कोलकाता December 25, 2008
अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमतें दरकते हुए अपनी बुलंदियों से 60 फीसदी लुढ़क चुकी है और घरेलू बाजार में भी यह 25 फीसदी फिसला है।
ऐसे में आने वाले साल में स्टील इंडस्ट्री में मार्जिन का स्तर कमोबेश उसी तरह रहने के आसार हैं, जैसा उस समय था, जब इसकी कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गई थी। स्टील के विभिन्न उत्पादों की कीमतें ढलान पर हैं, तो कच्चे माल का हाल भी इससे इतर नहीं है। पिछले साल कोकिंग कोल का अनुबंध 305 डॉलर प्रति टन के स्तर पर किया गया था, जो इससे एक साल पहले के मुकाबले करीब 200 फीसदी ज्यादा था। लेकिन अब इसके गिरने के आसार हैं क्योंकि हाजिर बाजार में यह 240 डॉलर प्रति टन के स्तर पर मिल रहा है।जून-जुलाई के महीने में अच्छी क्वॉलिटी का लौह अयस्क 150 डॉलर प्रति टन पर मिल रहा था, लेकिन अब यह सिर्फ 57 डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध है। सितंबर महीने से स्टील सेक्टर की सेहत सुधरने के संकेत मिलने लगे थे। पिछले एक पखवाडे में लौह अयस्क की कीमत में 10 फीसदी का उछाल आया है, जो बताता है कि स्टील की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है।फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल्स इंडस्ट्रीज (फिमी) के प्रेजिडेंट राहुल बाल्डोटा के मुताबिक, स्टील की कीमतों में बढ़ोतरी की कई वजहें हैं। चीन के कुछ स्टील प्लांट फिर से खुलने लगे हैं और इसका स्टॉक भी काफी कम हो गया है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर के मध्य में चीनी बंदरगाहों पर स्टील का जितना स्टॉक था, उसमें 30 लाख टन की कमी आई है। बाल्डोटा ने कहा कि चीन सरकार द्वारा घोषित 586 अरब डॉलर का पैकेज स्टील सेक्टर को मजबूती दे सकता है।उत्तम गैल्वा स्टील के निदेशक (वाणिज्य) अंकित मिगलानी ने कहा - अगर मांग के स्तर पर देखें तो बाजार निचले स्तर से उबर चुका है। उन्होंने कहा कि जनवरी की शुरुआत में खरीदार निश्चित रूप से अपने स्टॉक की समीक्षा करेंगे और ऐसे में फरवरी में इसकी मांग एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। एस्सार स्टील के मुख्य कार्यपालक अधिकारी जतिंदर मेहरा को उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष यानी 2009-10 की पहली तिमाही से मांग में तेजी आएगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल मांग के बारे में बताना मुश्किल है क्योंकि लोग अपने स्टॉक को बेच रहे हैं यानी वे वहां से पैसा निकाल रहे हैं। एंजेल ब्रोकिंग के विशेषक्ष पवन बडर् ने कहा कि कुछ कंपनियों के अनुबंध जून-जुलाई में समाप्त होंगे। उन्होंने कहा कि जब तक ये कंपनियों इन अनुबंधों को नए सिरे से अंजाम नहीं देतीं, तब तक इसका असर उनके मार्जिन पर पड़ता रहेगा। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में अगला छह महीना मार्जिन पर दबाव बनाए रखेगा।हालांकि उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 09-10 में मार्जिन का स्तर वही रहेगा जो कि वित्त वर्ष 08-09 में रहने वाला है। इसमें कच्चे माल की कीमत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। वर्तमान वित्त वर्ष की पहली छमाही में स्टील की कीमतों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हुई और यह जून-जुलाई में अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गया था।इस दौरान हॉट रोल्ड कॉयल की कीमत 1200 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई थी। इसके बाद अगस्त महीने से मांग में कमी आने लगी। मांग में कमी के चलते देसी के साथ-साथ विदेशी यानी अंतरराष्ट्रीय उत्पादकों को उत्पादन में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ा।सेक्टर से जुड़े सभी पक्ष उम्मीद कर रहे हैं कि फिलहाल सबसे पहले मांग पैदा हो न कि कीमत में सुधार। उन्होंने कहा कि स्टील की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करती है और जब तक वहां सुधार नहीं होता, कीमतों में उछाल की उम्मीद करना बेमानी है। (BS Hindi)
26 दिसंबर 2008
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