लखनऊ December 17, 2008
लखनऊ स्थित क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान और विश्लेषण केंद्र (आरएफआरएसी) मलिहाबाद क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उपजने वाला और अपने स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर दशहरी आम के निर्यातकों को प्रमाणित करने में जुट गया है।
मालूम हो कि कुछ महीने पहले राष्ट्रीय वानिकी बोर्ड (नैशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड) ने दशहरी आम का पंजीकरण भौगोलिक संकेतक अधिनियम (जीआईए) के तहत किया था। गौरतलब है कि जीआई के तहत पंजीकरण होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में किसी उत्पाद की मार्केटिंग बेहतर तरीके से संभव हो पाती है। आरएफआरएसी इसके लिए मलिहाबादी दशहरी आम के नमूने एकत्रित करेगा, ताकि इसका डीएनए फिंगरप्रिंटिंग लिया जा सके। इस आम के सभी निर्यातकों के उत्पादों का मिलान असली दशहरी के डीएनए फिंगरप्रिंटिंग से किया जाएगा, जिससे खेप की प्रमाणिकता जांची जा सके। केंद्र निदेशक आर पी सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हमने तो इसके लिए जरूरी सारे उपकरण भी मंगा लिए हैं।बता दें कि दशहरी आम असल में लखनऊ जिले के मलिहाबाद इलाके में पैदा होता है। अपने मिठास और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर इस आम की मांग बहुत अधिक है। देश के अलावा इस आम को मुख्यत: खाड़ी के देशों, थाईलैंड, मलयेशिया और सिंगापुर को निर्यात किया जाता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मलिहाबाद इलाके में इसका उत्पादन करीब 5 लाख टन है, जबकि इसके बागान वहां 24,000 हेक्टेयर में फैले हैं। हालांकि भंडारण, पैकेजिंग और परिवहन के पुख्ता इंतजाम न होने से महज 400 टन आम ही नियर्त हो पाता है। इतना ही नहीं, जानकारों के मुताबिक यहां के आमों को पाकिस्तानी आम से तगड़ी चुनौती मिल रही है। खासकर, खाड़ी के देशों में क्योंकि यहां के बाजारों में पाकिस्तान के आम दूरी कम रहने से जल्दी और सस्ते दरों पर पहुंचते हैं। अखिल भारतीय आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष इंशराम अली ने बताया कि जीआई पंजीकरण से निर्यातकों को तभी मदद मिलेगी जब वे अपने उत्पाद की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बहाल रखेंगे। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश मंडी परिषद दशहरी आम का विपणन सालों से नवाब ब्रांड के तहत करता रहा है।परिषद के निदेशक राजेश कुमार सिंह ने बताया कि प्राय: यह देखा गया है कि जीआई पंजीकरण हासिल होने से किसी उत्पाद को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलता। हां, उस उत्पाद की पहचान अंतरराष्ट्रीय खरीदारों और उपभोक्ताओं के बीच जरूर बन जाती है।उन्होंने कहा, ''जब तक इलाके के उत्पादक यूरोपियन गुड्स एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस (यूरोगैप) को नहीं अपनाते तब तक इन्हें अमरीका और यूरोप के बाजारों में घुसने की अनुमति नहीं मिलेगी।'' यूरोगैप जैविक खेती और कीटनाशकों और उर्वरकों के न्यूनतम प्रयोग से पैदा होने वाले उत्पादों को ही मिलता है। (BS Hindi)
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