नई दिल्ली December 02, 2008
अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजारों में कीमतों को लेकर पाए जाने वाला सामंजस्य इन दिनों गड़बड़ा गया है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनाज की कीमत इन दिनों जहां लगातार घट रही है, वहीं देश में इनके भाव या तो स्थिर हैं या घट रहे हैं। चावल और गेहूं को ही लीजिए तो सितंबर से अब तक इनके भाव में करीब 20 फीसदी की कमी हो गई है। इसके बावजूद घरेलू बाजार में गेहूं की कीमत फिलहाल स्थिर है। वहीं चावल की कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी ही हुई है।मक्के की बात करें तो इसके अंतरराष्ट्रीय भाव में सितंबर से अब तक करीब 25 फीसदी की कमी हुई लेकिन घरेलू मोर्चे पर इसमें अब तक महज 13 फीसदी की ही कमी हुई है। विशेषज्ञों की राय में कई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में की गई जबरदस्त बढ़ोतरी से इन फसलों का बाजार भाव प्रभावित हुआ है।इसी का परिणाम है कि कीमतें फिलहाल नीचे आती नहीं दिख रही। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) के अशोक गुलाटी के मुताबिक, जब खाद्यान्न के अंतरराष्ट्रीय भाव आसमान छू रहे थे, तब देश की केंद्रीय सरकार ने अनाजों के एमएसपी में खासी बढ़ोतरी कर दी। गुलाटी कहते हैं कि इसके चलते देश में अनाजों की कीमतों में कमी नहीं हो रही है। फिलहाल अनाजों के बाजार भाव इनके आयातित भाव से ज्यादा हैं। ऐसे में इन अनाजों के सस्ते आयात का खतरा मंडरा रहा है। गौरतलब है कि गेहूं का एमएसपी 17.64 फीसदी बढ़ा और यह 1,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। धान का एमएसपी 20 फीसदी बढ़ाने के बाद इसे 900 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा दिया गया। मौजूदा साल की पहली छमाही में इस तरह के कई विरोधाभासी स्थितियों से देश के अनाज बाजार को दो-चार होना पड़ा है। कई खाद्य सामग्रियों के अंतरराष्ट्रीय भाव इस दौरान बढ़कर दोगुने हो गए हैं, लेकिन इनके घरेलू मूल्यों में महज 20 से 30 फीसदी की ही वृद्धि हो पाई। जानकारों के मुताबिक, कीमतों को नियंत्रित करने के सरकारी उपायों के चलते कीमतों पर अंकुश लगा है। जैसे कि गेहूं और चावल का निर्यात प्रतिबंधित करना और गेहूं, चावल और कच्चे पाम तेल का शुल्करहित आयात करना आदि उपाय शामिल हैं। इस तरह कई वित्तीय और मौद्रिक कदमों के उठाए जाने से इन जिंसों की घरेलू उपलब्धता बढ़ी है और इनके दामों में कमी हुई।नैशनल कमोडिटी एंड डैरिवेटिव्स एक्सचेंज के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनाविस कहते हैं कि मौजूदा वित्त वर्ष की शुरुआत में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें कम करने में मदद मिली है। वहीं गेहूं और धान की एमएसपी में हुई बढ़ोतरी से इनकी घरेलू कीमतें चढ़ी हैं। परिणामस्वरूप अच्छे उत्पादन के बावजूद इनकी कीमतों में कमी नहीं हुई। गौरतलब है कि 2007-08 में देश में गेहूं, चावल और दालों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था। अशोक गुलाटी ने उम्मीद जताई कि खाद्य पदार्थों की वैश्विक कीमतों में अगले दो-तीन महीनों में और कमी आएगी। हालांकि इनकी घरेलू कीमतों में कमी के आसार नहीं हैं। 2008 में गेहूं के रिकॉर्ड वैश्विक उत्पादन के चलते उम्मीद जताई जा रही है कि इसके अंतरराष्ट्रीय भाव में कमी आएगी। जानकारों की राय में डॉलर का मजबूत होना, कच्चे तेल की कीमतों का तेजी से नीचे गिरना और विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का गेहूं की कीमतों पर असर पड़ा है। (BS Hindi)
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