आर्थिक दृष्टि से यह साल बहुत उतार चढ़ाव वाला रहा है। सेंसेक्स से लेकर सोना और कच्चे तेल से लेकर महंगाई तक सबने चढ़ने-उतरने के नये कीर्तिमान बनाए। प्रणव सिरोही और कपिल शर्मा ने लिया है जायजा
प्रणव सिरोही और कपिल शर्मा / December 30, 2008
इस साल शेयर बाजार के गिरने से सोने में निवेश को बढ़ावा मिला वहीं मांग की कमी के चलते सोने की कीमतों में गिरावट भी दर्ज हुई।
सोने ने 10 जनवरी को 10,705 रुपये प्रति दस ग्राम की अपनी निम्नतम कीमत से अपनी दौड़ शुरू करने के बाद 10 अक्टूबर को 13,885 रुपये के साल के सबसे उच्चतम स्तर को भी छुआ। कमजोर होते रुपये और आयात में हो रही कमी के चलते 29 दिसंबर को ही सोने की कीमत 13,720 रूपये रही जो पिछले ग्यारह सप्ताह में सबसे ज्यादा है। सोने के बाजार का अगर सालाना आकलन शुरु किया जाए तो 1 जनवरी को सोने की कीमत 10,630 रूपये थी जो मार्च की शुरूआत तक 13,100 रूपये तक रही। लेकिन मार्च के अंत से सोने की कीमतों में गिरावट शुरू हुई। जून के अंत में सोने की कीमतें 11,000-12,000 रुपये प्रति दस ग्राम के आसपास ही रहीं।सोने के व्यापारियों का मानना था कि इसका कारण शेयर बाजार गिरने से निवेशकों का सेफ्टी जोन में रहना था। लेकिन शेयर बाजार ढहने से निवेशकों का रुख सोने की लिवाली की ओर हुआ और जुलाई की शुरुआत से बाजार में सोने की फिर से कीमतें बढ़ना शुरु हुईं। सोने की कीमतें अक्टूबर के अंत से 12,800 से 13,700 रुपये के बीच ही रही हैं। सोना कारोबारियों का मानना है गाजा पट्टी में युद्ध छिड़ जाने से सोने के आयात में कमी आ रही है। ऐसे में आने वाले समय में सोने की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है।तेल के उबाल से मिली राहतकच्चा तेल-आर्थिक उथल पुथल के इस बीते साल में कच्चे तेल में भी सबसे ज्यादा उबाल देखा गया तो साल के जाते-जाते कच्चे तेल की कीमतें टूट भी गई हैं। जुलाई में जब कच्चा तेल लगभग 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था तब पूरी दुनिया में हो हल्ला मच गया था। गोल्डमैन सैक्स जैसे निवेशक बैंक जोर-जोर से घोषणा करने लगे कि साल के आखिर तक कच्चा तेल 200 डॉलर प्रति बैरल का स्तर पकड़ लेगा।इंडियन बॉस्केट की कीमत भी 3 जुलाई 142.04 डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इसके चलते सरकारी तेल कंपनियों को खूब चूना लग रहा था। अनुमान लगाया गया कि इस साल सरकारी तेल कंपनियों को ढाई लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।सरकार को न चाहते हुए भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा करना पड़ा। लेकिन इसके बाद में कच्चे तेल की कीमतों में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई और यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक टूट गईं। सरकार ने भी कीमतों में कमी करने में देरी नहीं की। अर्नेस्ट एंड यंग में साझीदार अजय अरोड़ा का मानना है कि आने वाले साल में कच्चे तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही बनी रहेंगी। इस साल भारतीय बास्केट की सबसे कम कीमत 24 दिसंबर को 37.08 डॉलर प्रति बैरल रहीं। चांदी में रहा मिला जुला रुख चांदी के बाजार ने भी इस साल बहुत हिचकोले खाए हैं। साल के पहले दिन चांदी की कीमत 19,560 रुपये प्रति किलोग्राम थी लेकिन शेयर बाजार गिरने से और निवेशकों की लिवाली के चलते 15 जुलाई को चांदी की कीमत अपने उच्चतम स्तर 26,250 पर पहुंच गई।इसके बाद बाजार ने रुख पलटा और रुपये के कमजोर होने से निवेशकों की बिकवाली शुरु हो गई। ऐसे में चांदी की कीमतों की उल्टी गिनती शुरु हो गई। अगस्त से अक्टूबर के शुरुआती सप्ताह तक चांदी की कीमत 22,000-20,000 हजार के आंकड़े के बीच ही रही। लेकिन त्योहारी सीजन में आशा के अनुरुप मांग न रहने के कारण चांदी की कीमतों में और भी गिरावट आई और 21 नवंबर को चांदी अपनी कीमत के निम्नतम स्तर 16,480 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। दिसंबर के महीने की शुरुआत में भी चांदी की कीमतें 16,500 रुपये के आस-पास थी। चांदी के कारोबारियों का मानना है कि पिछले तीन सप्ताह में ही चांदी की कीमतों में 1000-1200 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। 29 दिसंबर को चांदी की कीमत 18,145 रुपये थी जो 16 अक्टूबर के बाद से सर्वाधिक रही है। गाजापट्टी में चल रहे युद्ध की वजह से आयात में हो रही कमी के कारण नए साल में चांदी की कीमतों में फिर से बढ़ोतरी होने की संभावना है। (BS Hindi)
31 दिसंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें