नई दिल्ली December 01, 2008
मंदी आने से कोई कारोबारी खुश भी हो सकता है, ऐसा सोच पाना भी काफी मुश्किल है।
लेकिन सच तो यही है कि हाथों से साबुन बनाने वालों के बीच इस समय 'फीलगुड' की स्थिति है। दरअसल, पाम तेल का भाव बीते दो-तीन महीने में दो तिहाई तक नरम हो गया है, जिसके चलते साबुन उद्योग की लागत काफी कम हो गई है। कारोबारियों का कहना है कि इसके चलते इन साबुनों की कीमतें कम होगी, जिससे हाथ से बने साबुनों के कारोबार में तकरीबन 20 तक वृद्धि हो जाएगी। हाल यह है कि जिस पाम तेल के भाव कुछ महीने पहले 65 रुपये प्रति किलोग्राम थे, अब उसके दाम महज 25 रुपये रह गए हैं। हाथों से साबुन बनाने वालों का कहना है कि पॉम तेल की कीमतों में कमी होने से इन साबुनों का बाजार 20 फीसदी तक बढ़ सकता है। ऑल इंडिया सोप मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रविन्द्र कुमार जैन ने बताया कि पिछले तीन साल में अखाद्य पाम तेल, एसीड ऑयल, कास्टिक सोडा और सिलिकेट की कीमतों बढ़कर दोगुनी हो गई हैं। इसके कारण हमारा कारोबार 25 से 30 फीसदी तक गिर गया। लेकिन पाम तेल की कीमतें गिरने से हमें बाजार की रौनक फिर से लौटने की आस है। जैन के मुताबिक, पाम तेल की कीमतों में हो रही ये कमी अगर बनी रही तो गिरी हुई मांग में फिर से तेजी आ जाएगी। जैन की मानें तो इस समय दिल्ली का साबुन बाजार सालाना 100 करोड़ रुपये का है। पाम तेल की कीमतें यदि और नीचे गई तो साबुन बाजार का कारोबार भी उसी अनुपात में बढ़ेगा।उन्होंने बताया कि इस समय साबुन निर्माण में प्रयुक्त होना वाला पॉम तेल 25 रुपये प्रति किलो, एसीड ऑयल 25 रुपये प्रति किलो, कास्टिक सोडा 25 रुपये प्रति किलो और सिलिकेट 8 रुपये प्रति किलो है।पुरानी दिल्ली के नया बांस बाजार में साबुन बनाने वाली इकाई के मालिक राजीव भनोत बताते हैं कि लागत ज्यादा और मांग कम होने से हमारा उत्पादन 20-25 फीसदी तक कम हो गया था, लेकिन जैसे ही पाम तेल सस्ता हुआ मांग बढ़ने की उम्मीदें बढ़ गई हैं।ऐसे में मांग बढ़ने के अनुपात में ही उत्पादन बढ़ने के आसार हैं। शिव सोप मेकर्स के आर डी गुप्ता बताते है कि मांग कम होने से हम और पूंजी लगाने से बच रहे थे, लेकिन कीमतों में हो रही कमी आगे भी जारी रही तो हम अपने उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकते हैं। (BS Hindi)
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