कोच्चि December 01, 2008
प्राकृतिक रबर के वायदा कारोबार पर लगा छह महीने का प्रतिबंध हटने के बाद इसके दो प्रमुख बाजारों- कोट्टायम और कोच्चि को काफी राहत मिली है।
मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एमसीएक्स), नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया नये अनुबंधों के लिए नियामक की अनुमति लेकर अब रबर के साथ-साथ आलू, चना तथा सोया तेल का वायदा कारोबार शुरू कर सकते हैं। एनएमसीई के सूत्रों ने बताया कि रबर के जनवरी, फरवरी और मार्च के अनुबंधों के कारोबार को तुरंत शुरू किया जाएगा क्योंकि इसे वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) की अनुमति पहले ही मिल चुकी है। कारोबार की शुरुआत के लिए एक्सचेंज को नियामक की केवल औपचारिक अनुमति लेनी है।प्राकृतिक रबर की कीमतें घट कर हाल में 65 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गई थीं। इस कारण वायदा कारोबार पर लगे प्रतिबंध का विरोध कमजोर पड़ गया था। दूसरी तरफ, उत्पादकों और कारोबारियों की मांग थी कि रबर बाजार, जो अभी दयनीय हालत में है, को राहत देने के लिए इसका वायदा कारोबार फिर से शुरू किया जाए। वायदा कारोबार के विरोधी भी रबर के वायदा कारोबार को पूरी तरह प्रतिबंधित करने के पक्ष में नहीं हैं। उनकी मांग है कि वायदा कारोबार में हिस्सा लेने वालों को रबर बोर्ड के साथ अपना पंजीकरण कराना चाहिए और कीमतों की घट-बढ़ की सीमा एक प्रतिशत के दायरे में रहनी चाहिए।लोगों के कड़े विरोध के बाद एफएमसी ने रबर, आलू, सोया तेल और चना के वायदा कारोबार पर इस साल मई में रोक लगा दी थी। प्रतिबंध की अवधि 6 सितंबर को समाप्त हो गई लेकिन एफएमसी ने इसे तीन महीने के लिए बढ़ा दिया था। प्रतिबंध की बढ़ाई गई अवधि भी 30 नवंबर को समाप्त हो गई है। वायदा कारोबार के पुनर्शरुआत पर केरल में मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। उत्पादकों और कारोबारियों की एक बडी संख्या ने इसका स्वागत किया। उनका मानना है कि वायदा कारोबार से रबर बाजार को राहत मिल सकती है। रबर की स्थानीय कीमतें वैश्विक कीमतों से कम हैं और वायदा कारोबार के जरिये इसे बराबरी के स्तर पर लाया जा सकता है।कोचीन रबर मचर्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एन राधाकृष्णन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि संकटग्रस्त रबर बाजार को वायदा कारोबार के शुरू होने से लाभ नहीं भी हो सकता है। वायदा कारोबार के शुरू होन से बड़े पैमाने पर सट्टा आधारित कारोबार किया जाएगा और आगे चलकर इससे बाजार को काफी नुकसान होगा।संकट से जूझ रहे रबर बाजार के लिए यह स्वागत योग्य निर्णय नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार रबर का वायदा कारोबार फिर से शुरू करने का निर्णय लेती है तो चालू महीने के अनुबंध के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कीमतों का उतार-चढ़ाव एक प्रतिशत के दायरे में रहना चाहिए। वैश्विक आर्थिक मंदी का असर पहले से ही भारतीय रबर बाजार पर देखा जा रहा है। ऐसे में बाजार को गिरने से बचाने के लिए पहले से ही एहतियात बरती जानी चाहिए। (BS hindi)
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