24 दिसंबर 2008
जूट नीति 2005 बेअसर, अधिकारियों की मौज बरकरार
कोलकाता: जूट उद्योग के आधुनिकीकरण और उसका दायरा बढ़ाने (डायवर्सिफिकेशन) जैसे दो अहम कार्यों पर ध्यान देने वाली राष्ट्रीय जूट नीति, 2005 बेनतीजा साबित होती दिख रही है। इस नीति में जूट के पारंपरिक उत्पादों के उत्पादन के कुल 15 फीसदी के बराबर नए उत्पादों के उत्पादन (डायवर्सिफिकेशन) का लक्ष्य रखा गया था। इस लक्ष्य के पूरा होने के कोई आसार नहीं हैं। जानकारी के मुताबिक जूट का डायवर्सिफिकेशन उसके पारंपरिक उत्पादों के मुकाबले महज पांच फीसदी या उससे भी कम है। पारंपरिक तौर पर जूट का इस्तेमाल बोरी और बैग बनाने में होता है। भारतीय जूट उद्योग की सबसे ज्यादा कमाई इन्हीं से होती है। इस नीति के असफल होने के बावजूद जूट के उत्पादों का प्रचार करने वाली जेएमडीसी और एनसीजेडी जैसी संस्थाओं के अधिकारियों में जूट उद्योग के डायवर्सिफिकेशन के लिए लगने वाले विदेशी व्यापार मेलों और नुमाइशों में हिस्सा लेने के लिए जोश में कोई कमी नहीं आई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक जेएमडीसी और एनसीजेडी के अधिकारी जूट डायवर्सिफिकेशन के लिए होने वाले सेमिनारों और अंतरराष्ट्रीय मेलों में जाने के बहाने हर साल 30 विदेशी यात्राएं कर रहे हैं। उनकी यात्राओं का जूट डायवर्सिफिकेशन के क्षेत्र में कोई फायदा नहीं हो रहा है। कहने का मतलब है कि जूट टेक्नोलॉजी मिशन (जेटीएम) और डायवर्सिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिए होने वाली प्रचार योजनाओं पर खर्च को बिना किसी जवाबदेही के इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पैसे के नियमित ऑडिट की जरूरत है। हर तिमाही में इन संस्थाओं से जवाब मांगा जाना चाहिए कि इन विदेशी यात्राओं और व्यापार मेलों में जाने से क्या फायदा हुआ है। सरकार को चाहिए कि वह इस बात की जांच करे कि जेटीएम को मिलने वाले 380 करोड़ रुपए को नोडल एजेंसियां किस तरह खर्च कर रही हैं। अधिकारियों की लापरवाही पर लगाम कसे जाने की जरूरत है क्योंकि इस समय पीपी सेक (बोरियां) और दूसरे पॉलीथीन उत्पाद जूट उत्पादों को तगड़ी कारोबारी टक्कर दे रहे हैं। ईएमए योजना के खत्म होने के बाद जूट इंडस्ट्री को करारी चोट लगी है। जूट कारोबारियों ने इस योजना को दोबारा लागू करने के लिए सरकार से अपील की है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला है। इस पूरे मामले पर केन्द्रीय जूट मंत्रालय का जिद्दी रवैया साफ दिखाई दे रहा है। संसद ने हाल में जूट इंडस्ट्री को मदद देने के लिए जूट बोर्ड का गठन किया है। यह काफी नहीं है। जरूरत है ईमानदारी कि जो राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों, दोनों को दिखानी होगी। डायवर्सिफिकेशन से अलग आधुनिकीकरण की भी यही हालत है। मशीनों की खरीद के लिए सरकारी मंजूरी मिलने में खामख्वाह होने वाली देर की वजह से इस पर बुरा असर पड़ रहा है। (ET HIndi)
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