23 दिसंबर 2008
OPEC ने घटाई सप्लाई पर क्रूड में नहीं आई तेजी
मुंबई: स्टॉक के लगातार बढ़ने और दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी गहराने से मांग में कमी आने की आशंका को देखते हुए कच्चे तेल की कीमतें पिछले चार साल के न्यूनतम स्तर पर आ गईं। विशेषज्ञों ने कहा है कि तेल कीमतों में गिरावट का दौर समाप्त नहीं हुआ है तथा आने वाले सप्ताहों में भाव और गिरने की पूरी गुंजाइश है। इसके बावजूद है कि ओपेक ने अपनी हाल की बैठक में उत्पादन में भारी-भरकम कटौती का एलान किया है। इस घोषणा के बाद भी बाजार में निराशा जारी है और कीमतें लुढ़कती जा रही हैं। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नायमेक्स) में पिछले सप्ताह के मुकाबले जनवरी कॉन्ट्रैक्ट के वायदा भाव में 26 फीसदी की गिरावट आई और भाव 33.87 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए। इसी तरह घरेलू बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर जनवरी कॉन्ट्रैक्ट के भाव में 15 फीसदी की गिरावट आई और वे 2,051 रुपए प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गए। 11 जुलाई को भाव 147 डॉलर प्रति बैरल के पहुंचने के बाद से अब तक कच्चे तेल की कीमतों में 77 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। घरेलू बाजार में भी कच्चे तेल की कीमतें में ऐसी ही गिरावट आई। इस सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपए में 2.8 फीसदी की मजबूती आई है। एक डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य 47.25 रुपए के स्तर पर आ गया है। डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में मजबूती आने से कमोडिटी की कीमतों में उतार या चढ़ाव आने की संभावना भी कम हुई है। एंजेल कमोडिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि ओपेक द्वारा उत्पादन में की गई कटौती का असर कच्चे तेल की कीमतों पर छोटी अवधि में कुछ खास नहीं होगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'हमारा मानना है कि छोटी अवधि में कच्चे तेल के वायदा भाव गिरकर 30 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ सकते हैं। इस सप्ताह कच्चे तेल के भाव 32 डॉलर से लेकर 48 डॉलर के बीच में रह सकते हैं।' आनंद राठी कमोडिटीज के सुबोध गुप्ता का मानना है कि बाजारों में छुट्टियों का माहौल दिख रहा है, ऐसे में ज्यादा उत्साह की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा, 'कुल मिलाकर 30 डॉलर प्रति बैरल पर कच्चे तेल को आने वाले दिनों में अच्छा समर्थन मिल सकता है।' इससे पहले इसी सप्ताह ओपेक ने उत्पादन में प्रतिदिन 22 लाख बैरल की कटौती की घोषणा की थी, लेकिन भंडार के लगातार बढ़ने और मांग में कमी से यह कटौती कीमतों पर अपना जलवा दिखाने में नाकामयाब रही। कटौती के बाद भी कीमतों में गिरावट को रोक पाने में असमर्थ ओपेक इस मुद्दे पर चर्चा के लिए जनवरी में फिर बैठक कर सकता है। यहां तक कि मंदी से निजात पाने के लिए अमेरिकी फेडरल बैंक ने भी ब्याज दरों को घटाकर शून्य कर दिया है। कई अमीर देशों के मंदी में फंसने और भारत तथा चीन की विकास दर में गिरावट आने के बीच दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती कर रहे हैं। (ET Hindi)
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