कोच्चि December 17, 2008
वर्तमान में भारतीय काली मिर्च बाजार गंभीर संकट से जूझ रहा है क्योंकि देश में काली मिर्च का भंडार ऐतिहासिक रूप से घट कर 3,000 टन रह गया है।
कमोडिटी एक्सचेंजों का कुल भंडार इसी स्तर का आंका गया है और घरेलू तथा विदेशी कारोबार के लिए यह मुश्किल से 4 से 5 सप्ताह ही चल पाएगा। उत्पादक, कारोबारी और स्टॉकिस्ट किसी के पास काली मिर्च नहीं रह गई है। इसलिए पिछले कुछ महीनों से स्थानीय बाजार में आपूर्ति लगभग शून्य हो गई है। काली मिर्च के एक अग्रणी व्यापारी के अनुसार यह काली मिर्च की गंभीर कमी का संकेत हैं। उनके अनुसार पिछले तीस साल में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है। बाजार सूत्रों के मुताबिक अगले महीने के अंत में काली मिर्च के कारोबार में डिलिवरी संबंधी डीफॉल्ट होने की संभावना बन रही है। ऐसी स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक नई फसल की आवक से बाजार में मजबूती नहीं आ जाती। इस कारण बाजार प्रणाली चरमरा सकती है क्योंकि सट्टा आधारित कारोबार अभी भी सक्रिय हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि एक अग्रणी कमोडिटी एक्सचेंज संकट प्रबंधन में लगा हुआ है। काली मिर्च का 90 प्रतिशत निर्यात करने वाले इस देश के अग्रणी निर्यातकों के साथ पिछले कई दिनों से लगातार संपर्क में है। भंडार कमजोर पड़ने से ऐसा माना जा रहा है कि एक्सचेंज कठिन दौर से गुजर रहा है।सीजनल घरेलू मांगों की पूर्ति एक्सचेंजों के भंडार से की जा रही है और यह बात दिलचस्प है कि घरेलू बाजार के लिए एमजी1 ग्रेड की काली मिर्च का अनुभव नया है। विदेशी मांग घटने के कारण घरेलू बाजार बिना किसी समस्या के परिचालित हो रहा है। लेकिन परिस्थितियां जनवरी-मध्य से बदल सकती हैं। नए सीजन की फसल के आने में विलंब होने से संकट और गंभीर हो सकता है क्योंकि टर्मिनल बाजारों को केरल के दक्षिणी जिलों से बहुत कम मात्रा में आपूर्ति हो रही है। केरल के इस हिस्से में फसल की कटाई जोर-शोर से चल रही है।आम तौर पर काली मिर्च की कटाई नवंबर के अंत से शुरू होती है और दिसंबर-मध्य से इसकी आवक शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार, उत्पादन केंद्रों से मिली खबरों के मुताबिक, आपूर्ति में जनवरी अंत तक ही तेजी आ पाएगी। इसलिए, तब तक विदेशी और घरेलू बाजारों को कमोडिटी एक्सचेंजों के अल्प भंडार से काम चलाना चाहिए।गौरतलब है कि काली मिर्च का भंडार कम होने के बावजूद पिछले कुछ हफ्ते से इसकी कीमतों में कमी देखी जा रही है। विश्व भर में कीमतों में गिरावट आ रही है और यूरोपियन यूनियन तथा अमेरिका की मांग अपेक्षाकृत काफी कम है। अधिकांश विदेशी खरीदार वैश्विक आर्थिक संकट को देखते हुए खरीदारी से पीछे हट रहे हैं और उन्हें अगले फसल सीजन का इंतजार है।हर जगह काली मिर्च की कीमतें साल 2008 के न्यूनतम स्तर पर आ गई हैं क्योंकि ब्राजील सबसे कम कीमत 2,050 डॉलर प्रति टन की पेशकश कर रहा है। वर्तमान में भारतीय एमजी1 की कीमत 2,300 से 2,350 डॉलर प्रति टन है जबकि वियतनाम 2,525 डॉलर प्रति टन की पेशकश कर रहा है।अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थानीय मुद्राओं की मूल्य वृध्दि के कारण वैश्विक बाजार को कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी होने का इंतजार है। वैश्विक काली मिर्च कारोबार के लिए फिलहाल यह एकमात्र सकारात्मक कारक है। फरवरी तक भारत और वियतनाम नई फसल केसाथ कोराबार में सक्रिय हो जाएंगे लेकिन वैश्विक मंदी बाजार को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। अगला सीजन वैश्विक काल मिर्च कारोबार के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अभी बाजार न्यूनतम स्तर पर है और कई जटिल समसयाओं से जूझ रहा है। (BS Hindi)
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