कोच्चि December 24, 2008
आइसक्रीम आदि में फ्लेवर के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला वनीला एक बार फिर किसानों के आकर्षण का केंद्र बनने जा रहा है।
दरअसल पिछले कई साल से इसकी आपूर्ति में खासी कमी हुई है, जिससे अब इसकी किल्लत हो गई है। किल्लत के इस दौर में वनीला किसानों की झोली भर रही है, क्योंकि कीमतें 150 फीसदी तक बढ़ गई हैं। अभी हाल में इसकी कटाई पूरी हुई है, लेकिन फसल में करीब 35-40 फीसदी की गिरावट देखी गई है और यह 900 टन के आसपास जा टिका है। ऐसे में उम्मीद है कि किसान अगली सीजन में इसकी पैदावार की तरफ ध्यान देंगे, यानी वे ज्यादा क्षेत्र में इसकी फसल लगाएंगे। पिछले सीजन में 50-55 रुपये प्रति किलो की दर से बिकने वाला वनीला बीन्स फिलहाल 125 रुपये पर मिल रहा है। लेकिन वर्तमान कीमत केरल और कर्नाटक केकिसानों को ज्यादा उत्साहित नहीं कर पाया है, लेकिन इस सेक्टर के लिए उम्मीद जरूर जगा गया है।केरल के अग्रणी वनीला किसान एम. सी. साजू ने कहा कि पैदावार में कमी के चलते कीमत में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि 2008 के सीजन में उत्पादन में 60 फीसदी की कमी आएगी। उन्होंने कहा कि पिछले सीजन में 1400 टन वनीला बीन्स की पैदावार हुई थी जो इस साल घटकर 800-900 टन के आसपास रहने वाली है। हरे बीन्स की कीमत 85 रुपये प्रति किलो से शुरू हुई थी, जो बढ़कर 140 रुपये तक चली गई थी, लेकिन अंतत: 125 रुपये प्रति किलो पर स्थिर हो गई है। कीमत को सम्मानजनक स्तर पर लाने में वनीला इंडिया प्रोडयूसर्स कंपनी का हस्तक्षेप अच्छा खासा काम आया।कंपनी के प्रबंध निदेशक पॉल जोस ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हमने 50 टन बीन्स 100-135 रुपये की रेंज में खरीदा है। कंपनी ने इस सीजन में फिलहाल वनीला गोल्ड स्टैंडर्ड और वनीला केक पेश किया है और बाजार में इसे अच्छा रिस्पांस मिला है। वनीला गोल्ड स्टैंडर्ड इसका रिफाइंड वर्जन है, जो मुख्य रूप से दवा उद्योग में इस्तेमाल होता है।साजू ने कहा कि पिछले 5-6 साल से वनीला की घटती कीमत ने किसानों को दूसरी फसल का रुख करने पर मजबूर कर दिया था। उन्होंने कहा कि इसी वजह से वनीला का फसल क्षेत्र 5 साल पहले के 3000 हेक्टेयर के मुकाबले फिलहाल मोटे तौर पर एक हजार हेक्टेयर में सिमट गया है। हालत ये है कि इसे उगाने वाले किसान भी फिलहाल इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहे। यही वजह है कि पैदावार में खासी कमी आई है। केरल में वनीला का फसल क्षेत्र 300 हेक्टेयर में सिमट गया है। उन्होंने कहा कि 2009 के सीजन में एक बार फिर पैदावार में गिरावट देखी जा सकती है क्योंकि कीमतें आकर्षक नहीं रह गई है।उन्होंने कहा कि मंदी के चलते विदेशों से भी इसकी मांग नहीं निकल रही, लिहाजा वनीला की कीमत में बहुत तेजी की उम्मीद फिलहाल नहीं की जा सकती। अमूल ने अगले साल 10 टन वनीला खरीदने पर सहमति जताई है और कंपनी ने वनीला कंपनी से 20 टन माल खरीद भी लिया है। वाणिज्य मंत्रालय ने प्राकृतिक वनीला को प्रमोट करने के लिए 5 करोड़ की सब्सिडी देने का वादा किया था, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं किया गया है। अक्टूबर 2008 में वाणिज्य राज्य मंत्री जयराम रमेश ने ये वादे किए थे, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें