लखनऊ December 08, 2008
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) की वह याचिका सोमवार को खारिज कर दी जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मौजूदा सीजन के लिए घोषित राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) को चुनौती दी गई थी।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने 18 अक्टूबर को गन्ने की सभी किस्मों की एसएपी पिछले साल की तुलना में 15 रुपये बढ़ा दी थी। न्यायमूर्ति अरुण टंडन और न्यायमूर्ति दिलीप टंडन की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस्मा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार ही गन्ने की एएसपी का बेहतर मूल्यांकन कर सकती है।गौरतलब है कि चीनी मिलों के संगठन ने 4 नवंबर को कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद 25 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस्मा की आपत्ति थी कि राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से एसएपी तय की है। यही नहीं उनका तर्क था कि कीमतें निर्धारित करने के मानदंड गलत हैं, लिहाजा इसमें कमी की जाए। गन्ने की बढ़ी हुई एसएपी निम् गुणवत्ता के लिए 137.50 रुपये प्रति क्विंटल, औसत किस्म के लिए 140 रुपये और बेहतरीन गुणवत्ता के लिए 145 रुपये है। हालांकि बाद में, 21 नवंबर को मिलों ने 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान पर सहमति जताई थी। मजेदार बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस बार भी गन्ने का वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) पिछले साल जितना यानी 81 रुपये प्रति क्विंटल ही बरकरार रखा है। सरकार का तर्क है कि उसने एसएपी तय करते वक्त सभी हिस्सेदारों की बातें सुनी और सारे उपयोगी आंकड़ों पर विचार और विश्लेषण किया है। इस विवाद का निपटारा अब तक न हो पाने और पेराई शुरू हो जाने से चीनी मिलों ने सभी किसानों और गन्ना सोसाइटियों के साथ एक करार-पत्र पर हस्ताक्षर किया है। इसमें कोर्ट का फैसला मानने की बात कही गई है। इस साल गन्ना उत्पादन में करीब 20 फीसदी की कमी का अनुमान है। इसकी मुख्य वजह पिछले करीब दो सालों से भुगतान को लेकर तमाम तरह के विवादों सहित भुगतान में विलंब होना रही है। हालांकि लखीमपुर खीरी सहकारी गन्ना विकास सोसाइटी के सदस्यों ने राज्य के गन्ना आयुक्त से अपील की है कि रिजर्वेशन ऑर्डर को खत्म कर दिया जाए। इसके तहत गन्ना किसानों को वैधानिक तौर पर अपने उत्पाद की आपूर्ति चीनी मिलों को करने पर बाध्य किया गया है। (Business Bhaskar)
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