नई दिल्ली January 01, 2009
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का कहना है कि आयात नीति में ढील देने से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। दूसरी तरफ अन्य चीनी कारोबारियों का कहना है कि सरकार आयात करने की तत्काल इजाजत दे देती है तभी इसका फायदा मिलेगा।
देर करने पर निर्यात करने वाले देश कच्ची चीनी की कीमत बढ़ा सकते है और वर्ष 1994 की तरह सरकार को रिफाइन्ड चीनी का आयात करना पड़ सकता है। चालू सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में चीनी उत्पादन में गिरावट की आशंका को देखते हुए सरकार घरेलू खपत की पूर्ति के लिए आयात नीति में ढील देने पर विचार कर रही है। इसके तहत चीनी मिलें बिना किसी शुल्क के कच्ची चीनी का आयात कर उसे रिफाइन कर घरेलू बाजार में बेच सकेंगीं। माना जा रहा है कि कच्ची चीनी का आयात ब्राजील से किया जाएगा। कच्चे तेल की कीमत कम होने के कारण ब्राजील में इन दिनों एथेनॉल बनाने का काम नहीं हो रहा है। चालू सीजन में 200 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान लगाया गया है जो कि पिछले साल के मुकाबले करीब 25 फीसदी कम है। देश में चीनी की खपत इस साल के उत्पादन अनुमान से लगभग 35 लाख टन अधिक है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का कहना है कि कच्ची चीनी के आयात से उन्हें कोई लाभ इसलिए नहीं मिलने वाला है कि बंदरगाह से काफी दूर होने के कारण उनका ढुलाई खर्च काफी अधिक होगा। बंदरगाह के पास या फिर महाराष्ट्र की चीनी मिलों को इसका जरूर फायदा मिलेगा। चीनी उत्पादन के लिहाज से उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है। और इस साल उत्तर प्रदेश में गन्ने के उत्पादन में 30-35 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चीनी मिल दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, 'सरकार को आयात नीति में छूट देने की जगह लेवी की चीनी से मिलों को मुक्त कर देना चाहिए। कुल उत्पादन का करीब 25 फीसदी हिस्सा उन्हें लेवी के रूप में सरकार को लगभग 1300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से देना पड़ता है।' उधर चीनी के थोक कारोबारियों का कहना है कि सरकार अगर तुरंत आयात नीति में छूट का फैसला ले लेती है तो बाजार में इसका प्रभाव जरूर पड़ेगा और चीनी का स्टॉक नहीं हो पाएगा। लेकिन इस मामले में विलंब करने से इसका कोई फायदा नहीं होगा और सरकार को आने वाले समय में रिफाइन्ड चीनी का आयात करना पड़ सकता है। फिलहाल चीनी की कीमत 2050 रुपये प्रति क्विंटल है और फरवरी-मार्च तक इसमें 3-4 रुपये प्रति किलोग्राम की तेजी आ सकती है। वर्तमान नीति के तहत चीनी मिलों को कच्ची चीनी को शून्य शुल्क पर आयात करने की छूट है। पर उन्हें उन चीनी को रिफायन करने के बाद दो वर्षों के भीतर निर्यात करना होता है। सहकारिता चीनी मिलें आयात नीति को इस तरह से परिवर्तित करना चाहती हैं कि वे आयातित कच्ची चीनी को रिफायनिंग के बाद घरेलू बाजार में बेच सकें और बाद में उतनी ही मात्रा में सफेद चीनी बाद में निर्यात कर सकें। निजी चीनी मिलें मौजूदा नीति में कोई भी ढील दिए जाने का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि देश में चीनी की पर्याप्त उपलब्धता है। उन्हें इस बात की आशंका है कि आयातित चीनी के कारण घरेलू कीमतें नरम पड़ेंगी जिसमें हाल में तेजी आई है। (BS Hindi)
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