नई दिल्ली December 28, 2008
कच्चे पाम तेल पर फिर से आयात शुल्क लगाए जाने की संभावना पर वनस्पति तेल निर्माताओं ने ऐतराज जताया है। वनस्पति तेल निर्माताओं ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू बाजार में यह उत्पाद महंगा हो सकता है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपे एक संयुक्त ज्ञापन में वनस्पति मैन्यूफैक्चरर्स एसोसियशन (वीएमए) और इंडियन वनस्पति प्रोडयूसर्स एसोसियशन (आईवीपीए) ने कहा है कि जब सारे तिलहनों के बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहे हों तब कच्चे पाम तेल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी करना उचित नहीं होगा। मालूम हो कि वनस्पति तैयार करने में कच्चे पाम तेल का खूब इस्तेमाल होता है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल में केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों पर आयात शुल्क घटाकर 7.5 फीसदी तक सीमित कर दिया और कच्चे तेलों पर इस शुल्क को बिल्कुल ही सीमित कर दिया। हाल में कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क थोप दिया, हालांकि कच्चे पाम तेल का आयात इस प्रभाव से अछूता रहा। गौरतलब है कि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसियशन के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते वाणिज्य मंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क लगाने की मांग की थी।वनस्पति तेल निर्माता उद्योग जगत के इस धड़े की मांग से असहमत है। कच्चे पाम तेल सहित इस समूह के अन्य तेलों का खाद्य तेलों के कुल आयात में 85 फीसदी की हिस्सेदारी है। देश में हर साल तकरीबन 63 लाख टन खाद्य तेलों का आयात होता है।वनस्पति तेल निर्माताओं का कहना है कि पाम तेल पर आयात शुल्क बढ़ा तो श्रीलंका और नेपाल से सस्ते वनस्पति तेलों की आवक बढ़ जाएगी। इसका घरेलू वनस्पति तेल उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इनका कहना है कि मूंगफली तेल की कीमत 2007 में 65 रुपये प्रति किलो से घटकर 61 रुपये प्रति किलो तक आ गई है। वहीं सोयाबीन तेल की कीमत तब के 46.80 रुपये से गिरकर 42.50 रुपये तक आ गई है। लेकिन पिछले साल भर में सरसों और तिल की कीमतों में वृद्धि हुई है। फिलहाल सरसों तेल का थोक भाव 61.50 रुपये प्रति किलो है जो पिछले साल 52.80 रुपये थी। (BS Hindi)
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