कोच्चि December 05, 2008
यूरोपीय संघ और अमेरिकी आयातकों की ओर से मांग में हुई जोरदार कमी से वैश्विक बाजार में काली मिर्च की कीमत में जबरदस्त कमी होने के आसार हैं।
भारत में तो केवल देश के उत्तरी इलाकों से ही काली मिर्च की मांग हो रही है। कारोबारियों के मुताबिक, इसी मांग के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस जिंस की कीमतें स्थिर हैं। काली मिर्च उत्पादक देशों में इसकी कीमतें फिलहाल 3,000 डॉलर प्रति टन से नीचे ही चल रही हैं। इसके बावजूद, विदेशों से इसकी मांग न के बराबर है। इसके बड़े निर्यातकों ने बताया कि उपभोक्ताओं की ओर से मांग नदारद रहने के चलते यूरोपीय संघ और अमेरिका काली मिर्च के अपने भंडार को बढ़ाने में कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं। भारत ने एमजी-1 किस्म का भाव कम करके इसे 2,350 डॉलर प्रति टन कर दिया है।इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्थितियां ऐसी बनी कि ब्राजील और इंडोनेशिया को भी कीमतें घटाने पर मजबूर होना पड़ा। ब्राजील की काली मिर्च के भाव जहां 2,200 डॉलर प्रति टन हो गए हैं, वहीं इंडोनेशियाई काली मिर्च के भाव 2,450 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए।फिलहाल वियतनाम में काली मिर्च के भाव सबसे ज्यादा चल रहे हैं। यहां के काली मिर्च 2,675 से 2,700 डॉलर प्रति टन के बीच मिल रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, दूसरे देशों की तरह वियतनाम को भी कीमतें कम करने पर मजबूर होना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए कि उसकी मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा है। इस बीच, भारत के भंडार में और कमी हुई है। उम्मीद है कि अगले हफ्ते तक देश में काली मिर्च का भंडार 2,000 टन तक पहुंच सकता है। कोच्चि के बड़े थोक कारोबारियों ने बताया कि इतने भंडार से तो देश की महज 15-20 दिनों की जरूरतें ही पूरी हो सकती है।ऐसे में अनुमान है कि अगले 3 से 4 हफ्तों में यदि नई फसल बाजार में न आई तो देश में काली मिर्च का भंडार गंभीर स्तर तक जा सकता है। हालांकि दिसंबर के पहले हफ्ते में यानी अब तक बाजार में इसकी आवक महज 20-30 क्विंटल ही रही है। उत्पादकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि केरल के दक्षिणी इलाके में इस उत्पाद की पैदावार थोड़ी कम रही है।अनुमान है कि इस बार इसकी पैदावार में 30 से 40 फीसदी की कमी हो सकती है। दक्षिणी इलाके से सामान्यत: नवंबर में आवक शुरू होती है। इस समय हाजिर बाजार में काली मिर्च की कीमतें 10,900 से 11,400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रही हैं। अनुमान है कि बहुत ही जल्द इनकी कीमतें 9,000 रुपये तक लुढ़क सकती हैं।हालांकि काली मिर्च उत्पादन के अनुमान बहुत अच्छा नहीं है। वैश्विक स्तर पर इसकी मांग के कम रहने के चलते देश में भी कीमतें लुढ़कने का अनुमान है। वैश्विक आर्थिक संकट ने इसके निर्यात पर गंभीर असर डाला है।दुनिया के बड़े उत्पादकों वियतनाम और भारत में नई फसल की आवक फरवरी और जनवरी में होने का अनुमान है। इसलिए उपभोक्ता देश फिलहाल देखो और इंतजार करो की नीति पर चलते हुए अपनी मांगों को कम कर लिया है। वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके उत्पादन में नाटकीय गिरावट के आसार नहीं हैं।जबकि भारत समेत दूसरे देशों का उत्पादन स्तर भी पिछले साल जितना ही रहने की संभावना है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें