नई दिल्ली December 28, 2008
सरकार द्वारा दूसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की तैयारियों के बीच इस्पात उद्योग ने विदेशों से सस्ते इस्पात की आवक नियंत्रित करने के लिए प्रतिपूरक शुल्क लगाने तथा आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
सेल के प्रमुख एस. के. रूंगटा ने उद्योग की चिंताओं को सरकार के समक्ष रखा है। इसमें इस्पात उत्पादों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा 4 प्रतिशत का विशेष अतिरिक्त शुल्क लगाने की मांग की गई है ताकि घरेलू उद्योग को बचाया जा सके। वैश्विक आर्थिक गिरावट के चलते चीन एवं यूक्रेन आदि देशों की स्टील कंपनियों ने अपने भंडार घटाने शुरू कर दिए हैं और वे भारत को भारी निर्यात कर रही हैं। इसके मद्देनजर घरेलू विनिर्माता आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया है, जिसे उद्योग जगत ने अपर्याप्त बताया है।इस्पात उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पांच फीसदी का शुल्क भारत में सस्ते आयात को नियंत्रित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भारत सस्ते स्टील से पट जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बातों के अलावा 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।आधारभूत संरचना और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में स्टील की मांग घटी है क्योंकि आर्थिक मंदी का इन पर गहरा असर पड़ा है। जिंदल स्टील के निदेशक सुशील मारू ने कहा कि केंद्रीय बिक्री कर की समाप्ति के अलावा सरकार को उत्पाद शुल्क भी घटाना चाहिए।उन्होंने कहा कि आरबीआई को सिस्टम में और रकम उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टर के लिए पर्याप्त क्रेडिट मुहैया हो सके। जिंदल स्टील के निदेशक ने कहा कि फिलहाल लॉन्ग प्रॉडक्ट पर काउंटरवेलिंग डयूटी नहीं लगती, लेकिन अब इसे लगाई जानी चाहिए। साथ ही इस जिंस पर आयात शुल्क भी बढ़ाया जाना चाहिए। बीजिंग ओलंपिक के समय भारतीय स्टील निर्माताओं ने काफी चांदी काटी थी क्योंकि उस समय मांग बढ़ गई थी और इस वजह से कीमत भी काफी ऊंची चली गई थी। साल की दूसरी छमाही में स्टील में करीब 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि मांग काफी घट गई थी और इस वजह से निर्माताओं ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमत 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अब यह 550 डॉलर प्रति टन के आसपास घूम रही है। (BS Hindi)
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