जयंत मांगलिक , प्रेसिडेंट, रेलिगेयर
दुनिया भर के कमोडिटी बाजार और भारत में खास तौर से कमोडिटी वायदा के लिए 2008 एक यादगार साल रहा। कच्चा तेल, सोना, एल्युमीनियम, तांबा, सोयाबीन और काली मिर्च समेत दूसरी कई कमोडिटी ने अभूतपूर्व ऊंचाइयां छुईं और फिर हैरत में डालते हुए अत्यंत निचले स्तरों तक आ गईं। वजह साफ है कि कि कीमतें इतने उच्च स्तरों तक पहुंच गईं कि मांग पर असर पड़ा। दरअसल यह कीमतों के तय होने की किताबी प्रक्रिया है। ऊंचे दामों से उत्पादकों और कारोबारियों को अल्पकालिक लाभ हुआ लेकिन यह बहुत जल्दी, बहुत ज्यादा मिलने जैसी बात थी। उपभोक्ताओं ने खरीदारी रोकने का फैसला किया और कीमतों में गिरावट शुरू हो गई। जैसा कि हमने अतीत में कई बार देखा है कम मांग का पीछा करने वाली कम कीमतों के साथ गिरावट का दौर शुरू होता है। इस साल से एक बुनियादी सबक यह मिला कि कमोडिटी के दामों की इमारत कच्चे तेल की कीमतों पर खड़ी होती है और इसलिए ऊर्जा के अहम स्रोतों पर लगातार निगाह रखना काफी महत्वपूर्ण है। देश के कमोडिटी एक्सचेंज में वायदा कारोबार के लिए यह साल कुछ-कुछ अपवाद की तरह रहा है क्योंकि सबसे ज्यादा कारोबार देखने वाली कमोडिटी की कीमतें भी काफी टूटी हैं लेकिन वायदा कारोबार की रफ्तार नहीं थमी। यह स्थिति इक्विटी बाजारों से ठीक उलट है जहां शेयरों की कीमतों के साथ कारोबार भी लुढ़का। इसका यह मतलब हुआ कि कमोडिटी कारोबार को अब ज्यादा से ज्यादा लोग संजीदगी से ले रहे हैं और कमोडिटी को न केवल अमेरिका और यूरोप, बल्कि भारत में भी स्वीकार्य संपत्ति श्रेणी के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। भारत में कमोडिटी वायदा बाजारों के लिए 2008 एक और वजह से भी विशेष रहा जो शायद और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। वजह है, नियामक संस्थाओं को स्वतंत्र बनाने की दिशा में उठाए गए कदम। साल की शुरुआत एक अध्यादेश की घोषणा के साथ हुई जिसमें नियामक की स्वायत्तता पर जोर दिया गया। हालांकि यह अध्यादेश अपनी समयावधि के साथ खत्म हो गया लेकिन इसने स्वायत्तता के लिए मंच तो तैयार कर ही दिया। यह अध्यादेश सरकार की मानसिकता में बदलाव का संकेत भी था। संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही इससे जुड़ा विधेयक पारित कर दिया जाएगा और नियामक को जरूरी अधिकार मिल जाएंगे। अध्यादेश खत्म होने के कुछ ही समय बाद चार कमोडिटी (चना, सोया ऑयल, रबड़ और आलू) के कारोबार पर पाबंदी लगा दी गई थी लेकिन छह महीने बाद उन्हें दोबारा लिस्ट करा दिया गया। अब हालांकि गेहूं, चावल, उड़द दाल और तूर दाल को भी दोबारा लिस्ट कराने का कदम उठाया जा रहा है और यह नियामक के संकेत से पहले ही शुरू हो सकता है। देश में कमोडिटी कारोबार के लिए यह जाता हुआ साल काफी यादगार रहा और 2009 भी कई कारणों से बेहतरीन संभावना दिखा रहा है। इससे भी ज्यादा उम्मीद 2008 में रखी गई नींव पर बुलंद इमारत खड़ी करने की है। एक बार नियामक सशक्त और स्वतंत्र हो जाए, तो कमोडिटी कारोबार के और बढ़ने तथा मजबूत होने की उम्मीद की जा सकती है। शुरुआत के लिए पहला कदम कमोडिटी में ऑप्शन ट्रेडिंग हो सकता है। इससे किसानों, कॉपरेट और बड़े ग्राहकों को व्यावहारिक जोखिम प्रबंधन टूल मुहैया कराए जा सकेंगे जैसा कि वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है। दूसरा, म्यूचुअल फंड और बैंकों को कमोडिटी कारोबार में निवेश करने की इजाजत देने से बाजारों को वांछित गहराई और नकदी दी जा सकेगी। एक बार ऐसा हो जाए फिर कमोडिटी में पीएमएस के लिए इजाजत अनिवार्य है। कमोडिटी कारोबार को दुनिया भर में संपत्ति की एक श्रेणी के रूप में स्वीकार किया गया है इसलिए यह सुविधा निवेशकों को बाजारों में प्रशिक्षित पेशेवरों के साथ सक्रियता से हिस्सा लेने का मौका देगी। हम एक कदम और आगे जा सकते हैं और भारतीयों को अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजारों तक पहुंच मुहैया करा सकते हैं। कीमतों के मोर्चे पर दो साफ राहें नजर आ रही हैं। अगर मंदी को खत्म करने के लिए झोंका गया पैसा जाया जाता है तो यह मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। लेकिन अगर रणनीति कामयाब होती है तो इससे मांग बढ़ेगी और सीधे असर के तौर पर कमोडिटी के दामों में इजाफा होगा। लब्बोलुआब यह है कि गाड़ी किसी भी राह पर आगे क्यों न बढ़े, जहां तक कमोडिटी का सवाल है तो गंतव्य एक ही होगा।कमोडिटीजHindi)
23 दिसंबर 2008
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