-शादियों का सीजन होने के बावजूद दाम ऊंचे होने के कारण गहनों में मांग काफी कमजोर है। मौजूदा मूल्य स्तर पर निवेशक भी बाजार से दूरी बनाए रखना चाहते हैं। इसी के परिणामस्वरूप घरेलू बाजारों में सोने और चांदी के दाम घटे हैं। आने वाले दिनों में इसमें और भी गिरावट आने की संभावना है। हालांकि घरेलू बाजारों में तेजी-मंदी अंतरराष्ट्रीय बाजार की उठा-पटक पर ही निर्भर करेगी।मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर निवेशकों की मुनाफावसूली से सोने में गिरावट देखी गई। एमसीएक्स में अप्रैल महीने का सोना वायदा 15,432 रुपये पर खुला तथा इसमें 222 रुपये की गिरावट आकर 15,210 रुपये रह गया। हालांकि नीचे भावों में हल्की मांग निकलने से 15,374 रुपये कारोबार करते देखा गया। इसी तरह से एमसीएक्स पर चांदी के फरवरी वायदा के भाव 22,646 रुपये पर खुले तथा निवेशकों की भारी बिकवाली से घटकर नीचे में 22,080 रुपये प्रति किलो रह गये थे। इसमें भी नीचे के स्तरों में हल्की मांग से 22,304 रुपये पर कारोबार करते देखा गया।पिछले सप्ताहों के दौरान दुनिया भर के शेयर बाजारों में आई गिरावट की वजह से निवेशकों का रुझान गोल्ड ईटीएफ और सोना वायदा में निवेशकों का रुझान बढ़ा था। लेकिन पिछले मंगलवार और बुधवार के दौरान शेयर बाजारों क हालत सुधरी है। वहीं वैव्श्रिक बाजार कच्चे तेल की कीमतों में भी बढ़त हुई है। जिसका असर सोने के कारोबार पर पड़ा है। जानकारों का मानना है कि इस सप्ताह के अंत तक अभी सोने में अनिश्चितता बरकरार रह सकती है।
एशियाई बाजारों में गेहूं के भाव गिरने की संभावना
आने वाले दिनों में एशियाई बाजारों में गेहूं की कीमतों में नरमी देखी जा सकती है। मांग में कमी बने रहने की वजह से भाव में नरमी की संभावना जताई जा रही है।अमेरिकी कमोडिटी ब्रोकरज कंपनी एलरॉन के विश्लेषक टिम हन्नागन के मुताबिक मौजूदा समय में गेहूं की मांग में कमी देखी जा रही है जो आगे भी जारी रह सकती है। उन्होंने बताया कि शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड में गेहूं की कीमत 4.85 डॉलर प्रति बुशल पर रह सकती हैं। शुरूआती कारोबार के दौरान सीबॉट में गेहूं करीब 5.28 डॉलर प्रति टन पर देखा गया जो एक दिन पहले के बंद भाव से करीब 1.6 सेंट नीचे था। उधर जापान ने फ्लोर मिलों को एक अप्रैल से 14.8 फीसदी सस्ती दरों पर गेहूं बेचने का संकेत दिया है। घरलू बाजारों में आटे की कीमतों में कमी लाने के लिए सरकार सस्ता गेहूं उपलब्ध करने की तैयारी कर रही है। मक्के में भी नरमी की संभावना जताई जा रही है। पिछले साल मलेशिया में जहां भारत से प्रति वर्ष करीब एक लाख टन मक्के का आयात हुआ था। इस साल महज 30 हजार टन मक्के का आयात हो पाया है। मौजूदा समय में वैश्विक बाजारों में अमेरिका की बढ़िया क्वालिटी का मक्का करीब 200 डॉलर प्रति टन के भाव पर उपलब्ध है।जबकि भारत का निम्न `ालिटी का मक्का करीब 190-195 डॉलर प्रति टन के भाव पर बिक रहा है। सोयाबीन की कीमतों में आने वाले दिनों में तेजी देखी जा सकती है। सोने में पिछले दो दिनों से जारी गिरावट की वजह से सोयाबीन में निवेशकों का रुझान बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। वहीं चीन में सोया तेल की मांग बढ़ने की भी संभावना जताई जा रही है। जिससे आने वाले दिनों में सोयाबीन की कीमतों को मिल सकता है।भारतीय बाजारों में भी आने वाले दिनों के दौरान गेहूं की कीमतों में नरमी जारी रह सकती है। चालू साल कमे दौराना देश में करीब 784 लाख टन गेहूं उत्पादन की संभावना है। वहीं सरकारी गोदामों में अभी भारी मात्रा में गेहूं का स्टॉक बना हुआ है। लिहाजा आने वाले दिनों में घरलू जरुरतों के लिहाज से गेहूं की उपलब्धता बनी रह सकती है। माना यह जा रहा है कि एक अप्रैल से शुरू होने वाले गेहूं मार्केटिंग सीजन में सरकारी एजेंसियां पिछले साल की तरह इस साल भी भरी मात्रा में गेहूंं की खरीद कर सकती हैं। (Business Bhaskar)
फसल खराब होने से आस्ट्रेलिया में भी रॉ शुगर उत्पादन घटेगा
कैनबरा। आस्ट्रेलिया में आगामी सीजन के दौरान रॉ शुगर के उत्पादन में गिरावट आने की आशंका जताई जा रही है। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक इस दौरान यहां रॉ शुगर के उत्पादन में करीब 6.4 फीसदी की गिरावट आ सकती है। ऐसे में यहां करीब 44 लाख टन रॉ शुगर का उत्पादन होने की संभावना है। पिछले साल आस्ट्रेलिया में करीब 47 लाख टन रॉ शुगर का उत्पादन हुआ था। प्रमुख उत्पादक क्षेत्र क्वींसलैंड में गन्ना उत्पादन करीब 3.1 करोड़ टन रह सकता है। जबकि न्यू साउथ वेल्स में करीब 3.3 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन होने की संभावना है। जानकारों का मानना है कि उत्तरी क्वींसलैंड में बारिश और बाढ़ की वजह से फसल को नुकसान हुआ है। जिसका असर उत्पादन पर देखा जा रहा है। ऐसे में गन्ने में शुगर की रिकवरी पर भी असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। क्वींसलैंड शुगर लिमिटेड द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक आस्ट्रेलियाई की करीब 20 फीसदी मांग घरेलू उत्पादन से पूरी हो सकेगी। जबकि न्यूजीलैंड से करीब 5.5 फीसदी, उत्तरी अमेरिका से 4.5 फीसदी और पूर्वी एशियाई देशों से करीब 70 फीसदी मांग पूरी होगी। ऐसे में आस्ट्रेलिया के चीनी उत्पादन के आंकड़ों से आगामी दिनों में तेजी का रुख बन सकता है। (डो जोंस)
बीटी बैंगन के बीज बेचने की अनुमति अगले साल : मैको
अहमदाबाद। महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लि. (मैको) को उम्मीद है कि उसे बीटी बैंगन के बीज बाजार में बेचने की अनुमति जेनेटिक इंजीनियरिंग मंजूरी कमेटी से अगले वित्त वर्ष की समाप्ति तक मंजूरी मिल सकती है। मैको की संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) उषा बारवाले जेर ने संवाददाताओं को बताया कि हमें फील्ड ट्रायल के लिए बीटी बैंगन बीज उगाने की मंजूरी कमेटी से पहले ही मिल गई थी। यह परीक्षण पूरा हो गया है। अब हमने इन बीजों के वाणिज्यक उत्पादन और बिक्री के लिए कमेटी को आवेदन किया है। अगले वित्त वर्ष 2009-10 के अंत तक इसके लिए अनुमति मिलने की उम्मीद है। उन्होंने दावा किया कि मैको देश में बीटी बैंगन के लिए आवेदन करने वाली पहली कंपनी है। कंपनी ने 2006 में बीटी बैंगन के वाणिज्यिक उत्पादन के अनुमति मांगी थ लेकिन कमेटी ने कुछ परीक्षण करने को कहा। उन्होंने बताया कि कमेटी के सुझाए गए परीक्षण व अध्ययन पूरे कर लिए गए हैं। उनकी रिपोर्ट के साथ कंपनी ने पिछले साल वाणिज्यिक उत्पादन के लिए आवेदन किया है। कमेटी की कंपनी के अधिकारियों के साथ पिछले माह परीक्षण पर बातचीत भी हो चुकी है। यह कमेटी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन शीर्ष कमेटी है जो जेनेटिक रिसर्च पर निगरानी करती है। कंपनी की इस अधिकारी के अनुसार ये बीज किसानों के लिए काफी उपयोगी साबित होंगे। किसानों को पेस्टीसाइड्स पर 70 फीसदी कम खर्च करना होगा क्योंकि इन बीजों कीटों से लड़ने की काफी क्षमता होगी। बीटी बैंगन के पौधे में चौबीसों घंटे कीटों से लड़ने की ताकत होगी। उन्होंने दावा किया कि बीटी बीज से बैंगन की पैदावार भी ज्यादा होगी और क्वालिटी अच्छी होगी। कंपनी अधिकारी ने बताया कि करीब नौ साल के गहन अनुसंधान के बाद कंपनी बीटी बैंगन का का बीज विकसित करने में सफल हो पाई है और अब वह ये बीज बाजार में बेचने को तैयार है। कंपनी ओकरा और चावल के भी बीटी बीजों का फील्ड ट्रायल कर रही है। कंपनी गेहूं व चावल की कुछ हाईब्रिड बीजों पर भी काम कर रही है। कंपनी ऐसा बीज विकसित करने की कोशिश कर रही है जो सूखे की स्थिति में भी उग सके (Business Bhaskar)
सोने की कीमत में 5 परसेंट की गिरावट, खरीदारी बढ़ी
मुंबई: पिछले हफ्ते गोल्ड की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाद बुधवार को गोल्ड की कीमतों में 5 परसेंट की गिरावट देखने को मिली, जिससे घरेलू बाजार में खरीदारी का दौर नजर आया । डीलर्स का कहना है कि सोने की कीमत 15,000 रुपए के साइकॉलॉजिकल मार्क से नीचे जाने पर इसमें खरीदारी और तेज हो सकती है। मुंबई में एक सरकारी बैंक के डीलर ने कहा, "कल से हम गोल्ड मार्केट में खरीदारी देख रहे हैं। कई सारे ट्रेडर्स गोल्ड प्राइस के 950 डॉलर लेवल से नीचे जाने का इंतजार कर रहे हैं। " डीलर ने कहा, "हम लोग गोल्ड प्राइस के 1000 डॉलर के नीचे जाने के बाद पहली बार ट्रांजेक्शन संबंधी फोन रिसीव कर रहे हैं।" फ्यूचर ट्रेडिंग में सोने का अप्रैल कॉन्ट्रैक्ट 1 बजकर 48 मिनट पर 15, 265 रुपए प्रति 10 ग्राम था, जो पिछले हफ्ते के 16,040 रुपए के लेवल के मुकाबले पांच प्रतिशत कम है। बुधवार को भारतीय रुपए की कीमत में मजबूती आई है। मुंबई के इंडसलैंड बैंक के ट्रेजरी के चीफ मैनेजर पिनाकिन व्यास ने कहा, "खरीददार गोल्ड के बारे में पूछताछ कर रहे हैं पर उनकी नजर और कम होती कीमतों पर है।" उन्होंने कहा कि इंपोर्टेड बार्स के मांग इस बात पर भी डिपेंड करती है कि मार्केट में स्क्रैप सेल कैसी रहती है। उनका कहना है कि बैंक और लोकल गोल्ड के बीच अब भी काफी डिफरेंस है। ट्रेडर्स का कहना है कि गोल्ड प्राइस में कमी आने से स्क्रैप का फ्लो बढ़ भी सकता है। (BS Hindi)
अगस्त तक 17,000 रुपए का स्तर छू सकता है सोना
नई दिल्ली: नित नई ऊंचाई छू रहे सोना का भाव अगस्त 2009 तक 17,000 रुपए प्रति दस ग्राम तक पहुंच जाएगा। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक सोने का भाव 17,000 रुपए तक पहुंचने के बाद जनवरी 2010 तक 12,000 रुपए के स्तर पर आ जाएगा। आर्थिक मंदी के कारण प्रॉपर्टी, स्टॉक, म्यूचुअल फंड, सरकारी सिक्योरिटीज और बॉन्ड से आकर्षक रिटर्न नहीं मिलने के कारण सोने की चमक बढ़ी है लेकिन अगले साल तक सोने का भाव अपने पुराने स्तर तक 12,000 से 10,000 रुपए के बीच आ सकता है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक एक किलो चांदी का भाव अगस्त तक 24,000 रुपए तक पहुंच सकता है। इसके मुताबिक मार्च 2009 में सोना 15,750 रुपए का स्तर भी पार कर जाएगा और चांदी प्रति किलो 23,000 के दाम पर रहेगी। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा कि पिछले दस महीनों में कच्चे तेल की कीमतें काफी घटी हैं। जहां ज्यादातर निवेशकों ने स्टॉक मार्केट में 50 फीसदी से भी ज्यादा पैसा गंवाया है वहीं सोने ने 30 फीसदी का रिटर्न दिया है। एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक हालात सुधरने के बाद निवेशकों के पास निवेश के विकल्प होंगे और सोने के दाम अपने पुराने स्तर पर आने लगेंगे। जनवरी 2010 तक सोने का भाव 12,000 प्रति दस ग्राम और एक किलो चांदी का दाम 17,000 रुपए तक आ जाएगा। एसोचैम के मुताबिक जैसे ही स्टॉक मार्केट में सुधार आएगा, सोने के दाम में और सुधार आएगा और सोना अपने पुराने भाव 10,000 रुपए प्रति दस ग्राम और चांदी का दाम प्रति किलो 14,000 रुपए से भी नीचे जा सकती है। रावत ने कहा कि चांदी के पिछले रिकॉर्ड पर नजर डाली जाए तो जैसे-जैसे सोने का भाव बढ़ा है, चांदी के दाम भी बढ़े हैं। रावत ने कहा कि जैसे ही सोने के भाव कम होने लगते हैं, चांदी भी कमजोर होने लगती है। एसोचैम के सर्राफा विशेषज्ञ एस के जिंदल की अध्यक्षता में बुलियन ट्रेड कमिटी बनाई गई थी जिसने 'प्रॉसपेक्ट ऑफ बुलियन ट्रेड' पर अध्ययन किया जिसमें अगले छह महीने में सोने के भाव को लेकर सर्वे किया गया। सोने का भाव सुधरने से छोटे शहरों और कस्बों में ज्वैलरी का बाजार बढ़ेगा। घरेलू बाजार में सोने की मांग 2015 तक 30 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। विश्व भर में रत्न एवं आभूषण का कारोबार 150 अरब डॉलर से ज्यादा का है। देश के रत्न-आभूषण कारोबार का करीबन 20 फीसदी निर्यात से जुड़ा है। देश में करीब 800 टन सोने की खपत होती है जो कि विश्व में सोने की खपत का 20 फीसदी है। (ET Hindi)
फिर सामने आया रेडियोएक्टिव स्टील का मामला
कोलकाता February 25, 2009
यूरोप को निर्यात किए जाने वाले निर्यात में एक बार फिर रेडियोएक्टिव स्टील का मामला सामने आया है।
इसके चलते इंजीनियरिंग के सामानों के 2300 करोड़ डॉलर के निर्यात पर संकट के बादल छा गए हैं। यह मामला सबसे पहले 2007 में सामने आया था, जो अब एक गंभीर मसला बन गया है।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (ईईपीसी) के वरिष्ठ संयुक्त निदेशक सुरंजन गुप्ता ने कहा कि यह मामला यूरोप के लिहाज से बहुत गंभीर बन जाता है, क्योंकि इसके चलते बहुत सारे कंटेनरों को रोक दिया गया है। इस मसले पर चर्चा करने के लिए पिछले सप्ताह स्टील मंत्रालय ने बैठक भी की है।
इंजीनियरिंग के सामानों का कुल निर्यात 3300 करोड़ डॉलर का होता है, जिसमें यूरोप की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। गुप्ता ने कहा कि यह मुद्दा तब से महत्वपूर्ण था, जब इसके लिए कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं बने थे कि समिश्रण की मात्रा कितनी होगी। यह नान ट्रैफिक बैरियर के रूप में देखा गया और सरकार यह मसला डब्ल्यूटीओ के स्तर तक ले गई थी।
हालांकि मंत्रालय ने भी आंतरिक रूप से कहा था कि कंपनियों को इस सिलसिले में सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए। इससे जुड़ी मुंबई की एक कंपनी ने कहा कि उन्होंने पहले ही सुधारात्मक कदम उठाए हैं और उन्होंने एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) से प्रमाण पत्र भी हासिल कर लिया है।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि उनकी कंपनी को समस्या इसलिए हुई थी कि स्टील के आपूर्तिकर्ता के स्तर से समस्या आई थी, इसके चलते रोके हुए स्क्रैप का आयात कर लिया गया और यह समस्या देश भर में फैल गई।
ईईपीसी के पूर्व चेयरमैन राकेश शाह ने कहा कि कम से कम 2 कंपनियों ने काउंसिल से संपर्क किया है और उन्होंने इस बारे में राय मांगी है कि इस समस्या से किस तरह से निपटा जाए।
एईआरबी के रेडियोलॉजिकल सेफ्टी डिवीजन के प्रमुख एसपी अग्रवाल ने कहा कि कुछ सामग्री निर्यातकों को वापस भेज दी गई है और उसके बाद एईआरबी के पास उसके सुरक्षित निस्तारण के लिए वापस लाया जाएगा।
ढलाई के सामान के निर्यात के मामले में यह एक साल पहले प्रकाश में आया था। बहरहाल पिछले साल के बाद से इसे एक बार फिर प्रमुखता हासिल हो गई थी, जब फ्रांस की न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी ने एईआरबी को इलेवेटर स्विच को रोके जाने के बारे में सूचित किया था। इसमें बड़ी मात्रा में कोबाल्ट 60 की मात्रा पाई गई थी, जिससे रेडियेशन के चलते कमजोरी और त्वचा में जलन हो सकती थी।
गुप्ता ने कहा कि समस्या यह थी कि माल को रोके जाने के बारे में कोई निश्चित दिशानिर्देश नहीं था। अमेरिका में जहां इस मामले में पूरी सख्ती बरती जाती है, यूरोप में इसके लिए कोई दिशानिर्देश नहीं तैयार किए गए हैं।
शाह ने कहा कि जहां तक अमेरिका की बात है, अगर कंटेनर का जरा सा भी अंश पा.या जाता है तो पूरी सामग्री को रोक दिया जाता है और शेष माल को भी वापस भेज दिया जाता है।
2004 में भूषण स्टील ने जानकारी के अभाव में ईरान से मिसाइल स्क्रैप का आयात किया था, जिसकी वजह से फैक्टरी में विस्फोट हो गया था। बहरहाल उसके बाद से कंपनी हमेशा स्टील के कतरन का स्क्रैप ही विकसित देशों से मंगाती है, जहां माल के लदान के पहले पोर्ट पर अच्छी तरह से निरीक्षण किया जाता है।
एईआरबी द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जाने के बाद से ज्यादातर बड़े उत्पादकों ने जांच के बाद ही आयात करना शुरू किया, जिससे मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार किए जा सकें।
इंजीनियरिंग सामान निर्यात पर असर
निर्यात किए जाने वाली स्टील की इंजीनियरिंग सामग्री में रेडियोएक्टिविटी का मामला पहली बार 2007 में सामने आया एक बार फिर यह मामला सामने आने पर यूरोप जाने वाले माल को रोक दिया गया।यूरोप को किए जाने वाले 2300 करोड़ डॉलर के इंजीनियरिंग के सामानों के निर्यात पर छा गए हैं संकट के बादल (BS Hindi)
यूरोप को निर्यात किए जाने वाले निर्यात में एक बार फिर रेडियोएक्टिव स्टील का मामला सामने आया है।
इसके चलते इंजीनियरिंग के सामानों के 2300 करोड़ डॉलर के निर्यात पर संकट के बादल छा गए हैं। यह मामला सबसे पहले 2007 में सामने आया था, जो अब एक गंभीर मसला बन गया है।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (ईईपीसी) के वरिष्ठ संयुक्त निदेशक सुरंजन गुप्ता ने कहा कि यह मामला यूरोप के लिहाज से बहुत गंभीर बन जाता है, क्योंकि इसके चलते बहुत सारे कंटेनरों को रोक दिया गया है। इस मसले पर चर्चा करने के लिए पिछले सप्ताह स्टील मंत्रालय ने बैठक भी की है।
इंजीनियरिंग के सामानों का कुल निर्यात 3300 करोड़ डॉलर का होता है, जिसमें यूरोप की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। गुप्ता ने कहा कि यह मुद्दा तब से महत्वपूर्ण था, जब इसके लिए कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं बने थे कि समिश्रण की मात्रा कितनी होगी। यह नान ट्रैफिक बैरियर के रूप में देखा गया और सरकार यह मसला डब्ल्यूटीओ के स्तर तक ले गई थी।
हालांकि मंत्रालय ने भी आंतरिक रूप से कहा था कि कंपनियों को इस सिलसिले में सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए। इससे जुड़ी मुंबई की एक कंपनी ने कहा कि उन्होंने पहले ही सुधारात्मक कदम उठाए हैं और उन्होंने एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) से प्रमाण पत्र भी हासिल कर लिया है।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि उनकी कंपनी को समस्या इसलिए हुई थी कि स्टील के आपूर्तिकर्ता के स्तर से समस्या आई थी, इसके चलते रोके हुए स्क्रैप का आयात कर लिया गया और यह समस्या देश भर में फैल गई।
ईईपीसी के पूर्व चेयरमैन राकेश शाह ने कहा कि कम से कम 2 कंपनियों ने काउंसिल से संपर्क किया है और उन्होंने इस बारे में राय मांगी है कि इस समस्या से किस तरह से निपटा जाए।
एईआरबी के रेडियोलॉजिकल सेफ्टी डिवीजन के प्रमुख एसपी अग्रवाल ने कहा कि कुछ सामग्री निर्यातकों को वापस भेज दी गई है और उसके बाद एईआरबी के पास उसके सुरक्षित निस्तारण के लिए वापस लाया जाएगा।
ढलाई के सामान के निर्यात के मामले में यह एक साल पहले प्रकाश में आया था। बहरहाल पिछले साल के बाद से इसे एक बार फिर प्रमुखता हासिल हो गई थी, जब फ्रांस की न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी ने एईआरबी को इलेवेटर स्विच को रोके जाने के बारे में सूचित किया था। इसमें बड़ी मात्रा में कोबाल्ट 60 की मात्रा पाई गई थी, जिससे रेडियेशन के चलते कमजोरी और त्वचा में जलन हो सकती थी।
गुप्ता ने कहा कि समस्या यह थी कि माल को रोके जाने के बारे में कोई निश्चित दिशानिर्देश नहीं था। अमेरिका में जहां इस मामले में पूरी सख्ती बरती जाती है, यूरोप में इसके लिए कोई दिशानिर्देश नहीं तैयार किए गए हैं।
शाह ने कहा कि जहां तक अमेरिका की बात है, अगर कंटेनर का जरा सा भी अंश पा.या जाता है तो पूरी सामग्री को रोक दिया जाता है और शेष माल को भी वापस भेज दिया जाता है।
2004 में भूषण स्टील ने जानकारी के अभाव में ईरान से मिसाइल स्क्रैप का आयात किया था, जिसकी वजह से फैक्टरी में विस्फोट हो गया था। बहरहाल उसके बाद से कंपनी हमेशा स्टील के कतरन का स्क्रैप ही विकसित देशों से मंगाती है, जहां माल के लदान के पहले पोर्ट पर अच्छी तरह से निरीक्षण किया जाता है।
एईआरबी द्वारा जागरूकता अभियान चलाए जाने के बाद से ज्यादातर बड़े उत्पादकों ने जांच के बाद ही आयात करना शुरू किया, जिससे मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार किए जा सकें।
इंजीनियरिंग सामान निर्यात पर असर
निर्यात किए जाने वाली स्टील की इंजीनियरिंग सामग्री में रेडियोएक्टिविटी का मामला पहली बार 2007 में सामने आया एक बार फिर यह मामला सामने आने पर यूरोप जाने वाले माल को रोक दिया गया।यूरोप को किए जाने वाले 2300 करोड़ डॉलर के इंजीनियरिंग के सामानों के निर्यात पर छा गए हैं संकट के बादल (BS Hindi)
भारत में बीटी चावल के व्यवसायीकरण में लगेंगे अभी 8 साल
मुंबई February 26, 2009
आनुवांशिक रूप से परिवर्धित चावल के बीजों का परीक्षण किया जा रहा है। ये बीज कम पानी में भी उगाए जा सकते हैं।
इन परिवर्धित बीजों (जीएम)का व्यावसायीकरण करने में कम से कम 8 साल लग जाएंगे। यह कहना है कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (एएसआरबी)के चारूदत्ता दिगंबराव माई का।
पहले से ही पॉली हाउस में जीएम राइस के पहले चरण का परीक्षण सफलता पूर्वक किया गया है। अब इस बीज का नियंत्रित परीक्षण कराया जा रहा है। इसके तहत परंपरागत फसल की बुआई एक प्रतिबंधित क्षेत्र में होता है। यह क्षेत्र परंपरागत फसल की बुआई के क्षेत्र से एक किलोमीटर दूर होगा।
वर्ष 2010-11 तक यह परीक्षण खुले क्षेत्रों में भी कराया जाएगा। सरकार के कड़े नियंत्रण के अंतर्गत यह परीक्षण कम से कम दो सालों के लिए होगा। उसके बाद इन बीजों के व्यावसायिकरण के लिए कुछ गिने-चुने किसानों को ही इजाजत दी जाएगी। इसके लिए बड़े किसानों की मेहनत को देखते हुए ही उन्हें इन बीजों के व्यावसायीकरण की इजाजत दी जाएगी।
सरकार की नजर पौधे की बढ़ोतरी, तने का आकार, लवणता, बीजों का विकास, नमी, फसल की कटाई के बाद भूमि का प्रबंधन और फसलों के भंडारण पर भी होगी। चावल के संदर्भ में छोटे पैमाने पर व्यावसायीकरण 5-6 सालों तक चलता रहेगा। गैर खाद्य कृषि जिंसों के लिए यह अवधि केवल 2 साल है।
माई का कहना है कि सभी तरह के परीक्षणों से संतुष्ट होकर ही जीएम राइस का बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण शुरू किया जाएगा। जब उनसे बीटी बैगन के व्यावसायीकरण के संदर्भ में पूछा गया तो उनका कहना था, 'गैर-सरकारी संगठन इस तरह की फसलें नहीं चाहती हैं। इसी वजह से वे इस तरह की फसलों का परीक्षण 25 सालों तक लगातार कराना चाहती हैं। इसी वजह से बीटी बैगन जैसी फसलों का व्यावसायीकरण ही नहीं करने देना चाहती हैं।'
इस तरह के बड़े पैमाने पर होने वाले परीक्षणों के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे पैदा हो जाते हैं जिनका खत्म होना बहुत जरूरी होता है। इससे कृषि वृद्धि की रफ्तार अगर प्रभावित नहीं हो तो वह बेहतर है।
माई का कहना है, 'मुझे पूरा यकीन है कि बीटी बैगन का व्यावसायीकरण वित्तीय वर्ष 2011 तक हो जाने की उम्मीद है। सरकार फिलहाल बैगन से ज्यादा चावल पर ही जोर दे रही है।' भारत बॉयोटेक फसलों का इस्तेमाल करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है और इसने पिछले साल कनाडा को पछाड़कर यह स्थान लिया।
देश में बीटी कॉटन बीजों की बुआई 76 लाख हेक्टेयर पर हुई जो वर्ष 2008 के कुल बुआई क्षेत्र 82 फीसदी के बराबर है। वर्ष 2007 में 66 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 62 लाख हेक्टेयर भूमि पर बीटी कॉटन की बुआई का काम हुआ।
एक्विजीशन ऑफ एग्री बॉयोटेक एप्लीके शंस (आईएसएएए)की अंतरराष्ट्रीय सेवा के मुताबिक वर्ष 2008 में रिकॉर्ड स्तर पर 50 लाख छोटे और गरीब किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की। वर्ष 2007 में 38 लाख किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की थी।
पिछले 13 सालों में (1996-2008 के बीच) दुनिया भर में परिवर्धित बीजों में 74 गुणा बढ़ोतरी हुई उसके मुकाबले भारत में परिवर्धित बीजों की बुआई क्षेत्र में 150 गुणा की बढ़ोतरी हुई। इस अवधि में किसानों की आय में प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपये की बढ़ोतरी हुई।
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय में वर्ष 2002-07 के बीच 3.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई और केवल वर्ष 2007 में 2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई। दुनिया भर में परंपरागत बीजों वाले खाद्यान्नों की कमी का संकट 2050 तक जबरदस्त रूप से पैदा होने वाला है। बीटी फसलों से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।
ऐसा इसलिए होगा क्योंकि फसल की पैदावार बहुत ज्यादा होगी और फसल चक्र प्रक्रिया में भी कमी आएगी। किसानों को भूमि में नमी की कमी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
बॉयोटेक्नोलॉजी के जरिए कम पानी में फसल उगाने की चुनौती का उपाय भी ढूंढा जा सकता है। इस वक्त उत्पादकता को बढ़ाने पर तवज्जो दिया जा रहा है। कम पानी में उगने वाले मक्के के बीज का व्यावसायीकरण अमेरिका में 2012 तक होने की उम्मीद है। जबकि दुनिया भर में यह बीज 2017 तक मौजूद होगा। (BS Hindi)
आनुवांशिक रूप से परिवर्धित चावल के बीजों का परीक्षण किया जा रहा है। ये बीज कम पानी में भी उगाए जा सकते हैं।
इन परिवर्धित बीजों (जीएम)का व्यावसायीकरण करने में कम से कम 8 साल लग जाएंगे। यह कहना है कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (एएसआरबी)के चारूदत्ता दिगंबराव माई का।
पहले से ही पॉली हाउस में जीएम राइस के पहले चरण का परीक्षण सफलता पूर्वक किया गया है। अब इस बीज का नियंत्रित परीक्षण कराया जा रहा है। इसके तहत परंपरागत फसल की बुआई एक प्रतिबंधित क्षेत्र में होता है। यह क्षेत्र परंपरागत फसल की बुआई के क्षेत्र से एक किलोमीटर दूर होगा।
वर्ष 2010-11 तक यह परीक्षण खुले क्षेत्रों में भी कराया जाएगा। सरकार के कड़े नियंत्रण के अंतर्गत यह परीक्षण कम से कम दो सालों के लिए होगा। उसके बाद इन बीजों के व्यावसायिकरण के लिए कुछ गिने-चुने किसानों को ही इजाजत दी जाएगी। इसके लिए बड़े किसानों की मेहनत को देखते हुए ही उन्हें इन बीजों के व्यावसायीकरण की इजाजत दी जाएगी।
सरकार की नजर पौधे की बढ़ोतरी, तने का आकार, लवणता, बीजों का विकास, नमी, फसल की कटाई के बाद भूमि का प्रबंधन और फसलों के भंडारण पर भी होगी। चावल के संदर्भ में छोटे पैमाने पर व्यावसायीकरण 5-6 सालों तक चलता रहेगा। गैर खाद्य कृषि जिंसों के लिए यह अवधि केवल 2 साल है।
माई का कहना है कि सभी तरह के परीक्षणों से संतुष्ट होकर ही जीएम राइस का बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण शुरू किया जाएगा। जब उनसे बीटी बैगन के व्यावसायीकरण के संदर्भ में पूछा गया तो उनका कहना था, 'गैर-सरकारी संगठन इस तरह की फसलें नहीं चाहती हैं। इसी वजह से वे इस तरह की फसलों का परीक्षण 25 सालों तक लगातार कराना चाहती हैं। इसी वजह से बीटी बैगन जैसी फसलों का व्यावसायीकरण ही नहीं करने देना चाहती हैं।'
इस तरह के बड़े पैमाने पर होने वाले परीक्षणों के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे पैदा हो जाते हैं जिनका खत्म होना बहुत जरूरी होता है। इससे कृषि वृद्धि की रफ्तार अगर प्रभावित नहीं हो तो वह बेहतर है।
माई का कहना है, 'मुझे पूरा यकीन है कि बीटी बैगन का व्यावसायीकरण वित्तीय वर्ष 2011 तक हो जाने की उम्मीद है। सरकार फिलहाल बैगन से ज्यादा चावल पर ही जोर दे रही है।' भारत बॉयोटेक फसलों का इस्तेमाल करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है और इसने पिछले साल कनाडा को पछाड़कर यह स्थान लिया।
देश में बीटी कॉटन बीजों की बुआई 76 लाख हेक्टेयर पर हुई जो वर्ष 2008 के कुल बुआई क्षेत्र 82 फीसदी के बराबर है। वर्ष 2007 में 66 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 62 लाख हेक्टेयर भूमि पर बीटी कॉटन की बुआई का काम हुआ।
एक्विजीशन ऑफ एग्री बॉयोटेक एप्लीके शंस (आईएसएएए)की अंतरराष्ट्रीय सेवा के मुताबिक वर्ष 2008 में रिकॉर्ड स्तर पर 50 लाख छोटे और गरीब किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की। वर्ष 2007 में 38 लाख किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की थी।
पिछले 13 सालों में (1996-2008 के बीच) दुनिया भर में परिवर्धित बीजों में 74 गुणा बढ़ोतरी हुई उसके मुकाबले भारत में परिवर्धित बीजों की बुआई क्षेत्र में 150 गुणा की बढ़ोतरी हुई। इस अवधि में किसानों की आय में प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपये की बढ़ोतरी हुई।
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय में वर्ष 2002-07 के बीच 3.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई और केवल वर्ष 2007 में 2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई। दुनिया भर में परंपरागत बीजों वाले खाद्यान्नों की कमी का संकट 2050 तक जबरदस्त रूप से पैदा होने वाला है। बीटी फसलों से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।
ऐसा इसलिए होगा क्योंकि फसल की पैदावार बहुत ज्यादा होगी और फसल चक्र प्रक्रिया में भी कमी आएगी। किसानों को भूमि में नमी की कमी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
बॉयोटेक्नोलॉजी के जरिए कम पानी में फसल उगाने की चुनौती का उपाय भी ढूंढा जा सकता है। इस वक्त उत्पादकता को बढ़ाने पर तवज्जो दिया जा रहा है। कम पानी में उगने वाले मक्के के बीज का व्यावसायीकरण अमेरिका में 2012 तक होने की उम्मीद है। जबकि दुनिया भर में यह बीज 2017 तक मौजूद होगा। (BS Hindi)
सोया खली निर्यातकों के चेहरे खिले
नई दिल्ली February 26, 2009
मंदी के इस दौर में भी सोयाबीन की खली के निर्यातकों के चेहरे पर मुस्कुराहट है। इसकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाद भी निर्यात मांग में कोई कमी नहीं आई है।
सोयाबीन की खली का निर्यात गत चार महीनों में (अक्टूबर, 2008 -जनवरी, 2009) 3000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। सोया की खली की निर्यात मांग में हो रही लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए निर्यातक पिछले साल की तरह ही इसके निर्यात की उम्मीद कर रहे हैं।
निर्यातक कहते हैं कि पिछले साल (वर्ष 2007) के मुकाबले वर्ष 2008 के नवंबर व दिसंबर महीनों में सोया की खली के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। गत नवंबर माह में 6,63776 टन का निर्यात किया गया तो दिसंबर में यह निर्यात 6,65304 टन का रहा।
वर्ष 2007 के नवंबर व दिसंबर महीनों में क्रमश: 5,31268 व 5,51382 टन का निर्यात किया गया। जनवरी, 2009 में पिछले साल जनवरी माह के मुकाबले निर्यात में जरूर कमी आयी है। इस साल जनवरी में 5,55,734 टन सोया की खली का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल जनवरी के दौरान यह निर्यात 7,24,526 टन के स्तर पर था।
हालांकि निर्यातकों का कहना है कि आगामी महीनों में इस कमी की भरपाई हो जाएगी। फरवरी के दौरान जनवरी के मुकाबले तेजी देखी जा रही है।
निर्यातक प्रकाश आर रूइया ने मुंबई से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'निर्यात ऐसा ही चलता रहा तो पिछले साल के स्तर को हम छू लेंगे। इन दिनों चल रहे निर्यात की गति पिछले साल की तरह ही है।'
निर्यातक कहते हैं कि 3000 करोड़ रुपये का निर्यात हो गया है और 4000 करोड़ रुपये के निर्यात के लिए अभी आठ माह बचे हैं। इन दिनों दक्षिण पूर्व व मध्य पूर्व के देशों में मुख्य रूप से सोया की खली का निर्यात किया जा रहा है।
हालांकि इन देशों में दक्षिण अमेरिका से भी सोया की खली की आपूर्ति की जाती है। लेकिन इन दिनों वहां से आपूर्ति कम होने के कारण भारतीय की खली की मांग बढ़ रही है। साथ ही पेराई का मौसम होने के कारण आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं हो रही है।
निर्यातकों ने बताया कि सोया की खली की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी का निर्यात पर कोई असर नहीं है। फिलहाल की खली की कीमत 20,600-20,800 रुपये प्रति टन की कीमत चल रही है जबकि गत दिसंबर माह में यह कीमत 13,800-13,900 रुपये प्रति टन थी। जनवरी मध्य तक यह कीमत 18,500-18,700 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच गयी। (BS Hindi)
मंदी के इस दौर में भी सोयाबीन की खली के निर्यातकों के चेहरे पर मुस्कुराहट है। इसकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाद भी निर्यात मांग में कोई कमी नहीं आई है।
सोयाबीन की खली का निर्यात गत चार महीनों में (अक्टूबर, 2008 -जनवरी, 2009) 3000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। सोया की खली की निर्यात मांग में हो रही लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए निर्यातक पिछले साल की तरह ही इसके निर्यात की उम्मीद कर रहे हैं।
निर्यातक कहते हैं कि पिछले साल (वर्ष 2007) के मुकाबले वर्ष 2008 के नवंबर व दिसंबर महीनों में सोया की खली के निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। गत नवंबर माह में 6,63776 टन का निर्यात किया गया तो दिसंबर में यह निर्यात 6,65304 टन का रहा।
वर्ष 2007 के नवंबर व दिसंबर महीनों में क्रमश: 5,31268 व 5,51382 टन का निर्यात किया गया। जनवरी, 2009 में पिछले साल जनवरी माह के मुकाबले निर्यात में जरूर कमी आयी है। इस साल जनवरी में 5,55,734 टन सोया की खली का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल जनवरी के दौरान यह निर्यात 7,24,526 टन के स्तर पर था।
हालांकि निर्यातकों का कहना है कि आगामी महीनों में इस कमी की भरपाई हो जाएगी। फरवरी के दौरान जनवरी के मुकाबले तेजी देखी जा रही है।
निर्यातक प्रकाश आर रूइया ने मुंबई से बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'निर्यात ऐसा ही चलता रहा तो पिछले साल के स्तर को हम छू लेंगे। इन दिनों चल रहे निर्यात की गति पिछले साल की तरह ही है।'
निर्यातक कहते हैं कि 3000 करोड़ रुपये का निर्यात हो गया है और 4000 करोड़ रुपये के निर्यात के लिए अभी आठ माह बचे हैं। इन दिनों दक्षिण पूर्व व मध्य पूर्व के देशों में मुख्य रूप से सोया की खली का निर्यात किया जा रहा है।
हालांकि इन देशों में दक्षिण अमेरिका से भी सोया की खली की आपूर्ति की जाती है। लेकिन इन दिनों वहां से आपूर्ति कम होने के कारण भारतीय की खली की मांग बढ़ रही है। साथ ही पेराई का मौसम होने के कारण आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं हो रही है।
निर्यातकों ने बताया कि सोया की खली की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी का निर्यात पर कोई असर नहीं है। फिलहाल की खली की कीमत 20,600-20,800 रुपये प्रति टन की कीमत चल रही है जबकि गत दिसंबर माह में यह कीमत 13,800-13,900 रुपये प्रति टन थी। जनवरी मध्य तक यह कीमत 18,500-18,700 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच गयी। (BS Hindi)
चीन से एल्युमीनियम आयात भारत पर भारी
मुंबई February 26, 2009
अगर चीन से आयात होने वाले एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत से कम आयात शुल्क लगाया जाता है, तो भारत के एल्युमीनियम उत्पादकों को संरक्षण देने की सरकार की नीति पर पानी फिर सकता है।
उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और विश्लेषकों का मानना है कि 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने पर ही सही मायने में उत्पादकों को राहत मिल सकती है। भारत के व्यापार सचिव जीके पिल्लई का कहना है कि चीन से एल्युमीनियम के आयात पर भारत शुल्क लगाएगा और इसके अलावा अन्य सामानों की आवक पर भी नजर रखेगा।
हालांकि यह मसला इसलिए विवादास्पद है, क्योंकि चीन ने कहा है कि इस तरह का कोई भी कदम द्विपक्षीय कारोबार के समझौतों पर असर डालेगा। मुंबई स्थित एक विदेशी ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक ने आशंका जाहिर की कि चीन विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से इस बात के लिए दबाव बना सकता है कि संरक्षण शुल्क 5 प्रतिशत से ज्यादा न होने पाए।
लंदन स्टॉक एक्सचेंज में एल्युमीनियम का हाजिर भाव गिरकर 1267 डॉलर प्रति टन के करीब चल रहा है, जबकि पिछले साल जुलाई में यह 3271 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर था। इस समय भारतीय एल्युमीनियम निर्माताओं की उत्पादन लागत कम से कम 1450 डॉलर प्रति टन से ज्यादा है।
इस समय स्थिति यह है कि मौजूदा कीमत में भारत की बड़ी उत्पादक कंपनियों जैसे हिंडालको इंडस्ट्रीज और सरकार की कंपनी नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) की उत्पादन लागत भी नहीं निकल रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि व्यापक पैमाने पर भारतीय कंपनियां उन्हीं सौदों के लिए काम कर रही हैं, जहां कीमतें पहले ही तय हो चुकी थीं।
विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि नाल्को का इनवेंट्री लेवल मार्च के अंत तक 30,000 टन पर पहुंच जाएगा, अगर वे हाजिर बाजार में इसे नहीं बेचते। कंपनी का सामान्य भंडारण 5,000 टन का है।
हिंडालको इंडस्ट्रीज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि प्राथमिक स्तर पर एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत संरक्षण शुल्क जरूरी है। वहीं मूल्य वर्धित एल्युमीनियम पर यह शुल्क 25 प्रतिशत होना चाहिए, जिससे भारतीय उत्पादकों को संरक्षण मिल सके।
आमने-सामने
लंदन मेटल एक्सचेंज में एल्युमीनियम का हाजिर भाव 1269 डॉलर प्रति टन के करीब भारतीय एल्युमीनियम उत्पादकों की लागत 1450 डॉलर प्रति टनचीन के उत्पादकों की लागत 1200-1300 डॉलर प्रति टन (BS Hindi)
अगर चीन से आयात होने वाले एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत से कम आयात शुल्क लगाया जाता है, तो भारत के एल्युमीनियम उत्पादकों को संरक्षण देने की सरकार की नीति पर पानी फिर सकता है।
उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और विश्लेषकों का मानना है कि 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने पर ही सही मायने में उत्पादकों को राहत मिल सकती है। भारत के व्यापार सचिव जीके पिल्लई का कहना है कि चीन से एल्युमीनियम के आयात पर भारत शुल्क लगाएगा और इसके अलावा अन्य सामानों की आवक पर भी नजर रखेगा।
हालांकि यह मसला इसलिए विवादास्पद है, क्योंकि चीन ने कहा है कि इस तरह का कोई भी कदम द्विपक्षीय कारोबार के समझौतों पर असर डालेगा। मुंबई स्थित एक विदेशी ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक ने आशंका जाहिर की कि चीन विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से इस बात के लिए दबाव बना सकता है कि संरक्षण शुल्क 5 प्रतिशत से ज्यादा न होने पाए।
लंदन स्टॉक एक्सचेंज में एल्युमीनियम का हाजिर भाव गिरकर 1267 डॉलर प्रति टन के करीब चल रहा है, जबकि पिछले साल जुलाई में यह 3271 डॉलर प्रति टन के उच्चतम स्तर पर था। इस समय भारतीय एल्युमीनियम निर्माताओं की उत्पादन लागत कम से कम 1450 डॉलर प्रति टन से ज्यादा है।
इस समय स्थिति यह है कि मौजूदा कीमत में भारत की बड़ी उत्पादक कंपनियों जैसे हिंडालको इंडस्ट्रीज और सरकार की कंपनी नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) की उत्पादन लागत भी नहीं निकल रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि व्यापक पैमाने पर भारतीय कंपनियां उन्हीं सौदों के लिए काम कर रही हैं, जहां कीमतें पहले ही तय हो चुकी थीं।
विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि नाल्को का इनवेंट्री लेवल मार्च के अंत तक 30,000 टन पर पहुंच जाएगा, अगर वे हाजिर बाजार में इसे नहीं बेचते। कंपनी का सामान्य भंडारण 5,000 टन का है।
हिंडालको इंडस्ट्रीज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि प्राथमिक स्तर पर एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत संरक्षण शुल्क जरूरी है। वहीं मूल्य वर्धित एल्युमीनियम पर यह शुल्क 25 प्रतिशत होना चाहिए, जिससे भारतीय उत्पादकों को संरक्षण मिल सके।
आमने-सामने
लंदन मेटल एक्सचेंज में एल्युमीनियम का हाजिर भाव 1269 डॉलर प्रति टन के करीब भारतीय एल्युमीनियम उत्पादकों की लागत 1450 डॉलर प्रति टनचीन के उत्पादकों की लागत 1200-1300 डॉलर प्रति टन (BS Hindi)
रेडियोएक्टिव तत्वों की जांच की सुविधा नहीं
नई दिल्ली/चेन्नई February 26, 2009
भारतीय समुद्री बंदरगाहों पर कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे निर्यात या आयात किए जाने वाले माल में खतरनाक रेडियोएक्टिव तत्वों की पहचान की जा सके।
इसी कमजोरी के चलते भारतीय बंदरगाहों से निर्यात किए जाने वाले तमाम निर्यात सौदों में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बंदरगाहों पर 2007 से ही रेडियोएक्टिव तत्व पाए जा रहे हैं।
सरकारी अधिकारियों और निर्यातकों के मुताबिक इस समस्या की जड़ 3-4 साल पहले भारत में आयात किए गए रेडियोएक्टिव स्टील स्क्रैप हैं। इस स्क्रैप का प्रयोग इंजीनियरिंग के सामानों के पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया गया।
इसका परिणाम यह हुआ कि जब निर्यात के सौदे रेडियोएक्टिव तत्वों के पैकेजिंग के बाद अमेरिका के बंदरगाहों पर 2007 में पहुंचे तो वहां पर खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई। लेकिन हकीकत में इस दूषित धातु की पहचान उस समय नहीं की जा सकी जब इसका निर्यात या आयात भारत के बंदरगाहों से किया गया, क्योंकि वहां पर रेडियोएक्टिव तत्वों की पहचान करने वाले संयंत्र ही नहीं लगे हैं।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'यहां के बंदरगाहों पर आधारभूत ढांचे में सुधार करने की जरूरत है। अब इस तरह की सुविधा उपलब्ध है, कि अगर खतरनाक या रेडियोएक्टिव तत्व का आयात या निर्यात किया जाता है, तो उसकी पहचान की जा सके। इसके साथ ही आयात किए जाने वाले स्क्रैप के मामले में भी पूरी जांच जरूरी है।'
इसके बारे में जब सीबीईसी के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विभाग सामान्यतया निर्यात और आयात किए जाने वाले सौदे का मूल्यांकन करता है। साथ ही प्रतिबंधित सामग्री की भी जांच करता है, जो भारत में आयात की जाती हैं। उन्होंने कहा कि मुंबई के नजदीक न्हावा शेवा में कंटेनर सर्विलांस स्कैनर भी है। बंदरगाहों पर स्कैनिंग की प्रक्रिया को बढ़ाया जा रहा है।
पोर्ट अथॉरिटी के सूत्रों के मुताबिक भारत में ज्यादातर स्क्रैप का आयात कांडला बंदरगाह से होता है, जबकि कुछ और चेन्नई, विजग और तूतीकोरिन से आता है। सूत्रों ने कहा कि इनमें से किसी भी बंदरगाह पर ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे रेडियोएक्टिव तत्वों की जांच की जा सके। कई बार तो ऐसा होता है कि हथियारों के स्क्रैप आते हैं, जिसमें बंदूकें और ग्रेनेड शामिल हैं।
अगर देखें तो इन्हीं खामियों के चलते गाजियाबाद स्थित भूषण स्टील में 1994 में विस्फोट हुआ था, जिसमें कइयों की जान चली गई थी। इंजीनियरिंग सामानों के निर्यातक बताते हैं कि 2007 में कोलकाता बंदरगाह से करीब 200 कंटेनर भेजे गए थे, जिसमें रेडियोएक्टिव तत्व मिले थे।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के वरिष्ठ संयुक्त निदेशक सुरंजन गुप्ता ने कहा कि इन्हें या तो वापस भेज दिया गया था, या डुबा दिया गया। लेकिन यह हमारे लिए एक चेतावनी थी और इस मसले से निपटने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया गया।
बहरहाल, इन सभी कवायदों के बावजूद अमेरिका और यूरोप के बंदरगाहों पर भारत से भेजे जाने वाले सौदों में रेडियोएक्टिव तत्व मिलते रहे। हाल ही में जनवरी महीने में मुंबई की एक कंपनी द्वारा निर्यात की गई सामग्री में रेडियोएक्टिविटी पाई गई।
हाल ही में हुई एक बैठक के दौरान स्टील मंत्रालय ने इस मसले पर विचार भी किया था। सरक ारी सूत्रों के मुताबिक मुंबई की इस कंपनी ने पैकेजिंग सामग्री का प्रयोग किया था, उसके लिए जिस स्टील स्क्रैप का प्रयोग किया गया उसका आयात रायगढ़ स्थित एक कंपनी विप्रास कास्टिंग्स लिमिटेड ने सीआईएस देशों से किया था।
स्टील मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'केवल एक ही मामला सामने आया है। सरकार ने जर्मनी स्थित उच्चायोग से जानकारी प्राप्त की है, जिसमें जर्मनी के स्थानीय अखबारों में छपी खबर के हवाले से कहा गया है कि भारत से आने वाले माल में रेडियोएक्टिव तत्व मिला है। इसके साथ ही एक और मीडिया रिपोर्ट आई है, जिसमें यह कहा गया है कि रेडियोएक्टिव तत्व खतरनाक स्तर पर नहीं हैं।' (BS Hindi)
भारतीय समुद्री बंदरगाहों पर कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे निर्यात या आयात किए जाने वाले माल में खतरनाक रेडियोएक्टिव तत्वों की पहचान की जा सके।
इसी कमजोरी के चलते भारतीय बंदरगाहों से निर्यात किए जाने वाले तमाम निर्यात सौदों में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बंदरगाहों पर 2007 से ही रेडियोएक्टिव तत्व पाए जा रहे हैं।
सरकारी अधिकारियों और निर्यातकों के मुताबिक इस समस्या की जड़ 3-4 साल पहले भारत में आयात किए गए रेडियोएक्टिव स्टील स्क्रैप हैं। इस स्क्रैप का प्रयोग इंजीनियरिंग के सामानों के पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया गया।
इसका परिणाम यह हुआ कि जब निर्यात के सौदे रेडियोएक्टिव तत्वों के पैकेजिंग के बाद अमेरिका के बंदरगाहों पर 2007 में पहुंचे तो वहां पर खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई। लेकिन हकीकत में इस दूषित धातु की पहचान उस समय नहीं की जा सकी जब इसका निर्यात या आयात भारत के बंदरगाहों से किया गया, क्योंकि वहां पर रेडियोएक्टिव तत्वों की पहचान करने वाले संयंत्र ही नहीं लगे हैं।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'यहां के बंदरगाहों पर आधारभूत ढांचे में सुधार करने की जरूरत है। अब इस तरह की सुविधा उपलब्ध है, कि अगर खतरनाक या रेडियोएक्टिव तत्व का आयात या निर्यात किया जाता है, तो उसकी पहचान की जा सके। इसके साथ ही आयात किए जाने वाले स्क्रैप के मामले में भी पूरी जांच जरूरी है।'
इसके बारे में जब सीबीईसी के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विभाग सामान्यतया निर्यात और आयात किए जाने वाले सौदे का मूल्यांकन करता है। साथ ही प्रतिबंधित सामग्री की भी जांच करता है, जो भारत में आयात की जाती हैं। उन्होंने कहा कि मुंबई के नजदीक न्हावा शेवा में कंटेनर सर्विलांस स्कैनर भी है। बंदरगाहों पर स्कैनिंग की प्रक्रिया को बढ़ाया जा रहा है।
पोर्ट अथॉरिटी के सूत्रों के मुताबिक भारत में ज्यादातर स्क्रैप का आयात कांडला बंदरगाह से होता है, जबकि कुछ और चेन्नई, विजग और तूतीकोरिन से आता है। सूत्रों ने कहा कि इनमें से किसी भी बंदरगाह पर ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे रेडियोएक्टिव तत्वों की जांच की जा सके। कई बार तो ऐसा होता है कि हथियारों के स्क्रैप आते हैं, जिसमें बंदूकें और ग्रेनेड शामिल हैं।
अगर देखें तो इन्हीं खामियों के चलते गाजियाबाद स्थित भूषण स्टील में 1994 में विस्फोट हुआ था, जिसमें कइयों की जान चली गई थी। इंजीनियरिंग सामानों के निर्यातक बताते हैं कि 2007 में कोलकाता बंदरगाह से करीब 200 कंटेनर भेजे गए थे, जिसमें रेडियोएक्टिव तत्व मिले थे।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के वरिष्ठ संयुक्त निदेशक सुरंजन गुप्ता ने कहा कि इन्हें या तो वापस भेज दिया गया था, या डुबा दिया गया। लेकिन यह हमारे लिए एक चेतावनी थी और इस मसले से निपटने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया गया।
बहरहाल, इन सभी कवायदों के बावजूद अमेरिका और यूरोप के बंदरगाहों पर भारत से भेजे जाने वाले सौदों में रेडियोएक्टिव तत्व मिलते रहे। हाल ही में जनवरी महीने में मुंबई की एक कंपनी द्वारा निर्यात की गई सामग्री में रेडियोएक्टिविटी पाई गई।
हाल ही में हुई एक बैठक के दौरान स्टील मंत्रालय ने इस मसले पर विचार भी किया था। सरक ारी सूत्रों के मुताबिक मुंबई की इस कंपनी ने पैकेजिंग सामग्री का प्रयोग किया था, उसके लिए जिस स्टील स्क्रैप का प्रयोग किया गया उसका आयात रायगढ़ स्थित एक कंपनी विप्रास कास्टिंग्स लिमिटेड ने सीआईएस देशों से किया था।
स्टील मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'केवल एक ही मामला सामने आया है। सरकार ने जर्मनी स्थित उच्चायोग से जानकारी प्राप्त की है, जिसमें जर्मनी के स्थानीय अखबारों में छपी खबर के हवाले से कहा गया है कि भारत से आने वाले माल में रेडियोएक्टिव तत्व मिला है। इसके साथ ही एक और मीडिया रिपोर्ट आई है, जिसमें यह कहा गया है कि रेडियोएक्टिव तत्व खतरनाक स्तर पर नहीं हैं।' (BS Hindi)
बढ़ रही है हर्बल गुलाल और प्राकृतिक रंगों की मांग
लखनऊ February 26, 2009
पांच साल पहले प्रयोग के तौर पर की गई शुरुआत इस साल होली के मौके पर उत्तर प्रदेश के बाजारों में अपना रंग दिखा रही है।
हर्बल गुलाल और प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ रही है। परंपरागत किराना किरानों की दुकानों में इस बार रसायनिक रंगो से ज्यादा मांग हर्बल गुलाल और टेसू के रंगों की हो रही है।
बीते साल जहां उत्तर प्रदेश के बाजारों में केवल राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के ही हर्बल गुलाल उत्तर प्रदेश और खास कर राजधानी लखनऊ में चलन में थे वहीं इस साल स्थानीय कंपनी आर्गेनिक इंडिया ने भी कई रंगों में अपने हर्बल गुलाल बाजार में उतारे हैं।
इन हर्बल गुलालों की विशेषता उनका न केवल इको फ्रेंडली होना है बल्कि इनका निर्माण भी हल्दी और तुलसी के जरिए किया गया है।
आर्गेनिक इंडिया के अनुसार उनके उत्पाद सौ फीसदी स्वास्थ की कसौटी पर खरे उतरते हैं। कंपनी ने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले इसकी गुणवत्ता की जांच के लिए इसे चिकित्सकों के पास भेज कर परीक्षण भी करवाया था। (BS Hindi)
पांच साल पहले प्रयोग के तौर पर की गई शुरुआत इस साल होली के मौके पर उत्तर प्रदेश के बाजारों में अपना रंग दिखा रही है।
हर्बल गुलाल और प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ रही है। परंपरागत किराना किरानों की दुकानों में इस बार रसायनिक रंगो से ज्यादा मांग हर्बल गुलाल और टेसू के रंगों की हो रही है।
बीते साल जहां उत्तर प्रदेश के बाजारों में केवल राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के ही हर्बल गुलाल उत्तर प्रदेश और खास कर राजधानी लखनऊ में चलन में थे वहीं इस साल स्थानीय कंपनी आर्गेनिक इंडिया ने भी कई रंगों में अपने हर्बल गुलाल बाजार में उतारे हैं।
इन हर्बल गुलालों की विशेषता उनका न केवल इको फ्रेंडली होना है बल्कि इनका निर्माण भी हल्दी और तुलसी के जरिए किया गया है।
आर्गेनिक इंडिया के अनुसार उनके उत्पाद सौ फीसदी स्वास्थ की कसौटी पर खरे उतरते हैं। कंपनी ने उत्पादों को बाजार में उतारने से पहले इसकी गुणवत्ता की जांच के लिए इसे चिकित्सकों के पास भेज कर परीक्षण भी करवाया था। (BS Hindi)
आर्थिक मंदी के छींटों से रंग का बाजार बेरंग होने की आशंका
नई दिल्ली February 26, 2009
होली पर भी मंदी का रंग सिर चढ़ कर बोल रहा है। रंगों का बाजार फीका नजर आ रहा है। पिछले साल के मुकाबले रंगों के कारोबार में 30 फीसदी की कमी आने का अनुमान है।
बिक्री में कमी को देखते हुए कई कारोबारियों ने रंग के कारोबार से अपना हाथ खींच लिया है। रंगों की कीमत में पिछले साल के मुकाबले कोई गिरावट नहीं है। हालांकि गुलाल के कारोबार में 10 फीसदी तक की ही गिरावट की संभावना बतायी जा रही है।
कारोबारियों ने बताया कि हर साल होली के मौसम में दिल्ली के थोक रंग-रसायन बाजार से 4-5 करोड़ रुपये का रंग व्यापार होता है। लेकिन इस बार जो ग्राहक 100 किलोग्राम रंगों की खरीदारी करता था वह मात्र 55-60 किलोग्राम खरीद रहा है।
हालांकि मार्च के पहले सप्ताह तक यह खरीदारी 70 किलोग्राम तक होने का अनुमान है। दिल्ली के रंग बाजार से मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के आसपास के इलाकों के खरीदार आते हैं।
रंग रसायन बाजार संघ के अध्यक्ष अजय अरोड़ा कहते हैं, 'इस बार तो रंग का कारोबार करने वाले व्यापारियों को घाटा होना निश्चित है। क्योंकि इस साल के स्टॉक को वे अगले साल के लिए नहीं रख सकते हैं। जिन कारोबारियों ने पिछले साल की खपत को देखते हुए स्टॉक किया है वे कम से कम लाभ पर अपना माल निकाल रहे हैं।'
दिल्ली के थोक रंग बाजार में नेचुरल रंग की कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम है तो बेसिक रंग की बिक्री 200-250 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से हो रही है। दिल्ली के थोक रसायन बाजार में 1500 कारोबारी है और इनमें से 20 फीसदी कारोबारी होली के मौसम में रंगों का कारोबार करते हैं।
कारोबारियों ने बताया कि रंगों की आपूर्ति मुख्य रूप से अहमदाबाद व मुंबई से होती है लिहाजा उन्हें एक माह पहले उसका ऑर्डर देना होता है। अब वे अपने माल को वापस भी नहीं कर सकते हैं।
व्यापारियों ने यह भी बताया कि मंदी के साथ-साथ रंगों से परहेज के कारण इसके कारोबार में हर साल 2 फीसदी की कमी आ रही है। अरोड़ा कहते हैं कि उन्होंने वर्ष 2008 के मुकाबले वर्ष 2007 में अधिक कारोबार किया था। यही वजह है कि गुलाल की बिक्री में मंदी के बावजूद रंगों के मुकाबले कम गिरावट देखी जा रही है।
गुलाल की कीमत भी पिछले साल के स्तर पर कायम है। अच्छे गुलाल की थोक कीमत 100 रुपये प्रति किलोग्राम है तो मध्यम व निम्न दर्जे के गुलाल की कीमत 50-20 रुपये प्रति किलोग्राम बतायी जा रही है। रसायन बाजार में जारी गिरावट के कारण रंगों की कीमत में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गयी है। (BS Hindi)
होली पर भी मंदी का रंग सिर चढ़ कर बोल रहा है। रंगों का बाजार फीका नजर आ रहा है। पिछले साल के मुकाबले रंगों के कारोबार में 30 फीसदी की कमी आने का अनुमान है।
बिक्री में कमी को देखते हुए कई कारोबारियों ने रंग के कारोबार से अपना हाथ खींच लिया है। रंगों की कीमत में पिछले साल के मुकाबले कोई गिरावट नहीं है। हालांकि गुलाल के कारोबार में 10 फीसदी तक की ही गिरावट की संभावना बतायी जा रही है।
कारोबारियों ने बताया कि हर साल होली के मौसम में दिल्ली के थोक रंग-रसायन बाजार से 4-5 करोड़ रुपये का रंग व्यापार होता है। लेकिन इस बार जो ग्राहक 100 किलोग्राम रंगों की खरीदारी करता था वह मात्र 55-60 किलोग्राम खरीद रहा है।
हालांकि मार्च के पहले सप्ताह तक यह खरीदारी 70 किलोग्राम तक होने का अनुमान है। दिल्ली के रंग बाजार से मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के आसपास के इलाकों के खरीदार आते हैं।
रंग रसायन बाजार संघ के अध्यक्ष अजय अरोड़ा कहते हैं, 'इस बार तो रंग का कारोबार करने वाले व्यापारियों को घाटा होना निश्चित है। क्योंकि इस साल के स्टॉक को वे अगले साल के लिए नहीं रख सकते हैं। जिन कारोबारियों ने पिछले साल की खपत को देखते हुए स्टॉक किया है वे कम से कम लाभ पर अपना माल निकाल रहे हैं।'
दिल्ली के थोक रंग बाजार में नेचुरल रंग की कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम है तो बेसिक रंग की बिक्री 200-250 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से हो रही है। दिल्ली के थोक रसायन बाजार में 1500 कारोबारी है और इनमें से 20 फीसदी कारोबारी होली के मौसम में रंगों का कारोबार करते हैं।
कारोबारियों ने बताया कि रंगों की आपूर्ति मुख्य रूप से अहमदाबाद व मुंबई से होती है लिहाजा उन्हें एक माह पहले उसका ऑर्डर देना होता है। अब वे अपने माल को वापस भी नहीं कर सकते हैं।
व्यापारियों ने यह भी बताया कि मंदी के साथ-साथ रंगों से परहेज के कारण इसके कारोबार में हर साल 2 फीसदी की कमी आ रही है। अरोड़ा कहते हैं कि उन्होंने वर्ष 2008 के मुकाबले वर्ष 2007 में अधिक कारोबार किया था। यही वजह है कि गुलाल की बिक्री में मंदी के बावजूद रंगों के मुकाबले कम गिरावट देखी जा रही है।
गुलाल की कीमत भी पिछले साल के स्तर पर कायम है। अच्छे गुलाल की थोक कीमत 100 रुपये प्रति किलोग्राम है तो मध्यम व निम्न दर्जे के गुलाल की कीमत 50-20 रुपये प्रति किलोग्राम बतायी जा रही है। रसायन बाजार में जारी गिरावट के कारण रंगों की कीमत में कोई बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गयी है। (BS Hindi)
25 फ़रवरी 2009
खाद्यान्न जरूरत बीटी से ही पूरी होगी : वैज्ञानिक
भले ही कपास उत्पादन में बायोटेक्नालॉजी (बीटी) का उपयोग खूब बढ़ा हो लेकिन खाद्यान्न उत्पादन में बीटी के इस्तेमाल पर तर्को को जमकर धार दी जा रही है। बीटी के पक्षधर वैज्ञानिकों ने कहा है कि खाद्यान्न की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्लांट बायोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जरूरी है। हालांकि दूसरी ओर विरोधी वैज्ञानिकों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है।कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. स्वप्न दत्ता और कटक (ओडीसा) स्थित सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के वनस्पति सुधार के प्रमुख डा. जी जे एन राव ने संवाददाताओं को बताया कि प्लांट बायोटेक्नोलॉजी में वह क्षमता है जिससे फसल की पैदावार बढ़ सकती है। इससे खाद्यान्न की बढ़ती मांग की चुनौती का सामना किया जा सकता है। डा. दत्ता ने कहा कि वर्ष 2017 तक भारत की जनसंख्या 130 करोड़ हो जाने का अनुमान है तथा केंद्र सरकार के अनुमान के मुताबिक उस समय पारंपरिक तरीकों से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ने के बावजूद 1.40 करोड़ टन खाद्यान्न की कमी होगी।कम पैदावार और बढ़ती मांग की वजह से धान की उपज बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है। गोल्डन चावल के मुद्दे पर वैज्ञानिकों ने कहा कि चावल के उत्पादन में वृद्धि के अलावा उसकी पौष्टिकता को बढ़ाना, पर्यावरण की बेहतरी, कीड़ों व रोगों (येला स्टैम बोरर एवं लीफ फोल्डर) के विरुद्ध उसकी क्षमता में बढ़ोतरी होगी। बीटी धान किसान दोगुनी पैदावार ले सकते हैं। राव ने इस मौके पर कहा कि बायोटेक धान निर्विवाद रूप से फायदेमंद है। यह किस्म भारत में उत्पादन संबंधी अवरोधों को दूर करने, उत्पादन बढ़ाने और केमिकल पेस्टीसाइड का इस्तेमाल घटाकर पर्यावरण को सुरक्षित बनाने में सक्षम है। दूसरी ओर भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण बीर चौधरी ने दुनिया के करीब दो दर्जन प्रमुख वैज्ञानिकों के हवाले से कहा कि बायोटैक से तैयार चावल के खाने से बच्चों में जन्मजात रोगों की आशंका बढ़ जाती है। कई वैज्ञानिक और संस्थाएं इन बायोटेक फसलों को जैव विविधता और मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती हैं। (Business Bhaskar)
दस माह में भारत से जीरा का निर्यात 43 फीसदी बढ़ गया
चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी तक भारत से मसालों के निर्यात में पांच फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस तरह कुल निर्यात 372,125 टन रहा है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार इस दौरान जीरा और हल्दी की निर्यात मांग में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है।इस दौरान सबसे ज्यादा बढ़ोतरी जीरा के निर्यात में करीब 43 फीसदी की हुई है। चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीने में देश से जीरे का निर्यात बढ़कर 29,750 टन का हुआ है। अन्य प्रमुख उत्पादक देशों टर्की, सीरिया और ईरान में जीरे के उत्पादन में आई भारी गिरावट के कारण ही अभी तक देश से रिकार्ड निर्यात संभव हो पाया है। जीरा निर्यातक पंकज भाई पटेल ने बताया कि टर्की और सीरिया में नई फसल की आवक जून-जुलाई महीने में होगी इसलिए आगामी चार-पांच महीने तक जीरे में निर्यात मांग अच्छी बनी रहने की संभावना है। गुजरात में जीरे की नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है। देश से हल्दी के निर्यात में चालू वित्त वर्ष में अभी तक करीब 15 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 47,000 टन रहा। निजामाबाद मंडी के हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि हल्दी में निर्यातकों की अच्छी मांग के कारण ही नई फसल की आवक बढ़ने के बावजूद भावों में गिरावट नहीं आ रही है। इस समय निजामाबाद मंडी में नई फसल की आवक करीब आठ से दस हजार बोरी और इरोड़ मंडी में करीब दस से बारह हजार बोरी की आवक हो रही है। घरेलू बाजारों में भाव तेज होने और अमेरिका तथा यूरोप में आर्थिक मंद गति के कारण इस दौरान कालीमिर्च का निर्यात 29,700 टन से घटकर 21,600 टन रह गया। वर्ष 2008-09 में कालीमिर्च का औसत निर्यात मूल्य 164.86 रुपये प्रति किलोग्राम रहा है जबकि पिछले साल इसका औसत निर्यात मूल्य 146.05 रुपये प्रति किलोग्राम था। अन्य मसलाों में लालमिर्च और मेंथा उत्पादों की निर्यात मांग में भी इस दौरान कमी देखने को मिली है। लालमिर्च का निर्यात चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक 156,500 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका निर्यात 160,930 टन का हुआ था। लालमिर्च के निर्यातक अशोक दत्तानी ने बताया कि इस समय लालमिर्च में बांग्लादेश और श्रीलंका की अच्छी मांग देखी जा रही है। ऐसे में आगामी महीनों में इसके निर्यात में अच्छी बढ़ोतरी की संभावना है। मेंथा उत्पादों के निर्यात में भी चालू वित्त वर्ष में अभी तक चार फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 17,500 टन का ही हुआ है। वर्ष 2008-09 में देश से मसालों के निर्यात का लक्ष्य 425,000 टन का रखा गया है। (Business Bhaskar)
स्टॉक लिमिट के फैसले से चीनी के दाम गिर
केंद्र सरकार द्वारा चीनी मिलों और कारोबारियों के लिए चीनी पर स्टॉक लिमिट लगाए जाने के फैसले के बाद घरेलू वायदा और हाजिर बाजारों में चीनी की कीमतों में तगड़ी गिरावट दर्ज की गई है। उधर विदेशी बाजारों में भी चीनी नरम रही। न्यूयार्क में चीनी वायदा में निचले मूल्य स्तर पर सौदे हुए।नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईईएक्स) में शुरूआती कारोबार के दौरान चीनी मार्च वायदा करीब चार फीसदी की गिरावट के साथ 2101 रुपये प्रति क्विंटल के निचले स्तर पर चला गया जो कारोबारी सत्र के लिए लोवर सर्किट लेवल रहा। यह कांट्रेक्ट अपने पिछले बंद के मुकाबले करीब तीन फीसदी की गिरावट के साथ 2122 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। इस दौरान हाजिर बाजारों में भी चीनी की कीमतों में तगड़ी गिरावट देखी गई। दिल्ली में चीनी करीब तीस रुपये की गिरावट के साथ 2275-2300 रुपये प्रति क्विंटल पर बिकी। कारोबारियों के मुताबिक आढ़तियों की बिकवाली बढ़ने से चीनी की कीमतों पर दबाव बढ़ा है। मुंबई में भी चीनी की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। यहां कीमतों में करीब 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट देखी गई।वासी में चीनी एम ग्रेड 2175-2270 रुपये क्विंटल और चीनी-30 एस ग्रेड 2150-2210 रुपये क्विंटल बोली गई। इस दौरान वैश्विक बाजारों में भी चीनी की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। एक दिन पहले के कारोबार के दौरान आईसीई चीनी वायदा में आई गिरावट का असर एशियाई कारोबार पर भी पड़ा। वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल में कमजोरी से भी चीनी का कारोबार प्रभावित हुआ है। सोमवार को आईसीई मार्च चीनी वायदा करीब चार फीसदी की गिरावट के साथ 12.68 सेंट प्रति पौंड पर निपटा। कारोबारियों का मानना है कि आने वाले दिनों में चीनी में मांग सुधर सकती है। चायना शुगर एसोसिएशन के मुताबिक साल 2008-09 के दौरान करीब 1.25 करोड़ टन चीनी का उत्पादन होने की संभावना है। पिछले साल यहां करीब 1.448 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar)
राजस्थान में गेहूं खरीद 15 मार्च से संभव
राजस्थान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद निर्धारित समय से एक पखवाड़े पहले 15 मार्च से ही शुरू होने की संभावना है। इस बीच केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने राज्यों से पिछली फसल का अपने हिस्से का बचा हुआ गेहूं उठाने का फिर से आग्रह किया है ताकि अगली फसल का गेहूं रखने के लिए गोदाम खाली हो सकें।भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के महाप्रबंधक (राजस्थान) आर.सी. मीणा ने बताया कि आमतौर पर रबी विपणन सत्र के दौरान एमएसपी पर खरीद एक अप्रैल से ही शुरू की जाती है लेकिन गुजरात व मध्य प्रदेश में खरीद पंद्रह दिन पहले शुरु होने की संभावना को देखते हुए राजस्थान में भी खरीद जल्दी शुरू की जा रही है। राज्य के अतिरिक्त खाद्य आयुक्त ओ.पी. यादव ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि एफसीआई ने गेहूं की खरीद जल्दी शुरू करने के बार में जानकार दी है। हमने केंद्र सरकार को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा था।पिछले वर्ष भी राज्य में 15 दिन पहले गेहूं की खरीद शुरू हो गई थी। राजस्थान में एफसीआई ने स्थानीय एजेंसियों के साथ मिलकर राज्य में दस लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है। इसके लिए राज्य में 295 खरीद केंद्र स्थापित किए जाएंगे। पिछले वर्ष राज्य में सरकारी एजेंसियों ने 9.35 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। लेकिन इस बार गेहूं उत्पादन में कमी को देखते हुए एफसीआई को खरीद लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद कम ही है। प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक राज्य में इस बार गेहूं की पैदावार दस फीसदी घटकर 63.81 लाख टन रह जाने का अनुमान है। कृषि मंत्री शरद पंवार ने कहा कि अभी तक बफर स्टॉक में पिछले वर्ष का 136 लाख टन गेहूं पड़ा हुआ है। पिछले वर्ष सरकारी एजेंसियों ने रिकॉर्ड 226.82 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। जबकि एक अप्रैल से खाद्यान्नों की खरीद शुरू होनी है। इसलिए मंत्रालय ने राज्यों से गेहूं उठाने के आग्रह को दोहराया है। पिछले सप्ताह लोकसभा में भी कहा था कि खाद्यान्नों के लिए वर्ष 2009-10 में पंजाब में 43.62 लाख टन और हरियाणा में 44.81 लाख टन अतिरिक्त भंडारण की जरूरत होगी। (Business Bhaskar)
मांग घटने के बावजूद चीन में स्टील उत्पादन बढ़ा
बीजिंग। जनवरी के दौरान चीन के क्रूड स्टील उत्पादन में 2.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान यहां करीब 4.15 करोड़ टन क्रूड स्टील का उत्पादन हुआ। मौजूदा आर्थिक माहौल में स्टील की मांग में गिरावट देखी जा रही है जबकि चीन के उत्पादकों ने उत्पादन बढ़ाया है। वल्र्ड स्टील एसोसिएशन द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान चीन में स्टील उत्पादन में करीब 9.9 फीसदी का इजाफा हुआ है। हालांकि जानकारों का मानना है कि चालू साल के दौरान भी स्टील की मांग में कमी देखी जा सकती है। लेकिन पिछले साल दिसंबर में सुधार की उम्मीद में जनवरी के दौरान उत्पादकों से उत्पादन में इजाफा किया। मौजूदा समय में यहां भी मांग में कमी देखी जा रही है। कंपनियों के सामने अभी भी मांग में कमी और बैकों से कर्ज नहीं मिलने की समस्या बनी हुई है। उत्पादन बढ़ने से आने वाले दिनों में यहां स्टील की कीमतों पर दबाव और बढ़ सकता है। चीन में स्टील के उत्पादन बढ़ने के साथ ही वैश्विक स्तर पर उत्पादन में करीब 24 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। इस दौरान एशिया में स्टील उत्पादन करीब 7.8 फीसदी घटा है। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी के दौरान जापान में स्टील उत्पादन करीब 37.8 फीसदी घटा है जबकि दक्षिण कोरिया में 25.6 फीसदी, ताईवान में 27.5 फीसदी और यूरोपीय यूनियन में करीब 45.9 फीसदी स्टील उत्पादन में गिरावट आई है। (Business Bhaskar)
बढ़ा टायर आयात, घटी रबर की खपत
कोच्चि February 25, 2009
पिछले कुछ सालों से मुल्क में ट्रक और बसों के टायर के आयात में बढ़ोतरी होने की वजह से ही देश में प्राकृतिक रबर की खपत में खासी कमी आई है।
प्राकृतिक रबर की खपत में 10 फीसदी की कमी आई है और यह कम होकर दिसंबर में 66,000 टन हो गया। जनवरी में रबरकी खपत में 5.7 फीसदी की कमी आई और यह 67,000 टन हो गया।
वर्ष 2008-09 के अप्रैल-जनवरी की अवधि के दौरान खपत में बढ़ोतरी केवल 1.8 फीसदी रही जबकि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान में यह बढ़ोतरी 5 फीसदी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक टायर के आयात में बढ़ोतरी होने की वजह से देश के टायर निर्माण सेक्टर में प्राकृतिक रबर की खपत उतनी ज्यादा नहीं हो रही है।
सालाना आधार पर वित्तीय वर्ष 2008-09 में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान बसों और ट्रकों के 14,016,96 टायरों का आयात होने की उम्मीद है। इन टायरों का औसत भार 84,102 टन होता है और इसमें से 35,042 टन प्राकृतिक रबर का हिस्सा होता है। वर्ष 2008-09 में मुल्क में 80,000 टन रबर का प्रत्यक्ष आयात किया गया।
देश से किए जाने वाले टायर निर्यात के मुकाबले आयातित टायर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2008-09 की अप्रैल-अगस्त की अवधि के दौरान देश के कुल निर्यात वैल्यू का यह 71.45 फीसदी हो गया। इस अवधि के दौरान 916.54 करोड़ टायर का निर्यात किया गया जबकि 654.86 करोड़ के टायर की खपत घरेलू बाजार में हुई।
दूसरी ओर लगभग 90 फीसदी आयात चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के जरिए होता है। टायर आयात में बढ़ोतरी होने से देश के प्राकृतिक रबर उत्पादकों के साथ-साथ घरेलू टायर निर्माण क्षेत्र के लिए भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
बाजार में नए टायरों की मांग में 70-80 फीसदी की कमी आई है इसकी वजह से इंडस्ट्री का रुख पुराने टायरों की ओर ही टिका है। लेकिन इस क्षेत्र में आयातित टायरों के बढ़ने से घरेलू टायर इंडस्ट्री के लिए खतरा पैदा हो गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक प्राकृतिक रबर का आयात टायर के आयात के साथ महज आधी शुल्क के जरिए ही हो जाता है।
प्राकृतिक रबरके आयात पर शुल्क 20 फीसदी है जबकि टायर के आयात पर शुल्क 10 फीसदी है। इसी वजह से 35,042 टन का आयात 10 फीसदी शुल्क पर ही हो जाता है।
मुमकिन है कि प्राकृतिक रबर की कीमतों में ज्यादा गिरावट हो क्योंकि इस रबर के उपभोक्ता अब इसकी बहुत कम मांग कर रहे हैं। उत्पादकों को यह आशंका है कि टायर की की ओट में प्राकृतिक रबर के आयात से दिक्कतें और बढ़ेंगी। (BS Hindi)
पिछले कुछ सालों से मुल्क में ट्रक और बसों के टायर के आयात में बढ़ोतरी होने की वजह से ही देश में प्राकृतिक रबर की खपत में खासी कमी आई है।
प्राकृतिक रबर की खपत में 10 फीसदी की कमी आई है और यह कम होकर दिसंबर में 66,000 टन हो गया। जनवरी में रबरकी खपत में 5.7 फीसदी की कमी आई और यह 67,000 टन हो गया।
वर्ष 2008-09 के अप्रैल-जनवरी की अवधि के दौरान खपत में बढ़ोतरी केवल 1.8 फीसदी रही जबकि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान में यह बढ़ोतरी 5 फीसदी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक टायर के आयात में बढ़ोतरी होने की वजह से देश के टायर निर्माण सेक्टर में प्राकृतिक रबर की खपत उतनी ज्यादा नहीं हो रही है।
सालाना आधार पर वित्तीय वर्ष 2008-09 में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान बसों और ट्रकों के 14,016,96 टायरों का आयात होने की उम्मीद है। इन टायरों का औसत भार 84,102 टन होता है और इसमें से 35,042 टन प्राकृतिक रबर का हिस्सा होता है। वर्ष 2008-09 में मुल्क में 80,000 टन रबर का प्रत्यक्ष आयात किया गया।
देश से किए जाने वाले टायर निर्यात के मुकाबले आयातित टायर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2008-09 की अप्रैल-अगस्त की अवधि के दौरान देश के कुल निर्यात वैल्यू का यह 71.45 फीसदी हो गया। इस अवधि के दौरान 916.54 करोड़ टायर का निर्यात किया गया जबकि 654.86 करोड़ के टायर की खपत घरेलू बाजार में हुई।
दूसरी ओर लगभग 90 फीसदी आयात चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के जरिए होता है। टायर आयात में बढ़ोतरी होने से देश के प्राकृतिक रबर उत्पादकों के साथ-साथ घरेलू टायर निर्माण क्षेत्र के लिए भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
बाजार में नए टायरों की मांग में 70-80 फीसदी की कमी आई है इसकी वजह से इंडस्ट्री का रुख पुराने टायरों की ओर ही टिका है। लेकिन इस क्षेत्र में आयातित टायरों के बढ़ने से घरेलू टायर इंडस्ट्री के लिए खतरा पैदा हो गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक प्राकृतिक रबर का आयात टायर के आयात के साथ महज आधी शुल्क के जरिए ही हो जाता है।
प्राकृतिक रबरके आयात पर शुल्क 20 फीसदी है जबकि टायर के आयात पर शुल्क 10 फीसदी है। इसी वजह से 35,042 टन का आयात 10 फीसदी शुल्क पर ही हो जाता है।
मुमकिन है कि प्राकृतिक रबर की कीमतों में ज्यादा गिरावट हो क्योंकि इस रबर के उपभोक्ता अब इसकी बहुत कम मांग कर रहे हैं। उत्पादकों को यह आशंका है कि टायर की की ओट में प्राकृतिक रबर के आयात से दिक्कतें और बढ़ेंगी। (BS Hindi)
चीनी की कीमतें रह सकती हैं मजबूत, उद्योग जगत को राहत के आसार
February 25, 2009
हमेशा से दिक्कतों से जूझते रहने वाले भारतीय चीनी उद्योग के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि चीनी की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी।
अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन के कार्यकारी निदेशक पीटर बैरॉन ने कहा है कि दुनिया भर में अधिकता का चरण अब खत्म हो चुका है और विश्व बाजार अब कमी की ओर बढ़ रहा है इसकी वजह से उद्योग को कुछ राहत मिल सकती है।
बैरॉन का कहना है कि पहली बार इन तीन सालों में दुनिया भर में चीनी का उत्पादन वर्ष 2008-09 में 16.23 करोड़ टन हो जाएगा। जबकि दीर्घ अवधि में चीनी की खपत में औसतन वृद्धि 2.5 फीसदी होगी और यह बढ़कर 16.59 करोड़ टन हो जाएगी।
हालांकि वैश्विक कमी बैरॉन के अनुमान से भी ज्यादा रहेगी। इसकी वजह यह है कि उन्होंने भारत में चीनी उत्पादन में 56 लाख टन की कमी का अनुमान लगाया था जो कि 90 लाख टन हो जाएगा। उनका कहना है कि अगले मौसम में उत्पादन में कमी और भी ज्यादा होगी।
ये सभी संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि दुनिया भर में चीनी की कीमतें मजबूत रहेंगी। इस बीच भारत के लिए यह मौसम बहुत अच्छे संकेत दे रहा है। गन्ना उत्पादन में सबसे आगे रहने वाले राज्यों मसलन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में फरवरी की शुरुआत में ही गन्ने की कटाई खत्म हो गई है।
चीनी उद्योग को पिछले दो सालों में बहुत ज्यादा घाटा हुआ है। गन्ने की बुआई के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन में कमी और खराब मौसम की वजह से भी हाल के दिनों गन्ने की पेराई के दिनों में भी काफी कमी आई है।
पिछले तीन सालों में पेराई के मौसम की अवधि 143 दिनों से 180 दिन रही है। वर्ष 2006-07 में 35.6 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन हुआ है लगभग 180 दिनों तक पेराई का काम हुआ। इसी वजह से चीनी का उत्पादन 2 करोड़ 83 लाख 30 हजार टन हुआ।
दक्षिण भारत के राज्यों को छोड़कर देश की अन्य मिलें मार्च की शुरूआत में ही गन्ने की पेराई का काम बंद कर देंगी। फिलहाल यह उद्योग चीनी के उत्पादन में 165 लाख गिरावट की उम्मीद कर रहा है। इसके अलावा गन्ने से चीनी की रिकवरी में 1 फीसदी की कमी आई है।
इस मौसम में फैक्टरियों में खोई और शीरा भी उतना ज्यादा तैयार नहीं हो पा रहा है कि बिजली उत्पादन और एथनॉल तैयार हो सके ताकि चीनी से जुड़ी जिंसों के कारोबार में जोखिम कम किया जाए। भारत में चीनी उत्पादन में बलरामपुर चीनी दूसरे स्थान पर है।
बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक का कहना है कि इसके उत्पादन में वर्ष 2008-09 में लगभग 40 फीसदी की गिरावट हो सकती है। इन सभी वजहों से भी चीनी उद्योग पर गन्ने की कीमतों को लेकर बहुत दबाव बन रहा है।
उत्तर प्रदेश की सरकार ने गन्ने की कीमत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी कर 140 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसे दिल्ली के चीनी जारी करने के निर्देश के संदर्भ में भी देखना चाहिए। हालांकि सरकार चीनी के लिए जो कोटा जारी करती है वह बाजार के गणित से ही तय नहीं होती।
भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन(एस्मा)के अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि जब सरकार को यह महसूस हो जाएगा कि देश की चीनी की सबसे ज्यादा खपत औद्योगिक उपभोक्ता ही करते हैं और समय-समय पर अधिक कीमतों के लिए शोर भी वही मचाते हैं तो वह इसे बंद भी कर सकती है।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत की प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 19.8 किलोग्राम है। लेकिन इसमें भी गिरावट आ सकती है, अगर इसका औद्योगिक इस्तेमाल अलग हो जाएगा। भारतीय लोग बहुत कम चीनी की खपत करते हैं इसकी वजह उनकी भोजन की अलग शैली भी है। वैसे राशन की दुकान पर यह मौजूद होता ही है।
इन परिस्थितियों में यह आश्वासन मिलना बहुत जरूरी है कि वे गन्ने की बिलों का भुगतान समय पर कर दें। चीनी फैक्टरियां खुले बाजार अपने माल बेच कर जो मुनाफा कमाती हैं वह उनके उत्पादन का 90 फीसदी होता है और उनके पास पैसे भी हमेशा होते हैं ताकि वे गन्ने की बिल का उत्पादन कर सकें।
एस्मा के महानिदेशक एस. एल. जैन का यह दावा है कि भारत में यह क्षमता है कि वह कच्ची चीनी के नियमित निर्यातक हो सकता है। पिछले मौसम में उसने अपना निर्यात कच्चे माल के तौर पर बढ़ा कर 53.5 लाख टन कर दिया, यह इस बात का सबूत है। इसके अलावा हम देश के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हो गए जो स्थान अब तक थाईलैंड का था।
हमारे कच्ची चीनी की गुणवत्ता बहुत बेहतर मानी जाती है। इसी वजह से दुबई जो दुनिया में सबसे बड़ी रिफाइनरी मानी जाती है, उसने कच्चे माल की आपूत के लिए ब्राजील के बजाय भारत को तरजीह दी है। लेकिन यह बहुत आश्चर्यजनक भी है कि हम चीनी के शुद्ध आयातक भी बन रहे हैं।
वर्ष 2007-08 के तीनों मौसम के दौरान बहुत ज्यादा चीनी का उत्पादन हुआ। देश में अगले मौसम में इसका फायदा नजर नहीं आएगा और चीनी का आयात वर्ष 2009-10 में ज्यादा हो सकता है।
हालांकि जैन का मानना है कि भारत नियमित निर्यातक बन सकता है। इसकी वजह से किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और उन्होंने गन्ने के रकबे में जो कमी की थी उसमें भी सुधार होगा और फसल की उत्पादकता में भी बदलाव नजर आएगा। (BS HIndi)
हमेशा से दिक्कतों से जूझते रहने वाले भारतीय चीनी उद्योग के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि चीनी की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी।
अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन के कार्यकारी निदेशक पीटर बैरॉन ने कहा है कि दुनिया भर में अधिकता का चरण अब खत्म हो चुका है और विश्व बाजार अब कमी की ओर बढ़ रहा है इसकी वजह से उद्योग को कुछ राहत मिल सकती है।
बैरॉन का कहना है कि पहली बार इन तीन सालों में दुनिया भर में चीनी का उत्पादन वर्ष 2008-09 में 16.23 करोड़ टन हो जाएगा। जबकि दीर्घ अवधि में चीनी की खपत में औसतन वृद्धि 2.5 फीसदी होगी और यह बढ़कर 16.59 करोड़ टन हो जाएगी।
हालांकि वैश्विक कमी बैरॉन के अनुमान से भी ज्यादा रहेगी। इसकी वजह यह है कि उन्होंने भारत में चीनी उत्पादन में 56 लाख टन की कमी का अनुमान लगाया था जो कि 90 लाख टन हो जाएगा। उनका कहना है कि अगले मौसम में उत्पादन में कमी और भी ज्यादा होगी।
ये सभी संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि दुनिया भर में चीनी की कीमतें मजबूत रहेंगी। इस बीच भारत के लिए यह मौसम बहुत अच्छे संकेत दे रहा है। गन्ना उत्पादन में सबसे आगे रहने वाले राज्यों मसलन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में फरवरी की शुरुआत में ही गन्ने की कटाई खत्म हो गई है।
चीनी उद्योग को पिछले दो सालों में बहुत ज्यादा घाटा हुआ है। गन्ने की बुआई के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन में कमी और खराब मौसम की वजह से भी हाल के दिनों गन्ने की पेराई के दिनों में भी काफी कमी आई है।
पिछले तीन सालों में पेराई के मौसम की अवधि 143 दिनों से 180 दिन रही है। वर्ष 2006-07 में 35.6 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन हुआ है लगभग 180 दिनों तक पेराई का काम हुआ। इसी वजह से चीनी का उत्पादन 2 करोड़ 83 लाख 30 हजार टन हुआ।
दक्षिण भारत के राज्यों को छोड़कर देश की अन्य मिलें मार्च की शुरूआत में ही गन्ने की पेराई का काम बंद कर देंगी। फिलहाल यह उद्योग चीनी के उत्पादन में 165 लाख गिरावट की उम्मीद कर रहा है। इसके अलावा गन्ने से चीनी की रिकवरी में 1 फीसदी की कमी आई है।
इस मौसम में फैक्टरियों में खोई और शीरा भी उतना ज्यादा तैयार नहीं हो पा रहा है कि बिजली उत्पादन और एथनॉल तैयार हो सके ताकि चीनी से जुड़ी जिंसों के कारोबार में जोखिम कम किया जाए। भारत में चीनी उत्पादन में बलरामपुर चीनी दूसरे स्थान पर है।
बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक का कहना है कि इसके उत्पादन में वर्ष 2008-09 में लगभग 40 फीसदी की गिरावट हो सकती है। इन सभी वजहों से भी चीनी उद्योग पर गन्ने की कीमतों को लेकर बहुत दबाव बन रहा है।
उत्तर प्रदेश की सरकार ने गन्ने की कीमत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी कर 140 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसे दिल्ली के चीनी जारी करने के निर्देश के संदर्भ में भी देखना चाहिए। हालांकि सरकार चीनी के लिए जो कोटा जारी करती है वह बाजार के गणित से ही तय नहीं होती।
भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन(एस्मा)के अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि जब सरकार को यह महसूस हो जाएगा कि देश की चीनी की सबसे ज्यादा खपत औद्योगिक उपभोक्ता ही करते हैं और समय-समय पर अधिक कीमतों के लिए शोर भी वही मचाते हैं तो वह इसे बंद भी कर सकती है।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत की प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 19.8 किलोग्राम है। लेकिन इसमें भी गिरावट आ सकती है, अगर इसका औद्योगिक इस्तेमाल अलग हो जाएगा। भारतीय लोग बहुत कम चीनी की खपत करते हैं इसकी वजह उनकी भोजन की अलग शैली भी है। वैसे राशन की दुकान पर यह मौजूद होता ही है।
इन परिस्थितियों में यह आश्वासन मिलना बहुत जरूरी है कि वे गन्ने की बिलों का भुगतान समय पर कर दें। चीनी फैक्टरियां खुले बाजार अपने माल बेच कर जो मुनाफा कमाती हैं वह उनके उत्पादन का 90 फीसदी होता है और उनके पास पैसे भी हमेशा होते हैं ताकि वे गन्ने की बिल का उत्पादन कर सकें।
एस्मा के महानिदेशक एस. एल. जैन का यह दावा है कि भारत में यह क्षमता है कि वह कच्ची चीनी के नियमित निर्यातक हो सकता है। पिछले मौसम में उसने अपना निर्यात कच्चे माल के तौर पर बढ़ा कर 53.5 लाख टन कर दिया, यह इस बात का सबूत है। इसके अलावा हम देश के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हो गए जो स्थान अब तक थाईलैंड का था।
हमारे कच्ची चीनी की गुणवत्ता बहुत बेहतर मानी जाती है। इसी वजह से दुबई जो दुनिया में सबसे बड़ी रिफाइनरी मानी जाती है, उसने कच्चे माल की आपूत के लिए ब्राजील के बजाय भारत को तरजीह दी है। लेकिन यह बहुत आश्चर्यजनक भी है कि हम चीनी के शुद्ध आयातक भी बन रहे हैं।
वर्ष 2007-08 के तीनों मौसम के दौरान बहुत ज्यादा चीनी का उत्पादन हुआ। देश में अगले मौसम में इसका फायदा नजर नहीं आएगा और चीनी का आयात वर्ष 2009-10 में ज्यादा हो सकता है।
हालांकि जैन का मानना है कि भारत नियमित निर्यातक बन सकता है। इसकी वजह से किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और उन्होंने गन्ने के रकबे में जो कमी की थी उसमें भी सुधार होगा और फसल की उत्पादकता में भी बदलाव नजर आएगा। (BS HIndi)
मसाला उद्यान का सपना साकार
कोच्चि February 25, 2009
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 20 करोड़ रुपये की लागत से बना मसाला उद्यान चालू हो गया है। मसाला बोर्ड ने ऐसे 7 मसाला उद्यान बनाने की योजना बनाई थी।
छिंदवाड़ा का मसाला उद्यान इस कड़ी का पहला उद्यान है। इस उद्यान के पहले चरण में एक लहसुन सुखाने वाला संयत्र मसाला बोर्ड ने स्थापित किया है।
एसटीसीएल ने भी यहां भाप से सफाई करने वाली इकाई लगाई है इसके अलावा 17 फरवरी को भारत सरकार का एक उपक्रम भी चालू हो गया। यह उद्यान छिंदवाड़ा-नागपुर हाइवे पर छिंदवाड़ा के नजदीक लास गांव की 18 एकड़ जमीन पर बनाया जा रहा है।
इस उद्यान के लिए अत्याधुनिक मशीनें जर्मनी से मंगाई गई हैं। इसके अलावा भाप से सफाई करने वाली सुविधा इसलिए तैयार की जा रही है ताकि बेहतरीन गुणवत्ता वाले मसाले और उससे जुड़े उत्पादों का निर्यात विकसित देशों मसलन ब्रिटेन, जापान और अमेरिका जैसे देशों में और भी बढ़े।
मसाला बोर्ड ने केरल, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मसाला उद्यान स्थापित करने की योजना बनाई है ताकि इलायची, काली मिर्च, हल्दी, लाल मिर्च, अदरक और बीज वाले मसाले की फसल तैयार की जा सके।
छिंदवाड़ा उद्यान की परियोजना में खासतौर पर लहसुन और मिर्च के उत्पादन पर ध्यान दिया जाएगा क्योंकि छिंदवाड़ा के इलाके में इन दोनों फसलों की पैदावार बहुत होती है। आंकड़ों की मानें तो इस क्षेत्र में 33,228 टन लहसुन का उत्पादन 2769 हेक्टेयर जमीन पर होता है जबकि 25,152 टन मिर्च का उत्पादन 3144 हेक्टेयर जमीन पर होता है।
मध्यप्रदेश देश में दूसरा सबसे ज्यादा लहसुन उत्पादन करने वाला राज्य है। यहां लगभग 1,82,500 टन लहसुन का उत्पादन 41,735 हेक्टेयर जमीन पर होता है। भारत 716 टन लहसुन का निर्यात करता है और वर्ष 2007-08 के दौरान लहसुन उत्पादों का भाव 7.41 करोड़ रहा।
भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए पहले से ही 20 करोड़ रुपये खर्च किया है। बहुत जल्द ही एक गुणवत्ता की परीक्षण करने वाली लेबोरेट्री भी उद्यान में जल्दी ही बनाया जाएगा।
मसाला बोर्ड की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक एसटीसीएल की भाप से सफाई करने और पीसने वाली इकाई भी 8 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया है। इस इकाई की क्षमता है कि यह 2 टन कच्चे माल का प्रसंस्करण कर सके। (BS HIndi)
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 20 करोड़ रुपये की लागत से बना मसाला उद्यान चालू हो गया है। मसाला बोर्ड ने ऐसे 7 मसाला उद्यान बनाने की योजना बनाई थी।
छिंदवाड़ा का मसाला उद्यान इस कड़ी का पहला उद्यान है। इस उद्यान के पहले चरण में एक लहसुन सुखाने वाला संयत्र मसाला बोर्ड ने स्थापित किया है।
एसटीसीएल ने भी यहां भाप से सफाई करने वाली इकाई लगाई है इसके अलावा 17 फरवरी को भारत सरकार का एक उपक्रम भी चालू हो गया। यह उद्यान छिंदवाड़ा-नागपुर हाइवे पर छिंदवाड़ा के नजदीक लास गांव की 18 एकड़ जमीन पर बनाया जा रहा है।
इस उद्यान के लिए अत्याधुनिक मशीनें जर्मनी से मंगाई गई हैं। इसके अलावा भाप से सफाई करने वाली सुविधा इसलिए तैयार की जा रही है ताकि बेहतरीन गुणवत्ता वाले मसाले और उससे जुड़े उत्पादों का निर्यात विकसित देशों मसलन ब्रिटेन, जापान और अमेरिका जैसे देशों में और भी बढ़े।
मसाला बोर्ड ने केरल, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मसाला उद्यान स्थापित करने की योजना बनाई है ताकि इलायची, काली मिर्च, हल्दी, लाल मिर्च, अदरक और बीज वाले मसाले की फसल तैयार की जा सके।
छिंदवाड़ा उद्यान की परियोजना में खासतौर पर लहसुन और मिर्च के उत्पादन पर ध्यान दिया जाएगा क्योंकि छिंदवाड़ा के इलाके में इन दोनों फसलों की पैदावार बहुत होती है। आंकड़ों की मानें तो इस क्षेत्र में 33,228 टन लहसुन का उत्पादन 2769 हेक्टेयर जमीन पर होता है जबकि 25,152 टन मिर्च का उत्पादन 3144 हेक्टेयर जमीन पर होता है।
मध्यप्रदेश देश में दूसरा सबसे ज्यादा लहसुन उत्पादन करने वाला राज्य है। यहां लगभग 1,82,500 टन लहसुन का उत्पादन 41,735 हेक्टेयर जमीन पर होता है। भारत 716 टन लहसुन का निर्यात करता है और वर्ष 2007-08 के दौरान लहसुन उत्पादों का भाव 7.41 करोड़ रहा।
भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए पहले से ही 20 करोड़ रुपये खर्च किया है। बहुत जल्द ही एक गुणवत्ता की परीक्षण करने वाली लेबोरेट्री भी उद्यान में जल्दी ही बनाया जाएगा।
मसाला बोर्ड की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक एसटीसीएल की भाप से सफाई करने और पीसने वाली इकाई भी 8 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया है। इस इकाई की क्षमता है कि यह 2 टन कच्चे माल का प्रसंस्करण कर सके। (BS HIndi)
सोने में निवेश करने में बरतें सावधानी
हर बार जब इक्विटी या दूसरे बाजारों पर मंदड़ियों का कब्जा होता है तो निवेशक पैसा लगाने के लिए सोने की शरण में जाना मुनासिब समझते हैं। इस बार भी कुछ अलग नहीं है और सोना कई लोगों के लिए सुरक्षित विकल्प बन गया है। जैसा कि बाजार में तेजी के वक्त होता है , निवेशक उत्पाद विशेष के पीछे दौड़ना नहीं छोड़ते भले उसमें नियमित आधार पर इजाफा क्यों न हो रहा हो। वास्तव में यह किस्सा इक्विटी , प्रॉपर्टी और कच्चे तेल जैसे कई उत्पादों के साथ हो चुका है और इस बार बारी सोने की है जो ऐतिहासिक ऊंचाइयां छूने में लगा है। जैसी कि उम्मीद है , सोना आगे भी रिकॉर्ड स्तरों तक जा सकता है। यह कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि निवेशकों को निवेश की अपनी रणनीतियों को लेकर थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि ऐसे हालात में वह आसानी से नुकसान की चपेट में आ सकते हैं। अगले 12-24 महीने के दौरान सोना निश्चित रूप से आकर्षक विकल्प है लेकिन मौजूदा स्तरों पर निवेश के इस उत्पाद के साथ जोखिम भी जुड़ा है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह बात है कि मांग के बजाय ऐसे दूसरे कारण हैं जो कई दूसरे उत्पादों के साथ सोने की कीमत बढ़ा रहे हैं। इन कारणों में सोने को लेकर निवेशकों में उत्साह बढ़ने और सट्टेबाजों की ओर से धातु में दिलचस्पी बढ़ना शामिल है। मौजूदा हालात में मांग की तस्वीर पर निगाह डालना काफी फायदेमंद है। कई लोगों ने इस बात पर गौर किया होगा कि मांग की प्रकृति में साफ तौर पर बदलाव आ रहा है। घरेलू खरीदार कीमतों में तेज उछाल की वजह से गहनों के लिए सोना नहीं खरीद रहे हैं। शादियों के मौसम के बावजूद ज्वैलर शिकायत कर रहे हैं कि बिक्री में दम नहीं है। दूसरी ओर निवेशक , मंदी के इस दौर में निवेश के एक विकल्प के तौर पर सोने में खासी दिलचस्पी ले रहे हैं और सुनहरी धातु में लगाई जाने वाली रकम में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वास्तव में बीते छह महीने के दौरान डेट के बाद सोना दूसरा सबसे पसंदीदा निवेश उत्पाद बनकर उभरा है। कई लोगों का मानना है कि कुछ वक्त बीतने पर न केवल छोटे निवेशक बल्कि संस्थागत निवेशकों की ओर से लगाई जाने वाली रकम का अंश सोने में बढ़ेगा क्योंकि दुनिया भर में माहौल करेंसी से सोने की ओर मुड़ रहा है। जब दूसरे विकल्प आकर्षक बन जाते हैं तो इसका यह मतलब होगा कि सोने की कीमतों में उथल - पुथल बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर बिकवाली का दबाव देखने को मिलेगा। इसलिए निवेशकों को अपनी निवेश की अवधि को लेकर संजीदा रुख अपनाना होगा और साथ ही कीमतों की चाल पर करीबी निगाह रखनी होगी। छोटी से मध्यम अवधि के लिए निवेश करने वाले लोगों के लिए सोना वास्तव में आकर्षक विकल्प दिख रहा है और इसकी तुलना इनकम फंड जैसे कुछ डेट विकल्पों के साथ की जा सकती है। कई लोग इस बात को लेकर दुविधा में हैं कि एक्सचेंज ट्रेडेड फंड चुना जाए या फिर गोल्ड फंड जो दूसरी धातुओं और खनन कंपनियों में भी निवेश करता है। सोने की कीमतों में भारी उछाल के बावजूद गोल्ड फंड का प्रदर्शन ईटीएफ से कमतर रहा है और इसलिए फिलहाल गोल्ड फंड की तुलना में ईटीएफ बेहतर विकल्प जान पड़ रहे हैं , खास तौर से छोटी अवधि के निवेशकों के लिए। (ET Hindi)
केंद्र ने राज्य सरकारों से गेहूं का स्टॉक खरीदने को कहा
नई दिल्ली: इस सीजन के गेहूं खरीद के लिए बातचीत शुरू होने के साथ ही सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल, बफर स्टॉक में अभी भी पिछले साल खरीदे गए गेहूं का 60 फीसदी हिस्सा रखा हुआ है। ऐसे में नई खरीद के बाद स्टॉक रखने के लिए सरकार के पास पर्याप्त जगह नहीं होगी। इसीलिए, केंद्र सरकार ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वे बफर स्टॉक से गेहूं बाहर निकाले। गौरतलब है कि अभी भी पिछले साल का 1.36 करोड़ टन गेहूं सरकारी गोदामों में रखा है। इस मामले में खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा, 'पिछले साल राज्यों ने केंद्र सरकार से सार्वजनिक वितरण के लिए अनाज का कोटा बढ़ाने की गुजारिश की थी। इस साल मैं उन्हें बफर स्टॉक से अनाज निकालने को कह रहा हूं।' उन्होंने कहा कि पिछले साल की खरीद का 60 फीसदी गेहूं अभी भी स्टॉक में है जबकि अप्रैल से सरकार इस सीजन के गेहूं खरीदने की तैयारी में है। 2008 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने गेहूं की रिकॉर्ड 2.2682 करोड़ टन की खरीदारी की थी। इसमें अकेले पंजाब से 1 करोड़ टन, हरियाणा से 52 लाख टन और उत्तरप्रदेश से 31 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। पवार ने कहा, 'मैं पिछले साल खरीदे गए गेहूं को व्यवस्थित करने में लगा हूं, जिसका 60 फीसदी अभी में गोदामों में ही है।' उन्होंने कहा कि यह बड़ी समस्या है क्योंकि सरकार नई खरीद के लिए तैयार है। पिछले हफ्ते सरकार ने संसद में कहा था कि एफसीआई के अनुमान के मुताबिक 2009-10 के रबी सीजन के लिए पंजाब में 43.62 लाख टन और हरियाणा में 44.81 लाख टन गेहूं रखने की अतिरिक्त क्षमता की जरूरत है। कृषि मंत्री का कहना है कि धान की फसल अच्छी होने और केंद्र के 30 लाख टन गेहूं खरीदने के बावजूद ऐसी दिक्कत चावल के स्टॉक के साथ नहीं होगी। पवार ने किसानों को दाल और तिलहन की पैदावार बढ़ाने को कहा क्योंकि देश सालाना इन चीजों के आयात पर तकरीबन 18,000 करोड़ रुपए खर्च करती है। उन्होंने कहा कि खाद्य तेल पर सरकार हर साल 10,000 करोड़ रुपए और दाल पर 7,000-8,000 रुपए खर्च करती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन हालातों को बदलने की जरूरत है क्योंकि ये देश के लिए अच्छा नहीं है। पवार ने किसानों को कहा कि दाल और तिलहन की पैदावार बढ़ाकर देश से बाहर जाने वाली रकम को रोका जा सकता है। (ET Hindi)
24 फ़रवरी 2009
वैश्विक बाजारों में कॉपर के भाव तेज
नई दिल्ली/लंदन/शंघाई। सोमवार के कारोबार के दौरान भारत समेत दुनिया के सभी बाजारों में कॉपर की कीमतों में तगड़ी तेजी देखी गई। लंदन मेटल एक्सचेंज में जहां कॉपर पांच फीसदी की उछाल के साथ कारोबार करता देखा गया। वहीं शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में भी कॉपर वायदा में तेजी दर्ज की गई। भारत में महाशिव रात्रि की वजह से हाजिर बाजार बंद रहे। लिहाजा इस तेजी का असर देर शाम से शुरू हुए महज वायदा कारोबार पर ही दिख सका। लंदन मेटल एक्सचेंज में थ्री मंथ कॉपर वायदा करीब पांच फीसदी से ज्यादा की बढ़त के साथ करीब 3,300 डॉलर प्रति टन पर कारोबार करता देखा गया। कारोबारियों के मुताबिक मुख्य रुप से अमेरिका सरकार द्वारा सिटी ग्रुप में हिस्सेदारी बढ़ाने की संभावना से कॉपर को सहारा मिला है। (Business Bhaskar)
एफसीआई का गेहूं रिलीज नहीं होने से बाजार में तेजी
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा बिक्री के लिए जारी 25 हजार टन गेहूं के रिलीज आर्डर नहीं हो पाने के कारण बाजार में गेहूं में दो-तीन दिनों में ही 25-30 रुपए प्रति क्विंटल की तेजी आ गई है। जैसे ही एफसीआई का गेहूं जारी होगा, कीमतें नीचे आ सकती हैं। दिल्ली बाजार में गेहूं के भाव बढ़कर 1210 से 1225 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। उत्पादक राज्यों में गेहूं का स्टॉक समाप्त होने के करीब है। इसलिए नई फसल तक फ्लोर मिलों को एफसीआई से ही गेहूं लेना पड़ेगा। जब तक एफसीआई का गेहूं बाजार में नहीं आता, दिल्ली बाजार में इसके भावों में 10-15 रुपए प्रति क्विंटल की तेजी और आ सकती है।एफसीआई द्वारा दिल्ली में 28 फरवरी तक एक लाख टन गेहूं टेंडर के माध्यम से बेचना था। इसमें से 25 हजार टन गेहूं का पहले ही उठाव हो चुका है। करीब 25 हजार गेहूं के टेंडर 1032 से 1045 रुपए प्रति क्विंटल में हो चुके हैं लेकिन गेहूं देने के लिए अभी तक एफसीआई की तरफ से फ्लोर मिलों को रिलीज आर्डर नहीं मिले हैं। एफसीआई ने पिछले सप्ताह 50 हजार टन गेहूं की बिक्री के लिए और टेंडर मांगे हैं जो मंगलवार तक भरे जाने हैं। ऑल इंडिया रोलर फ्लोर मिल फैडरेशन की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि एफसीआई द्वारा गेहूं देने में देरी के कारण ही दिल्ली बाजार में गेहूं की कीमतें बढ़ी हैं। चालू सप्ताह में एफसीआई के गेहूं का उठाव शुरू होने की संभावना है तथा 50 हजार टन गेहूं की बिक्री के लिए जो टेंडर मांगे गए हैं उसका उठाव मार्च के मध्य तक होने की संभावना है। इसलिए जैसे ही एफसीआई के गेहूं का उठाव शुरू होगा भाव में गिरावट बनने की उम्मीद है। बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी और अभी तक के मौसम को देखते हुए चालू सीजन में देश में गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष के 784 लाख टन के लगभग बराबर ही बैठने की संभावना है। एफसीआई के गोदामों में गेहूं का बकाया स्टॉक तय फसल से करीब ढ़ाई गुना होने के कारण नई फसल की खरीद के समय गेहूं रखने में दिक्कत आ सकती है। पिछले वर्ष एफसीआई ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 226 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। चालू सीजन में एफसीआई ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य 200 लाख टन का रखा है। उत्पादन में बढ़ोतरी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में इजाफा होने से चालू सीजन में गेहूं की खरीद 220 से 230 लाख टन हो सकती है। चालू वर्ष में केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 80 रुपये की बढ़ोकर कर भाव 1080 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। (Business Bhaskar)
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