21 दिसंबर 2008
जूट टेक्नोलॉजी मिशन के भटकने का अंदेशा
कोलकाता : जूट प्रौद्योगिकी मिशन (जेटीएम) योजना को लागू करने की रफ्तार धीमी पड़ती जा रही है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार आश्वासन के बावजूद 356 करोड़ रुपए की जेटीएम योजना के मिनी मिशन IV के तहत आने वाले कुछ जरूरी अंग लक्ष्य प्राप्त करने में असफल साबित हो रहे हैं। योजना के लक्ष्य के अनुरूप लागू करने के लिए इन मुद्दों पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इन मुद्दों में श्रमिकों को प्रशिक्षण (6.1), उत्पादन में सुधार और तकनीक गुणवत्ता प्रबंधन (टीक्यूएम) (6.3), मशीनरी और प्लांटों की खरीदारी (पूंजी छूट) (6.4) और डाइवर्सिफाइड सेक्टर के लिए जूट पार्क स्थापित करना (7.5) शामिल हैं। ढीले-ढाले ढंग से चल रहे मिनी मिशन IV के अध्ययन से पता चलता है कि निचले स्तर के श्रमिकों की क्षमता के विकास के लिए अधिकतर मिलों के पास एचआरडी प्रोग्राम नहीं हैं और उनके पास वरिष्ठ स्तर पर परंपरागत एवं डाइवर्सिफाइड जूट उत्पादों की सही जानकारी रखने वाले कुशल सुपरवाइजर भी नहीं है। मुख्य रूप से श्रमिक आधारित जूट इंडस्ट्री के कामकाज के स्तर में सुधार लाने के लिए इसमें तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सूत्रों का मानना है कि सॉफ्टवेयर विकसित कर सरल पढ़ाई के जरिए उन्हें शिक्षित करने की जरूरत है। उनका कहना है कि यह के-यान इंटीग्रेटेड मल्टीमीडिया टूल्स की तरह होनी चाहिए। छठी अधिकार प्राप्त समिति (ईसी) ने इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश दिए थे लेकिन इस साल जुलाई में दो बैठकें करने के बावजूद नियोजन एवं निगरानी समिति बदलते वातावरण में उद्योग की आधारभूत जरूरतों की पहचान कर पाने में नाकाम रही है जबकि बैठक में इजमा जूट मिलों को ट्रेनिंग देने का प्रस्ताव पेश कर चुकी है। (ET Hindi)
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