नई दिल्ली December 22, 2008
विश्व भर में छाई मंदी के चलते तेल की मांग में कमी आई है और ऐसे हालात में 2009 में कच्चे तेल की कीमत 45-60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस बैंड में रहने की उम्मीद जताई जा रही है।
इस सेक्टर पर करीब से नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने यह संभावना जताई है। पिछले हफ्ते तेल की कीमत में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट 17 साल पहले हुए खाड़ी युध्द के दौरान हुई गिरावट से ज्यादा है। पिछले हफ्ते हुई भारी गिरावट पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की उत्पादन कटौती की घोषणा के बाद हुई। गौरतलब है कि ओपेक कुल सप्लाई का 40 फीसदी अकेले करता है। पिछले हफ्ते ओपेक ने कहा था कि जनवरी से संगठन 24.6 लाख बैरल कच्चे तेल की रोजाना कटौती करेगा। इस ऐलान से दुनिया भर के तेल बाजार का 2.5 फीसदी हिस्सा बाजार से बाहर चला जाएगा। ओपेक के ऐलान के दो दिन के अंदर कच्चे तेल की कीमत में 22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।मुंबई स्थित एक विशेषज्ञ ने कहा कि मांग में साफ तौर पर कमी आई है। उन्होंने कहा कि अगले साल ओपेक के ऐलान का बहुत ज्यादा असर नहीं होने वाला। उन्होंने कहा कि साल 2009 में कच्चे तेल की कीमत 50 डॉलर प्रति बैरल के पार ही रहेगी।ओएनजीसी के प्रबंध निदेशक ने कुछ समय पहले बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में कहा था कि साल 2009 में इस बात की संभावना काफी कम है कि तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल के पार जाए। उन्होंने कहा कि मांग में निश्चित रूप से काफी कमी आई है।ओपेक ने 15 दिसंबर को कहा था कि पूरी दुनिया में साल 2009 के दौरान तेल की खपत में 0.2 फीसदी की कमी आएगी और यह 856.8 लाख बैरल रोजाना पर पहुंच जाएगा। उधर, अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने 9 दिसंबर को कहा था कि दुनिया भर में साल 2009 के दौरान तेल की खपत में 0.5 फीसदी की कमी आएगी और यह 853 लाख बैरल पर टिकेगा। विभाग का यह आकलन पिछले एक दशक के दौरान मांग में आने वाली सबसे बड़ी गिरावट को दर्शाता है। 17 दिसंबर को ओपेक ने रोजाना 24.6 लाख बैरल तेल का उत्पादन कम करने का ऐलान किया था। ओपेक एक जनवरी 2009 से यह लागू करेगा। 13 सदस्यीय इस संगठन ने अपने ऐलान को मजबूती देने के रूस और कजाकिस्तान को भी ऐसा ही करने का अनुरोध किया था। रुस और कजाकिस्तान ने 17 दिसंबर को कहा था कि वे भी तेल उत्पादन में कटौती कर सकते हैं।साल 2008 में अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल कीमत में 63 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। जुलाई में तेल की कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंची थी और इस कीमत ने भारत समेत दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ा दिया था। जुलाई की कीमत से कच्चा तेल अब तक 75 फीसदी से ज्यादा लुढ़क चुका है क्योंकि पूरी दुनिया में आर्थिक संकट गहरा गया है। इस संकट के चलते तेल समेत कई और जिंसों की मांग पर काफी असर पड़ा है।दिल्ली स्थित एक फर्म के विशेषज्ञ ने कहा कि जब तेल की कीमतें आसमान पर थीं तो दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाओं ने खरीदारी से अपने आपको दूर रखा था। इस वजह से मांग में कमी आई। आर्थिक मंदी ने इसमें और इजाफा कर दिया।उद्योग पर नजर रखने वालों का कहना है कि बराक ओबामा की वैकल्पिक ऊर्जा को समर्थन देने की नीति निश्चित रूप से तेल की खपत पर असर डालेगा। ओएनजीसी के एक अधिकारी ने कहा कि तेल की कीमतें सामान्य तौर पर जाड़े के मौसम में बढ़ती रही हैं जब अमेरिका और यूरोप में इसकी मांग में अच्छा खासा उछाल आता है क्योंकि लोग अपना घर गर्म रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इस मौसम में तेल की धार पतली है। तेल उत्पादकों के लिए यही चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अगर जाड़े में तेल की कीमतों का गिरना जारी रहता है तो गर्मी के मौसम में इसमें और गिरावट देखी जा सकती है। (BS Hindi)
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